देवास की वीरा Dr Jaya Anand द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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देवास की वीरा

देवास की वीरा


प्रकृति और मन दोनों एकाकार हो रहे थे ,बाहर बादलों का गर्जन और मन के भीतर असहनीय पीड़ा का नर्तन ...देवास की महारानी वीरा की आँखे पथरा गई थीं ,अश्रु आंखों में जम से गए थे ,कैसे हो गया ये सब ,कभी ऐसी स्थिति का चिंतन तक नहीं किया .. ..एक शून्यता ,एक स्तब्धता से महारानी वीरा घिर गई थी कि अचानक आकाश में बादलों के बीच कड़कती हुई बिजली चमकी ,महारानी वीरा की स्तब्धता में स्मृतियों की झनकार हुई । ….उस दिन महाराज वीरभद्र युद्ध से लौटे ही थे ।महारानी वीरा ,महाराज वीरभद्र के साथ परिसर के उद्यान में सरोवर के पास अठखेलियां कर रही थी ।

“महारानी आप बहुत प्रसन्न प्रतीत हो रही हैं!”

“क्यों न हूँ महाराज !आप शत्रुओं को पराजित कर सकुशल लौटे हैं "

“ हाँ यह तो ठीक है महारानी ,लेकिन कभी आपने चिंतन किया है कि कभी मैं युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो जाऊं और देवास की सेना आपके पास मात्र मेरी तलवार लेकर वापस लौटे….!”

“.....कैसी बातें कर रहे हैं महाराज !”महारानी वीरा बीच में ही बोल पड़ी. ...ऐसा कभी नहीं होगा ,आखिर महाराज वीरभद्र और महारानी वीरा चिरसंगी जो हैं एकदूसरे के”।

“उचित है महारानी !आपका आशा और विश्वास से भरा दृष्टिकोण, पर मनुष्य को हर कठिन परिस्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए, ….और हाँ मुझे इस बात का किंचित भी संदेह नहीं कि मेरी महारानी वीरा पूर्ण सक्षम है “ महाराज धीर गंभीर हो कर बोले ।

“महाराज आप कैसी गंभीर बातें ले कर बैठ गए” महारानी वीरा ने हंसते हुए सरोवर का जल लेकर महाराज वीरभद्र की ओर फेंका ।

…..पर जल की फुहार महारानी वीरा के तन को भिगो रही थी वहीं आंखों के अश्रु उसके मन को भिगो रहे थे । …...महाराज इस बार भी युद्ध मे गए थे पर वह स्वयं नहीं लौटे बस उनकी तलवार और उनकी पगड़ी वापस आई थी ,वह वीरगति को प्राप्त हुए थे….यही सत्य था जिसे महारानी वीरा झुठला देना चाहती थी।अभी तो उनके विवाह को मात्र एक वर्ष छः मास ही बीते थे….यह कैसा वज्रपात,यह कैसा असहनीय आघात,यह कैसी हृदय भेदी पीड़ा...उफ्फ...उसी क्षण किसी के कोमल हाथों का स्पर्श महारानी वीरा ने अनुभव किया।भीगी पलकों को जब उसने ऊपर उठाया तो सामने पाया वत्सलमयी सासू माँ का अंक ।

“ माँ …..माँ…!कहते हुए फुट-फूट कर महारानी वीरा महाराज वीरभद्र की माँ यानी राजमाता के गले लगकर रोने लगी। राजमाता के चेहरे पर एक दिव्यता ,एक सौम्यता थी।

वह अपनी पीड़ा को छुपाए शांत भाव से महारानी वीरा से बोलीं “महारानी वीरा !आप मेरी पुत्रवधु ही नहीं बल्कि मेरी बेटी जैसी हैं,आपकी पीड़ा को मैं नहीं समझूँगी तो कौन समझेगा ?आखिर मैने भी तो आपना पुत्र खोया है...मेरे हृदय का टुकड़ा….बोलते -बोलते राजमाता की आवाज़ लड़खड़ा सी गई पर दूसरे ही क्षण स्वयं को सम्हालते हुए बोली ..”मुझे गर्व है मेरे पुत्र पर जिसने देवास की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी । महारानी वीरा!आप भी उसी देवास की महारानी हैं ।अब देवास की बागडोर आपके हाथ है

“...माँ ….माँ …!! मैं कैसे करूँगी यह सब….नहीं हो पायेगा मुझसे यह सब ! मैं स्वयं को सम्हालने में असमर्थ हो रही हूँ और आप राज्य सम्हालने की बात…..”महारानी वीरा फफक कर रो पड़ी ।

“बेटी वीरा आप न केवल मेरी वधू ,मेरी बेटी हैं बल्कि देवास की महारानी भी है ।देवास आपके संरक्षण की बाट जोह रहा है …..और महाराज वीरभद्र तो सदैव कहते थे कि महारानी वीरा किसी भी कठिन परिस्थिति के समक्ष घुटने नहीं टेक सकती ।"

महारानी वीरा सुबकते हुए राजमाता की बातें सुन रहीं थी।राजमाता महारानी वीरा के सर पर हाथ फेरते हुए जाने लगी तो महारानी वीरा ने उनका हाथ अपने हाथों में ले लिया और आँखों में आंसू लिए कहने लगी “माँ !आप जैसी सासू माँ को पाना मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है….आप मेरी माँ समान ही हैं ….”

