किसी ने नहीं सुना - 11 Pradeep Shrivastava द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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किसी ने नहीं सुना - 11

किसी ने नहीं सुना

-प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 11

इस बार उसके और ज़्यादा इठला के बोलने ने मुझे एकदम सचेत कर दिया, कि यह उस एरिया में चलती-फिरती गर्म गोश्त की दुकान है जो खुद ही माल भी है और खुद ही विक्रेता भी। यह उनमें से नहीं है जिनके सौदागर साथ होते हैं। मैं संजना और नीला के चलते बेहद गुस्से और तनाव में था ही तो दिमाग में एकदम से एक नई स्टोरी चल पड़ी।

सोचा घर जाने का कोई मतलब नहीं है, वहां बीवी-बच्चे कोई भी पूछने वाला नहीं है। और जिस के लिए अपने भरे-पूरे खुशहाल परिवार को हासिए पर धकेल रखा है वह आज बात तक नहीं कर रही है। दगाबाज निकली। अच्छा है आज ज़िदगी का यह अनुभव भी लेते हैं। घर पर फ़ोन भी नहीं करूंगा। देखूं नीला या बच्चों में से कोई फ़ोन करता है या नहीं। इससे यह भी पता चल जाएगा कि यह सब वाकई मुझसे से नफ़रत करते हैं या सिर्फ़ गुस्सा मात्र है।

हालांकि ज़िदंगी में गर्म गोश्त का अनुभव लेने का यह कोई पहला निर्णय नहीं था। इससे करीब पंद्रह वर्ष पहले पांच दोस्तों के साथ गोवा घूमने गया था। तब शादी नहीं हुई थी। वहां जिस होटल में रुके थे वहीं के एक वेटर ने यह सेवा भी उपलब्ध कराने का ऑफर दिया था। और हम सबने कुछ असमंजस के बाद हां कर दी थी। तब उसने रात नौ बजते-बजते सबके लिए व्यवस्था कर दी थी। इनमें कोई भी लड़की बीस साल से ज़्यादा की नहीं थी। लेकिन अगले दिन सभी संतुष्ट थे कि जो खर्च किया उसका भरपूर मजा मिला। सभी लड़कियां कस्टमर को कैसे खुश किया जाए इस हुनर में पारंगत थीं।

आज इस फुट ओवर ब्रिज पर इस लड़की ने पंद्रह वर्ष पुरानी यादें ताजा कर दी थीं। साथ में एक नया जोश भी। बात आगे बढ़ाई तो पता चला वह ऊपर जितनी भोली दिख रही है अपने क्षेत्र की अंदर से उतनी ही ज़्यादा मंझी हुई खिलाड़ी है। पहले तो मेरे सामने समस्या यह थी कि उसे लेकर जाऊं कहां। यह बात आते ही उसने कहा उसके पास इस समस्या का भी समाधान है, उसे बस पेमेंट करना होगा। मगर मैं उसकी बताई जगह पर रात गुजारने में हिचक रहा था। तो फिर अपने विधायक वाले मित्र को फ़ोन किया। उसने अफ़सोस जाहिर करते हुए कहा, ‘यार दो दिन से तो विधायक जी रुके हुए हैं।’ लगे हाथ उसने यह मज़ाक भी कर डाला ‘क्या यार भाभी जी आजकल मजा नहीं दे पा रही हैं क्या? जो इधर-उधर भटक रहा है।’ कुछ और अश्लील बातें भी उसने कहीं जिन्हें अनसुना कर मैंने बात खत्म कर दी।

फिर नैंशी के साथ उसकी बताई जगह पर पहुंच गया। जो स्टेशन के नजदीक ही उस एरिया का जाना पहचाना दादा लॉज था। जहां गर्म गोश्त को लेकर हुए कई कांड पहले भी मीडिया में चर्चा में आ चुके थे। मैं भीतर ही भीतर डरा लेकिन संजना और नीला के बीच जिस तरह से उलझा था उससे बहुत गुस्से में था। खिन्नता नहीं आवेश में उबला जा रहा था। जो मेरे डर पर हॉवी हो गया। लॉज में सारी इंट्री नैंशी ही ने कराईं जो करीब-करीब फर्जी ही थीं। मैंने जब उस कर्मचारी की तरफ देखा तो उसने दाईं आंख हल्के से दबाते हुए कहा,

