यूँ ही राह चलते चलते - 20 Alka Pramod द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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यूँ ही राह चलते चलते - 20

यूँ ही राह चलते चलते

-20-

अगले दिन सबको 10000 फीट की ऊँचाई पर माउंट टिटलिस जाना था । सब मना रहे थे कि आज बर्फबारी न हो और धूप निकल आये क्योंकि सुमित ने बताया था कि माउंट टिटलिस पर तरह तरह के बर्फ के खेल होते हैं और वह तो तभी संभव था जब मौसम साफ होता । चुलबुली निमिषा सुमित से बोली ‘‘सुमित प्लीज आप कुछ करिये कि आज बर्फबारी न हो ’’मानों मौसम सुमित का गुलाम हो।

सुमित ने भी उसी अंदाज में कहा ‘‘ ठीक है मैं अभी भगवान से बात करता हूं ’’ सब हँस पड़े।

मन ही मन सब ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे कि धूप निकल आये नहीं तो सबका इतनी दूर जाना व्यर्थ हो जाएगा । ईश्वर ने संभवतः सबकी सुन ली, तभी तो जहाँ कल बर्फबारी हो रही थी, सभी बर्फबारी के अनुभव को आत्मसात कर रहे थे और सूर्य देवता कहीं छिपे बैठे सबके आनन्द को देख कर आनन्दित हो रहे थे। वहीं आज सूर्य देवता ने बड़ी उदारता से सबकी प्रार्थना स्वीकार कर दर्शन दे दिये थे ।

सब के चेहरे खिल उठे। रामचन्द्रन बोले ’’ अरे हम अपने श्रम का पैसा व्यय करके आये हैं, ऐसे व्यर्थ थोड़े ही न जाता ।‘‘

सचिन ने कहा ’’ अंकल खैर मनाइये धूप आ गयी नहीं तो श्रम के हो या चुराये हुए पैसे सब पानी में मिल जाते ।‘‘

सुमित ने कहा ’’ अरे आप लोग मेरे साथ आये हैं मुझे धूप तो निकालना ही था । आपको सब कुछ दिखाने की जिम्मेदारी है मेरी।‘‘

फिर रहस्यात्मक स्वर में बोला ’’ वैसे मेरी सूर्य देवता से सेटिंग भी है। ‘‘

सब हँस पड़े और फिर एक बार कोट जैकेट और कैप मफलर दस्ताने पहन कर ठंड से जंग लड़ने को तैयार हो गये । पहले कोच से केबिल कार स्टेशन तक गये। सुमित ने बताया कि माउंट टिटलिस जाने के लिये तीन केबिल कार से रास्ता तय करना पड़ेगा।

’’वाउ तीन तीन बार केबिल कार ‘‘संजना ने उत्साहित हो कहा।

पर मीना का चेहरा उतर गया, उसे केबिल कार में जाने में डर लगता था, जब इतने ऊँचे से नीचे देखो तो उसे चक्कर आने लगता था । डर जितना भी लगे मांउट टिटलिस को देखने का लोभ तो कोई भी नहीं छोड़ सकता था अतः सब पंक्ति में खड़े हो गये पहली केबिल कार में बैठने के लिये।

पहले सब समूह बना कर छः-छः लोग एक एक केबिल कार में बैठ गये ।

संकेत वान्या के साथ-साथ चल रहा था उसका उत्साह देखते बनता था उसी उत्साह में वह आवश्यकता से अधिक बोल रहा था। वान्या भी आज उसके साथ मित्रवत व्यवहार कर रही थी । वह मातोंडकर परिवार का चहेता बन गया था, श्री मातोंडकर तो उसे सदा से ही पसंद करते थे मानव से भी उनकी अच्छी बनती थी। पर आज का सूरज उसके लिये लता जी और वान्या की दृष्टि में भी बदलाव ले कर आया था।

केबिल कार में बैठने के लिये जब वो पाँचों एक केबिल में बैठे तो उसके बाद पंक्ति में यशील खड़ा था अतः उसकी बारी थी पर वह न जाने किस हिचक से रुक गया और अपने पीछे खड़े चंदन को उसने आगे भेज दिया।

