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सरकारी नौकरी

एक वक्त था जब लोग बस खेती ही करते थे, नौकरी कोई करना ही नहीं चाहता था। सरकार बहुत प्रयास करती थी, बिना परीक्षा ही नौकरी दे देती थी बावजूद इसके कोई नौकरी के क्षेत्र में जाना ही नहीं चाहता था। शायद वो सरकार का गुलाम नहीं बनना चाहते थे जबकि मेहनत तो खेती में भी बहुत थी पर खेती अपनी थी शायद ये सोच उनको नौकरी करने से रोकती थी। पर जैसे-जैसे समय बीतता गया, जनसंख्या बढ़ने लगी तो लोग सरकारी नौकरी की तरफ रुझान करने लगे। आलम ये हुआ कि अब सरकार को नौकरी देने के लिए एक परीक्षा का आयोजन करना पड़ता।
सरकारी नौकरी में सुविधाएं मिलती, जैसे एक बार लग जाने के पश्चात सेवानिवृत्त होने तक कोई नौकरी से निकाल नहीं सकता था अपितु तुमने कोई ग़लत काम न किया हो, तनख्वाह सदैव समय पर खाते में आ जाया करती, 6० वर्ष तक काम करने के पश्चात उन्हें अपनी तनख्वाह की आधी घर बैठे हुए मिलती, समय से आना समय से जाना, हर तीज त्यौहार पर छुट्टी मिलना, अपने व्यक्तिगत कार्य के लिए छुट्टी मिलना बिना कोई भी तनख्वाह कटे इत्यादि। अब लोगों को समझ आने लगा कि इसमें सुविधाएं मिल रही है और दूसरी तरफ प्राइवेट सेक्टर में इसकी विपरीत परिस्थिति होती। ये भी एक कारण बनने लगा सरकारी नौकरी की तरफ आकर्षित होने का।
वर्ष बीतते गए और जनसंख्या में लगातार वृद्धि होती रही। इसके चलते अब लोग पहले की अपेक्षा अधिक जागरूक भी हो गए। अब सरकारी नौकरी कम व्यक्ति ज़्यादा हो गए जिसके फलस्वरूप सरकारी नौकरी के लिए परीक्षा बहुत कठिन कर दी। आज का युवा सरकारी नौकरी के लिए कड़ी मेहनत करता है। कुछ लोग स्वयं से पढ़ाई करके परीक्षा देते हैं तो कुछ लोग इसके लिए कोचिंग लगाते हैं। कुछ लोग तो सरकारी नौकरी के लिए रिश्वत भी देने को तैयार रहते हैं।
सरकारी नौकरी की माँग कुछ इस तरह बढ़ गई है कि व्यक्ति शादी के लिए लड़का भी सरकारी नौकरी वाला देखते हैं और जब सरकारी नौकरी की इतनी माँग है तो सरकारी नौकरी वाले क्यों अपने ठाट न दिखाए, वो भी मोटा दहेज माँगते है। जिसका जितना ऊँचा पद उसको उतना मोटा दहेज। इतना ही नहीं अब तो इज्ज़त भी नौकरी देख कर की जाती है। इसका असर ऐसा हो गया है कि लोग प्राइवेट सेक्टर में नौकरी करने वालों की तुलना में सरकारी नौकरी वालों को ज़्यादा इज्ज़त दी जाती है। पर एक सच ये भी है कि ये मानसिकता ऊँचे वर्ग के लोगों में नहीं है। ये तो मध्यम वर्ग व निचला वर्ग के लोगों की मानसिकता है। सरकारी नौकरी पाने के लिए विद्यार्थी सालों साल पढ़ाई करते हैं। जिनको इतनी मेहनत के बाद भी सरकारी नौकरी नहीं मिलती उनमें से कुछ तो आत्महत्या तक कर लेते है, कुछ मानसिक रोग से ग्रसित हो जाते हैं।
मध्यम वर्ग के परिवार में इस मानसिकता के साथ जीना अपने आप में संघर्ष भरा हो गया है। क्यों आज के समय में सरकारी नौकरी इतनी अहम हो गई है? इसका बोझ इतना क्यों बढ़ गया है कि लोगों को इसके लिए अपनी जान गवानी पड़ रही है या मानसिक रोग से गुजरना पड़ रहा है। क्या ये सोच कभी मध्यम वर्ग के लिए बदल पाएगी? या साल दर साल इसका बोझ उठाना ही पड़ेगा?

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