परिस्थिति - कुछ सवाल और एक सोच Priya Saini द्वारा मनोविज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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परिस्थिति - कुछ सवाल और एक सोच

हम सदा परिस्थितियों पर ही निर्भर रहते हैं। परिस्थिति हमारे अनुकूल हो तो सब अच्छा लगता है और विपरीत हो तो वक़्त खराब लगता है। क्या परिस्थिति के खिलाफ़ जाकर कुछ करना उत्तम होगा? मन में ये विचार बहुत बार आता है पर कभी करने की हिम्मत क्यों नहीं हो पाती? शायद मन में डर है कुछ और गलत न हो जाने का।
क्या कभी हम परिस्थितियों को काबू में कर सकते हैं? हमेशा उसके आगे झुक कर चलना ही सही होता है या हमें लड़ना चाहिए?
पहले से कह पाना मुश्किल लगता है पर अगर आपको ऐसा करने पर सफलता मिलती है तो इसका श्रेय आप किसको देना चाहंगे? किस्मत को, परिस्थिति को या अपनी मेहनत को???
इसके विपरीत की अगर हम बात करें कि क्या हो आप परिस्थिति से लड़ भी जाएं पर फिर भी सफलता आपके हाथ न आये। शायद वही इंसान का टूटना कहलाता है। कहते हैं इंसान टूट कर फिर खड़ा हो जाये तो वो सफल हो जाता है। पर इस बात में कितनी सच्चाई है ये तो वही बता सकता है जिस पर बीती हो।
कभी-कभी इंसान इतना ज़्यादा टूट कर बिखर जाता है कि उसको फिर खड़ा होने की जगह पर टूट कर गिरे रहना ही ज़्यादा आसान लगता है। क्या ये इंसान की हार है या परिस्थिति के आगे झुकना उसकी मजबूरी। क्या उसका फिर से खड़ा होना प्रशंसा के योग्य नहीं।
सुना था जो जितना ज़्यादा टूटता है वो उतना ही मजबूत होता है पर इस बात का अनुमान कौन लगाता है। मेहनत करने वाले ने अपनी पूरी मेहनत की है, इसका अनुमान कोई दूसरा व्यक्ति कैसे लगा सकता है? क्या किसी दूसरे व्यक्ति का अनुमान मेहनत करने वाले व्यक्ति के लिए करना उत्तम है?
ऐसे ही हज़ारों सवाल मन में दिन प्रतिदिन आते ही रहते है। इनका जवाब मिल पाना काल्पनिक सा लगता है। अपनी सोच के अनुसार ही इनके जवाब ख़ोज लिए जाते हैं। पर क्या वो जवाब आपको संतुष्टि दे पाते है?? या उनको खोजने के लिए और अनेक सवाल मन में घर कर जाते हैं। ऐसी परिस्थिति में आप क्या करेंगें?
हमारी परिस्थिति हमारे जीवन का बहुमूल्य भाग है। हमारी परिस्थिति ही हमारे जीवन जी वियाख्या करती है। अमीर व्यक्ति की परिस्थिति अलग तो गरीब मजदूर की परिस्थिति अलग। अमीर व्यक्ति की परिस्थिति उसे भोजन के लिये नहीं बल्कि शानों शौक़त के लिए मेहनत करवाती है जबकि गरीब मजदूर दो वक़्त के भोजन के लिए ही अपनी हर परिस्थिति से लड़ता फिरता है।
क्या परिस्थितियां बदलने में किस्मत का बड़ा हाथ होता है? लोग कहते हैं, किस्मत साथ दे तो रंक को राजा बना दे और साथ न हो तो राजा को रंक बना दे। क्या परिस्थिति क़िस्मत की ही पूरक है? ये फ़ैसला कौन करता है कि परिस्थिति हमारे अनुकून रहे या नहीं। क्यों भगवान सबके साथ एक जैसा न्याय नहीं करता। क्यों मुज़रिम को सजा उसके ज़ुर्म के आधार पर नहीं मिलती। एक ही सजा के मुज़रिम, एक को उम्रकैद तो एक को फाँसी क्यों दे दी जाती है। क्या इसमें क़िस्मत का कोई हाथ है या उसकी परिस्थिति उसे यहाँ तक लाई है?