‘क्यों परेशान हो रहे हैं सर, नैंशी जी सब मैनेज कर लेती हैं। आप बेफ़िक्र होकर एंज्वाय करें।’

फिर वह आदमी ऊपर रूम तक छोड़ने भी आ गया। रूम खोल कर दिखाया, सेवा की तमाम बातें करते हुए खड़ा हो गया तो नैंशी ने उसे दो सौ रुपए दिलवाते हुए कहा,

‘ये हम दोनों का पूरा ख्याल रखेंगे आप निश्चिंत रहें।’

पैसा पाते ही वह चला गया। उसके जाते ही नैंशी बड़े ही मादक अंदाज में बोली,

‘आइए नीरज जी बैठिए। कुछ बातें करते हैं। जानते हैं एक दुसरे को फिर ऐश करते हैं। या फिर डिनर के बाद या जैसा आप कहें।’

यह कहकर वह बेड पर यूं बैठ गई कि गोया वह बड़ा लंबा सफर तय कर के थक गई है और लंबे समय बाद आराम का अवसर मिला है। एक बात मैंने गौर की कि उसमें अन्य तमाम सेक्स वर्कर की तरह बाजारूपन नहीं था। या नाम मात्र का था। मुझे शांत देखकर वह फिर बोली,

‘बैठिए ना नीरज जी, ऐसे क्या देख रहे हैं। है तो सब आप ही के लिए न। और हां थोड़ा रिलैक्स होइए। कोई टेंशन है तो मैं हूं न, चुटकी बजाते दूर कर दूंगी।’

मैं कुछ बोलूं कि उसके पहले ही उसने फ़ोन उठाया और दो सूप का ऑर्डर कर दिया। मैंने भी सामने टेबिल पर हेलमेट रखा और बेड के सामने ही पड़ी कुर्सी पर बैठ गया। फिर उसने अपने बारे में बातें शुरू कीं जिन पर मेरा ध्यान बिल्कुल नहीं था। क्योेंकि मेरा ध्यान रह-रहकर संजना पर चला जाता। मुझे लगता जैसे मेरे सामने वही बैठी बकबक कर रही है। कुछ देर में वेटर सूप दे गया। जिसे चट करने से पहले उसने बाथरूम में जाकर मुंह धो लिया था। अब उसका चेहरा ज्यादा ताजगी भरा लग रहा था। मैंने सूप आधा ही छोड़ दिया था।

नैंशी के सूप पीने के ढंग ने बता दिया था कि उसे टेबल मैनर्स आदि की पूरी जानकारी है। और उसकी यह बात सच है कि वह एक पढ़े-लिखे अच्छे घर की है। बस किसी वजह से इस फील्ड में भी आ जाती है कभी-कभी। बातचीत में इतनी एक्सपर्ट थी कि कुछ ही मिनटों में उसने मुझे सारे तनावों, संजना के दायरे से एकदम खींचकर अपने दायरे में शामिल कर लिया।

जल्दी ही मैं उसके साथ हंसने-खिलखिलाने लगा। तब मुझे लगा कि इसके साथ रात बिताने के लिए पांच हज़ार देना कोई बुरा सौदा नहीं है। बात उसने दस हज़ार से शुरू की थी। कम करने की बात आई तो कई शर्तें रखकर उसने मूड खराब कर दिया था कि इतने पैसे मेें यह करने देंगे यह नहीं या इतने पैसे देंगे तो यह भी कर देंगे। और इतने देंगे तो सबकुछ।

जिस तरह उसने खुल कर बात की थी उससे मैं दंग रह गया था। उससे पहले यह सब सिर्फ सुना भर था। तब मैं एक बार को क़दम पीछे हटाने को सोचने लगा था। क्योंकि सौ रुपए ही थे। और दस हज़ार जो अलग रखे थे वह बीमा के प्रीमियम के लिए था। जो इत्तेफाक से एजेंट के न आ पाने के कारण मेरे ही पास था। उस दस हज़ार ने नैंशी के साथ क़दम आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। अन्यथा मैं नैंशी के साथ होता ही नहीं। मगर अब इस बात को लेकर मैं किसी असमंजस में नहीं था। बल्कि मन के किसी कोने में कहीं संतोष ही था। एक कोने में कहीं यह भी कि प्रीमियम का कहीं और जुगाड़ देखा जाएगा। अब मैं खोने लगा था नैंशी की खनक भरी हंसी में।

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