केबिल से उतर कर सुमित ने सबको चेतावनी दी ‘‘ आज सब लोग सावधान रहियेगा कोई दुस्साहस करेगा तो वो अपने लिये उत्तरदायी होगा। मेरा सबके पैरेन्ट्स से विशेष अनुरोध है कि वो अपने परिवार का ध्यान रखें।’’

केबिल से दूर-दूर तक फैली बर्फ की वादी जो धूप पड़ने से रुपहली लग रही थी देखने का अलौकिक आनन्द मिल रहा था। रजत बोले ‘‘ अनु क्या तुम्हे नहीं लगता कि स्वर्ग ऐसा ही होता होगा।’’

अनुभा तो आत्मविस्मृत सी लीन थी उन दृश्यों में पता नहीं उसने रजत की बात सुनी भी कि नहीं। उसे तो लग रहा था कि प्रकृति ने चाँदी को पिघला कर इन पहाड़ों पर फैला दिया है। इतने सुन्दर इतने अद्भुत दृश्य की, उसने तो कल्पना भी नहीं की थी।

दूसरी केबिल कार काफी बड़ी थी और सबसे खास बात तो यह थी कि उसमें बीच में एक डिस्क थी जिस पर लोग खड़े होते थे, वह अपनी जगह पर धुरी पर घूमती थी जिससे डिस्क पर खड़े-खड़े लोग चा रों ओर के मनोरम दृश्यों का आनन्द ले सकते थे। प्रकृति के साथ-साथ मानव निर्मित उपकरणों ने मिल कर मानव के लिये अलौकिक दुर्लभ दृश्यों का रसपान संभव कर दिया था।

तीसरी केबिल कार में एक पंक्ति में छः सात लोगों के एक साथ बैठने लायक खुली कार थी जिसमें आगे से लाक था । रजत, अनुभा, सचिन, निमिषा, संजना, ऋषभ एक साथ इसमें बैठे । जब वह चली तो उन्हें ऐसा लग रहा था मानों वो घाटी में उड़ रहे हों। इसी प्रकार छः-सात के समूह में सब बारी-बारी से केबिल कार से सब 10000 फिट की ऊँचाई पर बर्फ की घाटी में पहुँचे। चारों ओर अदभुत दृश्य था लोग हवा से भरा स्लाइड ले कर उसमें बैठ कर बर्फ में ऊँचाई से घाटी में फिसल रहे थे और स्कीइंग का आनन्द ले रहे थे । कोई उत्साह में चीख रहा था तो कोई बर्फ उछाल रहा था । टाइम मशीन में न जाने कौन सा बटन दबा दिया गया था कि सब बच्चे बन गये थे।

सभी एक-एक स्लाइड ले कर चल दिये ।

तभी अर्चिता आ गई उसने यशील से कहा ‘‘यशील मुझे तो एडवेंचर बहुत पसंद है चलो हम लो स्कीइंग करते हैं। ’’

यशील ने कहा ‘‘ये हुई न कुछ बात, चलो हो जाय।’’

वान्या एक ओर खड़ी यशील और अर्चिता को जाता देख रही थी उसका मन तो कर रहा था कि जा कर स्कीइंग करे पर कल की दुर्घटना का चिन्ह अभी उसके मन मस्तिष्क से मिटा नहीं था और उसके मन पर बेड़ियां डाल रहा था । वह विचारमग्न थी कि पीछे से संकेत ने आ कर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा ‘‘ क्या इरादा है चलें स्कीइंग करने?’’

