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कर्म पथ पर - 45




कर्म पथ पर
Chapter 45



हैमिल्टन का धैर्य खत्म हो रहा था। वृंदा की रिपोर्ट को छपे हुए बहुत समय हो गया था पर अभी तक उसका कोई पता नहीं चला था।
वह इंस्पेक्टर जेम्स वॉकर की प्रतीक्षा कर रहा था। वही था जिससे वह कोई उम्मीद कर सकता था। इंस्पेक्टर जेम्स वॉकर बहुत ही काबिल था। सबसे बड़ी बात यह थी कि वह हिंदुस्तानियों को बिल्कुल भी पसंद नहीं करता था। इसलिए जल्दी से जल्दी यहाँ से वापस इंग्लैंड जाना चाहता था।
हैमिल्टन अपनी हवेली के गार्डन में बैठा था। इंस्पेक्टर जेम्स वॉकर ने आकर कहा,
"गुड ईवनिंग मिस्टर हैमिल्टन..."
"गुड ईवनिंग जेम्स...कम हैव अ सीट..."
इंस्पेक्टर जेम्स वॉकर कुर्सी पर बैठ गया। हैमिल्टन ने कहा,
"जेम्स...उस लड़की वृंदा के बारे में कुछ पता चला ?"
"आई एम होपफुल मिस्टर हैमिल्टन। जल्दी ही मैं उस लड़की को पकड़ लूँगा।"
"गुड...पर याद रखना कि उसे पकड़ कर मेरे हवाले करना है।"
"ऑफकोर्स मिस्टर हैमिल्टन। तभी तो मैं अनऑफिशियली इस केस पर काम कर रहा हूँ।"
"ठीक है। पर जल्दी करो।"
इंस्पेक्टर जेम्स वॉकर उठकर खड़ा हो गया। हैमिल्टन से विदा लेकर वह चला गया। आज सुबह ही वह इंद्र से मिला था‌। उससे मिलकर उसे एहसास हो गया था कि वह बेहद लालची है। उसे भी वृंदा से बदला लेना है पर उसके बदले की भावना से बड़ा उसका लालच है।
इंस्पेक्टर जेम्स वॉकर ने उसके लालच का भरपूर फायदा उठाते हुए बहुत से सब्ज़बाग दिखाए थे।

इंस्पेक्टर जेम्स वॉकर से मिल कर आने के बाद से इंद्र किसी भी कीमत पर वृंदा का पता लगाने के लिए उतावला हो गया था।
हंसमुख उसके सामने खड़ा हुआ था। इंद्र ने उससे कहा,
"हंसमुख तुम बहुत ही बुद्धिमान हो। तुमने पहले भी वृंदा की खबर लाकर मुझे दी थी। जिसके कारण मैं तब उसे गिरफ्तार करवा पाया था। तुमने ही जय का पता लगाने में मेरी सहायता की थी।"
अपनी तारीफ सुनकर हंसमुख बहुत खुश था। वह अभिनय की दुनिया में अपनी जगह बनाना चाहता था। उसे पूरा यकीन था कि इंद्र उसका यह सपना अवश्य पूरा करेगा।
इंद्र समझ रहा था कि हंसमुख पर उसकी बात का असर हो रहा है। वह बोला,
"तुमने जो किया उसका ईनाम तुम्हें ज़रूर मिलेगा। मैंने तुम्हें जिस फिल्म के बारे में बताया था उसके जल्दी शुरू होने की एक राह निकल आई है। मैंने तय किया है कि तुम्हें हीरो के उस दोस्त का रोल दूँ जो, मन ही मन हिरोइन को चाहता है। बहुत दमदार रोल है। तुम देखते ही देखते लोगों की निगाह में सितारा बन जाओगे।"
अपने रोल के बारे में सुनकर हंसमुख के चेहरे पर चमक आ गई। इंद्र का आभार व्यक्त करते हुए बोला,
"इंद्र भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया। आपने मेरा सपना पूरा कर दिया। कब शुरू होगी फिल्म ?"
इंद्र गंभीरता से बोला,
"मैंने कहा था ना कि उसकी सूरत निकल रही है। बस तुम इस बार भी मदद कर दो।"
"कैसी मदद इंद्र भाई ?"
इंद्र ने उसे बैठने को कहा। उसके बैठने पर बोला,
"एक बार फिर उस वृंदा की खबर लगानी है। इस बार अगर ये काम हो गया तो इंस्पेक्टर जेम्स वॉकर ने कहा है कि हैमिल्टन हमें खूब पैसा देगा। इतना कि हम खुद की फिल्म कंपनी शुरू कर सकें।"
हंसमुख का मुख आश्चर्य से खुला रह गया।
"अपनी फिल्म कंपनी ?"
"हाँ...सोंचो अगर ऐसा हो जाए तो समस्या ही क्या रहेगी ? हम अपने हिसाब से फिल्में बना सकेंगे।"
हंसमुख के चेहरे के भाव बता रहे थे कि वह मन ही मन सुनहरे भविष्य के सपने देख रहा था।
इंद्र ने उसे पूरी तरह जाल में फंसाने के लिए कहा,
"हंसमुख रोल तो तुम्हें तुम्हारी पिछली मदद के लिए ही मिल जाएगा। पर अगर इस बार वृंदा का पता कर लिया तो मेरी फिल्म कंपनी में तुम्हारी हिस्सेदारी पक्की समझो।"
हिस्सेदारी की बात ने पूरी तरह से उस पर असर किया था। वह उस रंगरूट की तरह बोला जो अपने अफसर के सामने कर्तव्य निर्वहन की कसम खाता है।
"इंद्र भाई इस बार भी मैं आपको निराश नहीं करूँगा। बस आप अपनी बात याद रखिएगा।"
इंद्र ने भी पैंतरा चला।
"अगर यकीन ना हो तो लिख कर दे दूँ। इस काम में जितना मेरा फायदा है उतना ही तुम्हारा भी।"
"नहीं इसकी ज़रूरत नहीं है। मैं एड़ी चोटी का जोर लगा दूँगा।"
हंसमुख चला गया। इंद्र मन ही मन हंस रहा था। इंस्पेक्टर जेम्स वॉकर ने उसे ढेर सारे पैसे मिलने का सपना तो दिखाया था। उसने फिल्म कंपनी बनाने का मन भी बनाया था। पर उसने हंसमुख से जो भी कहा था वह बस उससे काम करवाने के लिए। उसे पता था कि इस बार वृंदा की तलाश आसान नहीं होगी। उसके लिए बड़े प्रलोभन की ज़रूरत है।

