Swabhiman books and stories free download online pdf in Hindi

स्वाभिमान

कई बार हम लेखकों के आगे कुछ ऐसा घटता है या फिर कोई खबर अथवा कोई विचार हमारे मन मस्तिष्क को इस प्रकार उद्वेलित कर देता है कि हम उस पर लिखे बिना नहीं रह पाते। कई बार इसमें निरंतर विस्तार लिए विचारों की श्रंखला होती है तो अपने उन विचारों को अमली जामा पहनाने के लिए हम उपन्यास शैली का सहारा लेते हैं और कई बार जब विचार कम किंतु ठोस नतीजे के रूप में उमड़ता है तो उस पर हम कहानी रचने का प्रयास करते हैं। मगर जब कोई विचार एकदम..एक छोटे से विस्फोट की तरह झटके से ज़हन में उमड़ता है तो तात्कालिक प्रतिक्रिया के रूप में लघुकथा का जन्म होता है।
कहने का मतलब ये कि कम शब्दों में गहरी बात कहने के लिए लघुकथा का सहारा लिया जाता है। जीवन की आपाधापी में फुर्सत के क्षणों को कम निकाल पाने की वजह से आजकल सभी को जल्दी राहतो है कि वे कम से कम समय में अधिक से अधिक पा लें। इसी वजह से अन्य शैलियों की अपेक्षा आजकल लोग लघुकथाओं को पढ़ना ज़्यादा पसंद कर रहे हैं।

ऑनलाइन साहित्य पढ़ने की सुविधा देने वाली साइट 'मातृभारती.कॉम' ने जब राष्ट्रीय लघुकथा प्रतियोगिता 'स्वाभिमान' का जब आयोजन किया तो उसमें लेखकों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। उसी प्रतियोगिता में पुरस्कृत चुनी हुई लघुकथाओं को ले कर "स्वाभिमान" के नाम से ही एक लघुकथा संग्रह का प्रकाशन हुआ। अभी फ़िलहाल में मुझे इस संग्रह को पढ़ने का मौका मिला। अब इसमें चुनी हुई रचनाएँ शामिल हैं तो यकीनन इसे एक बढ़िया लघुकथा संग्रह तो माना ही जा सकता है। इस सभी लघुकथाओं में हमारे स्वाभिमान को ही आधार बना कर उन्हें रचा गया है।

यूँ तो इस संग्रह की सभी लघुकथाएँ स्तरीय होने के साथ साथ बढ़िया हैं मगर फिर भी इनमें से कुछ लघुकथाओं ने मुझे बेहद प्रभावित किया। जिनके नाम इसप्रकार हैं:

*समोसे- प्रदीप मिश्र
*11.2(इलेवन पॉइंट टू)- डॉ. कुमारसम्भव जोशी
*क्या कहेंगे लोग- डॉ. सुषमा गुप्ता
*सोने की कैद- रचना अग्रवाल गुप्ता
*फ़ाइल रिजैक्टेड- विनोद कुमार दवे



मेरा मानना है कि जब विनम्रता से अपनी बात कही एवं मनवाई जा सके, वहाँ पर उग्र भाषा का प्रयोग ज़रूरी नहीं है। स्वाभिमान के नाम पर कुछ लघुकथाओं में शब्दीय उग्रता भी दिखाई दी, जिससे बचा जाना चाहिए था। एक ख़यास बात और कि सभी लघुकथाओं का विषय एक ही होने से किताब अंत तक पहुँचते पहुँचते थोड़ी उबाऊ सी भी लगी। ऐसे में प्रतियोगिता के आयोजकों को चाहिए कि विषयानुसार प्रतियोगिता करवाने के बजाए उन्हें सिर्फ लघुकथा प्रतियोगिता रखनी चाहिए । जिससे विषयों और उनके अलग अलग ट्रीटमेंट की भरमार होने से पुस्तक के लिए रोचक कंटैंट ज़्यादा इकट्ठा होगा।


हालांकि यह किताब मुझे उपहारस्वरूप मिली, फिर भी अपने पाठकों की जानकारी के लिए में बताना चाहूँगा कि इस 104 पृष्ठीय स्तरीय किताब के पेपरबैक संस्करण को छापा है वनिका पब्लिकेशन्स ने और इसका मूल्य रखा गया है ₹ 149/- जो कि किताब की क्वालिटी एवं कंटैंट के हिसाब से जायज़ है। इस बढ़िया किताब को निकालने के लिए सभी रचनाकारों, महेंद्र शर्मा(मातृभारती.कॉम), डॉ.नीरज सुघांशु(संपादक) और प्रकाशक को बहुत बहुत बधाई तथा आने वाले भविष्य के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं।

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED