मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन
कहानी 21
लेखिका: ज्योति द्विवेदी
दास्तान-ए-पैनडेमिक
‘कभी किसी गिटारिस्ट को गिटार बजाते वक्त हंसते देखा है?’
‘नहीं न? उसने ऐसा किया नहीं कि लोग उससे पूछने लगेंगे, भाई तू इतना खुश क्यों है?’
‘हां, अगर आप तबला बजा रहे हों, तो बात अलग हो जाती है, क्योंकि तब आप अपनी बदहाली पर हंस रहे होते हैं।‘
‘धा गे न ती । न क धी न’
आठ साल लगे मुझे यह सीखने में!
‘धा गे न ती । न क धी न’
कोई लड़की कभी मुझे घास नहीं डालेगी!
‘धा गे न ती । न क धी न’
बड़े दुख की बात है कि तबला वादकों को ज़मीन पर बैठा कर तबला बजवाया जाता है।
तबलावादक: ‘कम से कम एक कुशन तो दे दीजिये...’
आयोजक: ‘ओह! तबला रखने वाला कुशन, ज़रूर, यह लीजिये!’’
स्टैंडअप कॉमेडी शो का यह वीडियो देखते हुए विवान के सूखे होठों पर एक फीकी-सी मुसकान तैर गई। बीते कई हफ्तों में पहली द़फा ऐसा हुआ था।
‘सिर्फ स्टैंडअप कॉमेडियन्स की ही क्यों? तबला प्लेयर्स की वजह से जाने कितनों की दुकानें चल सकती हैं... चुटकुले बनाने वालों की... मीमर्स की... वी टोटली डिज़र्व दिस...पीस ऑ़फ फकिंग शिट...’ वह बुदबुदाए जा रहा था...
‘पीस ऑ़फ फकिंग शिट’... खुद की नजर में यही अस्तित्व रह गया था अब उसका। हां, वह भी एक तबला वादक था। लॉकडाउन के चलते जिन लोगों का काम एकदम ठप हो गया था, उसका नाम भी उन्हीं की फेहरिस्त में शामिल था। आम दिनों में वह ठीकठाक कमा लेता था, पर इन दिनों स्टेज शो और संगीत सम्मेलन वगैरह सब बंद थे, सो उसकी कमाई का भी कोई ज़रिया नहीं था। जब लॉकडाउन शुरू हुआ था, तो कुछ दिन उसने भी सबकी देखा-देखी फेसबुक और इंस्टा लाइव करने की कोशिश की थी। इस उम्मीद में कि शायद सोशल मीडिया के जरिये ही सही, पैसा आने का कोई रास्ता तो खुले। पर, जब पंद्रह दिनों तक लगातार ऐसी कोशिशें करने के बाद भी उसने पाया कि उसके लाइव में आने वालों की संख्या किसी भी सूरत में दस के पार नहीं जा रही है, तो उसने इन कोशिशों से पूरी तरह मुंह फेर लिया। यह हाल उसका ही नहीं, दुनिया भर के लाइव परफॉर्मर्स का था। खास तौर पर उन परफॉर्मर्स का, जिनके पास कमाई का कोई दूसरा ज़रिया नहीं था। न तो वे फिल्मों के लिए गाते थे, न ही ‘स्पॉटिफाई’ और ‘ऑडिबल सुनो’ जैसे नए-नवेले पॉडकास्टिंग प्लैटफॉम्र्स से परिचित थे। इनमें छोटे शहरों के परफॉर्मर्स की बड़ी संख्या थी। हज़ारों-छोटे बड़े शो निरस्त हुए थे। लाइव परफॉर्मेंस का अंदाज़ यकीनन बदलने वाला था। इस बात को सब समझ रहे थे कि उन्हें भी बदलना होगा।
उधर विवान इस नई दुनिया में खुद को मिस़िफट पा रहा था। लाइक्स-कमेंट्स हासिल करने और सबस्क्रिप्शन बढ़ाने का खेल समझने के लिए शायद ही कोई जुगत ऐसी बची होगी, जिसे उसने आज़माया न हो। पर इसके बावजूद उसे मन-मा़फिक नतीजे नहीं मिल रहे थे। उसकी आंखें उदास थीं, मिजाज़ हताश... पोनीटेल में बंधे बेतरतीब बाल, मैले कपड़े, सिगरेट के कश मार-मारकर बदरंग हो चुके होंठ... कुछ ऐसा था उसका ‘लॉकडाउन लुक’... उसकी ज़िंदगी की रेल इन दिनों एक तयशुदा ट्रैक पर भाग रही थी जिसमें क्रमवार तरीके से ‘सोना-खाना-वीडियो देखना’ रिपीट हो रहा था, मानो किसी ने इन गतिविधियों को लूप पर लगाकर छोड़ दिया हो। बीच में ब्रेक लेना होता था, तो सुट्टा मार लेता था। वैसे