पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 6 harshad solanki द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

  • शोहरत का घमंड - 102

    अपनी मॉम की बाते सुन कर आर्यन को बहुत ही गुस्सा आता है और वो...

  • मंजिले - भाग 14

     ---------मनहूस " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ कहानी है।...

श्रेणी
शेयर करे

पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 6

"अरे! ये तो मर गया! इसकी हत्या किसने की!?" हसमुख चीख पड़ा.
तुरंत हम सब की नजर उस लाश पर पड़ी.
"ओ...ह गोद...!" एक उद्गार के साथ सब की आंखें आश्चर्य से फट गई.
वह लाश उस मनहूस आदमी की थी. जो हमारा पीछा किया करता था. और जिसने हमें अब तक बहुत डराकर रखा था. पर अब वह हमारे सामने मरा पड़ा था.
इन सब लाशों को देख हमारे बदन दहशत से कांपने लगे. वह बेट हमें मौत का घर लगने लगा.
इसकी हत्या किसने की? यह सवाल सब के मन में था. पर उत्तर किसी के पास नहीं था.
मेथ्यु की भी लाश मिलने की उम्मीद में हमने हिम्मत करके उन दोनों लाशों को पलट कर उनके चेहरे देखे, पर उसमे मेथ्यु नहीं था.
नजदीक में ही एक खुला हुआ बक्सा एवं घाँस और लताओं में बिखरा हुआ सामान भी पड़ा था. लगता था जैसे किसी ने उस सामान की तलाशी ली हो.
हम उस सामान को देखने लगे. हमारे आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा! उस सामान में हमारी चुराई हुई तस्वीर और नक्शा भी था, पर चाबी का पता न था. उस बीहड़ में चाबी मिलना भी मुश्किल था, इसलिए हमने कोई कोशिश भी न की. हमने वह नक्शा और तस्वीर उठा ली.
तो क्या! मेथ्यु हमारा पीछा करने वाले उस मनहूस आदमी से मिला हुआ था? फिर मेथ्यु अब कहाँ है? और इन लोगों की हत्याएँ किसने की? क्या वह हत्यारा भी इस नक्शे, तस्वीर और चाबी के पीछे पड़ा हुआ था, इसलिए इन लोगों की हत्या की? फिर वह हत्यारा नक्शा और तस्वीर ले क्यूँ नहीं गया? पर चाबी वहां न थी, तो क्या वह हत्यारे को सिर्फ चाबी की ही जरूरत थी? वह मनहूस आदमी इसी टापू पर ही क्यूँ आया? क्या हसमुख के दादाजी के द्वारा धन छिपाए जाने के बारें में यह मनहूस आदमी कुछ जानता था? क्या यह वहीँ टापू है जिस पर हसमुख के दादाजी ने धन छिपाया है? फिर उस चर्च वाली तस्वीर और इस टापू में कोई समानता क्यूँ दिखाई न पड़ रही है? तो क्या उस तस्वीर का मतलब कुछ और है? ढेर सारे प्रश्न हमारे मन में उबल रहे थे. जिनके कोई उत्तर हमारे पास नहीं थे.
हमने उस हत्यारे का पीछा करने की सोची. पर इस बीहड़ में उनके मिलने की संभावना बिलकुल कम थी.
प्रिय पाठक मित्रों, इस कहानी में आगे चलकर आपको वह मनहूस आदमी कौन था? मेघनाथजी से उनका क्या रिश्ता था? और उनकी हत्या किसने की थी? इन प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे.
आगे हमने थोड़ा सा ऊँचाई वाला स्थान देखा. जैसे कोई छोटी पहाड़ी हो. हम उसी और बढ़े. सायद ऊँचाई से हमें इस टापू पर होने वाली कोई गतिविधि मालूम पड़े! मुश्किल से हम ऊपर पहुँचे. इस चढ़ाई में बहुत वक्त गुजर गया था. पर आखिर में ऊँचाई से भी पेड़ों के अलावा हमें कुछ हाथ न लगा. और न कुछ हाथ लगने की उम्मीद दिख रही थी.
हाँ, दूसरी और एक तालाब नजर जरूर आया. पर अब हम में वहां तक पहुँचने की ताकत रही न थी. हम बहुत थक चुके थे. इसलिए एक बड़े से पेड़ की मोती टहनियों के सहारे सुस्ताने बैठे. जो थोड़ा सा ड्राई फूड हमारे पास था, वह खाया और बोटल से पानी पिया. थोड़ी देर सुस्ताने के बाद हम लौटने के लिए उठे. और किनारे की और बढ़ना आरम्भ किया.
