बैजू............
किसी गाँव मे बैजू नाम का एक "मंद बुद्धि" लड़का रहता था, जो गाय भैसो को जंगलों मे चराया करता ! उसी जंगल मे "भगवान भोले नाथ का एक लिंग था, जो काफ़ी पुराना था ।पास मे एक छोटा सा मंदिर भी था, गाँव से दूर जंगलो मे होने के कारण वहाँ कोई जाता नहीं था । इसलिए मंदिर के अंदर बहुत जंगल लग गये थें ।
प्रतिदिन बैजू की एक गाय जो सारी गायों से ज़्यादा दूध देती थी, वो गाय उसी "भगवान भोले नाथ" के लिंग पर अपना सारा दूध चढ़ा देती । जब शाम को बैजू गाय भैसो को लेकर घर जाता, तो उसके पिता जब धुधने जाते उस गाय को तो दूध ही नहीं निकलता क्योंकी थन मे दूध तो होता ही नहीं था । फिर क्या बेचारे बैजू की जम के धुलाई होती ।
बैजू परेशान रहने लगा, सोचता सारा दिन तो मैं जंगल मे ही रहता हूँ, गाय भैसो के साथ,कोई इंसान भी नही जाता जंगल मे जो वो मेरी गाय का दूध निकाल ले । फिर ये दूध जाता कहाँ है, उस दिन बैजू सारी गाय भैसो को छोड़ उसी गाय के पीछे लगा रहा । शाम होने को था, तभी बैजुने देखा के उसकी गाय खड़ी होकर एक काला पत्थर (शिवलिंग) पे अपना सारा दूध गिरा रही है! बैजू को बड़ा गुस्सा आया उसने कहा....ये अपना सारा दूध यहाँ इस पत्थर पे गिरा देती है, और बापू मेरी धुलाई करता है।
फिर उसने गाय को कुछ नहीं बोला, अपना लट्ठ उठाया और उस काले पत्थर (शिवलिंग) पर ४ लट्ठ मारा, और गाय भैसो को लेकर घर चला गया !।
उस दिन के बाद वो प्रतिदिन नियमत: सुबह-शाम उस पत्थर (शिवलिंग) को चार लट्ठ मरता और फिर घर जाकर खाना ख़ाता । ऐसे ही वो सालों तक करता रहा, एक दिन सुबह बिना लट्ठ मारे ही वो खाना खाने बैठ गया, तभी अचानक से उसे याद आया के उसने तो आज पत्थर पे लट्ठ मारा ही नहीं ।
फिर क्या था उसने खाना ज्यों का त्यों छोड़ लट्ठ उठाया और जंगल की तरफ चल पड़ा । और जंगल मे जाकर उस पत्थर (शिवलिंग) को चार लट्ठ मारा, फिर घर जाने को घुमा तभी अचानक से वहाँ एक रोशनी हुई, और साक्षात "भोले नाथ" प्रकट हुए, और बोले...वत्स बैजू
बैजू उस सुनसान जंगल मे अपना नाम अचानक से सुन के डर गया, और पीछे घूम के देखा तो वो डर के मारे काँपने लगा, "भगवान भोले नाथ" एक हाथ मे त्रिशूल,दूसरे मे डमरू गले मे रुद्राक्ष और शेष नाग का माला, जुड़े मे चंद्रमा और मृगछाला लपेटे हुए अपना शोभनीय रूप लिए हुए खड़े थें ।
बैजू उनके पैरों मे गिर के रोने लगा, और बोला...मुझे माफ़ कर दीजिए, आज के बाद मैं इस पत्थर को नहीं मारूँगा ।मुझसे ग़लती हो गई मुझे क्षमा कर दीजिए, अब दुबारा नहीं करूँगा ।
डरो मत वत्स मैं तुम्हे कुछ नहीं करूँगा, क्योंकि तुम तो मेरे अनूठे और प्रिय भक्त हो । लोग मन मे लाखों मैल लिए मुझे प्रतिदिन जल, दूध, मेवा, छप्पन भोग, रुपया-पैसा चढ़ाते हैं ।मैं क्या करूँगा इन सब का जबकि खुद मेरे जट्टे मे "गंगा" है, और क्षीर सागर मे मैं वास करता हूँ ! अन्न,जल रुपया-पैसा ये सब तो मैं देता हूँ लोगों को फिर मैं इनका क्या करूँगा ।
मुझे तो बस श्रधा और भक्ति से एक पता भी चढ़ा दो तो मैं खुश हो जाता हूँ, फिर क्यों मुझे लोग दूध,मेवा और रुपया पैसा चढ़ाते हैं ।
आज मैं बहुत खुश हूँ, तुम्हारी अनूठी भक्ति देख कर, तुम मेरे प्रिय भक्तों मे से एक हो । तुम सालों से धूप-बारिश मे नियमत: मेरे लिंग पर चार लट्ठ मारते आए हो, कभी किसी दिन भी तुमने लट्ठ मारना नहीं छोड़ा, चाहे बारिश हो, कड़ाके की धूप हो, चाहे मौसम कैसा भी हो तुमने कभी भी अपना नियम नहीं छोड़ा.....
यहाँ तक की आज तुम खाना खाने बैठ चुके थे, जब तुम्हे याद आया के तुमने हमे (शिवलिंग) को मारा ही नहीं फिर तुम वो खाना (जिस खाने के लिए इंसान, इंसान को मरता है, भाई-भाई का दुश्मन बन जाता है । जिसके लिए इंसान किसी भी हद्द तक जा सकता है तुम वो खाना छोड़ के आ गये) बस मुझे (शिवलिंग) को मारने के लिए...........धन्य हो वत्स तुम, मैं बहुत खुश हूँ, तुम पर......
आज के बाद लोग इस जगह को तुम्हारे नाम से जानेंगे....दूर-दूर से लोग आएँगे इस जगह पर मेरे दर्शन को, और सदियों तक अमर रहेगा तुम्हारा नाम..........दोस्तों आज भी उस जगह पर लोग दूर-दूर से आते हैं दर्शन को भगवान "भोले नाथ की".....
उस जगह का नाम है.................................बैजुधाम (बैद्यनाथ धाम)
"ऐसे हैं हमारे भोले नाथ जो श्रद्धा से चढ़ाये हुए एक पत्ते पर भी खुश हो जाते हैं "
"जय भोले नाथ"
यह एक पौराणिक कथा है.........,