मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन - 1 Neelima Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन - 1

मूड्स ऑफ़ लॉकडाउन

क्वारंटाइन...लॉक डाउन...कोविड 19... कोरोना के नाम रहेगी यह सदी। हम सब इस समय एक चक्र के भीतर हैं और बाहर है एक महामारी। अचानक आई इस विपदा ने हम सबको हतप्रभ कर दिया हैं | ऐसा समय इससे पहले हममें से किसी ने नहीं देखा है। मानसिक शारीरिक भावुक स्तर पर सब अपनी अपनी लडाई लड़ रहे हैं |

लॉकडाउन का यह वक्त अपने साथ कई संकटों के साथ-साथ कुछ मौके भी ले कर आया है। इनमें से एक मौका हमारे सामने आया: लॉकडाउन की कहानियां लिखने का।

नीलिमा शर्मा और जयंती रंगनाथन की आपसी बातचीत के दौरान इन कहानियों के धरातल ने जन्म लिया | राजधानी से सटे उत्तरप्रदेश के पॉश सबर्ब नोएडा सेक्टर 71 में एक पॉश बिल्डिंग ने, नाम रखा क्राउन पैलेस। इस बिल्डिंग में ग्यारह फ्लोर हैं। हर फ्लोर पर दो फ्लैट। एक फ्लैट बिल्डर का है, बंद है। बाकि इक्कीस फ्लैटों में रिहाइश है। लॉकडाउन के दौरान क्या चल रहा है हर फ्लैट के अंदर?

आइए, हर रोज एक नए लेखक के साथ लॉकडाउन

मूड के अलग अलग फ्लैटों के अंदर क्या चल रहा है, पढ़ते हैं | हो सकता है किसी फ्लैट की कहानी आपको अपनी सी लगने लगे...हमको बताइयेगा जरुर...

कहानी 1

लेखिका जयंती रंगनाथन

#इश्कका रंग वायरस

‘तुम यहां क्यों आए हो... अपना बैग पैक करो और दफा हो जाओ... ’

अनन्या गुस्से में थी। विरल शांत था।

तीन महीने पहले तक यह घर दोनों का था। मतलब, था तो अनन्या का, पर पिछले तीन साल से दोनों साथ रहते थे, लिव इन। खुश थे।

विरल ने बात करने की कोशिश की, ‘अन्या, तुम मेरी बात सुन क्यों नहीं रही? तुमने मुझे ब्लॉक कर दिया है...’

‘ हां, मुझे कुछ नहीं सुनना। तुम जाओ... जस्ट गो।’

विरल चुपचाप अंदर चला गया और बिस्तर पर रखे अपने कपड़े बैग में रखने लगा। अनन्या तेज कदमों से अंदर आई। अलमारी खोल कर चुन-चुन कर विरल का सामान बाहर फेंकने लगी। जोर से दरवाजा बंद कर वह बाहर आकर हांफने लगी।

टेबल पर रखा उसका मोबाइल जोर से बजने लगा। मम्मा का वीडियो कॉल था। उसने बेमन से उठा लिया। नहीं उठाएगी, तो मम्मा लगातार फोन करती रहेंगी। ये उनका बात करने का वक्त है। शाम को क्लीनिक से लौटते ही अनन्या को फोन करती हैं, वो जहां भी रहे।

अनन्या ने इयर प्लग लगा लिया। मम्मी के साथ पापा भी थे।

‘कैसी हो अन्या? न्यूज देखा अभी?’

‘नो मम्मा, अब क्या हुआ?’

‘कोरोना वायरस की वजह से लॉक डाउन एनाउंस हो गया है बच्चे। तुम बिलकुल घर से बाहर मत निकलना…’

‘ओह… मम्मा, मैं वैसे भी लास्ट वीक से वर्क फ्रॉम होम कर रही हूं। देख लूंगी। आप मेरी चिंता ना करें। अपना ख्याल रखें।’

‘तुम इतनी टेंस्ड क्यों लग रही हो? रो रही थी क्या?’

अनन्या ने नहीं में सिर हिलाया। मम्मा ने उसके अंदर कोई कैमरा फिट कर रखा है क्या? उन्हें कैसे पता चला?

