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अनजान देवदूत

रहस्मयी सेंटा


मैं मरना चाहती हूँ। कुछ भी तो नही बचा जीने के लिए।गरीबी में पैदा हुई। माँ बाप बेहद गरीब थे। मैं उनकी इकलौती सन्तान थी। घर की हालत बेहद खस्ता थी। कभी कभी तो ऐसा होता कि घर गर्म करने को लकड़ी तक ना होती। माँ मुझे लेकर सपने देखती थी। वो कहती कि मैं इतनी खूबसूरत हूँ कि मुझे मलिका होना चाहिए। वो यही सोचती की उनकी बेटी बड़े होकर मलिका बनेगी। ऐसे ही सपने देखते देखते एक दिन निमोनिया से उनकी मौत हो गयी। उसके बाद मेरे पिता ने मुझे सम्हाला। वो बेहद फटे-हाल रहते पर मेरे खाने औऱ पहनने का कही ना कही से जुगाड़ करते।

वो तीलियों की टोपी बना दिन रात बेचा करते। एक बार पूरे दिन एक भी टोपी नही बिकी। उस दिन घर मे खाने के लिए एक ब्रैड तक नही थी। मेरे पिता मॉस्को के सबसे बड़े नाच-घर के बाहर खड़े इंतजार करते रहे। शायद उसमें से निकलने वाला कोई रईस एक टोपी ख़रीद ले और उन्हें एकाद कोपेक मिल जाये। जिससे वो अपनी भूखी बच्ची के खाने का इंतज़ाम कर सके।

पर सब लोग अपनी शान में तने हुए निकलते रहते। किसी की भी नजर उस सर्द रात में एक कोने में पड़े जकड़ते हुए शरीर पर नही पड़ी। साइबेरिया से आने वाली ठंडी हवाओं में मेरे पिता का शरीर हमेशा के लिए ठंडा पड़ गया। उस रात वो चंद पैसों के लिए अपनी जान गवा बैठे।


मैं पूरी तरह अनाथ हो गई। मैं किसी तरह पड़ोसियों के यहां प्लेट्स धो-कर औऱ जूठा खाकर गुजारा करती रही। कई बार कोई गलती होने पर मुझे मार पड़ती या फिर भगा दिया जाता। तब मैं सर्द हवाओं में सिकुड़ती सिमटती सड़को पर या किसी के दरवाज़ों पर रात गुजारती।

इसी तरह मैं बड़ी होती गयी और खूबसूरत होती गईं। मुझे आखिर में एक सहारा मिल ही गया। इवान अलेक्सान्द्र ने मेरी खूबसूरती से प्रभावित होकर मुझे विवाह का प्रस्ताव दिया।

इवान एक धनी व्यापारी था। मैंने उसके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। पिछले दो साल से हम खुशी खुशी जीवन बिता रहे थे। पर अब कुछ दिनों से सब कुछ मुश्किल होता जा रहा था। मेरे पति इवान का एक दूसरी औरत नताल्या से प्रेम हो गया था। वो मुझे नज़रअंदाज़ करने लगे थे। पर आज हद हो गयी। आज वो उसको घर ले आये। औऱ जब मैंने कहा कि ये औरत मेरे घर मे नही रह सकती तो मेरे पति ने मुझे ही निकल जाने का आदेश दे दिया। कह दिया कि ये घर उसका है। मुझे या तो नताल्या के साथ रहना होगा या घर छोड़ दूं। मेरे स्वाभिमान ने घर छोड़ने का फैसला लिया।


और अब मैं इस निराधार जीवन को खत्म करने जा रही हूँ। नही जीना अब। क्यो जियूँ?


मैं रेल की पटरियों पर चल रही हूँ। थोड़ी ही देर में आने वाली रेल मेरे शरीर के कई टुकड़े कर देगी। और मैं हमेशा के लिए मुक्त हो जाऊँगी।


ट्रेन आने वाली है। अब उसकी आवाज़ आने लगी है। मैं बिना किसी द्वंद के पटरियों पर खड़ी हूँ।


पर ये क्या रेल के मुझसे टकराने से पहले ही किसी ने मुझे धक्का दे दिया। कौन है ये जिसने मुझे बचाया।


"क्यो बचाया मुझे मर जाने दो"


"आखिर क्यों मरना चाहती हो "


"जीने के लिए भी तो कुछ नही बचा, अब और मुश्किल बर्दाश्त नही कर सकती"


"जब तुम्हें मौत का डर खत्म हो गया फिर कौन सी मुश्किल बची है अब। दुनिया मे सबसे बड़ा डर मौत का डर है । जिसने उस डर को जीत लिया उसने समझो दुनिया जीत ली।

जब तुम्हें मौत का ख़ौफ़ नही तो फिर इस दुनिया का क्यो ख़ौफ़। क्यो भाग रही हो इससे। सामना करो। जिसने मौत के डर पर काबू पा लिया उसने हर जंग जीत ली। फिर हर सपना उसका है। जिसे मरने से गुरेज नही वो क्या नही कर सकता। तुम क्यो मर रही हो। मरना ही है तो कुछ कर के मरो। औऱ फिर ऐसे मरने से क्या तुम्हें सुकून मिलेगा। क्या तुम्हारी आत्मा पर तुम्हारे टूटे हुए सपनों का बोझ ना रहेगा। क्या तुम्हारी आत्मा अनन्तकाल तक उस अग्नि में नही जलेगी जिसमे इस वक़्त तुम जल रही हो।

मर कर भी क्या हासिल कर लोगी। लोग दो दिन रोयेंगे तीसरे दिन सिर्फ याद करेंगे और चौथे दिन भूल जाएंगे। और एक दिन तुम इस दुनिया से इस तरह मिट जाओगी मानो तुम कभी थी ही नही। यही सच है। एक दिन तुम लोगो की यादों से हमेशा के लिए मिट जाओगी। वो भूल जाएंगे कि कभी कोई तुम जैसी थी। तुम्हारा अस्तित्व सदा के लिए खत्म हो जाएगा , क्या इस तरह अपने अस्तित्व को खाक करना चाहती हो तुम। लोग खुद का मिटना बर्दाश्त कर लेते है पर अपने अस्तित्व का मिटना नही। चीन की महान दीवार अस्तित्व को बचाने की सनक में ही खड़ी की गई । सिकंदर की विश्व विजय सिर्फ इसीलिए थे ताकि वो मरने के बाद भी लोगो की स्मृति-यों मे जिंदा रहे। प्रत्येक महान कला-कृति का जन्म बस इसी अवधारणा के तहत हुआ है कि उनका अस्तित्व जिंदा रहे। सबकी बस यह आकांक्षा है वो रहे ना रहे पर उनकी स्मृतियाँ रहे जिसे लोग याद करे। वो भले दुनिया से मिट जायेंगे पर उनका अस्तित्व अमर रहेगा। फिर तुम क्यो अपने आप को यू मिटा देना चाहती हो।

मरना है तो कुछ के मरो। ताकि लोग तुम्हारे ना होने के बाद भी याद करे। नही जानना चाहता कि तुम क्यो मरना चाहती हो।पर जो भी वजह होगी मरने की वो मौत से बड़ी नही होगी।

क्या तुम जिंदगी की कीमत पर मौत लेना चाहती हो।


अरे मौत तो प्रकृति है । वो तो आएगी ही उसको स्वतः आने दो। सोचो क्या हो यदि तुम अभी अभी ज़मीन फोड़ के निकले पादप को मसल दो कुचल दो। तो उसके साथ ही उसके भविष्य की सारी सम्भावना-ये समाप्त हो जाएगी। भविष्य में वो कितनों को आश्रय देता कितने पक्षियों का बसेरा बनता ना जाने कितने भुखो की क्षुदा मिटाता अपने मीठे फलो से पर उसके साथ सब समाप्त हो जाएगा।

ठीक वैसे ही क्या तुम नही कर रही। अरे तुम तो उस विकसित व्रक्ष को नष्ट करने जा रही हो जिसमें एक माली की संपूर्ण मेहनत लग चुकी है। औऱ उसमे अब बस फल लगने ही वाले है। मत भूलो तुम्हारे जीवन पर सिर्फ तुम्हारा ही अधिकार नही है। इस पर तुम्हारे माता पिता औऱ स्वजनों का भी उतना ही अधिकार है। क्या तुम अपने जीवन के साथ अपने पालको की संपूर्ण आशाओं का नाश नही कर रही हो। क्या तुम्हारे साथ ही भविष्य के वो बच्चे नष्ट नही हो रहे है जिनकी तुम जन्मदात्री बनोगी। औऱ ना जाने तुम्हारे द्वारा किसका भला होना हो। कही दुनिया के किसी सुदूर कोने में कोई बैठा हो। इस आस में कि कोई आएगा उसकी मदद के लिए। और हो सकता है ईश्वर ने तुम्हे नियुक्त किया हो उसकी मदद करने के लिए। क्या तुम उसका भी अतः नही कर रही हो। और कौन जाने तुम किसी ऐसी महान सन्तान को जन्म दो जो ना जाने कितनों का जीवन सवार दे। क्या तुम उन सभी सम्भावनाओ को नष्ट नही कर रही हो।

क्या तुम महापाप नही कर रही हो। आत्म हत्या सिर्फ स्व की हत्या नही होती है। इसमें बहुतो का जीवन शामिल होता है किसी का प्रत्यक्ष तो किसी का परोक्ष।

