होने से न होने तक - 37 Sumati Saxena Lal द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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होने से न होने तक - 37

होने से न होने तक

37.

मीनाक्षी पटोला की गाढ़े लाल रंग की साड़ी पहन कर आयी थी। बहुत सुंदर और बहुत ख़ुश लग रही थी। लाल रंग उस पर हमेशा फबता है। पर कालेज में इतने चटक रंग पहन कर तो वह कभी नहीं आती...वह भी इतनी भारी साड़ी। सच तो यह है कि प्रायः कोई भी इतने भड़कीले रंग नही पहनता,‘‘मीनाक्षी,आज बहुत सुंदर लग रही हो। क्या कहीं जा रही हो ?’’मैंने पूछा था।

‘‘नहींऽऽ’’ उसने बड़े झूम के कहा था। लगा था जैसे पूरी तरह से लहरा कर बोला हो उसने। वह अजब तरह से हॅसी थी फिर मेरी तरफ तिरछी निगाह से देखा था,‘‘क्यां पूछा ऐसा तुमने?’’

‘‘कुछ नही यार ऐसे ही। आज कुछ ज़्यादा ही अच्छी लग रही हो।’’

मीनाक्षी की आंखो में कुछ अजब सा भाव है। मैं असहज होने लग गयी थी। तब तक नीता भी आ गयी थी। उसने मीनाक्षी की तरफ देखा था,‘‘अरे मीनाक्षी बहुत सुंदर साड़ी पहने हो। तुम भी बहुत अच्छी लग रही हो। कहीं जा रही हो क्या?’’ उसने मेरी ही बात दोहरायी थी।

मीनाक्षी ने घूर कर नीता की तरफ देखा था और उस की निगाहें उग्र होने लगी थीं,‘‘क्या समझती हैं आप मुझे ?’’फिर उसने बारी बारी से हम दोनो की तरफ देखा था और उसने मेरे कंधे पर अपना दॉया हाथ रख दिया था,‘‘क्यों हॅसे तुम दोनों मुझे देख कर? तुम दोनो मुझे क्या समझते हो?’’ उसने दॉत किटकिटा लिए थे,‘‘क्या समझते हो तुम सब मुझे ?’’वह कुछ देर तक निगाहें टेढ़ी करके हम दोनो को घूरती रही थी। उसके स्वर में तेज़ी है,‘‘मैं बिल्कुल पवित्र हूं। मेरे साथ जो कुछ हुआ सब पवित्र था।’’मेरें कंधे पर उसके हाथों की पकड़ कसने लगी थी। नीता स्तब्ध सी वैसे ही खड़ी रही थीं। मैं अपने कंधे पर उसकी कठोर पकड़ से मुक्त होने की कोशिश करने लगी थी। नीता ने बहुत प्यार से मीनाक्षी की पीठ सहलायी थी,‘‘हॉ मीनाक्षी। हमे पता है। तुम परेशान क्यों हो रही हो।’’

तब तक मीनाक्षी ने मेरे कंधो पर से अपनी पकड़ शिथिल कर दी थी। नीता ने मुझे इशारा किया था और धीरे से फुसफुसायी थी,‘‘जल्दी से केतकी को बुलाओ।’’

मेरे कुछ भी समझ नहीं आया था किन्तु मैं केतकी को बुलाने के लिए भागी थी। केतकी को आता देखते ही नीता कमरे के बाहर को निकल आयी थी और कुछ क्षण के लिए दोनो ने फुसफुसा कर कुछ बात की थी और केतकी लगभग दौड़ते हुए मीनाक्षी के बगल में जा कर खड़ी हो गयी थी और उसने मीनाक्षी को कंधे से समेट लिया था। नीता अपना पर्स और सामान समेटने के लिए अन्दर आयी थी तो मैं ने पूछा था,‘‘क्या हुआ नीता ?’’

‘‘पता नहीं अम्बिका। लगता है नर्वस ब्रैकडाउन है।’’

मैं स्तब्ध रह गयी थी। लगा था उस शब्द की भयावहता दिमाग में गूॅजने लगी हो पर जैसे उस के पूरे अर्थ समझ ही न आ रहे हो। नीता और केतकी मीनाक्षी को लेकर चले गए थे ‘‘दीपा दी को बता देना,’’ नीता ने जाते जाते कहा था।

‘‘नीता क्या बताना है ?’’ मैं ने पूछा था।

नीता क्षण भर को ठिठकी थी। मेरी तरफ देखा था। कुछ सोचा था फिर जैसे कुछ भी समझ न आ रहा हो,‘‘जो समझ आए वही कह देना।’’ और वे दोनो मीनाक्षी को ले कर बाहर आ गए थे। कुछ क्षण वहीं खड़े रह कर मैं उन लोगों को बाहर तक छोड़ने के लिए उनके पीछे भागी थी। केतकी ने अपनी कार का लॉक खोला था। मैंने मीनाक्षी के बैठने के लिए कार की पिछली सीट का दरवाज़ा खोल दिया था। किसी आज्ञाकारी अबोध बच्चे की तरह मीनाक्षी बैठ गयी थी...एकदम सहम और सिमट कर गठरी जैसी गोल हो गयी थी वह... जैसे अभी उससे कोई बहुत भारी भूल हो कर चुकी हो। केतकी चुपचाप अपनी ऑखे पोंछ रही है।

नीता और केतकी अभी बाहर ही खड़े हैं। कार में बैठने से पहले केतकी ने पूछा था,‘‘नीता कहॉ चलें ?’’

