हम देर तक सोच विचार करते रहे. हमारे मन में बहुत से संदेह पैदा हो रहे थे. उस मनहूस आदमी और नानू की मिलीभगत पर भी हमने सोचा. पर हम कुछ तै नहीं कर पा रहे थे. अगर नानू सचमुच में दगाबाजी पर उतर आया था तो हमारे पास जो असली चीजों की नक़ल थी वह भी असल समान ही थी, उसकी मदद से वह उस धन तक पहुँच सकता था, फिर वह उसे ले क्यूँ नहीं गया? यहीं हमारे लिए बड़ी भेद की बात बनी रही.
दूसरी सुबह जब हम किनारे पर उतरे. वहां हमारी ही उम्र का एक लड़का नीरा बेच रहा था. उससे नीरा खरीद कर हम पीने लगे. वह लड़का हमसे बातें करने लगा. हम भी उन से बातें कर रहे थे. उसने अपना नाम मेथ्यु बताया. वह बहुत बातूनी था. उनकी बातों से हम बहुत प्रभावित हुए. उनकी बातें सुनकर हमें अच्छा मालूम हो रहा था. एक तो वह हमारी ही उम्र का था और उसकी बातें ऐसा आकर्षण पैदा कर रही थी की हम उनसे गुल मिल गए. एक दो ही दिनों में हम दोस्त बन गए. फिर तो हम काफी देर तक उनसे बातें करते. बातों बातों में हमारा यहाँ आने का मकसद, वह नक्शे वाली बात, नानू का दगाबाजी पर उतर आना, इत्यादि हमने उसे कह सुनाया.
एक दिन हमने तै किया की अब चाहे हम उस धन तक पहुँच पाये या ना पाये, पर उस स्थान तक पहुँचने की आखरी कोशिश तो जरूर करनी चाहिए. इसलिए दूसरे दिन हमने जेन्गा बेट से लौटने का फैसला किया.
उस दिन जब हम किनारे पर गए तो हमने मेथ्यु को हमारी बोत पर आने का न्योता दिया. क्यूंकि यह हमारी आखरी मुलाकात थी. उसने साम को आने का वादा किया. वह आया. हमारे लिए वह बेहतरीन नीरा लाया था. हमने उसके लिए मीज़बानी की व्यवस्था की थी. उस साम हमने मिलकर मीज़बानी की. हम अब लौट जाने वाले है यह भी उसे बताया. यह जानकर उसने वह नक्शा और तस्वीर देखनी चाही. हमने उसे दिखाया. उस चर्च वाली तस्वीर को देखकर वह बोल पड़ा:
"इस चर्च वाले स्थान को मैं जानता हूँ. अगर तुम इस चर्च तक ही पहुंचना चाहते हो तो मैं तुम लोगों की मदद कर सकता हूँ."
उसकी बात सुन, हम तो बहुत खुश हो गए. हसमुख ने उन्हें वादा किया की अगर वें लोग उस धन तक पहुँच जाते है तो उसमे से एक हिस्सा उन्हें भी दिया जायेगा. वह भी खुश हो गया.
फिर तो उस रात हमने देर तक मीज़बानी की. देर रात हम सोए. मेथ्यु भी हमारे साथ ही सो गया था.
दूसरे दिन जब हमारी आंखें खुली तो हमने पाया की सूरज सर पर आ गया है. हम हड़बड़ी में उठे, पर हमने वहां मेथ्यु को न पाया. हमने सोचा वह जल्दी जाग कर अपने घर को निकल गया होगा.
पर हमें तब बड़ा सोक लगा जब हमने अपने नक्शे, चाबी और तस्वीर को वहां न पाया. तब हमारी समझ में आया की मेथ्यु हमारे साथ दगा कर गया. सायद वह नीरा में कोई नींद वाली दवा मिलाकर लाया था जिससे की हम देर तक सोते रहे. हमें फिर से उस मनहूस आदमी की याद आ गई. क्या मेथ्यु उनके साथ मिला हुआ था? क्या पता?
हमने अपने नक्शे, चाबी और तस्वीर की दूसरी नक़ल देखी. वह सलामत थी. इसलिए हमें थोड़ी राहत हुई.