उसके फ्लैटमेट अक्षय की ज़िंदगी में भी सब सामान्य नहीं था। डेढ़ माह पहले ही उसकी नौकरी चली गई थी। बेरोज़गार होने से पहले वह एक बड़े स्कूल में डांस टीचर हुआ करता था। लेकिन अक्षय इतना परेशान नहीं था। शायद इसकी वजह यह थी कि उसका परिवार, विवान के परिवार के मुकाबले आर्थिक रूप से मज़बूत था। उसके पापा और मम्मी, दोनों पंजाब के एक बड़े प्रतिष्ठित अस्पताल में डॉक्टर थे। जबसे उसकी नौकरी गई थी, उसके अकाउंट में हर महीने घर से पैसे आ जाते थे। तंगी के हालात में इन्हीं पैसों की बदौलत दोनों फ्लैटमेट्स का गुजारा हो रहा था। पर आखिर कब तक? यह एक बड़ा सवाल था। लॉकडाउन 1.0 और 2.0 के बाद 3.0 की घोषणा भी लगभग तय मानी जा रही थी। इस लंबी होती अवधि के साथ-साथ विवान की उम्मीदें बौनी होती जा रही थीं...
‘अबे तूने खाना फिर ठंडा कर दिया!’ अक्षय ने कमरे में दाखिल होते ही टोका।
‘मन नहीं हो रहा था खाने का!’ जवाब भी ठंडा सा ही आया। ‘ये बाहर शोर कैसा है?’ उसने अनमने ढंग से पूछा।
‘न्यूज़-सोशल मीडिया, कुछ भी नहीं देखता है क्या तू? पीएम ने कोरोना वॉरियर्स को चीयर-अप करने के लिए ताली-थाली बजाने के लिए बोला था। वही सब चल रहा है। चल, हम भी बालकनी में चलते हैं।’
‘तू जा, मैं नहीं आ रहा!’
अक्षय समझ गया कि विवान से बहस करने का कोई फायदा नहीं होने वाला। वह चुपचाप अकेला ही बालकनी में चला गया। कुछ ही पलों बाद वह उलटे पांव वापस आया।
‘सुन, वो ई टावर वाली बंदी भी है! अब तो उठ जा!’
‘हां-हां, ठीक है!’ यह बोलते हुए विवान उठ गया।
अक्षय ने सही पांसा फेंका था। सोसाइटी के ई टावर में रहने वाली उस लड़की को विवान काफी पसंद करता था। लंबे अरसे से उसने उसे देखा नहीं था, लिहाजा यह कारण उसे बालकनी में लाने के लिए कारगर साबित हुआ।
‘भाई-भाई-भाई...’ अक्षय ने फिल्म ‘गली बॉय’ वाले रैप के अंदाज में उसकी मौज लेते हुए कहा।
इतने दिनों से वीरान पड़ी बालकनियों में आज जैसे रौनक लौट आई थी। कोई ताली बजा रहा था तो कोई थाली। कुछ तो इतने बावले होकर थाली बजा रहे थे, मानो उसमें छेद ही कर देंगे। कुछ हाई-टेक किस्म के लोगों ने तो स्पीकर पर शंख और तालियों की ध्वनि के ऑडियो ही प्ले कर दिए थे। सब मगन थे। बीच-बीच में इशारों के ज़रिये हाल-चाल भी पूछा जा रहा था। उन चंद पलों के लिए सब भूल गए थे कि दुनिया कोविड 19 नाम के पैनडेमिक की आ़फत से जूझ रही है। विवान ने श्रेया को देखा, श्रेया ने विवान को। श्रेया यानी वही ई टावर वाली बंदी। जो कई बार जिम में देर तक इसलिए रुकती थी क्योंकि विवान भी वहां होता था। कभी-कभार जब श्रेया अपने ग्रुप के साथ बैडमिंटन खेलने जाती, तो विवान कानों में हेडफोन लगाकर रनिंग करने निकल जाता। श्रेया मानो उसका हुलिया देख कर पूछना चाह रही थी, ‘ये क्या हाल बना रखा है? कुछ लेते क्यों नहीं?’ दोनों के टावरों के बीच फासला ज्यादा नहीं था, लिहाजा वे एक-दूसरे के चेहरों की सिलवटों और उनमें उतरते अल्फाज़ों को स्पष्ट पढ़ पा रहे थे। श्रेया एकमात्र लड़की थी, जो विवान को थोड़ा-बहुत भाव देती थी। वरना सोसायटी की ज़्यादातर लड़कियां तो गिटार बजाने वाले स्वरित पर लट्टू थीं। विवान-श्रेया के बीच आंखों-आंखों वाला संवाद चल ही रहा था कि विवान अचानक पता नहीं किन ख्यालों में खो गया... किसी से बिना कुछ कहे वह अंदर आ गया। श्रेया को कुछ समझ में नहीं आया। उसका चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था। उधर विवान के हाथ इस वक्त फटाफट एक कोने में पैक रखे तबले के सेट खोल रहे थे।