‘‘मतलब ?’’नीता के मुह से अनायास निकला था।

‘‘मतलब कहॉ चलें ?’’केतकी ने अपना सवाल दोहराया था,‘‘उदय जी घर पर नही हैं नीता’’ केतकी ने अपनी बात पूरी की थी।

’’अरे तब तो मीनाक्षी के घर जाने का कोई सवाल ही नही है। उसे अकेले घर में छोड़ कर नही आया जा सकता।’’नीता ने कहा था,‘‘वैसे भी उनके लिए अकेले इसे संभाल पाना आसान नहीं था।’’

‘‘उदय जी कब तक आऐंगे’’ मैंने पूछा था।

केतकी कुछ देर के लिए चुप हो गयी थी ‘‘पता नहीं’’ उसने धीमे से जवाब दिया था,‘‘असल में कुछ दिनां से मीनाक्षी उनको बिल्कुल टालरेट नही कर पा रही है।’’

‘‘टालरेट नहीं कर पा रही है? मतलब?’’नीता ने परेशान हो कर पूछा था।

‘‘पता नही नीता।’’ केतकी चुप हो गयी थी ‘‘कुछ देर के असमंजस के बाद वह फिर बोली थी ‘‘क्या पता नीता...आफ्टर आल ही इज़ एन ओल्ड मैन...शी इज़ यंग...वायबरैन्ट।’’

जिस ढंग से केतकी ने वह बात की थी उससे लगा था नीता के चेहरे पर कुछ क्षण के लिए झुंझलाहट ठहर गयी थी।

‘‘वैसे भी एक वाइफ का इरिटेशन और फ्रस्टेशन न जाने कितनी बातो को लेकर हो सकता है।’’ केतकी ने फिर कहा था।

मेरे मन में बहुत सी बाते आयी थीं पर मैं चुप रही थी। किसी भी मुद्दे पर बात करने का यह मौका नहीं था। वैसे भी अब उस विषय में कुछ भी बात करने से कोई लाभ नहीं।

‘‘घर वाले कितने ही नाराज़ क्यों न हो पर उन्हें मीनाक्षी की तबियत के बारे में बताना बहुत ज़रूरी है। बात उतनी सीधी सादी नहीं है केतकी। हो सकता है उसे लंबे इलाज और देखभाल की ज़रूरत पड़े। उन लोगों के आने तक हमे मीनाक्षी को अपने पास रोक कर रखना होगा।’’ नीता ने पलट कर कालेज की तरफ देखा था,‘‘पर कालेज में रुकना सही नहीं होगा। इस बात की ख़बर किसी को नहीं होना चाहिए।’’

‘‘अगर वे लोग तब भी नही आए उसके पास तब? तब हम लोग क्या करेगे?’’ केतकी के स्वर में घबराहट है।

‘‘तब की तब देखी जाएगी।’’ नीता ने बहुत धीरे से कहा था।

वे दोनो कार में बैठ गए थे। मैं जाती हुयी कार को बड़ी देर तक देखती रही थी। चौराहे से केतकी की गाड़ी दॉयी तरफ मुड़ कर दिखना बंद हो गयी थीं। मैं पलट कर कालेज के अंदर आ गयी थी।

दीपा दी को मैंने सही बात ही बताई थी। थोड़ी बहुत आगे पीछे की कहानी भी। सुन कर दीदी ने अपने दोनों हाथों की हथेलियों पर अपना माथा टिका लिया था,‘‘शशि भाई ने उस हालत में सरला को साढ़े तीन साल तक चला लिया था अम्बिका। मैं तो चार दिन के लिए भी कुछ नहीं कर पाऊॅगी। कोशिश करो कि किसी को इस नर्वस ब्रैकडाउन की ख़बर न मिल पाए नही तो पूरी तरह से ठीक हो जाने पर भी यह मैंनेजमैंण्ट उसे आसानी से ज्वायन नहीं करने देगा।’’

मैं चुप रही थी। पर मन ने डराया था कि अब मीनाक्षी ठीक नहीं होगी। ऑखों के आगे उसका वहशत भरा चेहरा घूमता रहा था। मीनाक्षी को गये कितनी देर हो चुकी पर मेरी ऑखों में ऑसू अब भरना शुरू हुए थे जैसे उस पूरी घटना की भयावहता धीरे धीरे दिमाग में अब बैठना शुरू हुयी थी।