‘काम मम्मा, आज कुछ ज्यादा काम था…’

पापा परेशान नजर आ रहे थे। नोएडा में अनन्या और इंदौर में मम्मी-पापा। पहले से पता होता लॉकडाउन का, तो वो इंदौर ही चली जाती।

अनन्या ने लंबी सांस ली। मम्मी कह रही थीं, ‘अन्या, सुनो तो। परेश तुमसे बात करना चाहता है। हो सकता है एक दो दिन में वीडियो कॉल कर ले।’

‘मम्मा, अभी, इस समय नहीं। रहने दो।’

‘क्या दिक्कत है? तुमने हां कह दिया है ना रिश्ते के लिए… बस, ये वायरस का झंझट खत्म हो तो शादी की तैयारियां शुरू कर दें।’

अनन्या ने कुछ कहा नहीं। मम्मी समझ गई, कुछ तो चल रहा है लड़की के दिमाग में। पापा उठ कर चले गए थे दूसरे कमरे में, शायद टीवी पर खबरें देखने। मम्मी अपना चेहरा थोड़ा आगे ले कर आईं,

‘अन्या, तू उससे मिलती तो नहीं?’

‘किससे मम्मा?’ अनन्या खीझ गई।

‘उसीसे, तेरे फ्रेंड से।’

अनन्या ने नहीं में सिर हिलाया और अनमनी सी बोली, ‘मम्मा, मैं आपसे बाद में बात करूंगी। मुझे न्यूज देखने दो। कल सुबह फोन करूंगी। अच्छा, बॉय।’

मोबाइल बंद कर अनन्या आंखें बंद कर सोफे पर टेक लगा कर अधलेटी हो गई। मन के साथ-साथ अंदर भी जैसे घमासान मचा था। अचानक उसे जैसे याद आया, उसने चिल्ला कर कहा ‘विरल, तुम्हारे पास पूरा दिन नहीं है।’

विरल अपना बैग पैक ले कर तैयार था। अनन्या के सामने आ कर पास रखे मोढ़े पर बैठ गया, ‘अन्या, मुझे पता है तुम बहुत नाराज हो मुझसे। पर एक बार मेरी बात तो सुन लो।’

‘नहीं। मुझे कुछ नहीं सुनना। सब खत्म हो गया विरल। थैंक्स टु यू। आई हेव मूव्ड ऑन…’

विरल दो सेकंड रुका, अनन्या का हाथ धीरे से छूते हुए बोला, ‘ओके। अपना ख्याल रखना…’

अनन्या गुस्से से भभक पड़ी, ‘मेरी चिंता मत करो। मुझे अपना ख्याल रखना आता है। अच्छे से…’ और भी बहुत कुछ कहना चाहती थी वो। पर इस समय सिर भारी था। दिल में तूफान था। आंखों में आग थी। नजरों में बर्छियां थीं…

विरल चला गया, कभी न आने के लिए। अनन्या बालकनी में खड़ी हो कर उसे जाते देखती रही। कमरे में आ कर उसने टीवी चला लिया। खबरें… डर लगने लगा। कैसे अकेली रहेगी इक्कीस दिन? कैसे काटेगी लॉकडाउन के ये दिन? वो भी बिना उसकी मेड गुड्डी के?

टीवी बंद कर उसने अपनी बेस्ट फ्रेंड पैडी को फोन लगाया। पैडी उर्फ पद्मश्री शायद दो पैग डाउन थी। सुरूर से भरी आवाज।

‘बोल जानेमन… ’

अनन्या ने रुआंसी हो कर कहा, ‘पैडी, क्या करूं यार? पहले से लॉकडाउन के बारे में पता होता तो तेरे पास चली आती। अब?’

‘चिल यार। घर में है। आराम से रह।’

अनन्या दो पल को रुक कर बोली, ‘विरल आया था…’

‘कुछ कहा उसने?’

‘मैं कुछ सुनने के मूड में नहीं थी बेब्स। वो अपना सामान ले कर चला गया।’

‘चलो गुड। फाइनली, तूने ब्रेकअप कर ही लिया…’

अनन्या रोष से बोली, ‘हद है यार। जो देखा उस दिन, उसके बाद क्या पूजा करती उसकी? बता? हमेशा विरल की साइड लेती है… तू किसकी फ्रेंड है, उसकी या मेरी…’

‘वो क्या कह रहा था, सुन तो लेती जान।’

‘नो, नेवर। मेरी लाइफ को वो चैप्टर खत्म हो गया।’

‘सही है। जब डिजीशन ले ही लिया तो इतनी टेंस्ड क्यों हो रही है।’

‘पता नहीं…’

अनन्या ने फोन रख दिया। इस समय उसके दिमाग में कुछ भी नहीं था, ना लॉकडाउन, ना विरल। बस लग रहा था, ये दिन जल्दी से गुजर जाए।

किचन में जा कर उसने अपने लिए कॉफी बनाया, कप ले कर बॉलकनी में आ गई। खाने का मन था, पर बनाने का नहीं। उसे तो खाना बनाना आता ही नहीं। पहले जब अकेली रहती थी, तो अकसर खाना बाहर से मंगवा लेती। विरल के आने के बाद से इसकी जरूरत ही नहीं पड़ी। वह गजब का कुक था। पिछले तीन साल से उसकी आदत पड़ चुकी थी। वह हमेशा कहती थी, तुम्हें तो शेफ होना चाहिए विरल। तुम ये मैनेजमेंट की नौकरी छोड़ो और अपना रेस्तरां शुरू करो। विरल हंस कर कहता, ‘मैडम, ये सर्विस सिर्फ आपके लिए है।’

दोनों एक-दूसरे के लिए परफेक्ट थे। अनन्या आईटी कंपनी में काम करती थी। सुबह नाश्ते के बाद ऑफिस के लिए निकलती तो रात को दस बजे से पहले कभी नहीं आती। जिन दिनों वह विरल से मिली थी, वो खाली था। बैंगलोर में जॉब मिल रही थी, पर वह राजधानी छोड़ कर जाना नहीं चाहता था।

दोस्ती के कुछ हफ्तों बाद अनन्या ने ही सुझाव दिया, ‘जब तक जॉब नहीं मिलती, मेरे यहां आ जाओ। एक एक्स्ट्रा कमरा है। वैसे भी मैं घर में बहुत कम रहती हूं।’

विरल के पास दूसरी चॉइस भी नहीं थी। फौरन वह अपने कपड़े, कुछ किताबें और लैप टॉप ले कर उसके फ्लैट में आ गया। तब तक वह सिर्फ दोस्त था। मिलनसार दोस्त। धीरे-धीरे उसे अहसास हुआ कि उसका यह दोस्त दूसरे पुरुष मित्रों से कितना अलग है।

विरल को नौकरी मिल गई। पर तब तक उन दोनों के बीच रिश्ता बदल चुका था, बेडरूम एक हो गए थे। और भी बहुत कुछ एक हो चला था।

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वह सोफे पर ही सो गई। नींद खुली, दरवाजे पर हलके से खटके से। चौंक कर टाइम देखा, रात के लगभग एक बज रहे थे। पड़ोस के फ्लैट में कुत्ता भौंके जा रहा था। कमरे में टेबल लैंप की हलकी सी रोशनी जल रही थी। अनन्या ने दरवाजे के की होल से झांक कर देखा, दरवाजे के सामने दीवार से सिर टिकाए विरल बैठा हुआ ऊंघ रहा था।

अनन्या चौंक गई। विरल यहां क्या कर रहा है? क्यों आया है वापस?

वह पीछे हटी। अपना मोबाइल उठा कर कमरे में आ गई।

उसने पैडी को फोन लगाया। पैडी ने उठाया और उनींदी आवाज में पूछा, ‘बेब्स, इतनी रात को? सब ठीक है ना?’

‘पैडी, वो यहां है, मेरे फ्लैट के सामने।’

‘कौन, विरल! वो क्या कर रहा है?’

‘हाउ डू आई नो? मैंने दरवाजा नहीं खोला।’

‘वो बाहर बैठा है? पूछो तो सही…’

‘नहीं। मुझे डर लग रहा है।’

‘सिली गर्ल। तुम्हें जो करना है करो। डोंट डिस्टर्ब मी यार। मैं अभी सोने गई हूं।’

‘यू सिली,’ अनन्या ने फोन रख दिया। वह दबे पांव उठ कर दरवाजे के पास गई। फिर से की होल से देखा, विरल अपने बैग को तकिया सा बनाए सो रहा था…

दरवाजा खोले कि ना खोले? उसे इस हाल में पड़ोसी देख लें तो क्या कहेंगे? इस बिल्डिंग में सब यही जानते हैं कि वो दोनों मैरिड हैं। लिव इन की बात उसने किसी को नहीं बताई। अब?

