बडी प्रतिमा - 6 Sudha Trivedi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बडी प्रतिमा - 6

बडी प्रतिमा

(6.)

गीतू की तिकडी में जो प्यारी-सी अंजना थी, जिसे सब छोटी अंजना बुलाते थे, जो कुंवारी थी, जिसकी मां गवर्नमेंट हाई स्कूल की शिक्षिका थीं - उसके चार हजार रुपए नहीं मिल रहे थे। उसने सुबह ही संभालकर रुपए सूटकेस में रखे थे। कमरे में ताला लगाकर खुद सुभद्रा गई थी और सबके आने पर ही ताला खोला था । तो फिर रुपए किसने चुराए होंगे? एक ही दिन में चोरी की दो-दो घटनाएं हो गईं।

बडी प्रतिमा घर जल्दी नहीं जाती थी। लेकिन इस बार रिश्तेदारी में कोई शादी होने की वजह से उन्हें भी घर जाना था। वह काफी देर तक अपना सामान सहेजती रही थी। सबको उस पर शक हुआ। वैदेही मैम को भी याद आया कि तिकडी के साथ जिस दिन बडी प्रतिमा आई थी, उसी दिन उनकी बहू का चांदी का चाबी का छल्ला गुमा था। बात फजली सर के पास भी पहुंची। उन्होंने कहा कि बिना प्रमाण के तो कुछ किया नहीं जा सकता । ऐसा कीजिए कि सबके सामान की तलाशी लीजिए ।

सारी शिक्षिकाएं जुट गईं। कमरे में दोनों तरफ एक छोर से दूसरे छोर तक लंबी रस्सियां बांधकर अलगनी बनाई गई थी। लडकियों के डिजायनर अंडरगार्मेंट्स उसी पर सूखते थे। अंदर प्रवेश करते ही जयलक्ष्मी जी की नजर सबसे पहले उस अलगनी पर ही पडी। उन्होंने नाक भौं भी सिकोडी और नजरों नजरों में उनके डिजाइनर ब्रांड भी ताड लिए।

एक-एक छात्रा के सामान की तलाशी ली गई। बिस्तरे उठाकर, चादर झाडकर । बडी प्रतिमा के सामानों की तो बार बार तलाशी ली गई। जब उसके सामान की तलाशी ली जाने लगी थी, तब तो सबने वह जगह चारों ओर से घेर ली । लगा जैसे अब पैसे निकले कि अब पायल निकली । बेचारी ने बडे यत्न से शादी में जाने के लिए बैग सहेजा था। अपनी पुरानी साडियों को धो-धाकर तह करके तकिए के नीचे रखकर इस्तिरी जैसा बनाया था। वही साडियां थीं । एक बडी मैली-सी पुरानी चादर और एक मुडा-तुडा गमछा। एक पन्नी में शादी में पहनने के लिए साथिन यशोदा से मिन्नत कर, मांगकर रख ली गई एक हरे रंग की कढाई की हुई साडी थी। किसी सोने के ज्वैलर द्वारा कभी दी गई एक छोटी सी बटुआनुमा चीज में कुल जमा चौरानबे रुपए थे- दस-दस के छह नोट, पांच-पांच के चार और बाकी रेजगारी। इसके अलावा उस गरीब अभागन के पास और कुछ भी न था। उसकी फटेहाली देखकर किसी को भी उस पर दया न आई, बल्कि सबका शक और बढ ही गया । जय लक्ष्मी जी ने और कडकते हुए पूछा - “ब्लाउज में तो कुछ नहीं है ? ”

बडी प्रतिमा अब तक समझ चुकी थी कि औरों की तलाशी का तो बहाना है। असली तलाशी तो उसकी ली जा रही है। जयलक्ष्मी मैम के पूछते ही उसने अपनी साडी उतारकर फेंकते हुए ब्लाउज के बटन एकदम से खोल दिए और कहा – “देख लीजिए, कहां है, कहां है?”

बडी प्रतिमा का रंग गहरा सांवला था। पति द्वारा उपेक्षित, सास द्वारा प्रताडित उस बेचारी को ब्लाउज ही बडी मुश्किल से मिलता था, ब्रा तो क्या पहनती ! ब्लाउज के बटन खोलते ही उसके संवलाए स्तन लटक आए । विभा ने हउबडाकर आगे बढते हुए उसका आंचल उसके शरीर पर डाल दिया !

अपमान और पीडा से बडी प्रतिमा की आंखों से आंसू बहने लगे । उसने आंचल फेंककर अपनी साडी उतारते हुए कहा – “नहीं, देख लो । देख लो । मैं तुमलोगों को चोर दिखती हूं ? ”

पेटीकोट के नाम पर एक मारकीन का मैला सटुआ भर रह गया था बडी प्रतिमा के शरीर पर जिससे एसकी पतली सांवली टांगें झलझल झलकने लगी थीं! विभा ने उसे पकडा और उसके कपडे ठीक करती हुई उसे एक ओर को ले चली। सभी सकते में आ गए। जिस अंजना के रुपए चोरी हुए थे, वह फफककर रोती हुई अपनी चौकी पर औंधे मुंह लेट रही। सारा मजमा निकल गया। सबकी तलाशी हो ही चुकी थी। इस घटना से स्तब्ध हुए फजली सर ने सबको घर जाने की इजाजत दे दी।

शाम में अंजना की मां और मौसी आईं। वह स्वयं रोबदार महिला थीं। वह प्राचार्या सरोज शर्मा से भी मिलने गईं। इतने दिनों बाद सरोज शर्मा को पता चला कि हाॅस्टल में चोरी की घटनाएं होती हैं। अंजना को समझा-बुझाकर उसकी मां घर ले गईं।

क्रमश..