प्रातः काल दरबार सज गया था ।राजमाता पधार चुंकी थीं ।महारानी वीरा के लिए सभी दरबारी और राज्य की जनता प्रतीक्षारत थी । महारानी वीरा अपने कक्ष से निकल कर दासियों के साथ दरबार की ओर प्रस्थान कर रहीं थीं ।बार -बार महारानी की आँखे महाराज वीरभद्र का स्मरण करते हुए नम हो जाती और पुनः वह उन अश्रुओं को छलकने से बचाते हुए चेहरे पर कठोर मुद्रा धारण कर लेतीं । आज अकेले ही महारानी वीरा को दरबार सम्हालना था ,राज्य का कार्यभार लेना था ।

.महारानी वीरा ने महाराज वीरभद्र की छवि को चित्र में निहारा और फिर अपने आंसू पोंछ लिए । महारानी वीरा ने देवास राज्य का कार्यभार कुशलता से सम्हाल लिया । गृहकार्य की निपुणता हो या अस्त्र -शस्त्र चलाने की दक्षता दोनों में ही वह पारंगत थीं ।प्रतिदिन वे तलवार बाज़ी, घुड़सवारी का अभ्यास करतीं । दिनभर राज्य के कार्यों में स्वयं को व्यस्त रखतीं ।सन्ध्या काल वह महल के पीछे बने उद्यान में अकेले भ्रमण करतीं,वहीं बहते सरोवर में हंस -हंसनी का जोड़ा उनके हृदय को हर्ष और विषाद दोनों स्थितियों में एक साथ ले जाता ।एक ओर उस जोड़े को देखकर महाराज वीरभद्र का स्मरण हो आता तो मन हर्ष से भर जाता तो वहीं दूसरे ही क्षण उनके न होने का यथार्थ मन को विषाद से भर देता ।

देवास राज्य का कार्य सुचारू रूप से चलने लग गया । एक दिन राजमाता महारानी वीरा के पास आईं -”बेटी वीरा ! (हाँ अब वह उनकी बेटी ही हो गई थी ) आज हमसब पहाड़ी पर स्थित माँ चामुण्डा के दर्शन के लिए चलते हैं । माँ चामुण्डा देवास की सदैव रक्षा करती हैँ ।”अवश्य माँ !हम सब उनके दर्शन के लिए प्रस्थान करते हैं “महारानी वीरा ने उत्फुल्लता प्रकट करते हुए कहा

राजमाता ,महारानी वीरा ,मंत्री, सेनापति और कुछ दास दासियों के साथ पहाड़ी पर स्थित माँ चामुण्डा के दर्शन किये।”माँ चामुण्डा !देवास की सदैव रक्षा करना और हमें आत्मबल , साहस ,धैर्य देना “महारानी वीरा भरे मन से प्रार्थना कर रहीं थीं ।

उधर राजमाता करबद्ध माँ चामुण्डा के सामने अपनी व्यथा व्यक्त कर रही थीं “माँ तुमसे बढ़कर मेरी पीड़ा कौन समझ सकता है...मैंने तो अपना पुत्र खोया है किंतु माँ!मैं अपनी पुत्रवधू और राज्य के समक्ष दुर्बल नहीं होना चाहती ।मुझे साहस ,शील प्रदान करो, देवास की सदैव रक्षा करो।” महारानी वीरा,राजमाता ,मंत्री ,सेनापति और दास-दासियों सहित महल वापस आ गईं ।


उद्यान में महाराज और महारानी वीरा बड़े ही शौर्य और वीरता के साथ तलवार बाज़ी कर रहे थे ।”महारानी !आप मुझे नहीं हरा सकती “महाराज हंसते हुए महारानी वीरा से बोले ।

“ मैं महारानी वीरा आपकी पत्नी हूँ ,मैं आपको हराना नहीं चाहती पर जीतना अवश्य चाहती हूँ ….”....तलवार की टंकार की गूंज से महारानी वीरा की निंद्रा भंग हो गई…हाँ !महारानी वीरा स्वप्न देख रही थी ,ऐसा स्वप्न जो पहले सच हो चुका था पर अब शायद ….

