khattar kaka - harimohan jha books and stories free download online pdf in Hindi

खट्टर काका - हरिमोहन झा



कहते हैं कि समय से पहले और किस्मत से ज़्यादा कभी कुछ नहीं मिलता। हम कितना भी प्रयास...कितना भी उद्यम कर लें लेकिन होनी...हो कर ही रहती है। ऐसा ही इस बार मेरे साथ हुआ जब मुझे प्रसिद्ध लेखक हरिमोहन झा जी द्वारा लिखित किताब "खट्टर काका" पढ़ने को मिली। इस उपन्यास को वैसे मैंने सात आठ महीने पहले अमेज़न से मँगवा तो लिया था लेकिन जाने क्यों हर बार मैं खुद ही इसकी उपस्तिथि को एक तरह से नकारता तो नहीं लेकिन हाँ...नज़रंदाज़ ज़रूर करता रहा। बार बार ये किताब अन्य किताबों को खंगालते वक्त स्वयं मेरे हाथ में आती रही लेकिन प्रारब्ध को भला कौन टाल सका है? इस किताब को अब..इसी लॉक डाउन के समय में ही मेरे द्वारा पढ़ा जाना लिखा था। खैर...देर आए...दुरस्त आए।


दिवंगत हरिमोहन झा जी एक जाने-माने लेखक एवं आलोचक थे। एक ऐसे शख्स जिनकी लेखनी धार्मिक ढकोसलों के खिलाफ पूरे ज़ोरशोर से चलती थी। उनका लिखा ज़्यादातर मैथिली भाषा में है जिसका और भी अन्य कई भाषाओं में अनुवाद हुआ। उन्होंने 'खट्टर काका' समेत बहुत सी किताबें लिखीं जो काफी प्रसिद्ध हुई। उन्हें उम्दा लेखन के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

अपनी किताबों में हरिमोहन झा जी ने अपने हास्य व्यंग्यों एवं कटाक्षों के ज़रिए सामाजिक तथा धार्मिक रूढ़ियों को आईना दिखाते हुए अंधविश्वास इत्यादि पर करारा प्रहार किया है। मैथिली भाषा में आज भी हरिमोहन झा सर्वाधिक पढ़े जाने वाले लेखक हैं।

अब बात करते हैं उनकी किताब "खट्टर काका" की तो इस किताब का मुख्य किरदार 'खट्टर काका' हैं जिनको उन्होंने सर्वप्रथम मैथिली भाषा में रचा था। इस किरदार की खासियत है कि यह एक मस्तमौला टाइप का व्यक्ति है जो हरदम भांग और ठंडाई की तरंग में रहता है और अपने तर्कों-कुतर्कों एवं तथ्यों के ज़रिए इधर उधर और जाने किधर किधर की गप्प हांकते हुए खुद को सही साबित कर देता है।

इस किताब के ज़रिए उन्होंने हिंदू धर्म में चल रही ग़लत बातों को अपने हँसी ठट्ठे वाले ठेठ देहाती अंदाज़ में निशाना बनाया है। और मज़े की बात कि आप अगर तार्किक दृष्टि से उनका लिखा पढ़ो तो आपको उनकी हर बात अक्षरशः सही एवं सटीक नज़र आती है। खट्टर काका हँसी- हँसी में भी जो उलटा-सीधा बोल जाते हैं...उसे फिर अपनी चटपटी बातों के ज़रिए सबको भूल भुलैया में डालते हुए साबित कर के ही छोड़ते हैं।

रामायण, महाभारत, गीता, वेद, पुराण उनके तर्कों के आगे सभी के सभी सभी उलट जाते हैं। खट्टर काका के नज़रिए से अगर देखें तो हमें, हमारा हर हिंदू धर्मग्रंथ महज़ ढकोसला नज़र आएगा जिनमें राजे महाराजों की स्तुतियों, अवैध संबंधों एवं स्त्री को मात्र भोगिनी की नज़र से देखने के सिवा और कुछ नहीं है। ऊपर से मज़े की बात ये कि उन्होंने अपनी बातों को तर्कों, उदाहरणों एवं साक्ष्यों के द्वारा पूर्णतः सत्य प्रमाणित किया है। उन्होंने अपनी बातों को सही साबित करने के लिए अनेक जगहों पर संबंधित श्लोकों का सरल भाषा में अनुवाद करते हुए, उन्हें उनके धार्मिक ग्रंथों के नाम सहित उल्लेखित किया है।

अगर आप जिज्ञासा के चश्मे को पहन खुली आँखों एवं खुले मन से हिंदू धर्म में चली आ रही बुराइयों एवं आडंबरों को मज़ेदार अंदाज़ में जाने के इच्छुक हैं, तो ये किताब आपके बहुत ही मतलब की है। इस किताब के 18वें पेपरबैक संस्करण को छापा है राजकमल पेपरबैक्स ने और इसका बहुत ही वाजिब मूल्य सिर्फ ₹199/- रखा गया है। उम्दा लेखन के लिए लेखक तथा कम दाम पर एक संग्रणीय किताब उपलब्ध करवाने के लिए प्रकाशक को साधुवाद।

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