मेथ्यु की तलाश में हम किनारे पर उतरे. पर वहां हमें मेथ्यु न दिखाई दिया. हम उसकी इधर उधर तलाश करने लगे.
इतने में हमने नानू को किनारे की और आते हुए देखा. उसकी नजर हम पर पड़ी. हम भी उसे देख खड़े रह गए. फिर हम उसके पास गए. और वह नक्शे, चाबी और तस्वीर की चोरी हो जाने की और उस मेथ्यु के गायब हो जाने की बात कही. यह सुनकर उनका चहरा तन गया. वह किसी गहरी सोच में पड़ गया था. फिर वह कुछ सोचकर जल्दी जल्दी में वापस मुड़ गया. हमें उसके ऐसे बर्ताव और यूँ मुड़ जाने से आश्चर्य हुआ. पर हम क्या कर सकते थे.
खेर हमारी कोई कोशिश सफल न हुई. मेथ्यु तो न मिला. पर नानू के बर्ताव ने हमें बड़े ताज्जुब में दाल दिया था. आखिर हम बोत पर लौट आए.
अचानक हमें खयाल आया की अगर मेथ्यु धन प्राप्त करने के इरादे से नक्शा, तस्वीर आदि चुरा कर भागा है तो वह जरूर उस बेट तक पहुँचने की कोशिश करेगा. हमें भी वहां जल्दी ही पहुंचना चाहिए. इसलिए हमने तुरंत ही वहां से चलने का इरादा किया. पर फिर हमने आवश्यक खाने पीने का सामान और डीज़ल, मशीन का ओइल इत्यादि को पर्याप्त मात्रा में बोत पर रखना उचित जाना. क्यूंकि अब हमारी डगर मुश्किल होने वाली थी. यह सब सोचकर हम सारा सामान लेने के लिए बेट पर लौटे. सारा सामान खरीद कर जब तक हम बोत पर वापस हुए, तब तक रात हो चुकी थी. फिर भी हमने रुकना उचित न जानकर निकल पड़े.
हमारे दिन रात बड़ी बेचैनी में गुजर रहे थे. पूरे तीन दिन और चार रात लग गए हमें उस नक्शे में चिन् हित ज्वालामुखी वाले परबत तक पहुँचने में. फिर वहां से हम नब्बे डिग्री के कोण पर दक्षिण की और मुड़े. मार्ग में हम आने जाने वाली नाव को देखते जा रहे थे. अगर मेथ्यु या उसका कोई साथी उस धन तक पहुँचने की कोशिश करेगा तो वह भी किसी न किसी नाव के ज़रिये ही वहां पहुँचने की कोशिश करेगा. फिर एक दिन और एक रात गुज़रे. तब हमें कई छोटे बड़े टापुओं का समूह दिखाई दिया. हम मेथ्यु की या उसके कोई साथी के होने की उम्मीद कर रहे थे. हमने ध्यान से देखा. वहां किसी मनुष्य आबादी या उनकी कोई चहल पहल दिखाई न पड़ रही थी.
अचानक हरी का ध्यान पड़ा. उसे अपने दूरबीन में एक बेट पर कुछ नाव जैसा दिखाई दिया था. बाकी सबने भी देखा. वहां सचमुच में कुछ नाव जैसा था. अपनी बोत को हमने उस बेट के नजदीक लिया. जी हाँ, वह एक नाव ही थी. उसके कुछ अंतर पर हमने अपनी बोत को रोका. और किनारे पर उतरने की तैयारी करने लगे.
उसी वक्त हमें याद आया की यह सब टापुओं पर आदी कालीन मनुष्यों की बस्ती हो सकती है, जो किसी बाहरी मनुष्य की हाजिरी को अपने यहाँ ज़रा भी सहन नहीं करती. उस संभावित खतरे को ध्यान में रखते हुए हमने उस समय जो भी हथियार हमारे पास उपलब्ध थे, ले लिए. थोड़ा बहुत ड्राई फूड, नाश्ता, पानी, दिशा सूचक यन्त्र, टोर्च, आग सुलगाने का सामान इत्यादि भी ले लिया.
