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रास्ते की गुड़िया

विजयदशमी का दिन था पूरे गांव और बाजार में चहल-पहल सा माहौल छाया हुआ था और घर को सजाने की तैयारियां चल रही थी। कि मानों प्रभु श्री रामचन्द्र जी का आगमन आज ही हो रहा हो, और हो भी क्यों ना आज के दिन श्री राम जी का धरती पर अवतरित होने का कारण जो सफल हुआ है। असत्य पर सत्य की विजय का जो डंका रावण के राज्य में बजा है वह पूरे जगत में गूंज रहा है। हम लोग भी शाम को मेले का आयोजन देखने जाने के लिए योजना बना रहे हैं। मैं यानी रमेश और मेरे बच्चे रामू जीतू और चंदा हम सब मेला देखने के लिए उत्सुक थे। चंदा की मां इस दुनिया में नहीं है वह हमें पहले ही छोड़ कर जा चुकी है। शाम के चार बजने ही वाले थे कि हमारा सारा काम समाप्त हो गया। और सब नए कपड़े पहन कर मेला देखने के लिए निकल पड़े। रास्ते में ही बातें होने लगी और रामू ने कहा मुझे तो बस एक बंदूक लेनी है और जलेबी समोसे खाने हैं, मैंने कहा जलेबी समोसे तो ठीक है लेकिन बंदूक लेकर क्या आतंकवादी बनना है रामू ने जवाब दिया नहीं पिताजी मैं तो बस देश का सिपाही बनना चाहता हूं और सभी आतंकवादियों को देश में घुसने से पहले ही मौत के घाट उतार दूंगा। मेरा सीना गर्व से ऊंचा हो उठा और रामू की पीठ थपथपाते हुए उसे शाबाशी दी तभी चंदा बोल उठी मैं तो एक प्यारी सी गुड़िया लूंगी जिससे मैं पूरे दिन खेल सकूंगी। मैंने कहा ठीक है बच्चों हम मेले में आ चुके हैं अब पहले श्री रामचंद्र जी के हाथों रावण का संहार होते हुए देखकर मेले का आनंद उठाते हैं। असत्य पर सत्य की विजय हुई और सब लोग सामान की खरीदी करने लगे हम लोग भी अपने मनपसंद चीजों को लेकर घर की ओर चल दिए। कुछ अंधेरा हो चुका था फिर भी सड़क पर सब कुछ दिखाई पड़ रहा था, थोड़ी दूर जाते ही रास्ते में एक प्यारी सी गुड़िया पड़ी दिखाई दी और चंदा ने जोर से आवाज दिए पापा मुझे कंधे से उतारो वह देखो मेरी गुड़िया से भी खूबसूरत गुड़िया रास्ते में पड़ी है इसे ले लो। मेरे मना करने के बावजूद भी वह जिद करके उसे उठा ही ली । हम सब घर आए और थके होने के कारण सब जल्दी सो गए।रात को करीब डेढ़ बजे होंगे कि किसी के पैरों की आवाज आई और मेरी आंखे खुल गई मैंने देखा कि चंदा जमीन पर बैठकर उस गुड़िया को देख रही है। मैंने सोने के लिए कहा और पानी पीने चल दिया लौट कर देखा तो चंदा जैसे - जैसे कर रही है वैसे ही उस गुड़िया के हाथ भी चल रहे हैं। यह देख मैं आश्चर्य में पड़ गया, फिर मशीनरी चीज समझ कर दोनों को सुला दिया। अगली रात फिर किसी के खिलखिला कर हंसने और फिर अचानक से रोने की आवाज सुनाई दी। मुझे लगा कोई सपना होगा लेकिन थोड़ी देर बाद बिस्तर के खिचने का आभास हुआ और जब उठकर देखा तो वह गुड़िया मेरे पैरों तक जा पहुंची थी। मैंने उसे उठाकर कपाट पर रखा और सो गया। दिन हुआ रामू जीतू चंदा सब मजे से खेल रहे थे। और फिर रात आई करीब डेढ़ बजते ही उस गुड़िया के हाथ पैर हिलने लगे और सोते हुए भी चंदा उसी तरह कर रही थी। देखते-देखते उस गुड़िया की आंखों से रक्त बहने लगा यह देख मैं उठ खड़ा हुआ और चंदा को जगाने लगा चंदा की आंखें खुली तो आंखों में पुतली ही नहीं थी, यह देख मैं डर गया और बिस्तर से नीचे जा खड़ा हुआ। मुझे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि मै क्या करूं, और थोड़ी देर में ही गुड़िया की आंखों से रक्त निकलना बंद हुआ और चंदा भी शांत हो गई किसी तरह रात बीती सुबह होते ही मैं उस गुड़िया को घर के पीछे बने गड्ढे में फेंक आया।चंदा के बहुत पूछने पर भी मैंने उसे उस गुड़िया के बारे में कुछ भी नहीं बताया कि वह कहां है। दिन भर सब कुछ ठीक था, रात हुई सब सोए हुए थे। रात के एक बजने के बाद ही अचानक आवाज आई और उठकर देखा तो गुड़िया खिड़की के पास से अंदर आ गिरी थी।जैसे ही मैं उसे उठाने के लिए हाथ बढ़ाया वह मेरे हाथों में चिपक गई और खून के टपकने से जमीन भी लाल होने लगी। हर तरफ सन्नाटा छाया हुआ था और मैं भयभीत अवस्था में किसी तरह हनुमान चालीसा पढ़ना शुरू किया और अचानक सब गायब हो गया मैं रात भर बैठा रहा। और सुबह होते ही ओझा को बुलाया तो उन्होंने सब कुछ देखने और सुनने के बाद कहा इसके अंदर किसी की आत्मा है। जिसके शरीर का दाह नहीं किया गया है यदि इसका अंतिम संस्कार करा दोगे तो तुम दोनों को इस परेशानी से मुक्ति मिल जाएगी। मैंने पंडित जी को बुला कर उस गुड़िया को गड्ढे से निकालकर नदी के किनारे अंतिम संस्कार करा दिया। और इस मुफ्त की परेशानी से छुटकारा मिल गया।अतः आप सब से अनुरोध है कि रास्ते में पड़े किसी भी सामान को तब तक ना उठाएं जब तक आप उससे भली-भांति परिचित ना हो । धन्यवाद

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