‘‘ नहीं बाबा अभी कल इतना तमाशा हो चुका है अब आज मैं कुछ नहीं करूँगी ’’ वान्या ने कहा।

‘‘ अरे डरने की कोई बात नहीं है यहाँ तो कोई रिस्क नहीं है देखो सब कर रहे हैं, फिर मैं हूँ न ’’ संकेत ने उसे प्रोत्साहित किया।

‘‘ पर मम्मी-पापा ने आज वार्न किया था, अभी आ जाएँगे तो बिना बात नाराज होंगे’’ वान्या ने हिचकते हुए कहा।

संकेत ने उसका हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा ‘‘कम आन तुम चलो तो लेट्स हैव फन ।’’

हिचकते हुए वान्या भी चल पड़ी। दोनों स्लाइड ले कर उस जगह पर पहुँचे जहाँ से एक गाइड सबको स्लाइड में लगे पट्टे के हुक से बाँध कर स्लाइड करने का तरीका समझा कर स्कीइंग के लिये भेज रहा था।

यशील स्कीइंग करके नीचे पहुच चुका था और अर्चिता नीचे की ओर फिसल रही थी। यशील चिल्ला रहा था ‘‘कम आन ...हुर्रे...वाउ...’’

अर्चिता भी उल्लास से चीख रही थी। वान्या ने संकेत को देखा तो उसने कहा ‘‘ पहले मैं आगे जाता हूँ फिर तुम आना। ’’

जब संकेत नीचे पहुँच गया तो उसने वान्या को आने का इशारा किया।

वान्या के मन में कल की दुर्घटना ने इतना गहरा प्रभाव छोड़ा था कि उसका साहस जवाब दे रहा था, पर सबके समक्ष वह दुर्बल भी नहीं पड़ना चाहती थी अतः स्लाइड में बैठ गयी। जब उसके फीते बाँध कर गाइड ने उसे ऊँचाई से नीचे की और धक्का दिया तो उसकी स्लाइड बर्फ के टुकड़ों को उछालती इधर-उधर हिचकोले खाती तीव्र गति से नीचे की ओर जाने लगी । वान्या ने आखें बन्द कर लीं। अचानक उसे किसी ने थाम लिया उसने आँखें खोली तो वह नीचे आ चुकी थी और संकेत उसके फीते खेालते हुए उसे उठने में मदद कर रहा था। संकेत बोला ‘‘ मजा आया न? ’’

’’ हाँ ‘‘वह बोली न जाने क्यों आँखे खेलने पर संकेत को देख कर एक क्षण को उसका मन बुझ सा गया, उसके मन में विचार आया कि काश संकेत के स्थान पर यशील ने उसे थामा होता । पर उसने स्वयं के विचार को झटक दिया और संकेत का हाथ दृढ़ता से थाम लिया। उसने मुड़ कर देखा तो यशील और अर्चिता फिर से स्कीइंग कर रहे थे। फिसल कर अर्चिता नीचे उसी के पास आ कर रुकी । उसे देख कर वह उल्लसित स्वर में बोली ‘‘ वान्या तुम और संकेत भी एक बार और स्कीइंग करो कितना मजा आ रहा है ।’’

संभवतः वान्या के संकेत के प्रति हुए रुझान ने अर्चिता के मन में उसके प्रति प्रतिद्वन्दिता विलुप्त कर दी थी इसीलिये आज वह पहली बार उससे मित्रवत बोली थी। परन्तु वान्या को उसका यह सौहार्द नहीं भाया उसे ऐसा अनुभव हुआ मानो अर्चिता वान्या को हारा हुआ जान कर प्रसन्नता पकट कर रही है, पर वह कभी अर्चिता के सामने हार नहीं मानेगी उसने मन ही मन निश्चय किया। उसी समय संकेत ने आ कर उससे पूछा ‘‘ कैसा लगा? ’’

