यहां सबकी सोच नंगी है Dhiraj Jha द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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यहां सबकी सोच नंगी है


बाज़ार सजा हुआ है. साथ में खड़ी लीला, चंपा, जूली, रेखा, हेमा, ऐश, माधूरी एक-एक कर ग्राहक को लुभा कर ले जा रही हैं. सबको पता है कि यहां आए मर्दों का नाड़ा कैसे ढीला करना है. सस्ते पाऊडर और पांच मिनट में गोरा करने वाली क्रीम का सही उपयोग इसी बाज़ार में दिखता है. ‘कस्टमर’ भी छुपते-छुपाते बाज़ार की दहलीज़ तक आते हैं और बाज़ार में ऐसे घुसते हैं, जैसे किसी कैद से निकल कर आए हों.


फुलिया बाई के कोठे की मीना का चेहरा जैसे इस झूठे बाज़ार में इकलौता सच्चा चेहरा हो जिसका मन भी उदास है और सूरत भी. उसके पास नए ग्राहक आते हैं, वो भी इक्का दुक्का और वो भी गालियां दे कर चले जाते हैं. या फिर कोई नशे में धुत्त शराबी आता है, जिसे बस हल्का होने के लिए शरीर चाहिए.


गांव से कुछ महीने पहले आया पासपत इसी बाज़ार में पान का खोखा लगाता है. वह अपने पड़ोस के चाय वाले नदीम भाई से उत्सुक हो कर पूछ बैठा, “मीना सुंदर है, सबसे ज़्यादा जवान, सबसे ज़्यादा निखरा रंग, सबसे सही शरीर की बनावट, फिर भी उसके कद्रदान ना के बराबर हैं... शायद हैं ही नहीं. यहां तो सबको चेहरे और जिस्म की ख़ूबसूरती लुभाती है और वो सब मीना के पास है, फिर भी कोई उसके पास नहीं आता. ऐसा क्यों नदीम भाई ?


“क्योंकि मीना का वो जिस्म जो कपड़ों से ढका हुआ है, वह बुरी तरह जला है. सुना है उसके स्तन ऐसे लगते हैं जैसे आम में कीड़े लग गए हों। उसका पेट जल कर सिकुड़ गया है. उसका चेहरा देख कर हर कोई मोहित हो जाता है मगर जब वो बिस्तर पर कपड़े उतारती है, तो सबको उल्टी आने लगती है. फुलिया बाई जानती है, वो अनाथ है. यहां से निकाल दिया तो भूखी मर जाएगी.” नदीम पासपत को समझा रहा था.


“शादीशुदा है तू. गांव में घर परिवार है तेरा. कमाई पर ध्यान दे. यह बाज़ार अच्छे-अच्छों को निगल गया, फिर तू क्या चीज़ है?” नदीम की बात सुन कर पासपत बस मुस्कुरा दिया करता था.


महीनों तक ये सिलसिला चलता रहा. सब कुछ पहले जैसा ही था, बस बदली थी तो मीना के चेहरे की रंगत. उसके चेहरे पर सच्ची मुस्कुराहट थी, बनावटी नहीं. वो मुस्कुराहट, जो उसके ख़ुश मन का हाल बयां कर रही थी.


देर रात तक मीना के कमरे से आने वाली दोनों की हंसी भरी आवाज़ें, दोनों का एक-दूसरे को देख कर चहक उठना, आंखों-आाखों में ढेर सारी बातें कर लेना, लोगों की आंखों में खटकने लगा था. वक्त काटने के लिए लोगों को अच्छा विषय मिल गया था.


नदीम का सब्र आज टूट गया. उसने बीच बाज़ार पासपत का काॅलर पकड़ कर कहा, “समझाया था तुझे, बाल बच्चे वाला है तू, काम-धंधा कर दो पैसे कमा. इन रंडियों के चक्कर में मत पड़. अरे, इनका क्या है? इनके रोज़ यार बदलते हैं. तेरे सामने ही तो मीना के कमरे में कितने ग्राहक घुसते हैं.”


पासपत हमेशा नदीम की बात मुस्कुरा कर टाल देता था मगर आज उसका चेहरा भावहीन था.पासपत तो चुपचाप बर्दाश्त करता रहा मगर आज मीना से बर्दाश्त ना हुआ. इसीलिए चिल्ला कर बोली, “ऐ नदीम ज़ुबान संभाल के बोल. मैं रंडी है, माना मेरी कोई इज्ज़त नहीं पर इसकी है. क्योंकि ये अच्छा इंसान है. इस बदनाम गली में सब बदनाम हैं और आज साबित हो गया कि यहां भगवान भी चला आए, तो वो भी बदनाम हो जाएगा.”


मीना आज शांत होने वाली नहीं थी. वो फिर बोली, “सबको ये तो दिखा हम दोनों के बीच कुछ खिचड़ी पक रही है मगर हमेशा की तरह किसी को वो प्रेम नहीं दिख रहा, जो निस्वार्थ है जिसका जिस्म से कोई नाता नहीं. किसी ने नहीं देखा कि पासपत मीना के पास गया तो ग्राहक बन कर था. मगर उसकी मंशा उस टूट रही मीना का सहारा बनने की थी. किसी ने ये नहीं देखा कि वो मीना, जो अंदर ही अंदर मर रही थी वो आज ज़िंदगी से कितनी ख़ुश है. किसी ने पासपत को मीना के ज़ख्मों के लिए दवा ले जाते नहीं देखा, किसी ने पासपत की कलाई नहीं देखी, जिस पर मीना ने एक डोरी बांध दी थी. किसी को नहीं पता कि पासपत ने मीना को वैसे ही अपनाया जैसी वो है. किसी ने ये भी नहीं देखा कि मीना अब जीना सीख गई है.”


“किसी ने मीना के लिए पासपत की नज़रों में वो इज़्जत नहीं देखी जिसके लिए मीना तरस कर रह गई थी. हम जिस्म बेचते हैं नदीम भाई, आत्मा नहीं. मगर पासपत भाई ने मेरा जिस्म नहीं आत्मा खरीदी है और बदले में दिया अपना अनमोल प्रेम. ऐसा प्रेम जो इस बाज़ार में तो किसी को नसीब नहीं हो सकता. अरे भला हो उस मजबूरी का जो पासपत जैसे देवता को इस बदनाम गली तक ले आई वरना यहां पैर रखने की हिम्मत तो भगवान नहीं करता तो नेक इंसान क्या करेगा. आज एक बात पर यकीन हो गया नदीम भाई बाज़ार हो या समाज सोच सबकी नंगी है.”


बाज़ार में सन्नाटा था. वहां शायद ही कोई दिल बचा हो, जिसको मीना की बात ने झकझोर कर ना रख दिया हो और शायद ही कोई आंख बची हो, जिसने आंसुओं से पासपत के पैरों को ना धोया हो.


धीरज झा