मार्ग में हम कई पशु प्राणियों को देख रहे थे, पर किसी बड़े हिंसक पशु को न देखा. इसलिए हमें राहत थी. कहीं कहीं पेड़ पर लटकते हुए सर्प दिखाई दे जा रहे थे.
लौटते वक्त भी हम वे लाशें दिखने की उम्मीद कर रहे थे, पर इस बार हमें वें लाशें कहीं नजर न आई. हमने सोचा सायद हम थोड़ा इधर उधर हो गए हैं, इसलिए वे लाशें नजर नहीं आ रही हैं.
हम देर तक चलते रहे पर हमें किनारा नजर नहीं आया. अब हम गभराए. आकाश की और देखा तो सूरज पेड़ों के पीछे छिपने ही वाला था. हमने दिशा सूचक यंत्र में देखा तो सूरज जिस दिशा में था, वह पश्चिम दिशा ही थी. हम दर गए. साम होने को आई थी, पर किनारे का कोई पता न था. जब हम किनारे से चले थे तो इतना भी दूर निकल गए न थे, की इतनी देर तक चलने पर भी किनारे तक न पहुँचे.
हमने जल्दी जल्दी पाँव बढ़ाना शुरू किया. पर थोड़ी ही देर में सूरज ढल गया. चारों और गहरा अंधकार फैलने लगा. रात हो गई थी. पर हम उस बीहड़ से बाहर नहीं निकल पाए थे. सायद हम उस बीहड़ी भूलभुलैया में खो कर रह गए थे. अब तो यह तै हो गया था की रात हमें इसी जंगल में बितानी पड़ेगी.
इस बीहड़ में एक पाँव रखने लायक भूमि भी न दिखाई दे रही थी. इसलिए हम एक विशाल पेड़ को देखकर उसकी मोती मोती टहनियों पर जा बैठे. अब तो इसी पेड़ के सहारे रात काटनी थी. टॉर्च सुलगाई. नाश्ता किया. अचानक मच्छरों का झुंड आया और भिनभिनाते हुए हमें काटने लगा. बहुत से कीड़े मकोड़े भी हमारे बदन पर चढ़ जाते और काटने लगते. क्या करें! आग सुलगाने की भी संभावना न थी. क्यूंकि चारों और सिर्फ और सिर्फ पेड़ पौधे ही थे. अगर हम आग सुलगाते तो आग पूरे जंगल में फ़ैल सकती थी. और उस आग में हम ही जल मरते.
अब हम सोच में पड़े. रात को कोई हिंसक पशु आ गया तो क्या करेंगे? इस दर में सब जागते बैठे रहे. सोचने लगे: कौन सी मनहूस घड़ी में निकले थे? यहाँ हमें आना ही नहीं चाहिए था. हमारा धैर्य जवाब देने लगा.
जैसे जैसे रात बढ़ती चली, तरह तरह के जंगली जीवों की सरसराहट एवं पशु पंखियों की डरावनी आवाजें आनी शुरू हो गई. थोड़ी देर तक हम वह आवाजें सुनते बैठे रहे.
तभी हमें अपने सर के ऊपर ही सरसराहट सुनाई दी. हम दर गए. तुरंत टॉर्च की रोशनी ऊपर की तो हमारी सांस हलक में ही अटक गई. हमारे सामने स्वयं काल आकर खड़ा हो गया था.
ऊपर वाली टहनी पर करीब चार पांच मीटर लम्बा एक भयंकर काला और मोटा साँप सरक रहा था. हम लोगों ने गभराहट में तुरंत ही अपनी बंदूकें उस और तान दी. पर वह साँप दूसरी और बढ़ गया.
अचानक परिंदों की फरफराहट और चीख़ों से रात का सन्नाटा टूट गया. हमारे बदन में सिहरन दौड़ गई. उस साँप ने किसी परिंदे के घोंसले पर धावा बोला था. जिनका यह सब शोर शराबा था.
थोड़ी देर में फिर चारों और शांति हो गई. अब वह साँप भी कहीं दिखाई नहीं दे रहा था. हमने राहत की सांस ली.
पर थोड़ी थोड़ी देर में कहीं न कहीं से ऐसी ही आवाजें आती रहती थी. हमें अगल बगल में कोई न कोई साँप दिखाई दे जा रहा था. दिन में हमने यहाँ इतने साँप होंगे ऐसी कल्पना भी नहीं की थी. पर रात बीतते तो ऐसा लग रहा था जैसे इस टापू पर सिर्फ साँप का ही बसेरा हो. सिर्फ साँप अन्य जीवों का ही शिकार नहीं कर रहे थे, हमारे बगल वाले पेड़ पर एक शिकारी साँप हमारे देखते खुद ही दूसरे बड़े साँप का शिकार हो गया. साँप भी ऐसे, की फुफकार भी लग गई तो प्राण बदन का बैरी हो जाए.
