कानून का जाल राज कुमार कांदु द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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कानून का जाल




शहर में आये दिन युवा लड़कियों के अपहरण और उनके साथ हैवानियत की खबरें आती रहती थी । कुछ दिनों की सुर्खियों के बाद अपराधियों की दबंगई के चलते पीड़ित लड़कियां अपना बयान वापस ले लेतीं और अपराधी फिर आजाद हो जाते दूसरा शिकार ढूंढने के लिए ।
ऐसी ही एक पीड़ित लड़की की आपबीती सुनकर डीएसपी श्रेष्ठा का खून खौल उठा । नायाब दरोगा अमर सिंह को उसने उस लड़की की भरपूर मदद करने तथा अपराधियों को गिरफ्तार कर उन्हें सजा दिलाने की जिम्मेदारी सौंप दी ।
लड़की की निशानदेही पर गिरफ्तार किए गए अपराधियों से यह हकीकत पता चली कि लड़कियों का अपहरण करने वाले और उनपर जुल्म ढाने वाले अलग अलग होते थे ।
इलाके का नामी बदमाश कालिया कई अवैध धंधों के साथ ही जिस्म फरोशी का भी धंधा करवाता था । अपने ग्राहकों की मांग पर उनकी पसंद अनुसार वह राह चलती लड़कियां अपने गुर्गों से उठवाकर अपने ग्राहकों को सौंप देता था । बदले में उसे मोटी रकम मिलती थी जिसमें से एक हिस्सा वहां के नेता जी को भी नियमित पहुंचती थी । नेताजी की सरकार होने की वजह से प्रशासन की हमदर्दी भी इन अपराधियों से रहती थी ।
डीएसपी श्रेष्ठा तेजतर्रार युवा पुलिस अधिकारी थी । कर्तव्य परायण , संवेदनशील श्रेष्ठा गरीबों व मजलूमों को न्याय दिलाने का हरसंभव प्रयास करती थी ।
नायाब दरोगा अमर सिंह ने त्वरित कार्रवाई करते हुए अपहरण कर्ताओं को पकड़ तो लिया लेकिन उस लड़की ने अदालत में उन आरोपियों को पहचानने से इनकार कर दिया । लिहाज़ा अपराधियों की रिहाई निश्चित हो गयी ।
उस केस की फाइल जांचने के बाद उस लड़की के बयान से श्रेष्ठा को चौंकाने वाली जानकारी मिली ।
उसके बयान के मुताबिक अपहरण कर्ताओं ने उसका अपहरण करने के बाद उसे किसी बड़े से गोदाम नुमा कमरे में धकेल दिया था जहां बाद में कोई बहुत ही रईस और रसूखदार अधेड़ आया था जिसने उसके साथ हैवानियत को अंजाम दिया था ।
उसका बयान पढ़कर श्रेष्ठा को समझते देर नहीं लगी कि अपहरण कर्ता तो सिर्फ प्यादे हैं असली मोहरा तो कोई और है । श्रेष्ठा के दिमाग में इन प्यादों के जरिये असली मोहरे तक पहुंचने की योजना जन्म ले चुकी थी । अगले ही दिन श्रेष्ठा ने एक सप्ताह के अवकाश के लिए आवेदन कर दिया जो शीघ्र ही मंजूर भी हो गया ।
शहर के बाहरी इलाके में जहां कुछ छोटे कारखाने व उसी के समीप ही एक झुग्गी बस्ती बनी हुई थी , कुछ आदमी और एक पच्चीस वर्षीय लड़की बस स्टॉप पर खड़े बस का इंतजार कर रहे थे । शाम के लगभग चार बजे होंगे । एक बस आयी । उस लड़की को छोड़ सभी उस बस में सवार हो चले गए । उस लड़की को शायद कोई दुसरीं बस पकड़नी हो । वह खड़ी रही वहीं पूर्ववत ! बार बार बस आनेवाली दिशा में देखती और फिर कलाई में बंधी घड़ी पर नजर डालती । ऐसा लग रहा था जैसे वह बेचैन हो और उसे किसी की प्रतीक्षा हो । सड़क सुनसान थी । इक्का दुक्का वाहन कभी कभी बड़ी तेजी से वातावरण की शांति भंग करते हुए गुजर जाते । तभी एक वैन आकर वहां रुकी । वैन का दरवाजा खुला और दो बदमाश से दिखनेवाले आदमी वैन से नीचे उतरे । वह लड़की अभी कुछ समझ पाती कि अचानक एक बदमाश ने झपटकर उसे गोद में उठा लिया और वैन के खुले दरवाजे से गाड़ी के अंदर पटक दिया । अगले ही पल दोनों बदमाश भी गाड़ी में घुसकर वैन का दरवाजा अंदर से बंद कर चुके थे ।