एक झटके में अनन्या ने दरवाजा खोला। आवाज से विरल की नींद खुल गई। वह एकदम से उठकर अपना बैग ले कर अंदर आ गया।

‘तुम वापस क्यों आए?’

‘सॉरी अन्या।’ नींद में बड़बड़ाते हुए विरल ने कहा, ‘और कहीं जा नहीं सकता। सब बंद है। रोशी का पड़ोसी पॉजिटिव निकला। बाहर से कोई जा नहीं सकता वहां। क्या करता यार?’

‘तुम यहां नहीं रह सकते…’

विरल ने अजीब नजरों से अनन्या की तरफ देखा, ‘अन्या, मजबूरी है। कोई और रास्ता नहीं है। मुझे यहीं रहना पड़ेगा।’

अनन्या को लगभग ठेल कर वह गेस्ट रूम में चला गया। जाते-जाते कह गया, ‘बहुत नींद आ रही है बेबी। कल सुबह बात करेंगे।’

अनन्या जलती-भुनती-सिंकती बंद दरवाजे के सामने खड़ी रही। सुबह होने तक वह ड्राइंग रूम में बैठी-बैठी ऊंघती रही।

ऐसा लगा, जैसे किसी ने उसे गोद में उठा कर बिस्तर पर लिटाया हो। गर्दन अकड़ गई थी उसकी। पैर सुन्न पड़ रहे थे। बिस्तर पर तकिए में सिर रखते ही उसे नींद आ गई।

नींद खुली, चौंकती हुई वो उठी। समझ नहीं आया क्या हुआ उसके साथ। वह अपने बिस्तर पर थी। कमरे में कोई नहीं था। बस फैन चलने की हल्की-हल्की आवाज आ रही थी। वह हड़बड़ा कर बाहर निकली।

विरल किचन में था। कुकर में सीटी बज रही थी।

अनन्या को देख उसने मुस्कराने की कोशिश की। अनन्या का चेहरा तना हुआ था। वह भांप गया, खतरा…

उसने अपनी आवाज भरसक मुलायम रखते हुए कहा, ‘अन्या, लिसन, इक्कीस दिन साथ रहना हमारी मजबूरी है। देख लो… घर का जरूरी सामान मैं ले आया करूंगा। खाना मैं बना दिया…’

अनन्या ने बीच में काटते हुए कहा, ‘कोई जरूरत नहीं है। मैं अपना काम खुद कर लूंगी। हां, मेरे सामने मत आना…’

विरल ने सिर उठा कर अनन्या की तरफ देखा। वह बालकनी में आ गई। सड़क लगभग खाली था, वरना रोज इस समय यहां ट्रेफिक जाम जैसी स्थिति हो जाया करती थी। हवा में हलकी सी ठंडक थी। वह टीवी खोल कर बैठ गई। पांच मिनट में घबरा गई। कितना भयानक है सबकुछ। ये वायरस कितनों की जान लेगा, वह हलका सा बुदबुदाई, सबकुछ बदल जाएगा अब।

दस बजे से उसे ऑफिस का काम करना था। कॉफी पी कर वह लैपटॉप खोल कर बैठ गई। गजब की भूख लगी थी। किचन में झांक कर देखा, विरल नहीं था। कैसरोल में वेज पुलाव रखा था।

अनन्या ने चेहरा घुमा लिया और अपने लिए दो ब्रेड सेंक लिया। शाम तक काम करते-करते कमर अकड़ने लगी। इस समय मन कर रहा था, जोर से गाना लगा कर सुने, कुछ ठंडा-ठंडा पिए और किसी से बातें करें।