यह देख अक्षय को खुशी भी हुई और थोड़ा अचंभा भी।
‘क्या? घूर मत। ज़्यादा दिन तक यूं ही रखा रहा तो जाम हो जाएगा। फिर ओएलएक्स पर भी नहीं बिकेगा। बस इसलिए कुछ देर बजाने जा रहा हूं।’
बिना पूछे सफाई देते विवान पर इस वक्त अक्षय को बड़ा प्यार आ रहा था। उसके चेहरे पर एक सेकंड के लिए ‘आई डिडंट आस्क एनीथिंग’ वाला भाव आया और वह कॉ़फी बनाने के लिए किचन की ओर चला गया। किचन सिंक में बर्तनों का माउंट एवरेस्ट खड़ा था। पहले बर्तन धोने के अलावा अब कोई चारा नहीं था। लिहाजा, वह पहले बर्तन मांजने लगा। साथ ही, उसके दिलो-दिमाग में ख़्यालों का कारवां भी आगे बढ़ने लगा। यह कारवां पहले रुका विवान पर।
विवान ने आज पूरे एक महीने बाद तबले को हाथ लगाया था। उसके दिमाग में कुछ तो खिचड़ी पक रही थी। अक्षय को एक अरसे बाद अपने दोस्त के चेहरे पर एक ऐसी चीज़ दिखी थी, जिसे देखने के लिए वह तरस गया था। उम्मीद। विवान जो भी कर रहा था, उसमें दखल देना अक्षय ने कतई ठीक नहीं समझा। आज विवान को देखकर उसे जाने क्यों रह-रहकर मशहूर इटैलियन पेंटर सैल्वाडोर डाली का ख्याल आ रहा था। वही सैल्वाडोर डाली, जिनके चेहरे का मास्क लगाकर सुपरहिट नेटफ्लिक्स वेब सिरीज़ ‘मनी हाइस्ट’ के लुटेरे लूट को अंजाम देते थे। ‘मनी हाइस्ट’ के चारों सीज़न उसने और विवान ने साथ बैठकर देखे थे। वह भी, ऐन ‘वेब रिलीज़’ के दिन। अक्षय ने तो कौतूहलवश डाली के बारे में अच्छा-खासा रिसर्च भी कर रखा था। डाली... 1930 के दशक का एक ऐसा पेंटर, जो ‘सरीयलिज्म’ (अतियथार्थवाद) के सिद्धांत पर पेन्टिंग्स बनाता था। यह सिद्धांत पहले विश्व युद्ध के बाद प्रचलित हुआ था। कई चिंतक, विचारक, कलाकर इससे जुड़े थे। इस सिद्धांत से जुड़े लोग तयशुदा पैमानों को तोड़कर अपने मन-मा़फिक नया सृजन करते थे। बतौर सरीयलिस्ट पेंटर, डाली की कला एकदम नग्न होती। अपनी सोच को वह जस-का-तस कैनवस पर सजा देते। पिघलती घड़ियां, भिनभिनाती मक्खियां, मेज तोड़कर उगता पेड़... इस किस्म के प्रतीकों के जरिये वह लगातार ‘खूबसूरती’ की परिभाषाएं बदलते रहे। जिस वक्त डाली गहन चिंतन में डूबे होते, उस वक्त उन्हें हद दर्जे का एकांत चाहिए होता था। टोस्ट पर मक्खन लगाने की आवाज़ भी उनके ख़्यालों में बाधा पहुंचा सकती थी। जिन दिनों वह अपनी किसी पेन्टिंग पर काम कर रहे होते, उनका व्यवहार अजीब हो जाता। कभी खुद से बातें करने लगते तो कभी रो पड़ते। कोई उन्हें पागल कहता, कोई सनकी। पर उनकी नजर में यह सब उनके काम करने की प्रक्रिया का हिस्सा भर था।
एकाएक, अक्षय को लगा कि वह डाली के आर्ट स्टूडियो में पहुंच गया है। डाली साक्षात उसके सामने हैं... ऊपर की ओर तनी हुई मूछें... एक अधूरी पेन्टिंग को पूरा करने में व्यस्त... एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि वह हंगरी से मंगाए गए विशेष मोम की मदद से अपनी मूंछों की स्टाइलिंग करते हैं। वह पेन्टिंग बना ही रहे होते हैं कि अचानक स्टूडियो में ढेर सारे लोग घुस आते हैं। वे उनकी पेन्टिंग फाड़ देते हैं। डाली को भी मारने लपकते हैं... कुछ बड़बड़ाते हुए...
