बेटी - भाग-४ Anil Sainger द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बेटी - भाग-४

यह सब उस जमाने तक ठीक था जब औरत घर से बाहर नहीं निकलती थीं | तब वह केवल घर और बच्चों तक ही सीमित थीं | आज वक्त बदल चुका है | आज औरत पढने-लिखने से लेकर पैसा कमाने तक पुरुष के बराबर खड़ी है | कम से कम अब तो उसे ऐसे मजबूर नहीं करना चाहिए | उसे समाज को अधिकार देना चाहिए कि वह स्वयम अपने लिए अपने मनमुताबिक पुरुष को चुन सके | ऐसे व्यक्ति के साथ जिन्दगी भर रहने की कोशिश करे जिससे वह प्यार करती हो | प्यार को अहमियत दी जाय और शरीरिक सुख बाद में आये |

मैं मानती हूँ कि शरीर की भी अपनी भूख है उसे भी शान्ति चाहिए | लेकिन यदि प्यार से शरीरिक सुख मिले तो उसका मजा ही कुछ और है | मैं यह भी मानती हूँ कि बीस-तीस प्रतिशत मामलों में धोखा भी मिल सकता है लेकिन आज आप दस दिन में तलाक दिलवा दो फिर देखिएगा कि यह प्रतिशत पचास से साठ प्रतिशत तक पहुँच जाएगी | आज इस बेरहम समाज और कानूनी दांव-पेच के कारण तलाक हो ही नहीं पाते हैं | पति-पत्नी के बीच मनमुटाव बढ़ रहा है | क्योंकि आज औरत का पैसा कमाना परिवार चलाने और समाज में एक स्तर पाने के लिए जरूरी हो गया है | औरत भी आज अपने स्तर, अपनी पढाई-लिखाई और अपने सुख के बारे में सोचती है | यही कारण है आज परिवारों के टूटन का | ऐसी टूटन के बीच जब पति-पत्नी शरीरिक सम्बन्ध बनाएंगे तो फिर पैदा होने वाले बच्चे भी तो विकृत सोच और दिमाग के ही होंगे|

आयशा मैडम के इन विचारों ने मुझे कई रात सोने नहीं दिया | लेकिन धीरे-धीरे मैंने इस पर विचार किया तो पाया कि उनका अनुभव बुरा जरूर रहा है लेकिन हमारे पास शादी का कोई ओर विकल्प भी तो उपलब्ध नहीं है | अठारह साल से लेकर तीस साल के बीच में औरत और मर्द में जो शरीरिक परिवर्तन आता है उसका अगर विकल्प शादी नहीं होगा तो जो भी होगा उससे व्यभिचार ही बढ़ेगा | आज एक विकल्प लिव-इन-रिलेशनशिप शुरू हुआ है और यह विकल्प शादी से ज्यादा अच्छा है क्योंकि यह रिश्ता प्यार से शुरू होता है | और इस रिश्ते को बनाने या अपनाने वाले आपसी सहमति से साथ रहने का फैसला करते हैं | मेरी नजर में तो जिस भी रिश्ते में बंधन आ जाता है उस रिश्ते का पतन होना निश्चित हो जाता है | आज के हर रिश्ते में यही तो हो रहा है तभी तो हम एकल परिवार की ओर बढ़ चुके हैं | प्यार में कोई बंधन नहीं होता | प्यार में कोई उम्मीद नहीं होती | प्यार में हमेशा दूसरे की ख़ुशी ज्यादा मायने रखती है | प्यार के बदले प्यार ही मिले यह जरूरी नहीं होता | लेकिन आज हमारा समाज प्यार कि इस परिभाषा को भूल चुका है हम शरीर और स्वयम पर ज्यादा केन्द्रित हो चुके हैं इसीलिए आज लिव-इन-रिलेशनशिप का भी कोई भविष्य नहीं है ऐसा लगता है | क्योंकि अभी हमारी मानसिकता इस प्रकार की नहीं हुई है | भविष्य में शायद हो जाए | बहुत दिनों के संघर्ष के बाद मैं इसी नतीजे पर पहुंची कि जब तक कोई और विकल्प उपलब्ध नहीं है तब तक शादी को सहर्ष स्वीकार करना ही उचित है |

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शादी होने के बाद अगले दिन से ही जिन्दगी बदल जाती है | यह मैंने बहुत लोगों से सुना था | जब यह असल में मेरे साथ हुआ तब एहसास हुआ कि यह बात बिलकुल ठीक है | वह घर जिसमें मैंने अपना बचपन गुजारा शादी के बाद पराया हो गया था | मेरे अपने माँ-बाप ही शादी के अगले दिन से वह सब चाहने लगे जो उन्होंने मुझे कभी एहसास भी नहीं होने दिया था | एक दिन बाद ही मैं इतनी बड़ी हो गई मुझे पता ही नहीं लगा | जरा सा मज़ाक भी मेरे अपनों को बुरा लगने लगा था | जिन बातों को करते-करते मेरी शादी हो गई थी | वही बातें शादी के अगले दिन से ही बुरी हो गई थीं | दूसरे घर यानि मेरे ससुराल में भी यही हाल था | यह औरत के साथ ही नहीं आदमी के साथ भी होता है | अपने माँ-बाप ही अगले दिन से बोलना शुरू हो जाते हैं कि अब बेटा तुम्हारी शादी हो गई है | अब हम-हम कहाँ रहे | अब तो सब कुछ तुम्हारी बीवी या पति ही है |

मेरी शादी हुए पांच साल होने को हैं लेकिन आज तक मैं इस घर में अपने आप को एडजस्ट नहीं कर पाई हूँ | मेरे सास-ससुर हमेशा मुझे यही कहते हैं कि तुम अभी भी बच्चों जैसा व्यवहार करती हो | मुझे आज तक यह बात समझ नहीं आई कि बेटी से ही ऐसी उम्मीद क्यों की जाती है | बेटी जैसे ही शादी कर दूसरे घर आती है तो अगले ही दिन से पूरा समाज ये चाहता है कि वह हर काम हर बात समझदारी से ही करे | आखिर क्यों?

हम बदल रहे हैं और हमारी सोच भी बदल रही है | ऐसा लगता है | मुझे भी लगता था | लेकिन जब मेरी शादी हुई और मैं ससुराल पहुँची तो अब जरूर लगने लगा है कि बहुत ज्यादा नहीं बदला है | हो सकता है कि मैं गलत सोच रही हूँ या फिर मुझे ही गलत लग रहा हो लेकिन मेरी इस सोच के पीछे मेरा अपना अनुभव है | आज हम बदल रहे हैं और सोच भी बदल रही है लेकिन यह आज सिर्फ बेटियों तक ही सीमित है | यह बदलाव भी काफ़ी हद तक पिता की सोच परिवर्तन के कारण हुआ है | आज भी बेटी की स्वतंत्रता पर माँ ज्यादा ऊँगली उठाती है | वह बेटे को हर जगह प्राथमिकता देती है | बेटे की बात गलत भी हो तो भी बेटे को सही ठहराती है | ऐसा लगता है जैसे माँ ही अपनी बेटी के खिलाफ़ है | हो सकता है यह विपरीत लिंग के कारण हो | बाप का बेटी से और माँ का बेटे से प्यार और दुलार इसी कारण हो | लेकिन मुझे लगता है कि यह एक कारण हो सकता है लेकिन अहम कारण सदियों से माँ का तिरस्कार बेटी पैदा करने के कारण हुआ है | आज जब विज्ञान ने बताया कि लिंग निर्धारण पिता के कारण होता है तो जरूर इसमें कमी आई है | माँ का बेटी पैदा करने पर सदियों का वह तिरस्कार कहीं माँ के अंतर्मन में बैठ गया है | शायद इसी कारण माँ न चाहते हुए भी बेटी पर रोक-टोक लगाती है |

आज बेटियों को काफी स्वतंत्रता मिली है लेकिन उसी बेटी की स्वतंत्रता शादी के बाद बहु या माँ बन कर छीन ली जाती है | एक ही घर में बेटी पर मेहरबानी होती है लेकिन बहु या फिर बहु बनी माँ पर नहीं | ऐसा भेदभाव क्यों है समझ नहीं आता | आज भी बेटी देर से घर आये तो कोई बात नहीं लेकिन बहु आये तो बहुत बड़ी बात है | सब आज यह ज़ोर-ज़ोर से पुकार रहे हैं कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ लेकिन अपनी सोच हम इस चीख़-पुकार के बाद भी बदल नहीं रहे हैं | आज भी बेटे को जो स्वतंत्रता और अधिकार मिले हैं वो बेटी को नहीं है और मुझे लगता है कि इसमें बेटी ही दोषी है | यह मज़ाक लग सकता है लेकिन सत्य है | बेटी जब माँ बनती है तो वह स्वयम ही बेटे के पक्ष में ज्यादा और बेटी के पक्ष में कम होती है | धीरे-धीरे माँ का बेटी के प्रति तिरस्कार बढ़ता ही जाता है | वह अपनी चरम सीमा पर तब पहुँचता है जब उसके बेटे की शादी होती है | जब एक बेटी, बहु बन कर घर आती है तो वह उस से कभी भी वह व्यवहार नहीं कर पाती है जो अपनी बेटी से करती है | बहु बनी बेटी यह तिरस्कार सह नहीं पाती है और शायद यही एक कारण है कि वही बेटी जिसे आज सब चाहते हैं परिवार के टूटन का कारण बनती है | वह न चाहते हुए भी अपनी सास के प्यारे बेटे को उससे अलग करना चाहती है ताकि वह उस पति बने बेटे पर अपनी प्रभुता दिखा सके | ऐसा पुरुष या पति जो अपने परिवार से अलग हो जाता है पता नहीं क्यों हीन भावना से देखा जाता है | समाज यह क्यों नहीं सोचता कि वह पहले भी किसी बेटी बनी माँ के आँचल से बंधा था और आज भी बेटी बनी पत्नी के आँचल के साथ बंधा है | यहाँ कौन गलत और कौन सही है मैं तो आज तक समझ नहीं पाई | इसमें समाज का दोष है या बेटी का कौन बताएगा | लेकिन यह निश्चित है कि बड़े परिवार की परम्परा को यदि वापिस लाना है तो सबसे पहले बेटी बनी माँ या सास को बदलना होगा बाकि सब अपने आप बदल जाएगा |

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