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तीन दिन… अजीब से दिन… सुबह-सुबह खबर आ गई, उसके ऑफिस से कई लोगों की नौकरी जाएगी। जो बचेंगे, उनकी भी सेलरी कम हो जाएगी। अनन्या का दिल धड़कने लगा। इस वक्त नौकरी चली जाएगी तो करेगी क्या? उसे भी पता था कि पिछले तीन महीने से उसका परफॉरमेंस ठीक नहीं है। बॉस से झगड़ चुकी है। प्रोजेक्ट वक्त पर करके नहीं दिया। जिस दिन से विरल वाला कांड हुआ है, किसी काम में उसका दिल नहीं लग रहा। ऑफिस में बेवजह चिढ़ी रहती है। दोस्तों को कुछ भी बोल देती है। एक पैडी ही है, जो अब तक उसकी बात सुन लेती है।

विरल को जैसे उससे कुछ लेना-देना ही नहीं था। वह दिन में दो या तीन बार कमरे से बाहर निकलता था। अपने लिए चाय नाश्ता बनाता था। पहले दिन उसने अनन्या के लिए भी पुलाव बनाया था। अनन्या ने छुआ भी नहीं। विरल ने कुछ कहा भी नहीं। इस समय बर के छत्ते में हाथ डालने का उसका इरादा नहीं लगता था।

दोपहर तक अनन्या ने किसी तरह समय काट लिया। भूख, गुस्से और हताशा से पेट में आग सी लगी थी। फिर सड़ा ब्रेड टोस्ट खाने के नाम से उसका जी मिचलाने लगा। बिना खाए वह बालकनी में जा कर खड़ी हो गई और जोर-जोर से रोने लगी। मां का फोन आया, उसने नहीं उठाया।

उसे पता नहीं चला कब विरल उसके पीछे आ कर खड़ा हो गया है।

‘अन्या, तुम कुछ ज्यादा नहीं कर रही?’

अनन्या ने आंसू भरी निगाह उस पर डाली। इस समय वो निरीह सी स्कूल गर्ल लग रही थी।

विरल उसे दोनों हाथों से पकड़ कर कमरे में ले आया। सोफे पर बिठा कर उसके पांवों के पास बैठ गया, ‘बताओ क्या बात है?’

अनन्या ने टीशर्ट की बांह से नाक पोंछते हुए सिर हिला दिया।

‘किसे बताओगी? पैडी को? फोन लगाऊं?’

‘नहीं… उसे पता है…’

‘फिर क्यों रो रही हो?’

अनन्या की आंखें भर आई, ‘मुझे बहुत भूख लगी है।’

विरल हंसने लगा। उठ कर वह अपने लिए बनाया दाल चावल ले आया।

अनन्या ने प्लेट दूर कर दिया।

‘देखो अन्या, कुछ दिन की बात है। अगर हम दोनों दो मैच्योर्ड लोगों की तरह रहें तो इसमें दिक्कत है क्या? लॉकडाउन के बाद तुम कहीं, मैं कहीं। जब साथ रहना ही है, तो रो कर, झगड़ क्यों रहें?’

अनन्या उसका चेहरा देखती रही, फिर झपट कर प्लेट उठा लिया। पेट की गर्मी शांत हुई तो टिश्यू से मुंह पोंछती हुई बोली, ‘ऑफिस में प्रॉब्लम है। लगता है मेरी नौकरी चली जाएगी।’

विरल ने प्लेट उठाते हुए सपाट आवाज में कहा, ‘तो क्या हुआ? दूसरी मिल जाएगी। तुम इतनी टैलेंटेड हो। काम की कमी थोड़े ही ना होगी…’

‘पर लॉकडाउन कब तक चलेगा नहीं पता ना…तब तक क्या करूंगी?’

‘नो वरीज। मेरे पास जब नौकरी नहीं थी, तुमने सपोर्ट किया था, अब मैं कर दूंगा।’

अनन्या चुप रही, रुक कर बोली, ‘तब की बात अलग थी…’

विरल ने धीरे से कहा, ‘हर बार बात अलग ही होती है। डोंट वरी…’

जिस प्रॉब्लम की वजह से सुबह से पेट में बगूले उठ रहे थे, विरल ने इतनी आसानी से हल कर दिया।

अनन्या ने मन ही मन गिनना शुरू किया, लॉकडाउन के पांच दिन गुजर गए, और बचे सोलह दिन। हो सकता है आगे बढ़ भी जाए…

शाम को पैडी का फोन आया, ‘बेब्स, अब भी परेशान है क्या? कुछ पता चला ऑफिस में क्या हो रहा है?’

