कहानी
असली गहना/सुधा भार्गव
चंदर बैंक में एक क्लर्क था। वह पड़ोस के कुछ बच्चों को पढ़ाया भी करता था। ताकि कुछ अतिरिक्त आमदनी हो जाय और पत्नी को खुश रख सके। वह इतना कमा लेता था कि दो प्राणियों का काम अच्छे से चल जाए लेकिन उसकी पत्नी नहीं जानती थी कि आमदनी के अनुसार कैसे खर्च किया जाए। चंदर समझा समझकर थक गया कि जरूरत के अनुसार पैसा खर्च करो पर वह तो अपना मन खुश करने के लिए खर्च करती थी और मित्रो के बीच में सबसे सुंदर और आधुनिक दीखना चाहती थी।
एक दिन उसे अपने बॉस के जन्मदिन पर जाना था। उसकी पत्नी को मालूम हुआ तो वह बहुत खुश हुई। दो दिन पहले ही अपनी साड़ी चप्पल का चुनाव करने लगी। लेकिन कुछ सोचकर उदास हो गई। चंदर शाम को ऑफिस से आया उसका मुरझाया चेहरा देखकर अनमना सा हो उठा-
“क्या तबीयत ठीक नहीं!चलो आराम करो। काम करने की कोई जरूरत नहीं।“ उसने बड़े प्यार से कहा।
“ऐसी तो कोई बात नहीं पर एक बात समझ में नहीं आ रही। तुम्हारे बॉस की पार्टी में जाने के लिए मैंने कपड़े तो निकाल लिए हैं पर उनके साथ गले, कान और हाथों में क्या पहन जाऊँ । मुझे तो पूरा सैट चाहिए। शादी के तो है । उनमें से पहन लो।“
“वे तो पुराने हो गए हैं और कितनी बार तो इन्हें पहन चुकी हूँ।आजकल तो हीरे का बड़ा चलन है।“
“हीरे का सैट!इसके लिए तुम्हें राजी महाराजे से शादी करनी चाहिए थी,मैं ठहरा सीधा सादा क्लर्क ।“
“यही तो तुम्हारा दोष है। आजकल सीधे पाने से काम नहीं चलता। पड़ोस के वर्मा जी भी तो क्लार्क है पर उन्होंने कोठी तैयार कर ली । तुम भी हीरे का सैट खरीद सकते हो ।“
“मैं! हीरे का सैट ----। सुनूँ तो जरा । कैसे खरीद सकता हूँ?”
“तुम किसी बहाने बैंक से रुपया उधारी पर ले लो । उस रकम से सैट आ जाएगा।“
“उधारी भी तो चुकाना पड़ेगा और ब्याज अलग चढ़ेगा।“
“वह तो बाद की बात है। लेकिन सैट तो आ ही जाएगा और देखना पार्टी में मैं ही मैं चमकूंगी।“
चंदर सोच –विचार में पड़ गया । वह पत्नी का मन भी नहीं दुखाना चाहता था और उधार के चक्कर से भी बचना चाहता था।
जिस दिन पार्टी थी सुबह से ही पत्नी चंदर की ओर बड़ी उम्मीद भारी निगाहों से देख रही थी। उसे विश्वास था कि उसका पति जरूर कुछ करेगा।
शाम को पत्नी सलीके से साड़ी पहन इतर फुलेल छिड़क चंदर का इंतजार कर रही थी। दो घंटे से उसका कोई अता –पता न था। न बताकर ही कुछ गया। जरा भी खड्का होता ,उछल पड़ती चंदर आ गया। आखिर चंदर आ ही गया। उसके हाथ में लाल गुलाब था।
“अरे तुम तो इस गुलाब की तरह महक रही हो। लो यह गुलाब।ऐसे ही खिलती रहना।“
रैना ने गुलाब ले तो लिया पर उसका ध्यान कहीं और था, वह पति के कंधे पर लटके थैले में झाँकने की कोशिश कर रही थी। चंदर उसके मन की दशा ताड़ गया और बैग से एक डिब्बा निकालते हुए कहा – “यह लो मोती का सैट।“
रैना ने उसे लपककर अपने हाथों में थाम लिया और खोलते ही उसका अंग –अंग थिरक उठा।कान में लटकते झुमके ,हाथ में कंगन और मोती से जड़े हार को पहने वह शुद कि अप्सरा से कम नहीं समझ रही थी।
“यह तो बड़ा महंगा होगा!”
“हाँ है तो --। अब पूरे साल हाथ रोककर खर्च करना होगा। ”
“कह तो ठीक रहे हो। बैंक का ऋण चुकाना होगा। तुमने मेरी इतनी बड़ी इच्छा पूरी की। मुझे भी तुम्हारी बात तो माननी होगी। ”
रैना को इस बात की भली भांति परख थी कि किस अवसर पर क्या पहनना चाहिए । रंगों का चुनाव भी बड़ी सावधानी से करती थी। पार्टी के दिन वह आकर्षक ही लग रही थी। उसे भी बढ़ बढ़ कर लोगों से बातें करने में आनंद आ रहा था।
अगले दिन से रैना चिंतित रहने लगी कैसे घर के महीने का खर्चा घटाया जाए। सोचते सोचते खीज पड़ी और चंदर से बोली –“आज से घर का खर्चा आप चलाओ। ”
‘मैं तो आफिस रहता हूँ। घर चलाने के लिए घर में बैठना होगा । क्या यह संभव है?”
