जब तुम अँधेरे से घिरे हुए हो और कहीं से एक रोशनी नज़र आये। तुम उस रोशनी का पीछा करते हुए आगे बढ़ो और पास जाकर पता चले ये तो रोशनी थी नहीं वहम था तुम्हारा, कैसा प्रतीत होगा उस वक़्त? शायद पैरों तले ज़मीन खिसकना इसे ही कहते हैं।
अंधकार में डूबे उस व्यक्ति की व्यथा कोई नहीं समझ सकता, बहार से देखने वालों को वो सामान्य सा लगता है और दूर से देखने वालों को खुशकिस्मत।
दूर से देखने वाले, किसी भी व्यक्ति को उसके पास की दौलत से भांपते हैं। इनके अनुसार, यदि आपके पास बहुत सारी दौलत है तो आपको कोई कमी नहीं हो सकती।आपकी ज़िन्दगी बहुत ख़ुशनुमा होगी पर हकीक़त इससे बहुत परे है। दौलत खुशियां तब देती है जब आपका मन शांत हो।
अगर आपका मन शांत नहीं है तो बेशुमार दौलत भी आपको खुश नहीं कर पाएगी और इसके विपरित अगर आपका मन शांत है तो कम दौलत में भी आप खुशियां ढूंढ़ ही लेते हैं।
कहते है जब कोई व्यक्ति परेशान हो तो उसे अपने लोगों से बात करनी चाहिए पर बात तब की जाती है जब उस बात को समझने वाला कोई हो आपके पास। जब व्यक्ति को कोई समझ नहीं पाता या शायद वो अपनी बात उस तरह से भी नहीं समझा पाता जैसा कि उसके दिमाग में होता है। उस वक़्त खामोशी ही उसे समझ आती है।
जब अपने ही आपको न समझ पाये तो व्यक्ति किसे अपनी व्यथा सुनाये। उनको समझना चाहिए परेशान व्यक्ति अपनी बात इतनी आसानी से नहीं कह पाता, अगर वो अपनी बात इतनी आसानी से कह पाता तो शायद ख़ामोश होता ही नहीं।
फिर एक लम्हा ऐसा आता है, जब व्यक्ति खुद को समझाना ही बंद कर देता है और सबसे लड़ना भी, इतना बेचैन हो जाता है कि उसे सही गलत का अंतर समझ नहीं आता। तब उसे खुद को खत्म करना आसान लगता है बजाये अपनी बात समझाने के।
ऐसा होने के बाद सब लोग आते हैं, अपने अनुसार बातें सुनाने। इसके बाद भिन्न-भिन्न प्रकार की बातें होती हैं जैसे कि,"आत्महत्या नहीं करनी चाहिए थी, बात करता हमसे।", "आखिर कमी ही क्या थी इसके पास", "आत्महत्या करना कमजोरों का काम है।", "हर समस्या का समाधान निकल आता है" इत्यादि।
पर ये सब उस वक़्त कहाँ थे जब वह ज़िंदा था, सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी। उस वक़्त कोई नहीं था। सब दिखावटी बातें हैं और कुछ नहीं और जो लोग कहते हैं कि आत्महत्या करना कमजोरों का काम है, मेरा उनसे कहना है, आत्महत्या करना आसान नहीं होता, आपको समझना चाहिए जब कोई व्यक्ति इस तरह का कदम उठाता है तो उस वक़्त उसके मन में दिल में क्या विचार आते होंगे, कोई भी व्यक्ति खुशी से ऐसा नहीं करता है। अगर आप वक़्त रहते उस व्यक्ति के मन की पीड़ा समझ जाएं तो कभी कोई आत्महत्या जैसा कदम उठाए ही नहीं।
ऐसा नहीं है कि इसे रोका नहीं जा सकता। इसे रोकने के भी कुछ उपाय हैं, जैसे
1. वक़्त रहते व्यक्ति से बात करने की कोशिश करें, हो सकता है वह अपनी बात रखने में असमर्थ हो, उसको समझे प्यार से धीरे-धीरे बात करने की कोशिश करें।
अगर आप सोचतें हैं कि वो एकदम ही सारी बातें आपके सामने रख दे तो ये सम्भव नहीं है। आपको प्यार से इसे समझना होगा।
2. वो जो भी बोले, बस सुन लें, हो सकता है कि जो बातें वह कह रहा हो वो आपके लिए बिना सिर पैर की हो किन्तु उस व्यक्ति के लिए दर्द भरा हुआ हो उन बातों में।
बिना उसको गलत सही ठहराये उसकी बातें सुनें।
3. इंतज़ार न करें उसका पूरी तरह से ख़ामोश होने का, तब शायद ज़्यादा मुश्किल हो जायेगा बात समझना या समझाना।
कुछ लोग सोचते हैं अभी चुप है बाद में खुद बोल लेगा और ऐसा सोचकर उसे अकेला छोड़ देतें हैं, जिससे उसके मन के घाव और बढ़ जाते हैं।
4. उसको प्यार दें, भरोसा दें कि आप हैं साथ में, जो भी होगा भविष्य में साथ मिलकर निपट लेंगें।
जब तक वह आप पर भरोसा नहीं करेगा अपनी बात रख पाना मुश्किल होगा, और जब तक सारी बातें दिमाग से बाहर नहीं आएंगी, आप भी समझ नहीं पाएंगे समस्या कहाँ है।
कुछ लोग सोचते होंगे कि कोई भी व्यक्ति इस मुकाम तक आये ही क्यों, पहले ही खुद को संभाल ले पर ऐसा नहीं होता कि उसने पहले कोशिश नहीं की होगी, डूबने वाला व्यक्ति भी बहुत हाथ पैर चलाता है पर जब उसे सारे रास्ते बंद नज़र आतें हैं तभी कोई इस कदम को उठाता है।
बस इसी तरह की कुछ बातों को ध्यान में रखकर किसी भी व्यक्ति को अंधकार में जाने से रोका जा सकता है। उसके जाने के बाद उसकी समस्या को समझने से बेहतर है उसके रहते उसकी समस्या समझ कर उसको भरोसा दिलाना कि सब ठीक हो जायेगा।