किनारे का पानी बहुत दुर्गम वनस्पतियों से गिरा हुआ था. उस वक्त समुद्र में पानी भी किनारे से बहुत दूर था. इस वजह से बोत को किनारे के नजदीक लेना मुश्किल था. इसलिए बोत को किनारे से थोड़ा दूर रखकर रस्सियों के सहारे हम अपने सामान को संभाले पानी में उतर पड़े. तैरते हुए हम किनारे की और बड़ी सावधानी से बढ़ते जा रहे थे. किनारे के नजदीक पहुंचकर हमें बहुत मुश्किलियों का सामना करना पड़ रहा था, क्यूंकि किनारे के नजदीक दरियाई लताओं और वनस्पतियों का जंगल सा बना हुआ था. जो हमारे हाथ पैरों में उलझ कर हमारी मुसीबतें बढ़ा रहे थे. जैसे तैसे हम किनारे पर पहुंचे.
किनारा भी घनी झाड़ियों से छना हुआ था. उन्हें देखकर हम सोच में पड़ गए. ऐसे बीहड़ की हमने कल्पना नहीं की थी. इसमें तो हमें विषैले जीवों का सामना करना पड़ सकता है! हमारी हिम्मत जवाब दे रही थी. हम किसी सुरक्षित मार्ग की तलाश कर रहे थे. फिर हम उस नाव की दिशा में बढ़े. हमने ध्यान से देखा, वहां की मिट्टी और ज़मीं पर बीछे वनस्पतियों के पत्तों पर कोई निशान बने हुए थे. वह किसी इंसान के बूट के निशान समान लग रहे थे. लगता था जैसे यहाँ से कई आदमी गुज़रे हो! हमने उन लोगों का पीछा करने की सोची.
उस जगह थोड़ी कम झाड़ियाँ थी, पर हमारे लिए तो यह भी बहुत था. फिर भी हम हिम्मत कर के वहां से घुसे. घुटनों और कमर तक फैले हुए घाँस पर हम आगे बढ़ते जा रहे थे. बहुत चौकन्ने होकर हम इधर उधर दृष्टि डालते जा रहे थे, कहीं हम पर कोई हमला न कर दे. थोड़ा आगे बढ़ने पर घनी झाड़ियाँ शुरू हो गई. हम रुके. सोचने लगे, अब किधर से जाए. इधर उधर दृष्टि डाली. और हम सहम गए.
हमसे बायीं और करीब बीस तीस मीटर के फासले पर घनी झाड़ियों में पेड़ के टनों और पत्तियों पर सूख चुके खून के बड़े बड़े दाग थे. हम गभरा गए. अपनी अपनी बंदूकों को जोर से थाम लिया. हम उस दिशा में आगे बढ़े.
"अरे ये क्या? ये तो लाश है!" कृष्णा और विनु जो आगे थे, चिल्ला उठे.
सब ने देखा. वहां औंधे मुंह एक आदमी की लाश पड़ी थी. उसके बदन पर कई जगह बन्दूक की गोलियों के निशान थे और लहू सुख चूका था. सायद कुछ घंटे पहले ही इन की हत्या की गई थी. हमने इधर उधर देखा, वहां कई पेड़ों के टनों पर भी गोलियों के निशान थे. सायद कि सीने अंधाधुंध गोलियां चला कर इन लोगों की हत्या की थी.
हमारे बदन में दहशत की लहर दौड़ गई. हिम्मत न हुई की उस लाश को पलट कर उसका चेहरा देखे. इधर उधर नजर डाली तो नजदीक में ही दो और आदमी मरे पड़े थे. हम नजदीक गए. उनकी मृत्यु भी गोलियां लगने से ही हुई थी. लेकिन इस बार हम चोंके! हम सब आश्चर्य और दर के मारे कांप गए!
"अरे! ये तो मर गया! इसकी हत्या किसने की!?" हसमुख चीख पड़ा.
क्रमशः
हसमुख और उनके दोस्तों ने किसकी लाश देखी? उन लोगों की हत्या किसने की? अब आगे क्या होगा? जानने के लिए पढ़ते रहे.