“घर बैठने को कौन कह रहा है! तुम हर माह एक लगी बंधी रकम मुझे देना शुरू कर दो। मैं उसी को घर पर चर्च करूंगी। उसका हिसाब लिखकर तुम्हें दिखा दिया करूंगी । कुछ गलती कर बैठूँ तो बता देना। ”
“ तुम्हारे निजी खर्चे!—क्रीम ,पाउडर ,पर्स। ”
“बस –बस गिनाना बंद करो। बहुत हो गया। मुझे चिढ़ाओ मत। ”
चंदर को पत्नी का चिड़चिड़ाना बहुत प्यारा लगा।पर उसने चुप रहना ही ठीक समझा। ज्यादा कहकर बात नहीं बिगाड़ना चाहता था।
अब आमदनी और व्यय का हिसाब –किताब चंदर के हाथ में आ गयाऔर एक निश्चित रकम सामान की ख़रीदारी के लिए रैना को प्रतिमाह दी जाने लगी।
वैसे भी वह इस जोड़ –तोड़ में कुशल था। बहुत शांति से उस दिन का इंतजार करने लगा जब रैना खुद अपनी फिजूलखर्ची पर प्रतिबंध लगा सके।
रैना भी इंतजार कर रही थी कि कब बैंक का उधार चुकता हो। एक बंधी रकम अब बैंक में जाने लगी थी। पहले तो किसी किसी महीने वेतन की पाई पाई खर्च हो जाती थी जिससे चंद्रन बहुत विचलित हो उठता।मानसिक शांति होने से चंद्रन ने स्फूर्ति और ऊर्जा का अनुभव किया । उसने दो ट्यूशन और ले लीं। वह रैना को ज्यादा समय न दे पाता। इससे रैना विकल हो उठी। पर कोई शिकायत भी न कर सकती थी। इसका कारण वह खुद को समझती । उस पल को धिक्काने लगी जब उसके दिमाग में बैंक से उधार लेने की बात आई। अपने कुछ पलों की खुशी और शान के लिए चंद्रन को पूरे साल मुसीबत में फंसाए रखा। उसी उधार को चुकाने के लिए धन को जुटाने में उसके पति को इतना श्रम करना पड रहा है। वह अपराधबोध की भावना से दबी जा रही थी।
बैंक राशि चुकाने का आज अंतिम दिन था। वह खुशी से पागल हुई जा रही थी -चलो जी का जंजाल छूटा। चंद्रन आया, उसके चेहरे पर चाँदनी छिटकी पड़ती थी। पत्नी को आलिंगनबद्ध करते बोला-“रैना देख तो ,मैं तेरे लिए क्या लाया हूँ।“
“मुझे कुछ नहीं देखना सिवाय आपकी खुशी के।“
“मुझे भी तो तेरी खुशी चाहिए। देखना नहीं है तो न देख । बस अपनी आँखें बंद कर। ”
रैना ने आँखें बंद कर लीं पर उसका दिल धुक-धुक कर रहा था। उसे पति की उँगलियों के कोमल स्पर्श का एहसास हुआ कलाइयों पर ,गले पर । वह अपने को रोक न सकी और आँखें खोलते ही आश्चर्य से चिल्ला उठी –“यह क्या?गले में मोती का हार---कलाइयों में कंगन । पिछले साल ही तो मोती का सैट खरीदा था। तुम एक और ले आए। इतने बड़े मोती ,नील –गुलाबी छिटकती आभा में डूबे जगर मगर कर रहे हैं। जरूर पहले से ज्यादा कीमती है। इतना पैसा आया कहाँ से?क्या फिर कहीं से उधार ले लिया ?”
“नहीं !यह तुम्हारी बचत का नतीजा है जो हर माह की गई। ”
“और उस बचत को तुमने इस तरह फिजूलखर्ची में बहा दिया। ”
“रैना ,इसे खरीदकर मैंने कोई फिजूलखर्ची नहीं की है बल्कि तुम्हारे प्रति किए अन्याय को न्याय में बदल दिया है। ”
“मेरे साथ अन्याय किसने किया ?”
“मैंने”
“असंभव!आप जैसा प्यार करने वाला पति कभी अन्याय कर ही नहीं सकता। ”
“लेकिन मैंने किया है। ”
“कौन सा अन्याय?”
“याद होगा तुम्हें --तुमने मोती जड़ा सोने का सैट मांगा था। उस समय न मेरे पास उसके लायक पैसे थे और न तुम्हारी सलाह मानकर कर्जदारी का सिरदर्द लेना चाहता था।कोई चारा न देख नकली मोती का चांदी का सैट खरीद कर ले आया जिस पर सोने का पानी चढ़ा हुआ है। लेकिन तुमने मेरी बात मानकर अपने बेकार के खर्चों को समेटा और कदम कदम पर मेरा साथ दिया । उसी के कारण कुछ पैसा जमा हो सका। उसी से यह सैट खरीदकर लाया हूँ। ”
मुग्धा सी रैना अपने पति की बात सुन रही थी । इस समय मोती के गहनों की चमक उसे आकर्षित न कर सकी । उसे तो चंदर ही मोती समान लग रहा था जो उसका असली गहना बन गया था।