aashirvaad yaa---- books and stories free download online pdf in Hindi

आशीर्वाद या –----!

कहानी

आशीर्वाद या –----!

सुधा भार्गव

अपनी शादी के करीब एक वर्ष बाद मैं अपने पति के साथ कलकत्ते से दिल्ली लौटी। वहाँ समय कम था रिश्तेदारी बहुत। एक पूरब में तो दूसरा पश्चिम में। पर सब को मिलने का बड़ा चाव---सबसे कैसे मिला जाय?एक बड़ी समस्या। ससुर जी पास न कोई कार थी और न कोई स्कूटर।जिस पर सवार हो हम मिलने जाते । ससुर जी ने इसका हल ढूंढ निकाला। दूसरे दिन दिल्ली के दूर -दूर कोनों में बसी पाँच ननदें और जिठानी को परिवार सहित अपने घर बुला लिया।

नंदों को मुझसे, मतलब अपनी सबसे छोटी भावज से मिलने की तमन्ना,जिठानी को उत्सुकता यह जानने की कि नौकर –चाकर के बीच पली लाडो ने घर गृहस्थी कैसे सम्हाली होगी!वे शादी के पहले से ही मुझे और मेरे माँ-बाप को अच्छी तरह जानती थीं । सजधज संवर सब पुलकित हृदय लिए समय पर आ गई।

आते ही जिठानी जी तपाक से बोलीं –"कहो –कैसी हो?कलकत्ता में घर का काम- धाम कैसे होता है?सुना है तुमने तो पीहर में एक गिलास पानी उठाकर भी नहीं पीया।" लगा मेरा पोस्टमार्टम हो रहा है।

मैं दर्द से कराह उठी। माँ की उम्र समान जिठानी जी ,दूसरे पिता की सगी ममेरी बहन । उनके स्वर में व्यंग का ऐसा लिजलिजापन !अपनों का चुभोया काँटा ज्यादा पीड़ा दे गया। उनको मैं क्या जबाब देती। बड़ी नन्द कुछ दिनों पहले कलकत्ते मेरे पास रहकर आई थीं । मेरी चुप्पी में सेंध लगाते बोलीं –"खूब मजे से घर चल रहा है !दो-दो नौकर हैं। एक घर की सफाई के लिए दूसरी खाना बनाने के लिए।"

"अरे भाई ,शुरू में जो मजे में रहते हैं उनको बाद में दुख उठाना पड़ता है।"

मैं जिठानी जी को देखती ही रह गई। समझ न सकी वे मुझे आशीर्वाद दे रही हैं या अभिशाप। मेरी अपलक दृष्टि से शायद वे झुलसने लगीं। बात पलटते हुए बोलीं-"मेरा मतलब यह नहीं है कि तुम्हारे साथ भी ऐसा होगा। देखने सुनने में जो आया मैंने तो वही कहा है।बुरा न मानना। "

वे बुरा न मानने की बात कर रही थीं पर उनका वह वाक्य तो मेरे सीने में तीर की तरह चुभ गया जिसको न निकाल पाती थी और न उसकी चुभन बर्दाश्त कर पा रही थी ।

उसके बाद जब जब भी मेरे जीवन में सुख के पल आते एक सिहरन लाते ,कहीं दुख तो मेरा पीछा नहीं कर रहा है। एक दिन उनकी बात सच होकर ही रही।

पिछले तीन वर्षों से मेरे पति जानलेवा बीमारी से पीड़ित है। न खुद खा सकते हैं न ठीक से चल सकते हैं। कुशल से कुशल डाक्टर का इलाज हो रहा है पर संतोषजनक परिणाम नहीं मिलता। अपनी असहाय अवस्था देख वे खुद रो पड़ते हैं । उनको रोता देख मेरा सारा धैर्य चुक जाता है और जिठानी जी का कहा एक एक शब्द मेरे गालों पर थप्पड़ लगाता प्रतीत होता है—शुरू में जो मजे में रहते हैं उन्हें बाद में दुख उठाने पड़ते हैं।

समाप्त

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED