यूँ ही राह चलते चलते - 21 Alka Pramod द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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यूँ ही राह चलते चलते - 21

यूँ ही राह चलते चलते

-21-

आज उन्हें स्विटजरलैंड से आगे के सफर के लिये निकलना था चार दिन रह कर भी मन नहीं भरा था। उनका वश चलता तो वहीं डेरा जमा लेते। पर समय की गति को कौन रोक सकता है आगे तो जाना ही था। एक बार फिर सबने अपना अपना सामान बाँधा और चल पड़े एंजिलबर्ग के बाद के अगले पड़ाव यानि कि जर्मनी की ओर। रास्ते में एक झील पड़ी जिसका आधा पानी नीला और आधा हरा था। अनुभा को प्रयाग का गंगा-यमुना का संगम याद आ गया जहाँ एक ओर से गंगा का मटमैला और दूसरी ओर से यमुना का हरा पानी मिल कर एक आड़ी तिरछी रेखा बनाता है। राह के दोनों ओर की सुरम्य वादियों को अपनी आँखों में उतारते हुये उसने सबके साथ स्विटजरलैंड से विदा लीं।

स्विटजरलैंड से जर्मनी की राह में वो स्विटजरलैंड की उत्तरी सीमा पर शिफासेन शहर में राइन फाल पर रुके ।वहाँ लगभग 150 मीटर चैाड़ा पानी का बहाव है जो गर्मी में एल्प्स ग्लेशिअर के पिघलने से और भी चैाड़ा हो जाता है और 700 क्यूबिक मीटर पानी बहता है । वहाँ के मनोरम दृश्य ने सबका मन मोह लिया । राइन फाल इतना तीव्र था कि उसके चारों ओर एक धुँध सी बन गई थी और उस फाल की छीटे इतनी दूर-दूर तक बैठे लोगों को भी भिगो रहे थे। फाल से गिरते पानी में लोग पानी का आनंद उठा रहे थे। ग्रुप के सभी सदस्य इधर-उधर घूम रहे थे । वहाँ एक स्थानीय नागरिक एक विशालकाय कुत्ता ले कर जा रहे थे तो रजत उसकी फोटेा लेने लगे। उन्हें अपने कुत्ते की फोटो लिया जाना अच्छा लगा और उन्होने उदारता पूर्वक रुक कर उसके साथ स्वयं ही सब लोगों की फोटो खींची। ऋषभ ने अनुभा और रजत की फोटो ली और रजत ने संजना और ऋषभ की, निमिषा को तो अपने तरह-तरह के पोज देने से ही फुरसत नहीं थी, सचिन बेचारा तो फोटो खिंचवा ही नहीं पा रहा था ।

चंदन और यशील किसी बात पर खिलखिला कर हँस रहे थे तभी अर्चिता वहाँ आई और यशील को लगभग खींचते हुये पानी के पास ले गई और बोली ‘‘बातें तो बाद में भी हो जाएँगी पहले यह देखो तो कितना रोमांटिक सीन। ’’

‘‘रियली इट्स आसम’’ यशील ने कहा।

अर्चिता ने कहा ‘‘ काश यहाँ हम और तुम अकेले होते।’’

‘‘ उसमें कौन सी बड़ी बात है जब कोच चले तो हम दोनो चढ़ेंगे ही नहीं, रह जाएँगे यहीं अकेले’’ यशील ने कहा।

‘‘ हाँ जैसे कि सब लोग हमें रुक जाने देंगे।’’

‘‘तुम अपनी देखो मुझे रोकने वाला तो कोई है नहीं। ’’

‘‘ हाँ जब रुकने की बात आयेगी तो तुम्हीं पीछे हटोगे’’ अर्चिता ने कहा ।

‘‘ कौन कहाँ रुक रहा है, प्लीज ऐसा मत करना नहीं तो आफत आ जाएगी अभी वेनिस में तुम लोग देर में आये थे इतने में ही आंटी बेहाश हो गयीं थीं’’ चंदन ने हाथ जोड़ कर कहा।

‘‘ अरे हम लोग मजाक कर रहे थे यार ’’ यशील ने कहा।

‘‘ देखा तुम कह रहे थे मुझे कोई नहीं रोकेगा और सबसे पहले तुम्हारे मित्र महोदय ही आ गये रोकने ।’’

सब लोग कोच की ओर चल दिये। अर्चिता और यशील अभी भी उस मनोरम दृश्य का आनंद उठा रहे थे । सुमित ने उन्हें आवाज दी तो अर्चिता और यशील चैंक पड़े, सच ही मन का मीत पास हो तो और कहीं की सुध कहाँ रहती है।दोनो ने हँस कर एक दूसरे को देखा मानों कह रहे हों, देखा कहना आसान है पर यदि रुकने की सोचें तो कौन छोड़ेगा उन्हें।

सब चल पड़े, कुछ ही घंटो में वो जर्मनी की दक्षिण सीमा में प्रवेश कर रहे थे। सीमा के चेक पोस्ट पर नियमित चेकिंग हुई और वो स्विटजरलैंड की धरती से जर्मनी की सीमा में पहुँच गये। जर्मनी के रास्ते में उन्हे अनेक नामी कम्पनियों के बोर्ड लगे दिखाई पडे। वहाँ की सड़कें बहुत चैाड़ी थीं और राह में अनेक बड़े-बड़े ट्रेलर जा रहे थे। सुमित ने बताया कि जर्मनी की जनसंख्या यूरोप में सबसे अधिक है ।

सचिन ने कहा ‘‘वैसे सुमित मैं एक बार यहाँ आ चुका हूँ और मेरा अनुभव है कि यहाँ के लोेग थोड़े रूखे होतेे हैं।’’

ऋषभ ने कहा ‘‘उन्हेंअपनी बनाई मशीनों पर गर्व जो है । ’’

सुमित ने उनकी बात से सहमत होते हुए कहा ‘‘ हाँ यह सच है तभी तो प्रायः उनकी निर्मित मशीनों पर लिखा होता है गर्व करिये कि आप के पास जर्मन मशीन है। वैसे उनका दावा गलत भी नहीं है। जर्मन मशीन आज भी उत्तम और विश्वसनीय है।’’

थोड़ी देर में वो जर्मनी के सबसे बड़े जंगल ब्लैक फारेस्ट में थे। यथा नाम वास्तव में यहाँ सड़क के दोनों ओर घने जंगल थे ये जंगल इतने घने थे कि छन कर धूप का इन जंगलों में प्रवेश दुर्लभ था । निमिषा ने सचिन से कहा ’’ देखों कितना बड़ा जंगल है खतम ही नहीं हो रहा है।‘‘

संजना बोली ‘‘और घना इतना कि अंदर जाने में ही डर लगे ।‘‘

सुमित बोले ’’सच में यह बहुत बड़ा और घना जंगल है। यह लगभग 5180 वर्ग मीटर बड़ा है और पानी की बूँद की आकार का है अर्थात दक्षिण में चैाड़ा और उत्तर में धीरे-धीरे सँकरा हो गया है। यहाँ लम्बा क्षेत्र एल्प्स के पहाड़ों का है जो ओक पाइन्स और पीच के वृक्षों से ढका है।’’

कुछ ही देर में इसी घने जंगल यानि कि ब्लैक फारेस्ट के बीच जाती राह से सब जहाँ पहुँचे वह विश्व प्रसिद्ध कुक्कू घड़ियों की फैक्टरी थी। सब लोग कुक्कू घड़ियों के बारे में अपना-अपना ज्ञान बघारते ब्लैक फारेस्ट के बीच बनी जर्मनी की विश्व प्रसिद्ध कुक्कू घड़ी की फैक्टरी में के अन्दर पहुँचे। छोटी से ले कर विशाल अनेक प्रकार की घड़ियों का भंडार था वहाँ। उस स्टोर के एक कार्मिक ने सबको कुक्कू घड़ी का इतिहास और उसकी कार्य प्रणाली समझाई। 1940 में सबसे पहली कुक्कू घड़ी बनी थी । 1760 में कुक्कू की आवाज वाली घड़ी बनी । मीना ने पूछा ‘‘यह कुक्कू की आवाज वाली घड़ी ही क्यों बनी?’’