अनन्या की आवाज में हलका सा जोश था, ‘यू नो, मेरा सीनियर था ना कंजी आंखों वाला रोमी, उसकी जॉब चली गई। स्साला एक नंबर का अकड़ू था।’

‘तू अपनी बात बता यार…’

‘ऐसा कुछ होता तो बताती ना। मेरा नाम नहीं है हिट लिस्ट में। बस जरा सा पे कट है…’

‘वाऊ, कमीनी। तूने तो मुझे रो-रो कर डरा ही दिया था… और बता क्या खाया आज लंच में? वही जला हुआ ब्रेड टोस्ट…’

‘मैं बाद में करूंगी फोन…’ अनन्या ने बीच में फोन रख दिया।

शाम को नहाने के बाद उसने पाजामा और टीशर्ट के बजाय ब्लैक ड्रेस पहना। आंखों में हलका सा काजल। लैपटॉप खोल कर सबसे पहले मम्मा को वीडियो कॉल किया। वो भी तो देखे कि लॉकडाउन में उनकी बेटी अपसेट नहीं है। वरना तो पांच दिन से उसकी रोनी सूरत ही देख रही हैं।

मम्मा बहुत तनाव में लग रही थीं। पापा का चलना-फिरना बंद था। ऊपर से दिनभर इधर-उधर से आती डरावनी खबरें।

अनन्या ने सयानी बन कर कहा, ‘मम्मा, ज्यादा खबरें मत देखो। अपना काम करो। आपके हॉस्पिटल में तो कोई पॉजिटिव पेशेंट नहीं आया?’

‘अभी तक तो नहीं। अच्छा, परेश ने कॉल किया तुझे?’

‘किया था मम्मा। उस दिन मैं बात करने के मूड में नहीं थी। आप बोल दो, आज कर ले…’

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विरल घर का सामान लाने बाहर गया था। अनन्या फेसटाइम में परेश से बात कर रही थी। हलका सा गदबदा परेश कुछ ज्यादा ही एक्साइटेड दिख रहा था।

‘तुमसे मिला हूं मैं, दो साल पहले। तुम्हारी कजिन की शादी में। मैं तो देखते ही फिदा हो गया था तुम पर!’ परेश की आवाज हलकी सी लड़खड़ा रही थी।

अनन्या कहीं से इस आदमी से कोई जुड़ाव बनता नहीं पा रही थी। अचानक उसने एक बेतुका सा सवाल पूछा, ‘परेश तुमको खाना बनाना आता है?’

परेश हक्का-बक्का रह गया, ‘वॉट? क्यों?’

‘ऐसे ही…’

अनन्या को पता था, वो फोन कर ये बात मम्मा को बता देगा और मम्मा उसे खूब सुनाएंगी। सोच कर ही हल्की सी हंसी आ गई। इस आदमी के साथ अपनी जिंदगी कैसे गुजारेगी?

ठीक उसी समय विरल सामान ले कर दरवाजे से अंदर आया। उसने मास्क उतारा और सामान टेबल पर रख दिया।

परेश ने चौंक कर पूछा, ‘कौन है वो आदमी?’

‘वो… कुक है। खाना बनाने आता है मेरे घर…अच्छा बाद में बात करेंगे परेश। नाइस मीटिंग यू…’

विरल हैंड सेनिटाइजर से पैकेट पोंछने लगा। अनन्या उठ कर उसकी मदद करने लगी।

इस समय वो भूल चुकी थी कि ये वही विरल है, जिससे तीन महीने पहले उसने ब्रेकअप किया था। उसके साथ वो व्यक्ति था, जिसे तीन साल से वो जानती थी, दिल के सबसे करीब, उसका सबसे अच्छा दोस्त, उसे अच्छी तरह समझने वाला उसका साथी।

क्या उसे बताए कि अभी जिस आदमी से वो चैट कर रही थी, उसके साथ शादी की बात चल रही है? नहीं… अनन्या ने टमाटर धो कर टोकरी में रखा। इस समय वो अपने मूड को खराब नहीं करना चाहती। पुरानी बातें याद करेगी, तो विरल के साथ दिन गुजारना मुश्किल हो जाएगा।

रात विरल ने पास्ता बनाया। कई महीने पहले वही वाइन की बोतल ले कर आया था। अब तक अनखुली फ्रिज में रखी थी। पास्ता और रेड वाइन, अनन्या की मनपसंद।

अनन्या ने वाइन का लंबा सा घूंट भर कर आंखें बंद कर ली। बाहर चल रहे तूफानों के बीच ये चंद पल सुकून के थे। पता नहीं कल क्या होगा, कल हो ना हो, हम रहे ना रहे, पर यही एक पल है जो हमेशा साथ रहेगा।

विरल ने इशारे से उससे पूछा, और लोगी?

