प्रेम दो दिलो का - 7 VANDANA VANI SINGH द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम दो दिलो का - 7

निर्मल नीरू को स्कूल छोड़ तो आता है लेकिन उसका मन नीरू के साथ उसके स्कूल मे ही रह जाता है वह ऐसे बेसुद सा घर पहुचता है जैसे उसमे कोई उर्जा ही ना बची हो ।
निर्मल को भी ये लगने लगा था की नीरू के बिना वह जी ना पायेगा । अगर नीरू ने इन्कार कर दिया तो वो टुट जायेगा । उस रोज निर्मल ने खाना भी नही खाया बस उसे इस बात का इन्तजार था की जल्दी से घड़ी मे दोपहर के 2 बजे और वो नीरू को लेने उसके स्कूल जाये। ये सोचते ही उसको ये खयाल आता है वह कितना पागल है जब स्कूल दो बजे बन्द होगा तो उसे जाने में भी वक्त्त लगेगा । क्यो नही पहले ही चला जाये और नीरू को जल्दी स्कूल से ले आये और ये कह दे की पापा ने कहा है की नीरू को जल्दी घर छोड दो क्योकी उनको गाड़ी लेकर कही जाना है। यह सोचते हुए वह रुक जाता है । मैं गलत सोच रहा हूँ जब नीरू की छुट्टी होगी तभी उसे लाएगा बाकी समय इन्तजार करेगा।जल्दी से दुसरे कपड़े पहन कर किसी फिल्मी नायक की तरह गाड़ी लेकर वह नीरू का इन्तजार करने निकल पडता है ।
रस्ते मे सोचता है की नीरू के स्कूल के पीछे वाले कछाओ मे जो खिडकिया है क्या नीरू वहा से दिखेगी । उसको ये भी नही पता है की वो कौन सी कछा मे बैठी है।
ये सोचते हुए जब स्कूल पहुचता है तो जहा नीरू को छोडा उसी सडक से एक कछा की खिडकी दिख रही थी और उस खिडकी के पास एक लडकी सडक के तरफ देखे जा रही थी । एक बर को निर्मल को ये लगा की हो ना हो वह जरुर नीरू ही है । जो उसका इन्तजार कर रही है और वह खुद से ही सवाल किये जा रहा है की वो क्यो न इन्तजार करेगी अखिर वह भी उससे प्यार करती है ।यह एक आस निर्मल को स्कूल के सामने दो घण्टे इन्तजार करने की हिम्मत दे रहा था । जैसे स्कूल की छुट्टी की घंटी बजती है निर्मल उछल पडता है ।
आस पास के लोग देख कर हँसने लग जाते है ।
नीरू आती है निर्मल से नजरे मिलाने से घबराती है उसके दिल का सारा खुमार जो उसने उन चन्द घण्टों में मेहसूस किया था सारा उसकी नजरो में बसा हुआ था वह एक पल में निर्मल को कैसे देदे । दोनो की हालत एक जैसी थी (असली प्यार का रंग तभी निखरता है जब प्यार का असर दोनो तरफ हो और उस रंग मे सिर्फ रंग ही नही महक भी हो वही महक नीरू और निर्मल को अपने घेरे मे घेर रही है)। निर्मल गाड़ी नीरू के पास ले जाता है और नीरू उस पर बैठ जाती है।दिनो घर के लिये निकलते है रस्ते भर निर्मल गाड़ी के सीसे को सही करके नीरू को देखने की कोसिस करता है।नीरू जब अपनी हाथो को उसके कंधे पर रखती है, निर्मल जैसे प्रेम से भर गया हो और नीरू उसे उस प्रेम का पहला उपहार दे दिया हो ।निर्मल नीरू से कुछ कहता है गाड़ी पर आवाज सही से नही आ रहा था ।निर्मल फिर से बोलता है नीरू सुनो तो नीरू अपने चेहरे को उसके कानो के पास ले जाती है ।
निर्मल को एक बार फिर लगता है जैसे नीरू ने अपने होठों से उसके कानो को पकड़ लीया हो वो चौक सा जाता है । नीरू क्या हुआ आप क्या कह रहे सुनायी नही दे रहा है ।निर्मल फिर बोलता है नीरू मेरी जान निकली जा रही है मेरे बातो का जवाब देदो जो मेहसूस है उस को सच कर दो ये मेरा पहला प्रेम है मै कैसे समझाऊ मुझे नही समझ आ रहा है ।बिच मे ही नीरू कहती है पहला प्रेम और वो सब जो कहते है।।।
Thanks for reading my story with interest ।।। Wait for next steps