हमने इसके इलाज के लिए कुछ टहनियां काट ली. और उसे पेड़ के तने एवं टहनियों पर पटक कर आवाज़ पैदा करने लगे. जिससे की वें हमसे दूर रहे. यह तरीका काम कर गया. फिर हमारे नजदीक कोई सर्प दिखाई न दिया.
वक्त वक्त पर किसी न किसी प्राणी या रेंगने वाले जीवों की गतिविधि से घाँस, लताओं, पौधों और बिखरे पड़े कूड़े में खलबली मच जाती थी. उल्लूओं और अन्य निशाचर पक्षियों की आवाज़ें रात को और भयावह बना रही थी. और ऐसे माहौल में वहां की बड़ी बड़ी और मोटी मोटी बिल्लियों की चमकती हुई आंखे हंे दहशत की लहर दौड़ा देती थी. ऐसी ही एक मोती काली बिल्ली ने हमें डरा दिया था. वह चुपके से हमारी सामने वाली दाल पर आ बैठी और हमें घूरकने लगी. पर हमने कोई हिलचाल करना उचित न जाना. सायद उसने किसी इंसान को पहली बार देखा था. वह देर तक हमें घूरकने के बाद हमारी कोई प्रतिक्रिया न पाकर हमारी उपर वाली दाल पर कूद आई. तब विनु ने दर कर बंदूक तानी. वह इस नवीन चीज को देखकर दरी, पीछे हटी और भाग चली.
रात के सन्नाटे में दूर से एक और घोर गंभीर आवाज सुनाई देनी शुरू हुई. वह समुद्र की लहरों की आवाज थी. इस आवाज़ से एक बात तो तै थी, की हम समुद्र से ज्यादा दूर नहीं थे. पर दिन भर वहीँ घूमते भटकते रहे थे.
रात को एक और अचरज की बात हुई. हमें कहीं से रोशनी आती हुई दिखाई दी. हमने जरा देर के लिए टॉर्च क्या बुझाई, हमारी दिमाग की बत्ती जल उठी. हम लोगों से कितनी बड़ी भूल हो गई थी, इस बात का एहसास हुआ. उस नक्शे में जो आकृतियों की चमकीली किनारियाँ थी, वह जुगनू की रोशनी का संकेत कर रही थी. जो हम अभी इस टापू पर भी देख रहे थे. वास्तवमें इन सभी टापुओं के किनारे पर समुद्री वनस्पतियां इस जुगनू का बसेरा थी. और इसलिए टापुओं की किनारियाँ चमकीली नजर आ रही थी. इससे हमसे जो नक्शे का अर्थघटन करने में ग़लतियाँ हुई थी वह भी समझ में आ गई.
हम बहुत थक चुके थे. नींद भी आ रही थी. पर दर के मारे सो नहीं पा रहे थे. लगता था, जैसे चारों और मौत अपनी जाल फैलाए खड़ी हो! जरा सी लापरवाही और जान से हाथ धोया.
रात बीतते ठंड भी बहुत बढ़ने लगी. हमारे पास काँपते हुए बैठे रहने के अलावा कोई चारा न था. आग सुलगा न सकते थे. थकान से हाल भी बहुत बुरा था. मुझे और हसमुख को तो बुखार भी चढ़ आया. अब हम यहाँ आने पर बहुत पछता रहे थे. क्या करें? कैसे यहाँ से निकले? हम एक दूसरे पर गुस्सा हो रहे थे. आपस में ही झगड़ने लगे. एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे थे. धन की खोज का खयाल भी अब तो मन से बिलकुल निकल गया था. बस, कैसे भी कर के अब तो यहाँ से निकलना था.
जैसे तैसे डरते काँपते रात बीती. सवेरा हुआ. हम में जैसे प्राणों का संचार हुआ. सूरज की पहली किरण निकलते ही नए जोश के साथ हम पेड़ से कूद पड़े. दिशा सूचक यंत्र से दिशा का पता लगाया और फिर किनारे तक पहुँचने की कोशिश में निकल पड़े.
पर हम इस बात से पूरी तरह अनभिज्ञ थे की सिर्फ रात बीत जाने से शिकारियों का खतरा जाता नहीं रहा. यह सवेरा हमारी जिन्दगी में सब से बड़ा मनहूस सवेरा बन कर जिंदगी भर के लिए एक काले साए की तरह दर्ज हो जाने वाला था.
हमने किनारे की तलाश में प्रयाण शुरू किया. घंटा भर बीता होगा. मैं और जगो सब से पीछे चल रहे थे.
अचानक जगा की जोर जोर की कान फोड़ने वाली चीखें वातावरण में गूंज उठी. हम सब दहशत से थरथरा गए.
क्या हो गया? सब के मन में एक ही प्रश्न था.
क्रमशः
जगा के साथ क्या हुआ? हसमुख और उनके दोस्तों के साथ क्या होने वाला है? क्या इन सब दुर्घटनाओं की वजह वह अभिशाप है? जिसने मेघनाथजी के नौकरों की बुरी वले की थी? जानने के लिए पढ़ते रहिए. .