शेफाली एक चंचल , मस्त मौला और अपने ख्वाबों की दुनिया में रहने वाली लड़की। पढ़ाई भी किसी तरह उसने रो धोकर पूरी की। घर के कामों से बचने के सौ बहाने उसके पास। जब तक उसकी बड़ी बहन थी, तब तक तो वह किसी तरह से घर के कामों से बच जाती थी लेकिन दीदी की शादी के बाद, बचने का कोई रास्ता ना था।
मां उस पर इमोशनल अत्याचार कर किसी ना किसी तरह घर के कामों को उसे सिखाने में लगी थी। शेफाली देख रही थी कि पिछले 15 दिनों से घर में कुछ खुसर फुसर चल रही है और दीदी भी दो बार चक्कर लगा चुकी है। आज जब सुबह उसकी मां ने बताया कि परसों तुम्हें लड़के वाले देखने आ रहे हैं! सुनते ही उसका माथा ठनक गया ।
संडे को लड़का व उसका परिवार, उसका इंटरव्यू लेने नियत समय पर उनके यहां पहुंच गए। शेफाली को उसकी बहन ने साड़ी पहना, हाथ में चाय की ट्रे पकड़ा, जंग के मैदान में छोड़ दिया।
ना चाहते हुए भी शेफाली को एक शर्मीली सी लड़की बन उनके सामने सर पर चुन्नी ढक जाना पड़ा। लड़के पर नजर पड़ते ही उसका माथा भन्ना गया।
यह क्या! उसके ख्वाबों में तो सलमान खान था और यह तो अमोल पालेकर निकला!
वह अभी इस झटके से बाहर भी ना निकल पाई थी कि लड़के की मां उसे देखते ही बोली "वाह! यह तो बहुत सुंदर है। हमारे समीर के साथ तो इसकी जोड़ी खूब जमेगी।"
खैर कोई बात नहीं जब इनको पता चलेगा कि घर के कामकाज में वह जीरो है तो अपने आप ही ये लोग ना कर देंगे।"सोच शेफाली ने मन को तसल्ली दी।
लेकिन यह क्या मां और दीदी एक साथ शुरू हो गये " सुंदर ही नहीं गुणवान भी है हमारी शेफाली! साथ ही घर के कामकाज में निपुण!"
'हे राम! दोनों कितना झूठ बोल रहे हैं ।यह दोनों तो आज फंसवाकर ही मानेगी उसे।' वह मन ही मन बड़बड़ाई।
और जिसका डर था, वही हुआ। लड़के व उसके परिवार वालों ने शेफाली को अपने घर की बहु बनाने के फैसले पर मोहर लगा दी। जिसे सुन उसकी रही सही आशा भी जाती रही।
आज उसे अपने आप पर बहुत गुस्सा आ रहा था। क्यों उसने अपनी मां की बात नहीं मानी। कितना समझाती थी वह कि तू भी अपनी दीदी के साथ सोलह सोमवार के व्रत रखा कर। मनचाहा वर मिलेगा तुझे। उनकी बातों का वह हमेशा मजाक उड़ाती थी।
हाय! दीदी का तो व्रत सफल हो गया। कितने सुंदर हीरो जैसा पति मिला हैं उन्हें। अगर उसे पता होता इस व्रत की महिमा इतनी अपरंपार है तो वह सोलह क्या, पूरे 32 व्रत पूरे करती। लेकिन अब पछताए क्या होत!
लड़के वालों के जाने के बाद उसकी बहन उसे छोड़ते हुए बोली "भई किस्मत हो तो शेफाली जैसी। पहली बार लड़के वाले देखने आए और देखते ही पसंद कर गए।"
"तो हमारी बिटिया रानी हैं ही इतनी सुंदर !" उसकी मां ने उसे प्यार करते हुए कहा।
"आप दोनों रहने दो! गुस्सा आ रहा है मुझे ,आप दोनों पर!"
"क्यों भई क्या कर दिया हमने ऐसा! जो हमारी बन्नो रानी को गुस्सा आ रहा है।"
"दीदी आप तो कुछ बोलो ही मत। खुद के पति तो कितने हीरो टाइप हैं और हमारे लिए कैसा भोंदू सा लड़का ढूंढा है।"
"चल पगली क्या कह रही है! क्या कमी है लड़के में! अच्छा कमाता है ,शक्ल सूरत भी अच्छी है और वैसे भी कहते हैं जोड़ियां ऊपर से बनती है। देखना सिर आंखों पर रखेगा तुझे!"
"अब आप मुझे बनाओ मत मां। कह रहे थे लड़का देखने आ रहा है! बातचीत करके हां करेंगे और यहां तो मुझसे पूछे बगैर ही सब ने रजामंदी दे दी। ऐसा भी होता है क्या?"
इतनी देर में शेफाली के पापा भी अंदर आ गए और बोले "क्या बात हो रही है!शेफाली खुश है ना तू! लड़का पसंद था ना तुझे!"
अपने पापा के सामने तो शेफाली की वैसे ही सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती थी तो उनके सामने वह क्या कहती। उसने सहमति में सिर हिला दिया। वह भी उसके सिर पर प्यार से हाथ रख मुस्कुराते हुए बाहर चले गए।
उसकी मां और दीदी भी उनके साथ ही बाहर निकल गई।
2 महीने बाद ही शैफाली की शादी हो गई। शेफाली का बड़ा सपना था कि वह भी अपनी दीदी की तरह शादी के बाद हनीमून के लिए गोवा जाएंगी। लेकिन यह क्या! उसके पतिदेव ने तो शादी के तीसरे दिन ही ऑफिस ज्वाइन कर लिया। शेफाली ने एक दो बार सोचा भी कि उनको अपनी इच्छा बताएं लेकिन वह इतना कम बोलते थे कि चाह कर भी वह कुछ कह ही नहीं पाई।
उसके पति समीर और उसके स्वभाव में जमीन आसमान का अंतर था। जहां उसे घूमने फिरने , खाने-पीने व बातें करने का बहुत शौक था, वहीं समीर को छुट्टी के दिन भी घर में रहना व साधारण खाना पीना ही पसंद था। वह ज्यादा बातें भी नहीं करता था। उसे रह रहकर अपनी दीदी की बातें याद आ रही थी कि जीजा जी हर संडे बाहर खाना खिलाने फिल्म दिखाने ले जाते हैं उन्हें। और एक ये हैं.....!
शेफाली की सास उसके दिल की बात समझ रही थी। 1 दिन वह उससे बोली "बहू मैं देख रही हूं, तू समीर से थोड़ा उखड़ी हुई रहती है। बहु जरूरी तो नहीं पति पत्नी का स्वभाव एक जैसा हो। शादी एक ऐसा पवित्र बंधन है, जिसमें हमें साथ रहते हैं हुए एक दूसरे की भावनाएं समझनी होती है। जितनी जल्दी पति पत्नी एक दूसरे को समझने लगेंगे, जीवन उतना ही सुगम हो जाएगा। मेरा बेटा बहुत सीधा है लेकिन दिल का वह बहुत अच्छा है। कुछ दिनों में तुम भी इस बात को समझ जाओगी।"
अपनी सास की इस बात से तो वह भी इत्तेफाक रखती थी। जब से वह आई है, समीर ने उसके किसी काम में टोका टाकी नहीं की। पूरे सप्ताह व्यस्त रहने के बावजूद भी वह छुट्टी के दिन घर में जितना हो सकता ,सबकी कामों में मदद करता था। शेफाली को खुद पता था कि उससे अभी इतना अच्छा खाना नहीं बनता। फिर भी समीर ने कभी खाने पीने में कोई नुक्स नहीं निकाला।
