प्रेम दो दिलो का - 5 VANDANA VANI SINGH द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

  • Nafrat e Ishq - Part 7

    तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब...

श्रेणी
शेयर करे

प्रेम दो दिलो का - 5

रमा के परो को जैसे उड़ान मिल गयी हो और वह उडने लगी हो जैसे वह उसकी बात कर रहा है । निर्मल दुबारा पूछता है कि नीरू मेरे बारे मे कोई बात ना करती है । रमा ने कहा की करती तो है पर ये बात तुम क्यो पुछ रहे हो । निर्मल हिचकिचते हुए कहा बस ऐसे ही पुछ नही सकता ।
रमा बोली गुस्से से कह रही थी कि निर्मल ने उसकी बहुत देख भाल की और तुम उसे पढ़ाने भी जाते हो । निर्मल हस्ते हुए बोला हाँ जाता हूँ । रमा उसकी तरफ क्या पढाते हो कुछ और मत पढ़ाने लगना । निर्मल रमा तुम क्या कहना चाह रही हो मै समझ नही पा रहा हूँ रमा हस्ते हुए मै तो मजाक कर रही थी और तुम्हारे घर मे सब कैसे है? निर्मल ने कहा सब ठीक है । ये कहते हुए निर्मल वहा से उठने लगता है तो
रमा- क्यो जा रहे हो?
निर्मल- बहुत देर हुआ माँ दूंढ रही होंगीरमा - निर्मल मुझे तुमसे कुछ कहना है ।
निर्मल - बोलो
रमा - मुझे रात को निद मे बड़ी घबराहट होती है ।
निर्मल - क्या हो गया ?
रमा - कुछ समझ नही आ रहा है ।
निर्मल - रमा तुम ठीक से खाना खाकर लेटा करो और दुध भी लीया कर ना मै ले आया करु ?
रमा - मुझे सहर मे किसी अच्छे डॉक्टर से दिखा देते तो अच्छा होता ।
निर्मल - पहले जो मैं कह रहा वो कर ना ठीक हुआ तो दिखा दूँगा डॉक्टर को भी ।
रमा - तू मेरे साथ सहर चलेगा।
निर्मल -हाँ ।
इसके बाद निर्मल अपने घर चला जाता है क्योकी साम को नीरू के घर पढ़ाने भी जाना है।जब निर्मल साम को नीरू के घर पहुछ्ता है नीरू उससे पढने से इन्कार कर देती है और माँ से कहती है
नीरू - माँ निर्मल से कह दो वो जाये आज मुझे पढाई नही करनी है ।
रूमा - क्या हुआ तेरे तो मिजाज ही समझ नही आते ।
नीरू - बस माँ आप कह दो ।
रूमा - (बाहर आकर) निर्मल आज तु बेकार मे आ गया आज नीरू पढना नही चाहती कोई नही आज तु रुची और रमन को पढ़ा दो ।
निर्मल - (घर के अंदर जाते हूए) मै देखता हु क्यो नही पढना चाहती ।
रूमा- अरे तु न परेसान हो पढेगी आज मन ना होगा।
निर्मल अंदर जाता है नीरू के कमरे की ओर उससे पूछता है कि क्या वह उससे नाराज है नीरू कहती है ऐसीकोई बात नही बस आज मेरा मन नही है ।निर्मल नीरू की ओर बढता हुआ बुखार हो गया है क्या तुझे?
नीरू के हाथ पकड़ कर देखता है तो वो लम्बी सांसे भरने लगती है निर्मल चाहता है उसकी वो सारी सांसे अपने दिल मे उतार ले ।उस वक्त्त नीरू का चेहरा नीचे होता है जैसे उस रोज उन दोनो की तडप को किनारा मिल गया हो।
दोनो यहीं चाह रहे है की एक दुसरे को गले लगा ले उतने मे बाहर से आवाज आती है निर्मल तु आजा बाहर वो आज नही पढेगी बड़ी जिद्दी है रूमा की आवाज सुनके मनो दोनो नींद से जागे हो ।निर्मल नीरू का हाथ छोडकर जाने लगा रुची पीछे से उसके गले लग जाती है और कहती है मुझे एक दर्द मेहसूस होता है जब तुम पास होते हो मुझे कुछ हो गया है । निर्मल को समझ नही आता की क्या हुआ वह उसे हटाकर कमरे के बाहर आ जाता है।
आगे क्या होगा आने वाले भाग में।।