‘तुम भी उतने ही बदसूरत हो, जितनी तुम्हारी कला!’
‘रेंगती चींटियां, कीड़े? कैनवस पर इन्हें उकेरते तुम्हें घिन नहीं आती?’
‘हिटलर के चमचे!’
आवाजें इतनी तेज़ होती गईं कि डाली ने बेचैन होकर अपनी दोनों हथेलियों से अपने कान बंद कर लिए।
ठीक उसी वक्त अक्षय भी अपनी तंद्रा से बाहर आया। ‘ओह! ये क्या मैं अब जागते-जागते भी सपने देखने लगा हूं!’
अपने सवाल का जवाब भी खुद ही, अपने कंधे उचकाकर देते हुए उसने आखिरी धुला हुआ बर्तन बास्केट में रखा और फिर कॉ़फी बनाने लगा। कॉ़फी पाउडर ज़रा सा ही बचा था। शायद दो बार बनाने लायक। चाय उन दोनों में से कोई नहीं पीता था और बीयर लॉकडाउन 1.0 में ही खत्म हो चुकी थी। अक्षय ने एक बर्तन में मिल्क पाउडर और पानी का घोल रखा और दूसरे बर्तन में पानी डालकर उसे गैस स्टोव पर उबलने के लिए चढ़ा दिया। इसके बाद एक मग में कॉ़फी पाउडर, चीनी और थोड़ा सा पानी डालकर उसे फेंटने लगा। यह रेसिपी उसने एक यूट्यूब चैनल से सीखी थी। कॉ़फी फेंटते हुए वह सोच में डूब गया।
उसका घर काफी दूर था। एक विवान ही तो था जिससे वह अपने दिल की बातें शेयर कर पाता था। उसे इतना निराश उसने कभी नहीं देखा था। कहीं न कहीं वह जानता था कि इस मानसिक स्थिति से उसे सिर्फ एक ही चीज़ बाहर ला सकती है- उसके काम का दोबारा जम जाना। या, कम से कम एक छोटी सी सफलता! कुछ जानने वालों से उसने विवान को ‘पेड ऑनलाइन लाइव शो’ दिलवाने के लिए बात भी की थी, पर काम बन नहीं पाया था। सबको सिंगर चाहिए था। कभी-कभार उसे गुस्सा भी आ जाता था कि विवान ने आखिर ऐसा काम चुना ही क्यों! पर, इस ह़की़कत से वह इंकार भी नहीं कर सकता था कि सपने और शौ़क परमिशन लेकर दिल पर दस्तक नहीं देते। खुद वह भी तो डॉक्टरों के खानदान से होने और मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम टॉपर होने के बावजूद डांसर बना था। विवान से उसकी दोस्ती इतनी गहरी थी कि वह ताउम्र भी उसका खर्च उठाने के लिए तैयार था। पर, वह जानता था विवान को अंदर ही अंदर आर्थिक रूप से उस पर निर्भर होने का अपराधबोध खाए जा रहा है।
पानी उबल गया था। उसने कॉ़फी-चीनी का घोल दो मगों में डाला और ऊपर से खौलता पानी डाल दिया।
‘कॉ़फी...’
