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अर्धनिमिलिप्त



"अर्धनिमिलिप्त"

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"राधिका"

दुनिया के हर प्रेम का आधार राधिका।
श्याम के जीवन का जनाधार राधिका।।

आंसू और मिलन की हर्ष रीत राधिका।
बंसीधर की बंसी का हर सुर राधिका।।

वज्र सा कठोर तप ऐसी प्रीत राधिका।
अधूरे मिलन का वो गीत है राधिका।।

कृष्ण के मोरपिंछ का रंग है राधिका।
वासुदेव के सुदर्शन की धार राधिका।।

कान्हा के हर लीला का सार राधिका।
प्यार के हर घाव संजोया वो राधिका।।

ग्वालिकाओ के उद्धार का द्वार राधिका।
वृन्दावन के हर फूलों का प्यार राधिका।।

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"हस्र जिंदगी"

तुझे लगता है जिंदगी मोज ऐ बसर कर रही है।
बस मैं जानता हूं क्या, कैसे हसर कर रही है!?

बातों में क्या कहूं कहां असर कर रही है!?
रूह से रूह तक मुझे क्या कसर खल रही है।।

वो अनजान शख्स और अंजाना है चेहरा।
दिल से मेरी सांसो तक जैसे कहर कर रही है।।

अल्फ़ाज़ और सोच क्या है उसकी नहीं पता।
बस लगता मुज़ पर दर्द की महेर कर रही है।।

आलम ओर होता, गर मोहब्बत है जता देते।
"बेनाम" सजाये मुफ्त में जिंदगी सह रही है।।


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"बनता है"

ये आंधी और तूफान से टकराना तो बनता है।
गहरे जख्म में थोड़ा मुस्कुराना तो बनता है।।

यारी और दुनियादारी सब साथ नहीं चलता।
चोट दिल पे लगे तो फ़िर दिखाना तो बनता है।।

आशियाना तुमने जब आसमान पे बनाया है।
फ़िर सपनों को हवा में उड़ाना तो बनता है।।

मानते है साहिल तेरी जद में तो नहीं आता है।
नई तेरी कश्ती है फ़िर लड़खड़ाना तो बनता है।।

"बेनाम" इश्क की तुमने जो राह पकड़ रखी है।
टूटने तक इसमें फ़िर बिखरना तो बनता है।।

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"अमर रहे"

हे मां भारती के लाल, तेरी नामना अमर रहें।
सिंधु जिसके पसारे पाव, ये कामना अमर रहें।।

कुछ सपनों की चिंगारियां भी आग उगलती है।
तुम्हारे दिलो में उसकी ज्योत, सदा अमर रहें।।

छोड़ के गए हो बोझ किसी अधूरे मिलन का यहां।
वो बिखरी हुई चूड़ी की शान, सदा अमर रहें।।

तुम्हारे खून के हर एक कतरे का हिसाब लेंगे हम।
नीले अंबर में लहराते तिरंगे की शान, सदा अमर रहें।।

तुम्हारे हौसलों के आगे हिमालय भी सर झुकाता है।
"बेनाम" अडिग निश्चय सा तुम्हारा प्रण, सदा अमर रहें।।

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बदल दें !?

फलसफो से डरकर क्या हम राह बदल दें!?
ये गुलदस्ता कांटो का है, क्या चाह बदल दें!?

ये घुटन, जो तुम्हें महसूस हवा से हो रही है।
ये तेरा ही शहर है, तो क्या शहर बदल दें !?

ये आइना हमने बड़े चाहत से खरीद लाए थे।
पर दर्द ही दिखता है, तो क्या आंख बदल दें !?

माना कि गमगीन है आज इश्क की ये वादिया।
तो क्या एक मौसम के लिए आसमन बदल दें!?

हम भी मानते है कि ये मुहब्बत जहर की खेती है।
अब कर दी है बुआई तो क्या खेत ही बदल दें !??

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नमस्कार दोस्तो,
मेरी ये नई रचनाएं पढ़कर आप आपका कीमती प्रतिभाव और सुचन मुझे दीजियेगा। आपके सुचन मुझे और अच्छा लिखने हेतु मार्गदर्शन प्रदान करते रहेंगे।
आभार।
Thank you 😊
✍️ Er. Bhargav Joshi "benaam"

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