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बेटी - भाग-३

मेरी नौकरी लगे अभी डेढ़ साल ही हुआ था कि मेरी माँ को मेरी शादी का भूत सवार हो गया | मैं जब भी रात के खाने के लिए टेबल पर बैठती तो माँ खाना परोसते ही शादी का भूत अपनी झोली में से निकालती और शुरू हो जाती कि बेटा पहले तो तुम कहती थीं कि जब मेरी नौकरी लग जाएगी फिर ही शादी करुँगी | अब तो तुम्हारी नौकरी लगे हुए भी दो साल होने को हैं | अब क्या कहना है तुम्हारा | मैं हर बार एक ही सवाल सुन-सुन कर परेशान हो बोलती कि माँ कभी इस घिसीपिटी बात के इलावा भी कोई बात कर लिया करो| लेकिन माँ तो माँ ही होती है वह ये जवाब सुन कर भी कहाँ चुप हो जाती वह पिता जी का कंधा पकड़ते हुए बोलतीं कि अब आप ही अपनी लाडली बेटी को समझाइये कि उम्र निकलती जा रही है | सत्ताईस साल की होने को है और क्या बुढ़ापे में शादी करेगी | इससे तो तीन-चार साल बड़ा ही लड़का होगा | बच्चे होने में कितनी परेशानी होगी | समझती ही नहीं है | ये सुन कर पिता जी माँ को बोलते कि तुम भी तो हर समय एक ही राग गाती रहती.....’ | पिताजी की बात अभी पूरी भी नहीं होती कि माँ गुस्से से बोलतीं कि तुम बाप-बेटी से तो बात करना ही फ़िजूल है | दोनों एक भी भाषा में बोलते हो कह कर माँ रूठ कर चली जाती | यह लगभग हफ्ते में एक दो बार तो हो ही जाता था |

मैं जब भी अकेली होती तो यही सोचती कि माँ एक ही बात कितनी तरह से कर लेती हैं | कितना दिमाग सिर्फ इन बातों पर लगाती हैं | कभी कहती कि तू इतने साल की हो गई है | हम आज भी लड़का ढूंडने निकलेंगे तो एक साल तो कम से कम लग ही जाएगा | कभी कहती कि तू अगर कुछ बन कर शादी करना चाहती है तो यह भी तो सोच तेरे से ज्यादा तनख्वाह वाला लड़का ढूंडना कितना मुश्किल हो जाएगा | अच्छा लड़का और परिवार कौन-सा मिलना आसान है | कभी बोलती कि तुझे तो मालूम ही है फलाने की शादी में कितनी दिक्कत आई थी | उम्र से कितना बड़ा लड़का मिला था | कभी बोलती हैं कि फलाने को शादी के बाद बच्चों में कितनी दिक्कत आई | झक मार कर उन्होंने अनाथ आश्रम से बच्चा गोद लिया था | माँ के पास हर बात का जवाब होता है | लेकिन जब मैं ये कहती कि चलो अच्छा है किसी अनाथ बच्चे को माँ-बाप का प्यार तो मिला | तब वह पैंतरा बदल कर बोलती कि आजकल अनाथ आश्रम से बच्चा मिलना कौन-सा आसान है | जब उनसे ज्यादा बहस करो तो गुस्सा हो जातीं और कुछ दिन तक मुँह फुलाए घूमती रहतीं | और जब यह देखती हैं कि मुझ पर कोई असर नहीं हुआ है तो फिर से किसी और ढंग से शुरू हो जाती |

ऑफिस में भी इस तरह की बातें सुन कर मैंने महसूस किया कि लगभग सबकी माँ एक जैसा सोचती और बोलती हैं | माँ ज्यादा पढ़ी-लिखी हो या कम पढ़ी-लिखी या अनपढ़ हो, नौकरीपेशा हो या न हो सब की बातें करने का ढंग अलग हो सकता है लेकिन मतलब एक ही होता है | कैसे बेटी को जल्द से जल्द शादी के लिए राजी किया जाये | माँ भी औरत है और बेटी भी लेकिन माँ बनते ही सोच में क्यों फर्क पड़ जाता है | यह बात मुझे आज तक समझ में नहीं आई |

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मेरी नौकरी लगे तीन साल हो गए थे और मेरी शादी होने में बस छह महीने ही बचे थे | मैं ऊपर से सब को खुश जरूर नज़र आती थी लेकिन अंदरूनी रूप से मैं काफी विचलित थी | विचलित होने के कई कारण थे | मैं अभी तक की जिन्दगी अपने हिसाब से जीती आई थी और अब लगता था कि मुझे किसी के मातहत हो कर जीना पड़ेगा | पिता जी ने हमेशा मेरा साथ दिया और उन्होंने कभी भी कोई भी फैसला मुझ पर थोपा नहीं था | हर बार उन्होंने मुझे एक ही बात समझाई कि बेटा वही करो जो तुम्हें ठीक लगता है | मैंने भी उनके सुझावों पर गौर कर हमेशा खुद ही फैसला लिया | शादी का फैसला भी मेरा अपना जरूर था लेकिन मेरे पास न करने का कोई कारण भी नहीं था |

