बंद तालों का बदला - 4 Swati द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

बंद तालों का बदला - 4

कहीं यह घर भी भूतिया तो नहीं है । थोड़ा अंदर चलते है अगर यहाँ छुपा जा सकता है तो फिलहाल छुपने में भी कोई बुराई नहीं है । सभी अंदर के कमरों की तरफ़ चल पड़ते हैं । प्रखर और सुदेश अपने-अपने फ़ोन की लाइट जला कर अँधेरे में चलने की कोशिश करते हैं । जैसे ही एक बंद कमरे का दरवाज़ा खोलते है तो अंदर देखते है कि चारपाई पर एक आदमी लेटा हुआ होता है। उन्हें देखते ही वह जाग जाता हैं उन तीनो को लगता है शायद यह आदमी कोई भूत हो इसलिए जब वो भागने लगते है तब वो उन्हें रोक लेता है । और उनसे उनकी कहानी पूछता है । सब उन्हें बताते है कि उनके साथ अब तक क्या-क्या हो चुका है । "हां यह सही है कि मैंने भी सुना था कि जॉलीवालाबाग में मरे हुए लोगों की रूहे यहाँ आती है । पर तुम जिनकी बात बता रहे थे वो भाई-बहन तो उस बाग़ में नहीं मरे । पर यहाँ पर बहुत सालों पहले चोरी हुई थी, उन चोरों ने ही उन्हें बेरहमी से मार डाला था । वे तो उस दिन बाग में नहीं गए अपितु वे तो दोनों ही बच चुके थे । मगर एक रात की डकैती ने उन दोनों की जान ले ली । वो बेचारा तो अपनी चाय बेचता था, नाम था उसका 'बंसी चाय वाला ।' बस जब वो मर गए तो सबको मारना शुरू कर दिया उन चोर-डाकुओ को भी वे मार चुके हैं । और सब के सब इन्ही बंद तालो में भटकते रहते है और जब तुम जैसे नासमझ लोग उन्हें मिल जाते है तो तुम्हारे जैसो का भी शिकार हो जाता हैं ।" उस आदमी ने बड़े ही इत्मीनान से सारी कहानी सुनाई ।


"आप यहाँ क्या कर रहे हैं ?" प्रखर ने पूछा। "मैं तो चोर हूँ. आज यहाँ आ गया था। उस आदमी ने कहा। "अब यहाँ से कैसे निकला जाये?" निशा घबराकर बोली । तभी उसके सामने की खिड़की अपने आप खुलने लगी और तो और वहाँ से भी कोई साया आया और एक ऐसे डरावनी शक्ल में परवर्तित हो गया और अपना हाथ लम्बाकर निशा की तरफ बढ़ने लगा और जैसे ही उसका हाथ निशा के गले तक पहुँचा वो सब फिर उस कमरे से निकल भागे उनके साथ वो आदमी भी था । इस बार घर के दरवाज़े बंद हो गए और वो एक कमरे से दूसरे कमरे की तरफ भागने लगे । मगर हर तरफ वो काला साया उनका पीछा कर रहा था पर तभी देखा कि एक कमरे में विपुल खड़ा है और उसकी आँखें चमक रही है। "यार ! तू ठीक है न ?" सुदेश ने पूछा। "हां ठीक हूँ पर हम सब मारे जाएंगे। चलो हम सब किसी सुरक्षित जगह चलते हैं । विपुल ने भारी सी आवाज़ में कहा । "कहाँ" "और तुम तो कह रहे हो कि हम सब मारे जायेंगे।" प्रखर ने पूछा । "अगर तुम मेरे साथ नहीं चले तो ज़रूर मारे जाओंगे ।" सब के सब विपुल के पीछे चलने लगते है । अब उस मकान का दरवाज़ा खुल चुका हैं । वह उन अपने तीनो दोस्त और उस आदमी को लेकर एक और बंद ताले वाले मकान की तरफ़ ले जाता हैं जैसे ही विपुल की नज़रे उस ताले को देखती है वह ताला टूट जाता हैं । "यह ताला कैसा टूटा ? "सुदेश के इतना बोलते ही विपुल का हाथ बड़ा होकर सुदेश की तरफ बढ़ने लगता है । सब फिर भागते हैं ।


