The Author VANDANA VANI SINGH फॉलो Current Read प्रेम दो दिलो का - 4 By VANDANA VANI SINGH हिंदी फिक्शन कहानी Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books एक महान व्यक्तित्व - 3 "मेरे बचपन के मजे अब खत्म होने वाले थे चलो अब हॉस्टल तीसरी क... दरिंदा - भाग - 5 प्रिया ने देखा रसोई में एक घड़े में पानी था लेकिन उसके अलावा... खामोश चाहतें - पार्ट 2 उसका नाम तो मैं नहीं बताऊंगी, पर उसकी तस्वीर मेरे दिल और दिम... बियोंड वर्ड्स : अ लव बॉर्न इन साइलेंस - भाग 24 सुबह का समय, राणा जिम, सिद्धांत ने यश के मुंह पर अपना... Love Contract - 22 सुबह के वक़्त था विराज जॉगिंग से रिवान के साथ वापस आया । विर... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी उपन्यास VANDANA VANI SINGH द्वारा हिंदी फिक्शन कहानी कुल प्रकरण : 12 शेयर करे प्रेम दो दिलो का - 4 (6) 3k 6.6k निर्मल को उस दिन नीरू को देखना ऐसा लगा जैसे निर्मल ने उसे अपनी आँखो से छु लीया हो। पूरा दिन नीरू यह सोचती रही की वो क्या था जो निर्मल की आँखो मे देखा वो क्या था । यह बात वह निर्मल से पूछेगी की वो इस तरह से क्यो देखता है । ये बात अब नीरू को भी लगने लगा की क्या निर्मल उससे प्यार करता है या सिर्फ उसे देख लेता है ।अब दोनो की हालत एक जैसी है सोचने वाली बात ये है कि तब नीरू कहती क्यो नही है निर्मल से की वह भी वही सोच रही जो निर्मल के दिमाग मे चल रहा है । निर्मल के बारे मे एक अफवाह आई थी कि वह किसी लडकी को पसंद करता है उसके लिए गाने भी लिखता है और प्रेम पत्र भी लेकीन पूरी पक्की बात न पाता थी कि हकीकत क्या है, सच्च मे निर्मल किसी को पसंद करते थे नीरू निर्मल से पूछ भी नही सकती ।कि वह उसे चाहने लगी है यह बात सोचते हुए नीरू पास के घर मे चली जाती है । वह अपनी सहेलियो के साथ कूछ इधर-उधर कि बाते करती रहती तभी निर्मल आ जाता है । उसकी सहेली रमा निर्मल को बहुत पसंद करती है इसलिए वह निर्मल को बैठने के लिये कहती है, निर्मल तो चाहता है कि वहा बैठ जाये ।उतने में नीरू उठ कर जाने लगती है ।निर्मल निरु कहा जा रही है रमा भी यही बात दोहराती है लेकीन नीरू पीछे मुड के रमा को देखती है और चुपचाप चली जाती है । निर्मल रमा से पूछता है कि क्या बात हो रही थी तुम लोगो मे नीरू क्यो गुस्सा होकर चली गयी । रमा!पता नही क्यो गुस्सा हुई मैंने तो कूछ कहा भी नहीं रमा धीरे से बोलती है ।निर्मल सोच रहा है कि रमा से कूछ मदत मांगे जिससे वह जान सके कि नीरू के दिल कि हालत क्या है?क्या वो भी निर्मल कि तरह सब कूछ मेहसूस करती है । रमा को लगता है कि निर्मल उसके बारे मे सोच रहा है कयोंकि रमा बहुत पहले से निर्मल से प्यार करती थी। निर्मल के सहर चले जाने के कारण उन दोनो का प्रेम आगे नही बढ़ पाया था। लेकीन अब रमा के दिन लौट आये थे वह अपने इस एक तरफा प्यार को अपने निर्मल के साँसो मे घोल देना चाहती थी । रमा दिन रात निर्मल के सपने देखने लगी क्योकी निर्मल उसके जाती का था दोनो का ब्याह भी बडे आराम से हो सकता था । इन सब सपनो को जब रमा अपनी खुली आँखो से बुन रही है तभी निर्मल रमा को आवाज देता है रमा मेरी बात सुनो ,रमा जैसे नींद से जगी हो चौक जाती है और पूछती है क्या आप इस तरह से क्यो आवाज दे रहे हो। निर्मल बताता है कि वह कितने देर से न जाने कहा खोई है।रमा कहती है नही बस कुछ सोच रही थी ।ये बात सुनकर निर्मल कहता है की वह भी कुछ सोच रहा हूं रमा , मै बताऊं पहले या तुम बताओगी ! रमा बोली पहले तुम।।। ‹ पिछला प्रकरणप्रेम दो दिलो का - 3 › अगला प्रकरण प्रेम दो दिलो का - 5 Download Our App