गाड़ी तेजी से शहर के दूसरे छोर की तरफ भागी जा रही थी । एक बदमाश ने अपनी हथेली से उस लड़की के मुंह को ढक्कन की तरह बंद कर दिया था । दुसरे ने जेब से चाकू निकालकर उसके सामने लहराना शुरू कर दिया था । डरी सहमी लड़की कसमसाकर रह गयी । अब उसका प्रतिरोध कम हो गया था । गुंडे आपस में हंसी मजाक भी कर रहे थे ।
कुछ देर बाद शहर के दूसरे छोर पर बने एक पुराने से बड़े गोदामनुमा घर के सामने वैन खड़ी हुई ।
बदमाशों ने उस लड़की को पीठ पर चाकू की नोंक सटाये हुए उस घर के बड़े से दरवाजे से अंदर धकेल दिया ।
पश्चिम में सूर्य अस्त होने जा रहा था । उस बड़े से कमरे में डरी सहमी लड़की जो धकेलने की वजह से जमीन पर गिर गयी थी और कातर निगाहों से दरवाजे में खड़े उन तीनों बदमाशों की तरफ देखे जा रही थी । उनकी लंबी परछाइयां भी उसे उनके गुनाहों से छोटी लग रही थी।
कुछ देर की खामोशी के बाद उस लड़की ने खुद को छोड़ देने की गुहार लगाना शुरू कर दिया ।
क्रूरता से हंसता हुआ उनमें से एक बोला " ज्यादा मत फड़फड़ा मेरी बुलबुल ! और हमसे तो बिल्कुल भी नहीं डरना क्योंकि हम लोगों का काम तुमको सिर्फ यहां तक लाना था । हम तो बाराती हैं ! दूल्हे तो अब आएंगे ! हा ! हा! ......! "
कसमसाती , तड़पती वह लड़की गिड़गिड़ाने के अलावा और कर भी क्या सकती थी ?
बाहर एक गाड़ी रुकने की आवाज आई । तीनों बदमाश भीगी बिल्ली बने एक कोने में दुबक गए थे और गाड़ी से उतरकर कालिया ने बड़ी शान से उस दरवाजे से कमरे में प्रवेश किया । उसके साथ उस इलाके के वही नामी नेताजी भी थे जिनके सहारे कालिया की अपराध की दुनिया फलफूल रही थी ।
तीनों बदमाश अभी भी दरवाजे पर एक कोने में खड़े ही थे । नेताजी से मुखातिब कालिया हंसते हुए बोल पड़ा ," लो नेताजी ! आज तो तुम्हारी लॉटरी लग गयी है । बड़ी खूबसूरत चिड़िया आज जाल में फंसी है । जाओ ! ऐश करो । "
खीसें निपोरते नेता जी कालिया की तारीफ करते हुए बोले " हमें तुम्हारा यही काम तो खासा पसंद है कालिया ! मुन्नीबाई के कोठे पर एक से बढ़कर एक अप्सराएं हैं लेकिन जो मजा इन घरेलू चिड़ियों में है वह मजा उन अप्सराओं में कहां ? "
दोनों अपनी बातों में मशगूल थे कि तभी खामोशी से दस बारह सिपाहियों को साथ लिए नायाब दरोगा अमर सिंह ने दरवाजे पर खड़े उन तीनों बदमाशों को दबोच लिया ।
उनको देखते ही असहाय पड़ी गिड़गिड़ा रही लड़की के तेवर अचानक सख्त हो गए और उसके हाथों में पुलिस की रिवॉल्वर लहराने लगी । अपने रिवॉल्वर की नोक पर उसने नेताजी व कालिया को कवर कर लिया । दरोगा अमर सिंह ने उस लड़की को जोरदार सलूट दिया और सिपाहियों ने नेताजी व कालिया को हथकड़ियां पहना दीं । वह लड़की जो वास्तव में डीएसपी श्रेष्ठा थी पुलिस की गिरफ्त में पड़े उन तीनों बदमाशों के पास आई और हंसते हुए बोली " हाँ ! तो क्या कह रहे थे तुम लोग ? हम तो सिर्फ बाराती हैं । दूल्हे आने वाले हैं । देखो ! हमने दूल्हों को सरकारी गहने पहना दिए हैं और अब बड़े शान से इनकी बारात निकाली जाएगी । तो अब चलें । "
कुछ देर बाद बड़ी शान से शहर से एक अनोखी बारात गुजर रही थी । कालिया व नेताजी सरकारी गहने पहने हुए आगे आगे और पीछे पीछे उनके गुर्गे । लोग खुश होकर इस अद्भुत नजारे का मजा ले रहे थे और मन ही मन डीएसपी श्रेष्ठा की सूझबूझ व बहादुरी की प्रशंसा भी कर रहे थे ।
डीएसपी श्रेष्ठा के चेहरे पर अपनी योजना कामयाब होने की खुशी साफ झलक रही थी । अब गुंडों के आजाद होने का डर नहीं था क्योंकि अब पीड़ित लड़की कोई और नहीं वह खुद थी ।
दरोगा अमर सिंह से मिलकर यह योजना उसने खुद ही बनाई थी और उसकी योजना के मुताबिक ही प्यादों के साथ ही असली मोहरे भी पकड़े गए थे ।

राजकुमार कांदु