आत्म रक्षा डिम्पल गौड़ द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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आत्म रक्षा

मूसलाधार बारिश । सुनसान रास्ता । आज ऑफिस में मीटिंग देर तक चली थी । शुभ्रा जब ऑफिस से निकली थी तो हल्की बूंदाबांदी हो रही थी ।
अपने भीने केश एक साथ लपेटते हुए वह गाड़ी में बैठ गई । माँ को फोन लगा उन्हें परिस्थिति से अवगत करने के पश्चात गाड़ी को रफ्तार दे दी।
मगर उसे क्या पता था ! बेवफ़ा गाड़ी बीच राह में धोखा दे देगी।
कुछ पल विचारने के पश्चात उसने पर्स से मोबाइल निकाला । नम्बर डायल कर माँ को सूचित करने ही जा रही थी कि अचानक मोबाइल मियाँ की बैटरी भी उसका साथ छोड़ गई !
तेज बारिश और इस सुनसान रास्ते पर वह अब बिल्कुल अकेली थी ।
घबराहट से भीगे मौसम में भी उसके मुखार बिंद पर पसीने की बूँदें झिलमिला रही थीं ।
अचानक एक गाड़ी समीप से गुजरी । कुछ दूरी पर जाने के पश्चात वह गाड़ी तुरंत पीछे की ओर मुड़ी फिर उसी की दिशा में आने लगी । अब वह गाड़ी थम चुकी थी । सामान्य कद काठी का व्यक्ति गाड़ी से बाहर आया और शुभ्रा की कार के शीशे को अपनी अँगुली से ठक-ठक करने लगा ।
" अरे इतनी रात यहाँ क्यों रोक रखी है आपने गाड़ी ?"
अजनबी व्यक्ति ने तेज स्वर में पुकारते हुए कहा ।
शुभ्रा ने आशंकित नज़रों से एक पल उसे देखा ,फिर अनदेखा कर दिया ।
" सुनिए अगर गाड़ी खराब है तो यहाँ पास ही एक गैरेज है वहाँ से मैकेनिक भेज देता हूँ मैं ।"लंबी सी मूँछों वाले व्यक्ति ने कहा ।
यह शब्द सुनते ही शुभ्रा के मुँह से निकला -" बहुत-बहुत धन्यवाद आपका सर । "
वह जाने को मुड़ा फिर एक क्षण के लिए वहीं ठिठक गया ।

रौबदार आवाज़ फिर गूंजी-" देखिए मैं आपको यहाँ अकेले छोड़ कर नहीं जा सकता । आइए मेरी गाड़ी में, आपके घर पहुँचा देता हूँ ।"
उसकी बात सुन वह विचारने लगी । हम्म यही सही रहेगा । अंजान सुनसान जगह ! कब तक अकेले बैठी रहूँगी। मम्मी पापा भी चिंतित हो रहे होंगे ।कुछ मनन-चिंतन कर वह गाड़ी से बाहर निकल आई । उसने कनखियों से देखा,वह अनजान शख्स बारिश में पूरी तरह भीग चुका था । सामान्य कद काठी का वह व्यक्ति शुभ्रा के गाड़ी से निकलते ही अपनी गाड़ी की ओर दौड़ चला ! झटपट कार का दरवाज़ा खोलते हुए शुभ्रा को तेज स्वर में पुकारने लगा-जल्दी आइए ! भीग जाएँगी आप ! "
शुभ्रा लगभग भागती हुई उसकी कार में जा बैठी ।
अब कार भीगी सड़कों पर तेज रफ्तार से दौड़ने लगी थी ।

अभी दो ही मिनट गुजरे होंगे कि उस व्यक्ति ने म्यूज़िक ऑन कर दिया। मध्यम स्वर में मधुर गीत बजने लगा.

' भीगी-भीगी रातों में ऐसी बरसातों में.......'

शुभ्रा कुछ सचेत सी हो कर बैठ गई । आदमी धीमे स्वर में वही गीत दोहरा रहा था । वह कार की खिड़की से बाहर की ओर ताकने लगी । कर्ण प्रिय धुन सुनते-सुनते कब उसकी पलकें बोझिल सी होने लगीं वह जान न पाई । सँभवतः पूरे दिन की थकावट का असर था यह ।

अचानक उसे महसूस हुआ मानो देह पर कोई सरसराहट सी हुई है । बंद आँखें फौरन खुल गईं ।

"क्या कर रहे हैं आप !"

"जी कुछ नहीं , आपके चेहरे पर एक चींटी रेंग रही थी उसे हटा रहा था ।" वह मुस्कुराते हुए बड़े ही धीमे स्वर में बोला।

शुभ्रा अब तनकर बैठ गई । उसका गुलाबी चेहरा गुस्से से सुर्ख लाल हो चला था ।

तभी सड़क के किनारे एक गैरेज़ नज़र आया । उसने कार की रफ्तार कम करते हुए उसे गैरेज़ के ठीक सामने रोक दिया। तेज झटके से कार रुक गई ।
त्वरित गति से वह गैरेज में गया और कुछ ही देर बाद वापस भी आ गया ।

"कल दोपहर तक यहाँ से अपनी गाड़ी ले जाइयेगा"
कहते हुए फटाक से गाड़ी का दरवाजा बंद कर उसकी रफ्तार बढ़ा दी ।
शुभ्रा के मन में डर , बैचेनी ने डेरा जमाया हुआ था ।
एक अजीब सी आशंका उसके मन में बसी हुई थी ।
तभी उसने लंबी श्वास भरी । अगले मोड़ पर ही उसका घर आने वाला था । शुभ्रा ने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद किया ।

"बस यही रोक दीजिए आप " कार तुरंत रुक गई दरवाज़े को बाहर की ओर धकेल वह बाहर निकल आई । बारिश अब भी तेज हो रही थी ।
दूसरे दरवाज़े से निकलते हुए वह उसी के करीब आ खड़ा हो गया । उसने अपने हाथों में पकड़ा छाता खोलते हुए शुभ्रा के सिर पर तान दिया ।
"अरे अरे इसकी कोई ज़रूरत नहीं है "
रोड लाइट्स की मद्धम रोशनी में शुभ्रा उसका चेहरा अब ठीक से देख पा रही थी । धन्यवाद करने के लिए उसने ज्यों ही हाथ जोड़े अचानक भीगी पगड़ी में छुपी लंबी चोटी नागिन की तरह बल खाते हुए, पगड़ी की गिरफ्त से आज़ाद हो गई !
यह दृश्य देख शुभ्रा हतप्रभ रह गयी । कुछ ही पलों में वह सारा माजरा समझते हुए भाव-विभोर हो उससे लिपटते हुए बोली " सच्ची दीदी,आपका शुक्रिया अदा करने के लिए शब्द नहीं हैं मेरे पास ! लेकिन यह सब....
" बच्ची,इस दुनिया में रोजी-रोटी कमाने के लिए आत्म रक्षा भी जरूरी है ।" मुस्कुराते हुए कहा उसने और फिर पलटते हुए कार का दरवाजा खोल, अपनी राह चल दी ।