इसी बीच जब मेरी प्रमोशन हुई तो मैं अपनी सीनियर मैनेजर आयशा के साथ प्रशिक्षण(training) देने हेतू मुंबई गई | आयशा मैडम के साथ बिताए पांच दिन ने मेरी जिन्दगी और सोच को हिला दिया था | उन पांच दिनों में हमने प्रशिक्षण के इलावा काफ़ी मौज-मस्ती भी की | मैं पहली बार आयशा मैडम को नजदीक से समझ पाई | ऊपर से खुश और शांत रहने वाली आयशा अंदर से बहुत दुःखी और टूटी हुई थी | मैंने कहीं पढ़ा था कि जो हर समय खुश और मुस्कुराता रहता है वह ज्यादात्तर अंदर से दुःखी और टूटा हुआ होता है, सच लगा | आख़िरी दिन उन्होंने जब मुझे अपने बारे में विस्तार से बताया तो मैं अंदर तक हिल गई थी |

आयशा मैडम की शादी छब्बीस साल की उम्र में हुई थी | मेरी तरह ही उन्होंने भी अपने माता-पिता के कहने और देखने-परखने के बाद चुप-चाप आँख बंद कर शादी कर ली थी | उनके पति एक अंतर्राष्ट्रीय कम्पनी में जनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत थे और आयशा मैडम उस समय इसी कम्पनी में मेरी तरह ही असिस्टेंट मैनेजर थीं | पहली रात से ही उन दोनों का आपस में टकराव शुरू हो गया था | टकराव के कई कारण थे | जबरदस्ती सेक्स करना | पत्नी से रखेल की तरह बर्ताव करना | घर देर से शराब पी कर आना आदि आदि | इन कारणों से दोनों में धीरे-धीरे दूरियाँ बढ़ने लगीं | दुःखी हो एक दिन मैडम ने ही पहल करते हुए तलाक का प्रस्ताव रखा | पहले तो उनके पति ने इसे सिरे से नकार दिया लेकिन फिर आपसी सहमति से उनका तलाक हो ही गया |

मैडम के माँ-बाप ने समाज के डर से उनका साथ नहीं दिया | पहले दो साल एक ही शहर में रहने के बावजूद भी अपने परिवार से दूर रहीं | जब मैंने पूछा कि माँ-बाप ने उनके साथ ऐसा क्यों किया तो वह एक लम्बी साँस लेते हुए बोलीं कि पिता जी का कहना था कि तुम्हारे तलाक लेने के कारण तुम्हारी दोनों छोटी बहनों की शादी करना मुश्किल हो जाएगा | हमारे और तुम्हारे लिए यही अच्छा रहेगा कि हम लोग इन दोनों की शादी तक आपस में न मिलें | यह फैसला बहुत दुःखदाई जरूर था लेकिन अपनी छोटी बहनों के लिए मुझे मंजूर करना ही पड़ा | तलाक के अगले ही दिन से मैं इस संसार में अकेली हो गई थी | मुझे इस अकेलेपन से कोई शिकायत नहीं थी लेकिन ये पुरुष प्रधान समाज आज भी मुझे इस अकेलेपन का एहसास कराता है | हर किसी पुरुष की नजर हर समय मुझ पर गड़ी रहती है | पुरुष चाहे कोई रिश्तेदार हो या पास-पड़ोसी या फिर ऑफिस का, मेरी नजदीकी पाने के लिए हर समय हर तरह की सहायता करने को उतावले रहते हैं | अगर किसी से सहायता ले भी लो तो वह इतना प्यार और दुलार दिखाने की कोशिश करता है जैसे उससे सच्चा और ईमानदार व्यक्ति कोई और है ही नहीं | लेकिन कुछ ही दिनों में उसकी सच्चाई की पोल खुल जाती है | वह असल में सहायता नहीं बल्कि पास आना चाहते हैं | वह मेरे अकेलेपन को सहारा नहीं मेरे शरीर के अकेलेपन को सहारा देना चाहते हैं |

मुझे आज तक यह समझ नहीं आया कि हमारे समाज में शादी करना इतना जरूरी क्यों है | हमारा समाज प्यार की इतनी दुहाई देता है और शरीरिक सुख को दरकिनार करता है | लेकिन फिर शादी के लिए कैसे हाँ कर देता है | समझ से बाहर की बात है | दो अनजान आदमी-औरत को समाजिक रूप से शादी के बंधन में बाँध दिया जाता है | इस समाज के रस्मो-रिवाज शादी की पहली रात आदमी-औरत को शरीरिक सम्बन्ध बनाने को चाहते न चाहते हुए मजबूर करते हैं | उस आदमी की कैसी भी आदतें हो, व्यवहार हो, औरत को सहने के लिए यह समाज मजबूर करता है | अपने आदमी की चाहतों के अनुसार हर समय हर हाल में उसके सामने बिछ जाओ यह समाज ही उस आदमी को अधिकार देता है | आप घर में कोई जानवर पालते हो तो कुछ समय बाद स्वतः ही उससे से प्यार हो जाता है ठीक इसी तरह यह समाज औरत को समझता है | मुझे तो यह समझ नहीं आता कि जो सम्बन्ध शरीरिक सुख पाने से शुरू होते हैं वह आत्मिक प्यार तक कैसे पहुँच सकते हैं |

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