अनन्या हलकी सी मुस्कराई, कितना अच्छी तरह समझता है उसे। अचानक वह सतर्क हो कर बैठ गई। वाइन का नशा चढ़ने लगा था।

‘विरल, तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया?’ उसकी आवाज कांप रही थी।

‘अन्या, तुम हर बार बस सवाल पूछती हो। जवाब देने का मौका ही नहीं देती…’

‘तुम चीटर हो विरल। तुम जानबूझ कर उस दिन मुझे अपनी एक्स गर्लफ्रेंड मंदिरा के घर ले गए थे।’

विरल ने उसका गिलास भर दिया, ‘नहीं। मैं तुम्हें कोई सफाई नहीं देना चाहता अन्या। तुम समझना नहीं चाहती तो मैं क्या करूं?’

अचानक वाइन का गिलास फेंक अनन्या भड़क कर उठ गई, ‘मैं समझना नहीं चाहती? यू … मैंने गलती की जो उस रात तुम्हें घर में आने दिया…’

विरल ने जमीन पर पड़े कांच के टुकड़े उठाए और चुपचाप वहां से चला गया।

दो मिनट बाद कमरे में झांक कर बोला, ‘बस कुछ दिन और… फिर मेरा चेहरा नहीं देखोगी…’

अनन्या आ कर बालकनी में खड़ी हो गई। अजीब सी गंध थी। पहले लगा, किसी फूल की है। तीखी सी गंध। सामने स्टैंड पर विरल का सफेद शर्ट सूख रहा था। उस पर कई जगह दाग से लगे थे। अनन्या ने सूंघ कर देखा, स्मेल उसीसे आ रही थी। यही शर्ट तो पहनी थी विरल ने, जिस दिन मंदिरा के घर कांड हुआ था…

अनन्या ने शर्ट उतार कर कमरे में फेंक दिया। विरल की किसी चीज से उसे कोई मतलब नहीं…

मन में जबरदस्त उथलपुथल थी। जब लगा, वो लॉकडाउन के लंबे दिन विरल के साथ गुजार लेगी, तब मन इतना विचलित क्यों है? कम से कम घर में कोई है जिससे वो बात कर पाती है, वरना अकेलापन उसे मार ही डालेगा।

उसने फोन उठाया और हमेशा की तरह पैडी को फोन करने लगी, ‘पैड्स, क्या होगा मेरा?’

‘वही, जो तू चाहती है जान… तुझे दिक्कत क्या है अन्या? लाइफ में सबकुछ मिला हुआ है। मम्मी जी ने नोएडा के इस पॉश बिल्डिंग में फ्लैट ले कर दिया है। हैपनिंग नौकरी है। डेशिंग बॉय फ्रेंड है…’

‘बॉय… किसकी बात कर रही है? विरल की? आर यू मैड?’

‘बेब्स, तू उसके साथ रहती है। तूने उसकी बात अब तक नहीं सुनी?’

‘उसके पास कहने के लिए है क्या? हम सबने मंदिरा के साथ उसे बिस्तर पर देखा था… मंदिरा की जीन्स…’

‘अन्या, तुझे एक बात बतानी थी। आज सुबह मंदिरा की फ्रेंड शोमी ने मुझे फोन किया था। ये बताने के लिए कि मंदिरा हॉस्पिटल से घर आ गई है।’

‘मुझे क्यों बता रही हो पैड्स? मेरी बला से मर जाती…’

पैडी खीझ कर बोली, ‘तू किसी की बात सुनती ही नहीं। सच बैड मैनर्स। पूरी बात सुन। हममें से किसी को पूरी बात नहीं पता। शोमी ने बताया कि मंदिरा उस पार्टी में बाथरूम में गिर गई थी। हिप में चोट लग गई थी। मंदिरा ने हैल्प के लिए विरल को बुलाया।’

अनन्या ने लंबी सांस ली, ‘विरल को, क्यों?’