उसी समय एक सेविका ने आकर सूचना दी “ महारानी ! मंत्री वर सिंहमित्र पधारे हैं ।

“उन्हें भीतर आने दो “ महारानी वीरा ने आदेश दिया ।

“सादर नमस्कार महारानी वीरा !”

“क्या समाचार है मंत्रीवर”?

“महारानी ! सूचना मिली है कि अंग्रेज देवास पर आक्रमण करने वाले हैं और अपना आधिपत्य जमाने वाले हैँ “.

“क्या ?अंग्रेज़ो का इतना दुःसाहस ! हम देवास की रक्षा के लिए प्राण पण से तैयार हैं।आप दरबार में चलिए ,हम अभी वहाँ उपस्थित होते हैं “महारानी वीरा की आवाज़ में गाम्भीर्य प्रतीत हो रहा था।

राजमाता कक्ष के बाहर से यह समाचार सुन रहीं थीं । मंत्री सिंहमित्र के जाते ही राजमाता ने महारानी वीरा के कक्ष में प्रवेश किया ।

“प्रणाम माँ! महारानी वीरा ने खड़े हो कर अभिवादन किया ।

“बेटी वीरा! मैंने समाचार सुना ,अब कैसे…..!!! “

“हाँ माँ! मैं भी बहुत चिंतित हूँ कैसे होगी देवास की रक्षा ?? हमारे पास तो सैन्य शक्ति भी अधिक नहीं और न उत्कृष्ट तकनीकि युक्त बड़े तोप गोले या हथियार हैं और महाराज वीरभद्र भी नहीं ……”बोलते हुए महारानी वीरा की आवाज़ मद्धम पड़ गई ,चेहरे का गाम्भीर्य बह चला और एक सामान्य स्त्री की सी चिंता ,घबराहट चेहरे पर व्याप्त हो गई ।

“माँ! कैसे होगा अब ,कैसे….” राजमाता का हाथ पकड़ कर महारानी वीरा चिंतित स्वर में बोल उठी।

“होगा बेटी ,सब होगा । आप भीमाबाई को जानती हैं ?”

“भीमाबाई !!”

“हाँ भीमाबाई ,इंदौर के महाराज यशवंत राव की पुत्री और अहिल्याबाई होल्कर की नातिन भीमाबाई । उन्हें भी बहुत कम आयु में वैधव्य का सामना करना पड़ा था । लेकिन उन्होने साहस ,धैर्य का साथ नहीं छोड़ा । जब अंग्रेज़ो ने आक्रमण किया तो उन्होंने गोरिल्ला युद्ध के द्वारा अंग्रेज़ो को पराजित किया । कर्नल मैकमल को मुँह की खानी पड़ी । इस तरह वह स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम महिला बनी ।बेटी वीरा आपको भी उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए ।


“माँ !मैं अपने अंदर आत्मविश्वास भरती हूँ पर फिर कहीं न कहीं से दुर्बलता आ कर घेर लेती हैं, मन टूटने लगता है ,” महारानी वीरा विह्वल हो कर राजमाता से बोले जा रही थीं

“हाँ बेटी !बहुत स्वाभाविक है यह ,कई बार ऐसी स्थिति आती है जब सर्वत्र अंधकार दीखता है,निराशा कई बार हमें आच्छादित किये रहती है पर उन सबके बीच हमें आशा का दीपक जलाए रहना होता है ,आत्मिक शक्ति से मन को सम्बल देना होता है । बेटी वीरा ! मुझे आप पर और आपकी क्षमता पर पूर्ण विश्वास है । आप भीमा बाई को अपनी प्रेरणा बनाइये।”

वस्तुतः जीवन का पग-पग प्रेरणाओं से अनुप्राणित होता है । महारानी वीरा ने आत्मविश्वास को पुनः जागृत किया और एक तेजोमयी दृष्टि के साथ दरबार में उपस्थित हुईं ।

“मंत्रिवर !हमारे पास समुचित सैन्य शक्ति नहीं है और आधुनिक हथियारों का भी अभाव है जबकि अंग्रेज़ आधुनिक तकनीकि के हथियारों से परिपूर्ण हैं इसलिए हम उनसे गुरिल्ला युद्ध करेंगे ।हमारी प्रजा से जो भी योद्धा इस युद्ध में सम्मिलित होना चाहते हैं ,उन्हें संदेशा भेजिए ।”

मात्र दो दिवस की अल्पावधि में अनेक नागरिक योद्धा तैयार हो गए । अगले ही दिन महारानी वीरा ,सेनापति ,मंत्री ,सैनिक और नागरिक योद्धाओं ने देवास के पास जंगल में डेरा जमाए अंग्रेजों पर संध्याकाल में अचानक ही आक्रमण कर दिया । अंग्रेज़ हतप्रभ थे,उन्हें इसकी तनिक भी भनक भी न थी ।

