बंद दरवाजे का शहर (रश्मि रविजा) Dr Jaya Anand द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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बंद दरवाजे का शहर (रश्मि रविजा)

'बंद दरवाज़ों का शहर' मेरे लिए तब खुला जब पूरी तरह से शहर के दरवाज़े बंद थे । पर जब दरवाज़े बंद होते हैं तो अध्ययन ,मनन ,चिंतन भीतर घटित होने लगता है । ऐसे ही बंद दरवाज़ों के भीतर मैंने रश्मि रविजा दी का कहानी संग्रह 'बंद दरवाज़ों का शहर ' की एक एक कहानी को बड़ी ही विश्रांति के साथ मन से पढ़ा । समग्रतः कहूँ तो रश्मि दी की ये कहानियां बड़ी ही अपनी सी लगती हैं । हमारे आस -पास से गुजरती तो कहीं अपना ही बना लेतीं मानो हम भी तो कुछ ऐसा ही सोच रहे थे । कहानियों में छलकता ये अपनापन रश्मि दी के सरल व्यक्तित्व के कारण ही है जिसकी अनुभूति मुझे एक बार मिल कर ही हो गयी । …. कहानी संग्रह में बिषय वैविध्य दिखाई पड़ता है जैसे 'चुभन ,टूटते सपनों के किरचों की' कहानी में आधुनिकता और परंपरागत सोच के मध्य द्वंद दिखता है वहीं बड़ी बहन द्वारा अपने सपनों को पूरा करने का माध्यम छोटी बहन बनती दीखती है पर उसकी सोच आजकल के परिवेश को रूपायित करती है और बड़ी बहन का स्वप्न टूटता सा प्रतीत होता है और उस टूटन की चुभन हमें भी गहरे महसूस होती है,चुभती है ।कहानी 'अनकहा सच' एक सौम्य सी प्रेम कहानी है जिसकी सहज अनुभूति अनेक लोगों के जीवन मे हुई हो । मुझे यह कहानी बहुत ही अच्छी लगी और मुझे अनायास ही विह्वल कर गयी । 'पराग ..तुम भी ' कहानी बड़ी खूबसूरती से दर्शाती है कि पुरुष हमेशा पुरुष की तरह प्यार करता है जहाँ उसका अधिकार भाव प्रेम का लबादा ओढ़कर प्रकट होता है । 'खामोश इल्तिजा ,'पहचान तो थी पर पहचाना नहीं ' कहानियां मैंने रेडियो पर सुनी थी ,सहजता समेटे दोनों ही कहानियां प्रभावित करती हैं ।'अनजानी राह' कहानी भी बहुत अच्छी बन पड़ी है जहाँ अनजानी राह भी मंज़िल तक पहुंचा देती है।कहानी 'दुष्चक्र' ड्रग्स के चक्रव्यूह में फंसे किशोर की मनोव्यथा है तो वहीं ' कशमश' कहानी जीवन की उस उहापोह को उभारती है जहाँ दो रास्तों में कोई एक चुनना पड़ता है और मध्यमवर्गीय परिवार का व्यक्ति अक्सर सबके हित की बात सोचते हुए स्वयं को ही भूल जाता है और फिर ज़िन्दगी भर ये कशमश चलती है कि सही किया या गलत …...। इस संग्रह की शीर्षक आधारित कहानी 'बंद दरवाज़ों का शहर' का गठन बहुत ही प्रभावी है । महानगरीय जीवन की भागती दौड़ती ज़िन्दगी में बंद दरवाज़ों के भीतर घर कहीं सुनसान से हो जाते हैं ,पति के पास इतना समय नहीं कि वो दो स्नेहिल शब्द अपनी पत्नी से बांट ले ,जो संबंध है वो मात्र यंत्रवत है ऐसे में बंद दरवाज़ों के भीतर एक खिड़की से झांकता आसमान का टुकड़ा ही अपना जान पड़ता है, यहाँ विवाहित स्त्री और एक युवक के मध्य बहुत सुंदर मैत्री भाव परिलक्षित होते हुए किसी एक पल में वर्जनाओं के टूटने का अंदेशा होते हुए भी छोटे शहर से आयी उस लड़की के द्वारा भय के साथ उस स्थिति को सम्हालते हुए कहानी में बड़ी ही बारीकी से दिखाया गया है और साथ ही कुछ प्रश्न भी खड़े करती है कहानी जिसका उत्तर हमें ही खोजना है …...निश्चय ही इस संग्रह की सभी कहानियां पठनीय हैं और अपनेपन का एहसास कराती हैं ।

…...यह किताब मुझे पढ़ने की बड़ी इच्छा थी ।सुयोग तब बना जब यह किताब मुझे रश्मि रविजा दी के हस्ताक्षर के साथ मिली …...प्रत्येक शुभ कार्य का शुभ दिन निर्धारित है ।…... आगे सब शुभ हो मंगल हो यही

ईश्वर से निरंतर प्रार्थना है।