जिस गूढ़ दृष्टि से संकेत ने देखा था उसमें बहुत कुछ निहित था। वान्या भली-भाँति समझ रही थी कि उसके ‘ कैसा लगा ’ पूछने में मात्र स्कीइंग का अनुभव नहीं वरन संकेत के साथ, उसके स्पर्श की अनुभूति के बारे में जानने की उत्सुकता भी थी। सच तो यह था कि वान्या को आज उसके साथ से उलझन नहीं हो रही थी और उसका इस प्रकार देखना उसकी चिंता करना, ध्यान रखना, मन को कहीं छू गया था। जिस प्रकार संकेत ने जान पर खेल कर उसकी जान बचायी थी वह हदय से उसकी आभारी थी और वह उसे उसका प्रतिदान देना चाहती थी। उसके जैसी व्यवहारिक लड़की को यह सोच कर मन ही मन आश्चर्य हो रहा था कि कोई किसी को क्या इतना चाह सकता है कि अपनी जान की भी परवाह न करे ? उसे अपने पूर्व में संकेत के प्रति किये व्यवहार पर पश्चाताप हो रहा था । उसने निश्चय कर लिया था कि अब वह उसका हदय नहीं दुखाएगी। इसी भावना के वशीभूत वान्या ने कहा ‘‘ अच्छा लगा आय रियली एन्जाएड ।’’

वान्या के इन शब्दों ने मानो संकेत में असीमित ऊर्जा का संचार कर दिया हो उसने वान्या का हाथ पकड़ कर कहा ‘‘ वान्या मैं तुमसे वादा करता हूँ कि मैं पूरी जिंदगी तुम्हारी रक्षा करूँगा और तुमको हर प्रकार की खुशी दूँगा। ’’

वान्या ने हँसते हुए कहा ‘‘ बस बस अभी तो आज की सोचो कल किसने देखा है ’’ वह अभी आगे बढ़ी ही थी कि उसने देखा यशील उन दोनों को हाथ थामे देख रहा है । वह सकपका गयी, उसे समझ न आया कि क्या करे। पर जब तक कि वह कुछ समझती यशील दृष्टि घुमा कर चल दिया। वान्या का मन किया कि उसे आवाज दे पर संकेत का ध्यान करके वह रुक गयी।

अनुभा थोड़ा हिचक रही थी पर रजत जब आगे-आगे स्कीइंग के लिये चले तो उसने भी साहस किया और एक बार साहस किया तो समय मानों उन्हे उनके बचपने में ले गया। जब वो बर्फ में तेजी से फिसले तो चारों ओर बर्फ उछलने लगी और वो दोनों तीव्र गति से फिसलते हुए नीचे पहुँच गये। फिर एक्सलेटर से अपनी-अपनी स्लाइड ले कर ऊपर आये। निमिषा और सचिन तो बार-बार फिसल रहे थे।

श्रीनाथ और श्रीमती श्रीनाथ जो पूरे ग्रुप में सबसे गंभीर और संभवतः बड़ी आयु के थे उन्होंने भी स्लाइड का आनन्द लिया। रामचन्द्रन के पाँव में तो चोट थी और वह एक स्टिक ले कर चलते थे वो स्लाइडिंग के लिये तैयार हो गये। वहाँ खड़ी गाइड ने उन्हे सावधान भी किया पर उनका साहस प्रशंसनीय था, उन्होने कहा ’’यदि मुझे कुछ होता है तो ये मेरी जिम्मेदारी है’’ और बैठ गये स्लाइड में । गाइड ने उनके फीते बाँध कर उन्हें फिसलने को छोड़ दिया।अनुभा साँस रोके देख रही थी और ईश्वर से मना रही थी कि वो सही सलामत नीचे पहुँच जायें। पर उनके माथे पर एक भी शिकन नहीं थी वरन् इस अनुभव ने उनके चेहरे पर एक उत्फुल्लता का संचार कर दिया था।

आज तो किसी भी स्थिति में उन सबका आने का मन ही नहीं हो रहा था, पर समय हो गया था अतः मन मार कर उन अविस्मरणीय स्मृतियों को मन में समेटे वो केबिल से वापस नीचे आये। वहीं पर एक भारतीय रेस्ट्रां में सबने खाना खाया। स्विटजरलैंड की बर्फ की वादियों मे जब विशुद्ध भारतीय रोटी पनीर की सब्जी आई तो भाग-दौड़ कर, खेल कर क्लांत लोगों की भूख दोगुनी हो गई । अब उन्हे माउंट टिलिस की हसीन वादियों को विदा दे कर वापस लौटना था ।

क्रमशः-----------

अलका प्रमोद

pandeyalka@rediffmail.com