कर्म पथ पर - 34 Ashish Kumar Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कर्म पथ पर - 34




‌‌‌ कर्म पथ पर
Chapter 34

माधुरी यह तो जानती थी कि स्टीफन एक बहुत अच्छा इंसान है। पर अभी तक उसे उसके पिछले जीवन के बारे में जानने का मौका नहीं मिला था। आज पहली बार उसे अपने पति के बीते हुए जीवन के बारे में पता चल रहा था।
स्टीफन ने कहा,
"अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर मैं हैमिल्टन के पास लखनऊ आ गया। मैं उसके अहसानों के तले दबा था। मेरी अनुपस्थिति में उसने मेरी माँ की देखभाल की थी। सही समय पर क़र्ज़ देकर मेरी पढ़ाई जारी रखने में सहायता की थी। मैं चाहता था कि किसी भी तरह उसके अहसानों का बदला चुका सकूँ।"

स्टीफन ने अपनी कहानी आगे बढ़ाई।

स्टीफन चाहता था कि वह किसी अस्पताल में नौकरी कर जल्दी से जल्दी हैमिल्टन ने उसकी पढ़ाई पर जो रकम खर्च की है वह लौटा सके। वह अपनी कोशिश कर रहा था। एक दिन हैमिल्टन ने उसे अपने पास बुला कर एक उपाय बताया जिससे वह हैमिल्टन की रकम वापस कर सकता था।
हैमिल्टन ने सुझाव दिया कि उसके पास सिविल लाइंस क्षेत्र में एक संपत्ति है। वहाँ एक क्लीनिक खोली जा सकती है। वह स्टीफन को वहाँ क्लीनिक खोलने में मदद करेगा। हर महीने स्टीफन को गुज़ारे के लायक एक रकम देकर बाकी क्लीनिक से जो कमाई होगी वह हैमिल्टन रख लेगा। जब क़र्ज़ पूरा हो जाएगा तो स्टीफन चाहे तो क्लीनिक छोड़ कर चला जाए।
स्टीफन को हैमिल्टन के सुझाव में कोई बुराई नहीं लगी। वह मान गया। स्टीफन की काबिलियत और मेहनत के कारण क्लीनिक अच्छी चलने लगी। हैमिल्टन हर महीने उसे एक निश्चित राशि देकर बाकी की कमाई खुद रख लेता था।
स्टीफन जानता था कि उसकी क्लीनिक से अच्छी कमाई हो जाती है। पर हैमिल्टन उसे इस बात का कोई हिसाब नहीं दे रहा था कि उसके क़र्ज़ में से कितनी रकम कम हुई। स्टीफन भी संकोच में कुछ पूँछ नहीं पा रहा था।
एक साल हो गया था। स्टीफन यह जानना चाहता था कि अभी उस पर कितना क़र्ज़ बाकी है। अभी कितने दिन और उसे एक छोटी सी रकम में जैसे तैसे गुज़ारा करना पड़ेगा।
एक दिन स्टीफन हिम्मत करके हैमिल्टन के पास गया और उससे अपने क़र्ज़ का हिसाब मांगा। हैमिल्टन ने उसे एक बहीखाता दिखाते हुए कहा कि वह खुद ही देख ले। अभी क़र्ज़ की आधी रकम भी चुकता नहीं हो पाई है। स्टीफन ने उस बहीखाते को अच्छी तरह से देखा। उसमें जो हिसाब था उसके अनुसार हैमिल्टन सही कह रहा था। वह चुपचाप घर लौट आया।
घर लौट कर स्टीफन सोंच में पड़ गया। वह अब शादी करके घर बसाना चाहता था। पर जो स्थिति थी उसके रहते अगर सब कुछ ऐसे ही चला तो क़र्ज़ पूरा होने में लगभग एक साल और लगेगा। अभी क़र्ज़ के चलते उसे अपने ही खर्चों पर नियंत्रण रखना पड़ता था। ऐसे में वह शादी करके किसी और की ज़िम्मेदारी कैसे ले सकता था।
करीब एक महीने बाद एक दिन स्टीफन देर रात क्लीनिक से लौटा तो खबर मिली की हैमिल्टन ने उसे मिलने के लिए बुलाया है। अगले दिन सुबह ही वह हैमिल्टन से मिलने पहुँच गया।
हैमिल्टन ने स्टीफन से कहा कि उस दिन जब वह हिसाब देखने आया था तब से वह उसके बारे में सोंच कर परेशान है। स्टीफन को समझाते हुए बोला,
"मैं जानता हूँ कि तुम भी चाहते हो कि जल्दी से जल्दी अपना क़र्ज़ उतार कर ज़िंदगी में आगे बढ़ो। शादी करके घर बसाओ।"
स्टीफन ने जवाब दिया।
"यू आर राइट सर.."
हैमिल्टन कुछ देर चुप रहने के बाद बोला,
"मैंने इस विषय में सोंचा। मेरा तुम्हारे सामने एक प्रस्ताव है।"
"कैसा प्रस्ताव सर।"
"मेरे विभाग में एक क्लर्क है शिवप्रसाद। तुम उसकी बेटी से विवाह कर लो।"
स्टीफन को यह प्रस्ताव बहुत अजीब सा लगा। उसने सवाल किया।
"सर शिवप्रसाद मतलब एक हिंदू अपनी बेटी की शादी मुझसे क्यों करेगा ?"
"क्योंकी उसकी मजबूरी है।"
"कैसी मजबूरी सर ?"
"तुम हिंदुस्तानी समाज को तो जानते ही हो। ज़रा ज़रा सी बात पर किसी को भी अपने समाज से निकाल देते हैं। फिर उसकी बड़ी बुरी दशा होती है। उसकी बेटी माधुरी बड़ी ही होनहार है। दसवीं पास है। बस उससे एक गलती हो गई। अपनी बिरादरी के बाहर के लड़के के साथ भाग गई। उसने धोखा दे दिया। अब उसे और उसके परिवार को उनका समाज जीने नहीं दे रहा है। कोई उस लड़की का हाथ थामने को तैयार नहीं है।"
हैमिल्टन की बात सुनकर स्टीफन के मन में एक साथ कई सवाल उमड़ने लगे। हैमिल्टन को अपने क्लर्क से इतनी हमदर्दी क्यों है ? वह स्टीफन से ही उसकी शादी क्यों कराना चाहता है ? इस सबसे ऊपर एक बात थी कि वह उस लड़की से शादी क्यों करे जो किसी और को चाहती थी।
स्टीफन को विचारमग्न देखकर हैमिल्टन ने कहा,
"तुम्हारे मन में चल रही बातों का कुछ कुछ अंदाजा है मुझे। मेरा इसमें कोई निजी स्वार्थ नहीं है। मैं तो सोंच रहा था कि तुम्हारी माँ भी हिंदुस्तानी थी। तुम शादी करना भी चाहते हो। तुम उससे शादी कर लोगे तो उस शिवप्रसाद की परेशानी कम हो जाएगी।"
स्टीफन ने जवाब दिया,
"सर मेरी माँ मेरे पिता को प्यार करती थीं। पर ये लड़की तो किसी और को चाहती थी। मुझसे शादी कैसे कर सकती हैं।"
"तुम्हारी बात भी ठीक है। तुम क्यों ऐसी लड़की से शादी करो जो घर से भाग गई थी।"
"नहीं सर मैं उन मर्दों में नहीं हूँ जो औरत की भूल के आधार पर उसका आंकलन करते हैं। मेरा कहना तो यह था कि पति पत्नी के बीच प्यार ज़रूरी है। वह मजबूरी में शादी कर भी ले पर प्यार तो नहीं कर पाएगी।"
"स्टीफन तुम हिंदुस्तानी औरतों की एक खूबी से वाकिफ होगे। उनके लिए पति से बढ़कर कुछ नहीं होता है। एक बार तुम्हारी पत्नी बन जाएगी तो तुमसे बढ़कर उसके लिए कोई नहीं होगा।"
स्टीफन इस बात पर विचार करने लगा। हैमिल्टन जानता था कि बात का असर हो रहा है। उसने कहा,
"तुम मेरी बात मानोगे तो मैं भी तुम्हारी बाकी बची रकम माफ कर दूँगा। तुम उसके साथ सुख से रहना।"
स्टीफन के मन में लालच आ गया। शादी तो वह वैसे भी करना चाहता था। अपनी माँ का अपने पिता के प्रति समर्पण भी उसने देखा था। वह बोला,
"आप एक बार भेंट करा दीजिए।"
"वह संभव नहीं है। अगर उसके आसपास के लोगों को भनक लग गई कि शिवप्रसाद तुमसे माधुरी की शादी करा रहा है तो बवाल करेंगे। तुम राज़ी हो जाओ तो मैं सारा इंतजाम कर शादी करा दूँगा। शादी के बाद कोई क्या कर लेगा।"
स्टीफन का मन हाँ और ना के बीच झूल रहा था। वह जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं करना चाहता था। उसने सोंचने के लिए कुछ समय मांग लिया।
हैमिल्टन ने कहा कि जल्द ही अपना निर्णय लेकर बताए।