अरे मृत्यु तो एक दिन आएगी ही। तब तक क्यो ना जीवन को उल्लासपूर्वक जियो। जीवन क्या है सिर्फ विचारों का खेल ना । तुम जैसा सोचोगे वैसा ही बन जाते हो। इस वक़्त तुमने स्वयं को कमजोर और लाचार मान लिया है। औऱ देखो तुम वैसी ही बन गयी हो। एक बार स्वयं को मजबूत चट्टान बना कर देखो जीवन की कोई भी दुख भरी आंधी तुम्हें डिगा नही पाएगी। तुम स्वयं को जैसा मान लोगे तुम्हारा जीवन वैसा ही बन जायेगा। अब या तो खुद को तुच्छ घास का टुकड़ा मान लो या फिर महान पर्वत। तुम निश्चय ही किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा दुखी हो। पर क्या तुमने स्वयं को इतना कमजोर मान लिया है कि दूसरे आकर तुम्हें दुखी करें। क्या तुम्हें स्वयं में प्रसन्न नही रहना चाहिए। क्या तुम्हारा अपना अस्तित्व नही है। तुम्हें कोई आकर प्रसन्न कर तो ही तुम खुश रह सकती हो। या फिर कोई आकर दुखी कर दे तो दुखी हो जाएगी। क्या परमात्मा ने तुम्हें इतना हीन बनाया है।


इस जीवन को प्रसन्नतापूर्वक जियो। तुम एक पूर्ण अस्तित्व हो। ना तुम्हें कोई दुखी कर सकता है ना कोई प्रसन्न। वो तुम स्वयं ही हो जो ये सब कर सकती हो।

तुम्हारे विचार जितने उच्च होंगे जीवन भी उतना ही भव्य होगा। सब विचारों का ही तो खेल है। विचार ही तो है जो किसी को शैतान बनाते है और किसी को परमात्मा। क्यो तुम असमय मृत्यु की दीवार तोड़ देना चाहती हो।

समय पर ये स्वयं टूटेगी। तब मृत्यु को भी प्रसन्नता पूर्वक गले लगा लेना। फिर देखना जितना भव्य तुम्हारा जीवन होगा उतनी ही महान तुम्हारी मृत्यु होगी। लोग हमेशा के लिए तुम्हें याद रखेंगे।"


उस इंसान की बाते मेरे मन मस्तिष्क को झकझोरती जा रही थी। अब कोई प्रश्न शेष नही बचा था। उसने मेरी आत्मा के द्वार खोल दिये थे। मेरी आँखों पर पड़ा मूर्खता के पर्दा हट चुका था।


"आप सच कहते है, मैं सच में ही बहुत बड़ा पाप करने जा रही थी। आपने मेरी आँखें खोल दी। आप कौन है ,अपना नाम बतायेंगे।"


"बस एक अनजान हूँ, जो तुम्हे रास्ता दिखाने आया था। उम्मीद करता हूँ तुम अपने जीवन को सफल बनाओगी औऱ दूसरों को सही रास्ता दिखाओगी।" इतना कह वो अनजान फ़रिश्ता वहां से चला गया।

मैं ना ना उसका नाम जान सकी ना ही उसका चेहरा देख सकी। उस सर्द अंधेरी रात में ना जाने कौन फ़रिश्ता आया था। कौन देव-दूत था जो मुझे जीवन का ज्ञान कराने आया था। जिसने मुझे मेरे अस्तित्व का अहसास कराया।


आज उस बात को दस साल बीत चुके है। मैं मॉस्को की एक धनी व्यापारी महिला हूँ। मेरे पति एक प्राचीन रईस खान-दान से ताल्लुक रखते है। दो प्यारे प्यारे सुशील बच्चे है।

मैंने एक समाज सेवी संगठन भी शुरू किया है। मॉस्को की कई बेसहारा, गरीब औरतें आज मेरे साथ काम कर रही है। ये अनाथ औरतें औऱ बच्चे मुझे मसीहा कहते है।

आज उस अनजान देव-दूत की बात सच साबित हो रही है। उसी ने कहा था कि ना जाने दुनिया के किस कोने में कोई तुम्हारी मदद के आस में बैठा हो।

आज मैने अपने घर मे दावत दी है। मॉस्को के सभी लोग शामिल हुए है। जिसमे मेरा पहला पति और उसकी पत्नी नताल्या भी आई है। अलेक्सान्दर इवान मुझसे नज़रें नही मिला पा रहे है। आज से दस साल पहले ऐसी ही सर्द अंधेरी रात में मुझे घर से निकाला था उसने। आज मैं उसके सामने मॉस्को की सबसे सफल महिला बन कर खड़ी थी।

शुक्रिया उस अनजान देव-दूत को। जिसका ना मैं कभी नाम जान पाई, ना ही ये कि वो कहा से आया था। पर इतना जानती हूँ वो निश्चित ही ईश्वर का कोई दूत होगा। वरना उस सर्द रात में कौन था मुझे जीवन का सही मार्ग दिखाने वाला।

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