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निदिया

मनुष्य यदि किसी विषय पर चिंतन मनन करने लगे तो वह जरूर परिणाम प्राप्त कर सकता है और यदि कार्य पूरी मेहनत लगन और निष्ठा से किया गया हो तो निष्कर्ष मनुष्य को स्वयं संतुष्ट करने योग्य होता है। पूर्व की दिशा से सूरज की किरणों के साथ सवेरा आता है और मनुष्य को ऊर्जावान बनकर जीवन को पुनः प्रारंभ करने की प्रेरणा देता है। और संध्या के समय कार्य और प्रकृति के साथ मनुष्य को भी आराम हेतु पश्चिम दिशा में सूर्यास्त हो जाता है। इन्हीं सवेरा और संध्या के बीच एक समय दोपहर का आता है जब थके हुये किसानों और मजदूरों को भोजन करने का सुख प्राप्त होता है। रोज की तरह आज भी सभी किसान रोती खाने उसी बरगद के पेड़ के नीचे आकर बैठे और छांव के साथ ठंडी हवा का आनंद प्राप्त कर रहे थे। आत्माराम बैठे - बैठे उसी पेड़ पर बैठे पक्षियों को देख रहा था सभी पक्षी आपस में इतने घुल - मिल कर चहचहा रहे थे मानो इनके परिवार में प्रसन्नता ही प्रसन्नता छाई हो। आत्माराम के मन में भी एक विचार आया, क्यों ना मै भी एक बार फिर अपनी धर्मपत्नी यशोदा को मनाकर अपने घर ले आऊं। अगले दिन ही आत्माराम अपनी रुष्ट पत्नी को मनाने और घर वापस लाने के लिये ससुराल चल पड़ा। चलते - चलते धूप तेज और थकान हो गई तब आत्माराम ने एक तालाब के किनारे पेड़ के नीचे बैठकर चना सत्तू पानी पिया और आराम कर अपनी थकान मिटाई। धूप नरम होते ही वह पुनः रास्ते पर अग्रसर हुआ और सांझ ढलते ,- ढलते वह ससुराल तो पहुंचा लेकिन थकान मिटाने के लिए घर के पीछे रखे हल पर बैठ गया और फिर आराम करने लगा। कुछ ही देर में घर के अंदर से बर्तनों की आवाज आई और फिर चूल्हे पर बनी रोटियों को फटक कर साफ करने की हर आवाज को वह गिनने लगा कुछ देर बाद आवाज शान्त हो गई फिर अचानक आत्माराम घर के दरवाजे पर का पहुंचा। लोग आत्माराम को देखकर अतिप्रसन्न हुये और मीठा पानी के साथ स्वागत कर हालचाल करने लगे। कुछ समय पश्चात भोजन का आग्रह किया गया आत्माराम ने कहा घर में कुल सोलह रोटियां ही बनी हैं अतः आप लोग भोजन कर लीजिए। सभी को आश्चर्य हुआ और रोटियों की गिनती की गई तो सचमुच सोलह रोटियां ही बनाई गई थी। सभी लोग चकित थे कि आत्माराम को यह कैसे पता चला अगले दिन पड़ोसियों में इस बात की चर्चा हो रही थी। आत्माराम यशोदा को लेकर जाने की बात कही तो सभी लोग कुछ दिन और रुकने का निवेदन कर आत्माराम को रोक लिए। गांव के है एक धोबी का गधा कहीं चला गया था जिससे धोबी बहुत परेशान था जब उसने आत्माराम की बात सुनी तो अपनी समस्या के साथ आ पहुंचा।

आत्माराम कुछ सोचने के बाद बोला - सोलह रोटी थापक- थइया, घूर चरन को गद्या गइया अर्थात सोलह रोटियों की बात जिस तरह सच है उसी तरह गधा केवल घूर पर ही चरने खाने के लिए जा सकता है। धोबी ने घूर ( कूड़े - कचरे का टीला ) पर जाकर देखा तो गधा वहीं था। इससे आत्माराम की प्रशंसा पूरे गांव में होने लगी आत्माराम को अब इस आफत का अंदाजा होने लगा था कि वह किसी मुसीबत में पड़ने वाला है और बनी बनाई इज्जत मिट्टी में मिले इससे पहले यहां से निकल लेना चाहिए। शाम का वक्त था बगल के गांव में कल्लू तेली का घोड़ा रस्सी तोड़कर भाग गया था वह ढूंढ ही रहा था कि उसे आत्माराम की चर्चा वाली बात याद आआ गई उसने तय किया कि कल सुबह होते ही आत्माराम से पूछने चलुंगा। सुबह हुई और सब नित्य क्रिया से निवृत होकर जलपान कर ही रहे थे कि कल्लू तेली वहां आ पहुंचा और किशोरी लाल से उनके मेहमान आत्माराम से समस्या का उपाय सुझाने का निवेदन किया। आत्माराम सोच में पड़ गया कि अब तो सबकुछ सत्यानाश ही है, हे ईश्वर मेरी मर्यादा अब आपके हाथों में है। आत्माराम ने कल्लू से कहा आपकी समस्या का हल जरूर होगा किन्तु अभी नहीं संध्या के समय। इतना कहकर आई बला से कुछ पल का छुटकारा पाकर बहुत प्रसन्न हुआ और विचार करने लगा, संध्या हुई लोग इकट्ठा हुये और आत्माराम के बोलने की प्रतीक्षा में थे तभी आत्माराम ने कहा - सोलह रोती थापक- थइया, घूर चरन के गद्या गइया, परचा घोड़ भूसौले ठार जिसका अर्थ है कि घोड़ा किसी भूसाखाने में ही जा रूका है। तेली दौड़ा - दौड़ा गया और देखा तो घोड़ा आराम से वहीं बैठा हुआ था। यह सुनकर तो आत्माराम की चर्चा और प्रशंसा पूरे क्षेत्र में मशहूर हो गई आत्माराम को अब अपने घर की चिंता भी सताने लगी थी। वह कई बार यशोदा के साथ अपने घर जाने का आग्रह कर चुका था, अगले दिन पास के ही किसी गांव से दो व्यक्ति आय और आत्माराम को ठाकुर सत्यपाल सिंह के घर आने का पत्र से गए। सभी लोग चिंता में पड़ गए की ठाकुर सत्यपाल सिंह तो बड़े धनवान और सम्मानित व्यक्ति हैं उन्होंने किसलिए बुलाया होगा। आत्माराम ससुर किशोरी लाल के साथ वहां पहुंचे तो पता चला कि ठकुराइन का सोने का हार चोरी हो गया है उस हार का पता लगाने के लिए बुलाया गया है। यह सुनकर आत्माराम के माथे पर पसीना और मस्तिष्क पर संकट के बादल बढ़ते ही जा रहे थे। आत्माराम ने सूझ-बूझ से काम लिया और इसका परिणाम कल सुबह बताने की अनुमति मांगी। और रात्रि भर ठाकुर के सरायखाने में ही रुकने के लिए कहा। संध्या हुई आत्माराम बिना कुछ खाए पीये ही चारपाई पर लेटा रहा और मन ही मन विचार करता रहा की कल क्या होगा। रात्रि हुई भोजन कर सब लोग घरों में सो गए लेकिन आत्माराम को नीद नहीं आने की वजह से वो बार बार निदिया आ जा - निदिया आ जा का रट लगा रहे थे तभी एक लड़की आई और आत्माराम का पैर पकड़ कर बोली हे भविष्य ज्ञाता मै ही ठकुराइन की नौकरानी निदिया हूं जिसे आप बुला रहे थे और हार मेरे पास ही है। आपसे विनती है कि मेरा नाम मत लीजिएगा मै हार आपको से दूंगी। यह जानकर आत्माराम की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा और वह सब कुछ जानने के बाद चैन कि नीद सो गया। सुबह हुई हर किसी को इतने बड़े फैसले को जानने की उत्सुकता थी हर व्यक्ति ठाकुर के घर मेला लगाए खड़ा था, आत्माराम बड़ी सालीनता से उपस्थित हुआ और थोड़ी देर चुप रहने के बाद बोला - सोलह रोटी थापक-थइया, घूर चरन को गद्य गइया, परचा घोड़ भुसौले ठार, आई निदिया ले गई हार। ठाकुर साहब आपके घर नौकरानी निदिया है उसी के पास ठकुराइन का हार है। निदिया को बुलाया गया तब निदिया ने अपनी चोरी स्वीकार की, हर व्यक्ति आत्माराम की वाह वाही कर रहा था। ठाकुर सत्यपाल सिंह प्रसन्न होकर आत्माराम को बहुत सारा धन - दौलत देकर उसे यशोदा के साथ बैलगाड़ी से विदा कराने कि इच्छा जताई। आत्माराम ने हंसी खुशी स्वीकार कर विदा मांगी और यशोदा के साथ सकुशल अपने घर पहुंच कर सूखी जीवनयापन करने लगा।

लेखक :
ज्योति प्रकाश राय

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