विवान के पास उसने कॉ़फी रखते हुए एक यही शब्द बोला। ठीक उसी वक्त उसने गौर किया कि विवान के सामने छह ‘दाएं’ तबले रखे हुए हैं। दरअसल ‘दायां’ लकड़ी से बना संकरे मुंह वाला तबला होता है, वहीं बायां धातु से बना चौड़े मुंह वाला तबला होता है। सामान्य तबला वादन में एक दायां और एक बायां तबला बजाया जाता है। पर, छह से दस दाएं तबलों को जब एकसाथ अलग-अलग स्केल्स के हिसाब से ट्यून करके बजाया जाए, तो उसे ‘तबला तरंग’ प्रस्तुति देना कहते हैं। विवान ने इससे पहले सिर्फ एक बार अक्षय के बहुत ज़िद करने पर एक ऑडिशन में ‘तबला तरंग’ प्रस्तुति दी थी। पर, तब उसका चयन नहीं हो पाया था। वह बहुत प्रयोगधर्मी मिजाज का था भी नहीं। वह शास्त्रीय गायकों के साथ संगत देकर ही खुश था। ‘स्पॉटलाइट’ में आना उसे हमेशा डराता था। वह डरता था कि कुछ नया करने के चक्कर में अगर नाम डुबो लिया, तो जो काम मिल रहा है, वह भी हाथ से जाएगा और ऐसा हुआ तो उसे वापस अपने छोटे से कस्बे में जाकर उन्हीं अंधेरी गलियों में खाक छाननी पड़ेगी, जहां से निकलने के लिए उसने इतनी मशक्कत की थी। पर आज बात कुछ और थी। आज की मांग कुछ और थी। जिस किस्म का ‘सुरक्षित’ काम अब तक वह करता आया था, अब उसकी ज़रूरत ही खत्म हो चली थी। कम से कम फिलहाल के लिए। इस बात की संभावना भी थी कि आगे भी लंबे समय तक म्यूजिक कॉन्सर्ट बंद ही रहेंगे। शायद तभी, ज़िंदगी में दूसरी बार वह कुछ ‘प्रयोग’ करने जा रहा था। कम से कम उसका सेटअप देखकर अक्षय को ऐसा आभास हुआ।
‘सुन’ विवान झिझकते हुए बोला।
‘सुना’ अक्षय ने मुस्कराते हुए जवाब दिया।
‘अच्छा, जरा यह सुनकर बता कि कैसा है!’
‘सुना मेरे बब्बर शेर...’ उसने उत्साह से खनकती आवाज में कहा।
विवान ने तबलों को बजाना शुरू किया, तो अक्षय को धुन कुछ जानी-पहचानी सी लगी। कुछ ही सेकंड्स के अंदर उसने उसे पहचान भी लिया। यह धुन थी इटैलियन लोकगीत ‘बेला चाओ’ की। जबसे वेब सिरीज ‘मनी हाइस्ट’ में इस गीत का इस्तेमाल हुआ था, तबसे यह धुन बच्चे-बच्चे की ज़ुबान पर चढ़ चुकी थी। लॉकडाउन के दौरान तो यह गाना लगातार सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा था। तबले की बीट-दर-बीट बजती इस धुन को वह खुद भी गुनगुनाने लगा...
ऊना मतीना, मी सोज़ वेलियातो,
ओ बेला चाओ बेला चाओ बेला चाओ चाओ चाओ,
ऊना मतीना, मी सोज़ वेलियातो,
ए ओ त्रोवातो इन्वाजोर
ओ परतीचानो, पोरतामी वीआ
ओ बेला चाओ बेला चाओ बेला चाओ चाओ चाओ,
ओ परतीचानो, पोरतामी वीआ
शे मी सेंतो दी मोरीर
विवान भले ही प्रयोगधर्मी न हो, पर उसने अपने रियाज़ में कभी कमी नहीं रहने दी थी। बीते कुछ दिनों को अगर छोड़ दिया जाए, तो मजाल है कि एक दिन भी उसका रियाज़ छूटा हो? दो साल पहले जब उसे टायफायड हुआ था, तब भी नहीं। बीते साल जब उसका एक्सीडेंट हुआ था, तब भी नहीं। प्लास्टर लगे पैर के साथ बिस्तर पर बैठे-बैठे ही वह अपनी रियाज़ की मह़िफल सजा लेता था। शायद यही वजह थी कि उसने बिना किसी अभ्यास के कुछ मिनटों के अंदर ही यह तबला तरंग ट्रैक तैयार कर लिया था। एक इटैलियन गीत भारतीय तबले की थाप पर एक अलग ही असर पैदा कर रहा था।
‘एक मिनट रुक, ऐसे ही बैठे रहना’
इतना बोलकर अक्षय दूसरे कमरे में गया। वापस आया तो उसके हाथ में एक मैग्ज़ीन, पुराना शू-लेस और कैंची थी।
‘ये क्या कर रहा है तू?’ इस बार हैरान होने की बारी विवान की थी।
‘कहा न, चुपचाप बैठा रह...’ अक्षय शांत भाव से बोला।
इतना कहकर वह मैग्ज़ीन में बनी सैल्वाडोर डाली की तसवीर की कतरन काटने में जुट गया। तसवीर कवर स्टोरी के रूप में पूरे पन्ने पर छपी थी। तसवीर को काटने के बाद उसने आंखों की पुतलियों वाली जगह पर दो छेद कर दिए। साथ ही, कानों वाले हिस्से के पास भी एक-एक छेद करके उसने उसमें धागा फंसा दिया। विद्रोह के प्रतीक आर्टिस्ट डाली के चेहरे वाले मुखौटे दुनिया भर में कई जगह विरोध प्रदर्शन के दौरान इस्तेमाल हो चुके थे। आज भी, विवान सर्जिकल मास्क लगाकर घूम रही इस दुनिया का सामना ‘डाली मास्क’ पहन कर करने वाला था।
अक्षय ने बाहर का मुआयना किया तो पाया कि कोलाहल अब तक जारी है। ज्यादातर लोग जा चुके थे, पर बातूनियों की चैं-पैं जारी थी। अक्षय ने बैटरी संचालित कॉर्डलेस माइक से घोषणा की, सभी लोगों से गुजारिश है कि अभी कुछ देर बालकनी में ही रहें। आपके सामने बहुत जल्द एक लाइव आर्टिस्ट परफॉर्म करने वाले हैं। सबने मुस्कुराकर, ताली बजाकर इस गुज़ारिश का स्वागत किया। वैसे भी सब ज़्यादातर लोग वेल्ले ही थे। अक्षय और विवान की सोसाइटी में किसी से खास बातचीत नहीं होती थी। लिहाजा, फ्लोर पर रहने वाले दो-चार लोगों को छोड़कर ज़्यादातर लोग उन दोनों को नहीं जानते थे। अक्षय ने तबला तरंग प्रस्तुति के लिए पहले तबलों का और फिर माइक का सेटअप किया। इसके बाद अंदर आकर विवान के कान में धीरे से बोला, ‘डाली के नाम’
‘डाली के नाम...’ विवान ने भी दोहरा दिया। मास्क के छेदों से उसकी आंखों की नमी छलक रही थी।
जैसे ही डाली का मास्क पहन कर विवान बालकनी में आया, बाकी बालकनियों का मजमा बढ़ने लगा। अंदर लौट गए लोगों को दोबारा बुलाया जाने लगा। कैमरों के फ्लैश चमक उठे। शहर में पहली बार ‘बालकनी म्यूज़िक कॉन्सर्ट’ जो होने जा रहा था। विवान ने विलंबित लय (धीमी गति) में तबला तरंग प्रस्तुति का आगाज़ किया। आहिस्ता-आहिस्ता तबले के स्वर मध्य लय (मध्यम गति) पर और फिर द्रुत लय (तेज गति) पर पहुंच गए। द्रुत लय तक पहुंचते-पहुंचते सारी सोसायटी के लोग उसके साथ गाने लगे थे। अक्षय सारे नज़ारे को इंस्टाग्राम पर लाइव कर रहा था। कमेंट्स, शेयर्स और लाइक्स का तांता लग चुका था। कुछ लोग तो लाइव के कमेंट बॉक्स में ही पेड लाइव परफॉर्मेंस से जुड़े सवाल पूछ चुके थे। धुआं छंटने लगा था। उम्मीदों का सुनहरा सूरज उगने को था।
लेखिका परिचय
मिजाज से चौकस कनपुरिया और पेशे से पत्रकार। ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’, ‘ऑल इंडिया रेडियो’, ‘दैनिक जागरण’ जैसे संस्थानों में काम कर चुकी हैं। बतौर पत्रकार चौदह साल का अनुभव है और वर्तमान में ‘हिन्दुस्तान टाइम्स डिजिटल स्ट्रीम्स’ कंपनी में सीनियर कंटेंट क्रिएटर के पद पर कार्यरत हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत में तीन साल का प्रशिक्षण भी लिया हुआ है। गाने के साथ ही घूमने-फिरने, फिल्में देखने और लिखने की शौकीन हैं।