‘अरे जो भी बोल, वो उसका एक्स बॉय फ्रेंड था। वी ऑल नो, विरल बहुत हैल्पफुल है। विरल एक्चुअली उसके हिप्स पर मसाज आइल लगा रहा था, उस समय हम सब कमरे में आ गए और…’

‘ओह शिट…विरल ने क्यों नहीं बताया?’

‘तू कितनी हाइपर थी बेब्स। तू सुन कहां रही थी? तू तो बस चिल्लाए जा रही थी। उसे मारना-पीटना शुरू कर दिया था।’

अनन्या सन्न रह गई। हां, पैडी ने उसे रोका था, विरल ने भी, मंदिरा दर्द से कराह रही थी और उसने सोचा कि…

और वो रेड तेल से सनी शर्ट…

अनन्या को अचानक लगा, कोरोना का वायरस और कहीं नहीं, उसके व्यक्तित्व में आ गया है। उसका दिमाग खराब हो गया था। सोचने-समझने की शक्ति चली गई थी। जो व्यक्ति तीन साल से उसके साथ है, उसे बिना समझे-बूझे एक पल में उसने कठघरे में कैसे खड़ा कर दिया?

पैडी हैलो-हैलो किए जा रही थी…

अनन्या फोन बंद कर कमरे में आई। शर्ट उठा कर उसने वॉशिंग मशीन में डाला। पाउडर डाला और हाथ से दाग निकालने लगी। पता नहीं कब उसकी आंखों से आंसू झरने लगे।

विरल अपने कमरे में जा चुका था। अनन्या ने उसके कमरे का दरवाजा खटखटा कर कहा, ‘विरल, मैंने तुम्हारी वाइट शर्ट से सारे दाग निकाल दिए हैं… अगर तुम्हें नींद नहीं आ रही हो तो क्या हम बाकि बची वाइन पी लें?’

लेखिका परिचय: जयंती रंगनाथन

जन्म से तमिल, कर्म और शौक से हिंदी

प्रोफेशन: पिछले तीन दशकों से पत्रकार और लेखक

संप्रति हिंदुस्तान अखबार में एक्जीक्यूटिव एडिटर, और बच्चों की पत्रिका नंदन की संपादक

प्रकाशित उपन्यास: आसपास से गुजरते हुए (राजकमल), औरतें रोती नहीं(पेंगुइन/यात्रा), खानाबदोश ख्वाहिशें (सामयिक प्रकाशन), एफ ओ जिंदगी (वाणी प्रकाशन)

संस्मरणात्मक उपन्यास: बॉम्बे मेरी जान (वाणी प्रकाशन)

पहला फेसबुक उपन्यास: 30 शेड्स ऑफ बेला (अनन्या प्रकाशन)

कहानी संकलन: रूह की प्यास (लस्टी हॉरर कहानियों का संकलन, वाणी प्रकाशन), एक लडक़ी: दस मुखौटे (सामयिक प्रकाशन), कंप्यूटर बना कैलकुलेटर (ज्ञानपीठ), गीली छतरी(अनन्या प्रकाशन), ऑडियो सीरियल: बाला और सनी, रेनबो प्लानेट (स्टोरी टेल)

सीरियल: स्टार यार कलाकार, हादसे, मूवर्स एंड शेखर्स(सोनी एंटरटैनमेंट टेलिविजन), लव स्टोरी (जी टेलिविजन)

उपन्यासों पर शोध: आसपास से गुजरते हुए ( 2 शोध आगरा युनिवरसिटी एवं एसएनडीटी मुंबई युनिवरसिटी), खानाबदोश ख्वाहिशें (पुणे युनिवरसिटी, जम्मू यूनिवरसिटी एवं एसएनडभ्टी मुंबई युनिवरिसटी में एम फिल और पीएचडी के लिए शोध), कहानी संग्रह गीली छतरी और बॉम्बे मेरी जान में मुंबई के एसएनडीटी यूनिवरसिटी में शोध प्रबंध

अनुवाद: पंजाबी, मराठी, कन्नड़ भाषा में कहानियों का अनुवाद

नाटक: बॉम्बे मेरी जान पर नाटककर्मी शैलेंद्र की प्रस्तुति

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