इंस्पेक्टर जेम्स वॉकर के जाने के बाद हैमिल्टन ने अपने दूसरे खबरी से भेंट की। उस खबरी को हैमिल्टन ने माधुरी के माता पिता के बारे में पता करने का काम सौंपा था।
खबरी ने आकर बताया कि वह मेरठ में उस जगह गया था जहाँ माधुरी का परिवार रह रहा था। पर अब वो लोग वहाँ नहीं हैं। किसी को भी नहीं पता कि वो लोग कहाँ गए हैं।
हैमिल्टन ने खबरी को जाने के लिए कहा। उसके जाने के बाद वह परेशान सा सोंचने लगा कि अब क्या करे ?
इस समय हैमिल्टन को हर तरफ से केवल निराशा ही हाथ लग रही थी। इस बात से वह बौखलाया हुआ था।
हर बार मिली निराशा हैमिल्टन के भीतर के गुस्से को बढ़ा रहा था। इस गुस्से में बार बार वृंदा का वो रूप उसके सामने आता था जिसमें वह क्रोध में शेरनी बनी उसकी तरफ बढ़ रही थी। उसकी आँख में भाला भोंक कर उसकी एक आँख फोड़ दी थी।
वह दृश्य याद करके उसका खून खौलने लगता था।
वह वृंदा को सबक सिखाने के लिए तड़प उठता था।
वृंदा से हटकर एक बार फिर उसके सामने माधुरी का चेहरा आ गया।
उसने अपना ध्यान माधुरी पर केंद्रित कर दिया। माधुरी ने भी वृंदा की तरह ही उसे चोट पहुँचाई थी। पर इस वक्त वह उसके विषय में भी पता नहीं कर पा रहा था।
उसे पता था कि स्टीफन के वकील ललित नारायण मिश्र कानपुर के रहने वाले हैं। इस आधार पर उसने कर्नल गंज इलाके में माधुरी और स्टीफन के बारे में पता करवाया था। वहाँ भी उसे निराशा ही हाथ लगी थी।

वृंदा की रिपोर्ट छपने के बाद माधुरी के परिवार वाले पंजाब चले गए थे। खतरे को भांपते हुए माधुरी और स्टीफन भी बनारस चले गए थे। वहीं रह कर स्टीफन एक चैरिटेबल अस्पताल में काम कर रहा था।
बनारस में ललित नारायण मिश्र की बहुत जान पहचान थी। स्टीफन को यह नौकरी ललित नारायण मिश्र ने ही दिलवाई थी।
जबसे स्टीफन को माधुरी की इच्छा के बारे मेें पता चला था कि वह अपने परिवार की पहली ग्रैजुएट बनना चाहती है तबसे उसने उसके इस सपने को अपना बना लिया था।‌
स्टीफन ने माधुरी से वादा किया था कि वह उसे ग्रैजुएट बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। इसलिए ही उसने इस चैरिटेबल अस्पताल में नौकरी शुरू की थी।
उसने माधुरी की आगे की पढ़ाई शुरू करवा दी थी। वह भी मन लगा कर पढ़ रही थी। अब उसके सपने को स्टीफन का भी साथ मिल चुका था।

माधुरी बैठी पढ़ रही थी। डाकिए ने दरवाज़े पर आवाज़ लगाई। माधुरी उठकर गई। उसके पिता ने पत्र भेजा था।
वह फौरन पत्र खोलकर पढ़ने लगी।

प्यारी बेटी माधुरी

हम सब ठीक हैं। अब बहुत कुछ व्यवस्थित हो गया है। तुम और स्टीफन जबसे हम लोगों से मिलकर गए हो तबसे तुम्हारी अम्मा और बहनें बस तुम्हारी ही याद करती रहती हैं। खासकर तुम्हारी बहनें अपने जीजा स्टीफन की बातें करती नहीं अघाती हैं।
सच कहूँ बिटिया मेरे कुछ अच्छे कर्म ही रहे होंगे कि मुझे स्टीफन जैसा दामाद मिला है। एक पिता होने के नाते तुम्हारी फिक्र तो मुझे सदा रहेगी। पर यह सोंच कर कि तुम्हारा पति स्टीफन तुम्हारे साथ है मैं चैन की सांस ले सकूँगा।
हालात ऐसे हो गए थे कि मैं ग्रैजुएट बनने का तुम्हारा सपना पूरा नहीं कर पाया था। पर अब जब स्टीफन उसे पूरा करने में तुम्हारा साथ दे रहा है तो उसके लिए अपनी पूरी मेहनत करना।
जिस दिन तुम ग्रैजुएट बनोगी उस दिन उस हैमिल्टन के मुंह पर करारा तमाचा लगेगा।
ईश्वर से हर समय स्टीफन और तुम्हारे मंगल की कामना करता हूँ।
शिव प्रसाद सिंह

अपने बाबूजी का पत्र पढ़ कर माधुरी दोगुने उत्साह से पढ़ाई करने लगी।

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