“जय माँ चामुण्डा ,जय भवानी “ सर्वत्र यही आवाज़ गुंजायमान थी ।

“व्हाट इज़ दिस, व्हाट इज़ हैपनिंग हियर ??,यह क्या हो रहा है “....अंग्रेज़ो की यही आवाज़ सुनाई पड़ रही थी ।

“हमारे देवास की पुण्यभूमि पर आधिपत्य जमाना चाहते हो!!यह असंभव है,यह स्वप्न तुम्हारा कभी साकार नहीं होने वाला…”महारानी वीरा ने ललकारते हुए तलवार के वार से अंग्रेज सिपाहियों की गर्दन धड़ से अलग कर दी। सैकड़ो अंग्रेज़ सैनिक मारे गए।वे भयभीत हो उठे ।जब तक वे अपने आधुनिक हथियारों के साथ आगे बढ़ते,महारानी वीरा और उनके सैनिक गुरिल्ला युद्ध करते हुए अदृश्य हो गए।इस प्रकार गुरिल्ला युद्ध से त्रस्त अंग्रेज़ो ने अपनी हार मान ली और उहोंने देवास पर अधिकार करने का सपना छोड़ दिया।माँ चामुण्डा के आशीर्वाद से देवास सुरक्षित रहा ।

“देवास के सभी नागरिकों को मेरा सादर प्रणाम!,आप सब लोगों के सहयोग से हम अंग्रेज़ो के विरुद्ध विजयी हुए ,उन्हें मुँह की खानी पड़ी” महारानी वीरा दरबार मे गौरवान्वित हो कर सभा को संबोधित कर रही थी । राजमाता का चेहरा स्वभिमान से दमक रहा था ।

“महाराज वीरभद्र की जय,महारानी वीरा की जय,राजमाता की जय,माँ चामुण्डा की जय ,देवास भूमि की जय!!” समस्त सभा जयकारों से गुंजित थी।

“माँ !माँ ! ….” नम आँखों से महारानी वीरा सभा समाप्ति के बाद राजमाता के चरणों मे झुक गईं ।

“ उठो बेटी! आपका स्थान चरणों मे नहीं मेरे हृदय में है । आपने देवास की रक्षा कर हम सब का मान बढ़ाया हैं ।आपके जैसी पुत्रवधू पाकर मैं धन्य हूँ । वीरांगना भीमाबाई की नीतियों का आपने अक्षरशः पालन किया ।बेटी वीरा!आपने स्त्री शक्ति को भी गौरवान्वित किया है “राजमाता का स्वर गर्व से दीप्त था ।

“.....किंतु माँ मैं भीतर से कहीं टूटन अनुभव करती हूँ ,प्रतीत होता है कि महाराज के बिना मेरा कोई अस्तित्व नहीं ।मैं तो बस अपना उत्तरदायित्व निभा . ….” डबडबाई आंखें लिए महारानी वीरा का स्वर भर्राए गले के साथ अधूरा ही रह गया ।

बात को बीच मे काटते हुए राजमाता बोलीं “बेटी वीरा ! प्रत्येक जीवन महत्त्वपूर्ण होता है, वह चाहे फिर स्त्री का हो या पुरुष का और आप ऐसा क्यों सोचती हैं कि महाराज वीरभद्र के पश्चात आपके जीवन का कोई अर्थ नहीं । आपका जीवन आज भी उतना ही महत्त्वपूर्ण और सार्थक है जितना कल था और देवास की रक्षा कर आपने प्रमाणित भी कर दिया । आप वीरा हैं ,तन और मन की ऊर्जा ,सामर्थ्य से परिपूर्ण ।

“माँ! माँ!!!! “महारानी वीरा की आँखों से अश्रु की धारा अति आवेग से बहने लगी …

अपने अश्रुओं को पोंछते हुए महारानी वीरा कहने लगीं “माँ ! मुझे आप जैसी सासू माँ पर गर्व है।मैं धन्य हूँ आपको पाकर ।राजमाता ने स्नेहातिरेक से महारानी वीरा को अपने अंक से लगा लिया । एक आशीष भरा हाथ ,स्नेह ,अनुराग ,हृदय सहलाता एक भाव, सम्बल देता एक मन बहुत कुछ जीवन को दे जाता है …... .यों तो जीवन में अपूर्णता बनी ही रहती है !!










…..इति शुभम…..


(यह कहानी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखी एक काल्पनिक कहानी है )


लेखिका -

डॉ जया आनंद

प्रवक्ता,

स्वतंत्र लेखन( मुंबई आकाशवाणी,दिल्ली आकाशवाणी ,,ब्लॉग पत्रिकाएं समाचार पत्र)





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