निशा का थकान से बुरा हाल है । "मुझे लगता है यहाँ से भागना फिज़ूल है। सब जगह वही भूत-प्रेत और आत्माएं हैं। आदमी ने कहा। "हमे तो किसी तरह स्टेशन पहुँचना है बस ताकि हम जल्द से जल्द यहाँ से निकले ।" प्रखर ने कहा । "तुम्हें स्टेशन मैं पहुँचा देता हूँ ।" आदमी ने कहा । " आप कैसे पहुंचाएंगे ? आपको रास्ता पता है? जहाँ हमें फिर ऐसा ख़तरा नहीं मिलेगा ।" सुदेश ने अपने मन का सवाल पूछा था। "तुम जाना चाहते तो मेरे पीछे चलो, वरना तुम्हारी मर्ज़ी । मैं तो यहाँ से निकल ही जाऊँगा।" यह कहकर आदमी आगे-आगे चलने लगा । तीनों दोस्त रूककर सोचने लगे । "जिस पर भरोसा कर रहे हैं वे सब धोखा दे रहे हैं । सब हमें मारने में लगे हुए है, ऐसे में अब इस चोर आदमी पर भरोसा करना ठीक है क्या ?" निशा ने कहा । और हम कर भी क्या कर सकते है निशा ? कोई और रास्ता भी नहीं है हो सकता है यह हमारी मदद ही कर दें । सुदेश ने कहा । मेरा दिमाग तो काम नहीं कर रहा । "विपुल और विनय मरकर भूत बन चुके हैं अब हमारा क्या होगा ?" प्रखर ने कहा । "देखो यहाँ इस सुनसान में खड़े रहना ठीक नहीं है । उसी आदमी के पीछे चलते है, यह कहकर सुदेश निशा का हाथ पकड़ और प्रखर को भी खींच उसी दिशा की तरफ भागने लगता है, जहां वो आदमी जा रहा था ।

"सुनो ! सुनो ! हम भी पीछे आ रहे हैं ।" तीनों यह कहते हुए उसके पीछे चलने लगते हैं । अब सब के सब गलियों से निकल बाहर की तरफ़ आने लगते हैं । मगर रास्ता सुनसान है झाड़ियाँ और पेड़ शुरू हो चुके है ? झाड़ियों में रेंगते हुए कीड़े नज़र आने लगते हैं । जिनके देखकर लग रहा था कि यह भी कोई ज़हरीला साँप बन डसने लग जायेंगे । "हम जहाँ कहा जा रहे हैं ?" प्रखर ने पूछा । "तुम्हे स्टेशन पहुँचने से मतलब होना चाहिए ।" आदमी ने बड़ी रुखाई से कहा । "एक बात बताओ उन दोनों भाई बहन को मरे हुए कितना समय हो चुका है ? क्योंकि आपने ही यही कहा था कि वो लोग उस जलियावाला बाग़ के कांड में नहीं मरे थे ? "प्रखर ने पूछा । "उनके मरने के पाँच साल बाद ।" आदमी ने कहा । "फ़िर वो चोर कब मरे जिन्होंने उन्हें मारा था ? कोई दो साल बाद ।" आदमी बोलते हुए लगातार आगे बढ़ता जा रहा था । तभी प्रखर का गला सूखने लगा, "आपको यह कहानी यहाँ के लोगों ने सुनाई होंगी? प्रखर ने एक बार अपनी आवाज़ को फिर संभालकर बोला । "कहानी सुनाने के लिए कोई ज़िंदा नहीं रहा ।" "फिर आपको को कैसे पता ?" अबकी बार निशा ने पूछा । " मैं वही चोर हूँ जिसने उन भाई-बहन को मारा और उन्होंने मुझे । । । । । । । यह कहकर उसने पीछे मुड़कर देखा उसका जला हुआ चेहरा आँखे बड़ी-बड़ी । मुँह से आग निकलने लगी वह ज़ोर से दहाड़ा ।
पसीने और डर से लथपथ वह तीनो ज़ोर से चिल्लाये । आवाज़ कही हलक में अटक कर रह गयी और प्रखर बोला। "भागो निशा और सुदेश कहीं भी भागों" । सब उलटी दिशा की तरफ भागने लगे।