वहाँ के कार्मिक ने बताया ‘‘ यहाँ कुक्कू चिड़िया पायी जाती है, कुक्कू चिड़िया की आवाज निकालना आसान था इसीलिये उसकी आवाज की नकल करने वाली घड़ी बनायी गई । ’’

उस स्टोर में एक बहुत ही ऊँचा स्टफ्ड बियर रखा था। वह आदमकद से कहीं ऊँचा था, उसका आकार इतना बड़ा था कि उसकी बाहों के बीच खड़े हो कर सब फोटो खिंचवा रहे थे। अर्चिता उसके आगे जा कर खड़ी हुई तो उसके विँााल आकार के सामने नन्ही बच्ची लग रही थी, उसके चेहरे की प्रसन्नता उसे और भी मासूम और प्यारा बना रही थी। यशील कैमरे की दृष्टि से बाहर आ कर फोटो क्लिक करना भूल कर उसे अपलक निहारने लगा।उसे ऐसे देखते देख कर अर्चिता के कापोल आरक्त हो उठे।उसने स्वयं को सँभालते हुए कहा ‘‘ मेरी फोटो तो लो कितनी देर पोज दूँ ?‘‘

संकेत ने आज वान्या को उसकी मनपसंद दीवार घड़ी दिला कर अपनी इतने दिनों की तमन्ना पूरी कर ही ली थी। वह वान्या से बोला ’’ इसे अपने कमरे में ही लगाना जिससे जब भी यह बोले तुम्हे मेरी याद आये ।‘‘

वान्या हँस पड़ी और उसकी बात को हवा में उड़ाते हुए बोली ’’ लगता है मेरे पास और कोई काम तो है नहीं ।‘‘

सब लोग घड़ी देखने और अपनी अपनी जेब के अनुसार घड़ी खरीदने में लगे थे। अधिकतर घड़ियाँ लकड़ी पर हाथ की नक्काशी से बनी थीं और वहाँ उस पर बने आकार वहाँ की संस्कृति पोशाक आदि को दर्शा रही थीं ।

लता जी बोली ‘‘ ये घड़ियाँ कितनी महंगी हैं इतने में तो अपने इंडिया में न जाने कितनी घड़ियाँ आ जाएँ।’’ सच ही वहाँ की घड़ियाँ भारतीय मुद्रा के अनुसार पर्याप्त महंगी थीं परन्तु वहाँ जा कर न लेने का तो प्रश्न ही नहीं था।

रजत ने एक घड़ी दिखाते हुए अनुभा से पूछा ‘‘ ये घड़ी अपने ड्राइंगरूम के लिये कैसी रहेगी?’’

वह घड़ी झोपड़ी के आकार में बनी थी जिसकी खिड़की से कुक्कू चिड़िया हर घंटे पर बाहर आती है और जितने बजे हों उतनी बार कुहू-कुहू करके अन्दर चली जाती और खिड़की बन्द हो जाती।उस झोपड़ी के आगे छोटे-छोटे आदमी औरत की नृत्य मुद्रा में जोड़ा, पेड़ आदि बने थे। इसमें कोई दो राय नहीं कि घड़ी सुन्दर थी और विशेष भी।

‘‘ हाँ है तो अच्छी, कितने की है ?’’

‘‘ सात हजार रुपये की।’’

‘‘ क्या इतनी महँगी रहने दो ’’अनुभा ने मन मार कर कहा।

‘‘ अरे मैडम यह केवल साधारण सी घड़ी नहीं, जर्मन की घड़ी है जो समय के साथ-साथ इस अभूतपूर्व समय को भी स्मरण कराती रहेगी ।’’

अनुभा को रजत की बात छू गयी उसने बात की गहराई को अनुभव किया और तुरंत घड़ी लेने के लिये अपनी स्वीकृति दे दी। आज सचिन ने भी निमिषा को नाराज करने का खतरा मोल नहीं लिया और उसने जो घड़ी पसंद की दिला दी। अनुभा ने संजना से पूछा ’’ तुमने कुछ लिया?‘‘

संजना ने बताया कि उसने अपनी बेटी के लिये गुड़िया और बेटे के लिये एक खिलौना लिया है। गुड़िया सच में बहुत सुंदर थी और उसकी उठती गिरती नीली आँखें उसे जीवन्तता प्रदान कर रही थीं।

सभी यात्रियों को दोपहर का भेाजन वहीं पर लेना था। यद्यपि उस स्टोर के निचले तल पर एक रेस्ट्रां था पर उस ग्रुप के पर्यटकों के लिये बाहर एक मंडप में इंतजाम था । रामचन्द्रन ने सुमित से फरमाइश की ‘‘ हम यहाँ का ब्लैक फारेस्ट पेस्ट्री तो कम से कम खाना चाहेंगे । ’’

सचिन ने कहा ‘‘वैसे ये तो है कि हमने खाने की जो भी फरमाइश की वह हमारे सुमित ने पूरी की है अब देखें आज क्या करते हैं।’’

आश्चर्य कि दोपहर के भोजन के बाद वास्तव में ब्लैक फारेस्ट पेस्ट्री परोसी गयी। ब्लैक फारेस्ट पेस्ट्री और उसका यह नाम यहीं की देन है। रजत बोले ‘‘उस स्थान पर किसी चीज को खाना जहाँ से उसकी उत्पत्ति हुई हो, उसका अलग ही थ्रिल है।’’

‘‘ हाँ ये तो है ’’अनुभा ने समर्थन किया। चंदन ने पूछा ‘‘क्या एक और मिल सकती है ’’ भोजन परोसने वाले ने अपनी असमर्थता व्यक्त कर दी पर चंदन तो चंदन था, तुरंत जा कर दूसरी पंक्ति में बैठ गया और हैट लगा ली जिससे उसे पेस्ट्री देने वाला पहचान न ले।

उसकी इस शरारत पर सब हँस दिये।जब उसे दोबारा भी मिल गयी तो निमिषा धीरे से बोली ’’ चीटिंग चीटिंग ।‘‘

उसने हाथ जोड़ कर चुप रहने का संकेत किया ।

अर्चिता यशील से बोली ’’ तुम्हारा दोस्त पक्का चीटर है। ‘‘

चंदन ने सुन लिया उसने कहा ’’ पर तुम्हारे यशील से कम।‘‘

अर्चिता को चंदन का तुम्हारा यशील कहना ही भा गया, वह मुस्करा दी। जब सब लंच करके निकले तो तीन बजने में दस मिनट थे। सुमित ने कहा ‘‘अगर आप लोग चाहें तो हम दस मिनट रुक जायें तो तीन बजे आप ये दीवार पर लगी कुक्कू की आवाज सुन सकते हैं।’’

उस कुक्कू स्टोर की एक दीवार पर पूरी बड़ी सी घड़ी बनी थी। सबने बच्चों के समान ताली बजा कर उसके इस प्रस्ताव का स्वागत किया, उन तालियों में सबसे तेज ताली निमिषा की थी। दीवार के बराबर घड़ी बनी थी जिसके बीच में एक खिड़की थी और सामने एक प्लेटफार्म बना था जिस पर एक जोड़ा बाहों में बाहें डाले नृत्य की मुद्रा में बना था।सब उत्सुकता से तीन बजने की प्रतीक्षा कर रहे थे।.....पाँच....चार...तीन...दो...एक......अन्ततः तीन बज गये और तीन बजते ही उस घड़ी के बीच में बनी खिड़की के दरवाजे खुल गये और उसमें से कुक्कू चिड़िया बाहर निकली उसने तीन बार कुहू-कुहू की आवाज निकाली, उसी समय एक संगीत बजने लगा और वह नृत्य वाला जोड़ा गोल गोल घूमने लगा।इतनी अद्भुत और बड़ी घड़ी देख कर सभी खुश हो गये।

क्रमशः----------

अलका प्रमोद

pandeyalka@rediffmail.com