बहुत दिनों से शेफाली की दीदी उसे खाने पर बुला रही थी लेकिन समीर को छुट्टी ना मिल पाने के कारण और हर संडे कुछ ना कुछ काम निकल जाने की वजह से हर बार मना हो जाती ।इस संडे समीर फ्री था तो वह उसके साथ अपनी दीदी के घर खाने पर पहुंची।
उसकी बहन ने देखते ही उसे गले लगा लिया। वह भी तो कितने दिनों बाद मिली थी उनसे। दोनों बहने एक दूसरे से मिलकर बहुत खुश हुई।
इसकी दीदी उनकी आवभगत में लगी थी। शेफाली ने कहा दीदी मैं आपकी मदद करवा देती हूं तो उसके जीजा जी बोले "नहीं शेफाली आज तू हमारी मेहमान है। तू आराम से खा पी बातें कर, तेरी दीदी संभाल लेगी सब।" दीदी ने भी उनकी हां में हां मिलाई।
शेफाली जब से आई थी, देख रही थी कि दीदी अकेली ही रसोई में लगी हुई थी। उसके जीजा जी दीदी की मदद करवाना तो दूर उल्टा उनके कामों में सौ कमियां निकाल बात बात पर उनका मजाक उड़ा रहे थे।
ऐसा वह पहले भी करते थे। लेकिन तब कभी शेफाली को बुरा नहीं लगा । शायद तब वह नासमझी थी या कहो वह पति-पत्नी के संबंधों व आपसी सहयोग से अंजान थी ।
दीदी हर काम में इतनी सुघड है फिर भी जीजाजी के मुंह से उनके लिए तारीफ का एक बोल नहीं निकल रहा था कैसे सबके सामने उल्टी आती सम्मान को ठेस पहुंचा रहे थे। दूसरी तरफ वह तो अभी सीख ही रही थी, तब भी समीर उसके किसी काम में कमी नहीं निकालता।
आज उसकी आंखों पर जमी धूल हट गई थी। उसे एहसास हो गया था कि हर चमकती चीज सोना नहीं होती। मां ने सही कहा था। भगवान सोच समझ कर जोड़ियां बनाता है। उसे आज रह रहकर समीर पर प्यार आ रहा था और उसके प्रति अपनी सोच पर थोड़ी शर्मिंदगी भी हो रही थी।
रात को वह समीर से बोली " समीर मुझे तुमसे कुछ कहना है!"
"हां मुझे भी तुमसे कुछ कहना है! चलो पहले तुम कहो!" समीर ने कहा।
"नहीं पहले आप!" शेफाली ने कहा।
"चलो पहले पहले के चक्कर में देर हो जाएगी और मुझे तो कल ऑफिस भी जाना मैं ही बता देता हूं लेकिन पहले तुम आंखें बंद करो!"
"पर क्यों!"
"करो तो!"
शेफाली ने आंखें बंद कर ली।
समीर ने उसके हाथों पर दो टिकट रखते हुए कहा अब आंखें खोलो।
शेफाली में आंख खोल , जब टिकट को देखा तो वह हैरान रह गई और बोली " आपको कैसे पता चला कि मेरा गोवा घूमने का बहुत मन है!"
" शेफाली पति हूं तुम्हारा। तुम्हारे दिल की बात मुझे नहीं पता होगी तो और किसे पता होगी। मैं तो बहुत पहले ही तुम्हें ले जाना चाहता था लेकिन ऑफिस में काम ज्यादा होने की वजह से समय ही नहीं मिल पाया।"
उसकी बात सुन शेफाली के आंसू निकल आए और वह बोली "मुझे माफ कर दो समीर। मैं पता नहीं तुम्हारे बारे में.......!"
"पति पत्नी के बीच माफी नहीं,बस प्यार व आपसी समझ होनी चाहिए।"
कह समीर ने उसे गले लगा लिया।
दोस्तों कैसी लगी आपको मेरी यह रचना पढ़कर इस विषय में अपने अमूल्य विचार जरूर दें।
सरोज ✍️