उस दुपहर नीता से फोन पर मेरी बात हुयी थी। केतकी उसे अपने घर ले गई थी। मीनाक्षी के घर फोन नीता ने ही किया था और तुरंत ही चाचा और प्रदीप आ कर उसे घर ले गए थे।

मीनाक्षी के जिस मौन को इतने दिन से हम सब मित्रें उसकी सहज स्वभाविक उदासी समझ रहे थे वह उसका गंभीर डिप्रैशन था यह कोई समझ ही नही पाया था। बहुत साल बाद तक लगता रहा था मीनाक्षी ने प्यार में अपने ग़लत चुनाव की सजा पायी थी या घर वालों को आहत करने का दंड भुगता था या उदय जी उसके उद्दाम प्यार का पूर्ण प्रतिदान नही दे पाए। क्या वह प्यार का स्वप्न भंग था ? यह भी लगता रहा था कि अगर घर वालों की तरफ से इतने व्यवधान न आए होते या उदय जी ही थोड़े जीवन्त और होते। मन में एक दो बार यह भी आया था कि क्या कालेज के तनाव भरे माहोल ने मीनाक्षी के संताप को और बढ़ा दिया था और उसका कोमल मन उतने सारे दबाव एक साथ नही झेल पाया। जो भी हो मीनाक्षी की बलि चढ़ चुकी थी।

मानसी जी ने कई बार कई तरह से मीनाक्षी की बात मुझ से करना चाही थी पर मैं हर बार ही हॉ न में उत्तर दे उस प्रसंग को टाल देती। मानसी जी को शायद बुरा लगा था। वैसे बुरा लगना स्वभाविक ही था। पता नही मानसी जी क्यों नहीं समझ पा रहीं यह बात कि वह मीनाक्षी की ज़िदगी का सच है-उसे सब को बताने का अधिकार मुझे नहीं है। वैसा करना ग़लत है। हालॅाकि अगर मीनाक्षी ठीक नही हुयी तो भला कब तब छिपेगी यह बात। फिर उससे फायदा। जो भी हो। हाल फिलहाल तो हम तीनो ने उस विषय में एकदम मौन धारण कर लिया है।

मीनाक्षी को ले कर हम सभी मित्रों का मन बेहद बेचैन है। पर कोई कुछ भी तो नही कर पा रहा। सबसे ज़्यादा केतकी व्यथित है। जब तब मीनाक्षी की बात करते हुए वह बिलख कर रोने लगती है। तब उसकी एक एक ऑख से ऑसूओं की कई धारें बहती हैं। आजकल केतकी बिल्कुल वीरान सी लगने लगी है।

मीनाक्षी के लिए क्या किया जाए यह हममें से किसी के भी समझ नही आता है। बहुत दिनों से हम लोगो का उससे मिलने जाना भी लगभग बंद ही हो गया है। हम लोग उसके घर पहुंचते हैं तो पहले तो हमें देख कर वह एकदम ख़ुश हो जाती है। कुछ क्षणों के लिए वह चहकने लगती है पर फिर थोड़ी देर में उदास होने लगती है वह। पागलपन से विकृत उसके चेहरे पर एक हताशा और एक खिसियायापन फैलने लगता है। विक्षिप्तावस्था में भी उसके मन के पास इतना होश है कि वह अपनी बीमारी के बारे में समझ पाती है। हम लोगों को लगने लगा था कि उसके पास जा कर हम लोग उसकी पीड़ा बढ़ा देते हैं। उसके घर वालों का आक्रोश भी।

शायद उदय जी का होना उसके चित्त को थोड़ा बहुत शॉत कर पाता पर अब वह अपने घर पहुंच गयी है। उन लोगो से उदय जी को स्वीकार लेने की बात या उन्हे अपने घर आमंत्रित करने की बात नही कही जा सकती भले ही उसमें उनकी अपनी मीनाक्षी का सुख बॅधा हो।...फिर वह विकल्प भी ‘शायद’ ही तो है। एक संभावना भर। मीनाक्षी इस स्थिति में नहीं कि उससे कुछ भी बात की जा सके...उससे उसकी इच्छा के बारे में कुछ भी जाना जा सके। उसकी चेतना तो जैसे किसी अंधे कुऐं के अतल में कैद है। कोई भी तो निदान नहीं दिखता।

मीनाक्षी के नर्वस ब्रैकडाउन की ख़बर सुन कर उदय जी केतकी से मिलने आए थे। बहुत दुखी थे। पर उनकी मजबूरी कि वह उससे मिल तक नही सकते। एक अच्छे भले शालीन आदमी की ज़िदगी में भूमिका ‘विलेन आफ पीस’ की हो चुकी थी।

Sumati Saxena Lal.

Sumati1944@gmail.com