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डर और मां

एक समय की बात है जब मै ज्योति प्रकाश कक्षा पांच में पढ़ता था, और मेरी उम्र लगभग नौ साल की थी। मेरे पिता जी श्री संतराम राय एक अध्यापक थे और जिस स्कूल में वो पढ़ाते थे उस समय उसी स्कूल में मै पढ़ता था। परिवार की हर इच्छाओं को पूरी करने की कोशिश में पिता जी (बाबा) स्कूल से छूटने के बाद ट्यूशन पढ़ाने भी जाया करते थे। और यदि हमें कभी किसी किताब या अन्य चीज की आवश्यकता होती थी तो बाबा स्कूल के पास वाली दुकान से सहेज कर दिला देते थे कि दे दो हिसाब बाद में कर लूंगा।

मुझे पता था कि पैसे का अभाव है इसलिए मै भी किसी अन्य सामान के लिए जिद या लालच नहीं करता था। एक दिन की बात है, स्कूल की छुट्टी होने के बाद बाबा ने मुझसे कहा कि तुम्हारे बाल बड़े हो गये हैं घर जाते हुए इन्हें लालता प्रसाद की दुकान से कटवा कर जाना और उनसे कहना बाबा आएंगे तो पैसा दे देंगे। शाम को चार बजे छुट्टी हुई और मै भी स्कूल से निकल दिया, मेरे साथ आने - जाने वाले सब लोग दुकान तक आये और फिर आगे चले गए मै दुकान पर अपना नंबर बोल कर बैठ गया। मेरी बारी आई तब तक शाम होने ही वाली थी, लालता प्रसाद को बोल दिया कि पैसा बाबा आ कर दे देंगे। उन्होंने कुछ नहीं कहा और बाल कटवा कर मै घर की ओर चल दिया। शाम के छः बजे ही होंगे कि मेरे मन में कुछ बातें चलने लगी कि आज का दिन यहीं निकल गया और खेलने नहीं मिला।

इन्हीं सब बातो को सोचते - सोचते मै उस नहर की पुलिया के पास पहुंचने वाला था कि अचानक मेरे मन में एक बात याद आ गई जो मेरे गांव का ही लड़का सूरज ने मुझे बताया था। कुछ दिनों पहले ही उसने मुझे उस जगह के बारे में एक बात बताई थी कि पुल के पास एक आम का पेड़ है जिस पर एक गड़ेरिया अपने भेंड़, बकरियों के लिए पत्ते काटने चढ़ा था और अचानक उसका पैर फिसला और वह नीचे गिरा उसी वक्त उसकी मृत्यु हो गई। यह बात मेरे मन में आते ही मेरे दिलो - दिमाग पर डर का भूत सवार हो गया, शाम का वक्त होते हुए भी वहां से कोई भी व्यक्ति उस समय नहीं आ - जा रहा था सिर्फ मै ही अकेला था। और मै डरते हुए भी आगे की ओर बढ़ रहा था और पुल को पर कर उस आम के पेड़ के पास से निकला ही था कि अचानक मुझे ऐसा लगा जैसे किसी के आने की आहट हो रही है। और मै चुप - चाप वहीं खड़ा हो गया। पीछे मुड़ कर देखना चाहा फिर एका एक आगे बढ़ने लगा, और जब - जब मै कदम बढ़ाता मुझे ऐसा लगता था कि कोई मेरे पीछे - पीछे आ रहा है और उसके आने कि आवाज भी आ रही है, जबकि वह आवाज मेरे ही पैंट की थी जो चलते समय आपस में सट रहे थे। जिससे ऐसा लग रहा था कि जरूर कोई मेरे पीछे आ रहा है। और मुझसे रहा नहीं गया मै पीछे मुड़ कर देख ही लिया लेकिन मेरे पीछे कोई भी नहीं था, फिर मै किसी तरह घर पहुंचा। और अपना स्कूल का बस्ता उतार कर रखा ही था कि अचानक से मुझे बुखार जैसा असर होने लगा और मै घर में जाकर चुप - चाप सो गया। सोते ही मेरे सामने ऐसा दृश्य दिखाई देने लगा जैसे मेरे घर की दीवारें अपने आप रंगीन हो रही हों और फिर उसी क्षण सब ध्वस्त हो जा रही हैं। और घर के बाहर मेरे बाबा और चाचा से आपस में ही लड़ाई हो रही है। यह सब देख मेरे बदन से पसीना आने लगा और मेरा हांथ - पैर अपने आप कांपने लगा। बाहर से मां अंदर आयी और मुझे सोया हुआ देख कर बोली क्या हुआ ? क्यों सोये हो ? मै चुप ही रहा मुझसे कुछ बोला ही नहीं जा रहा था। तब मां ने सर पर हांथ रखा और हाथ रखते ही बोली, अरे तुम्हे तो तेज बुखार है। इतना कह कर झट से बाहर आयी और एक कटोरी पानी लेकर माथे पर पट्टी करने लगी। उसके बाद किसी को भेज कर पास में ही रहने वाले एक ओझा रामकृष्ण को बुलवाई जो कि भूत - प्रेत देखते थे। वो आए और मुझे देख कर आधा गिलास पानी पीने के लिए दिए और चले गए। उस पानी में थोड़ी सी राख मिली हुई थी जिसे पी कर मै सो गया और फिर लगभग एक घण्टे बाद मै पहले की तरह ठीक हो गया। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि मां हमेशा अपने बच्चों की तकलीफ़ को पहचान लेती है। क्योंकि वो मां होती है, मां को हमेशा खुश रखें ताकी आपके घर में और आपके जीवन में कोई भी संकट नहीं आये। धन्यवाद

।। ज्योति प्रकाश राय।।

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