कर्म पथ पर - 28 Ashish Kumar Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कर्म पथ पर - 28




कर्म पथ पर
Chapter 28


खाने के बाद शिवप्रसाद संतोषी से बात करने के लिए गए।
"संतोषी रमनलाल भाईसाहब ने उपाय तो अच्छा सुझाया है। महेंद्र के ज़रिए एक बार स्टीफन से मिल कर उसे परखने की कोशिश की जा सकती है।"
"मैं जानती थी कि भइया कोई ना कोई सही राह बता देंगे। तभी तार देकर उन्हें बुलवाया था। आप कल जाकर महेंद्र से इस बारे में बात करिए।"
"हाँ.... मैंने भी यही सोंचा हैं। लेकिन संतोषी मान लो स्टीफन एक अच्छा आदमी लगा तो भी क्या माधुरी की इच्छा के बिना उसकी शादी कर दोगी। एक बार उससे इस विषय में बात तो कर लो।"
संतोषी भी इसी विषय में विचार कर रही थी। वह बोली,
"आपका कहना सही है। मैं भी वही सोंच रही थी। माधुरी ने खाना नहीं खाया है। उसे खाना खिलाने जाऊँगी तो इस विषय में बात भी कर लूँगी।"
"ठीक है... तुम अभी जाओ और उससे बात कर लो।"

संतोषी थाली लेकर माधुरी के कमरे में घुसी तो पहली बार उसे कुर्सी पर बैठ कर कुछ पढ़ते पाया। संतोषी यह देखकर खुश हुई। यह एक अच्छा संकेत था कि माधुरी भी अब अपने दुख से निकलने की कोशिश कर रही है।
"क्या पढ़ रही हो बिटिया ?"
"कुछ नहीं अम्मा। बस कोशिश कर रही थी कि पहले जैसा महसूस कर सकूँ। दसवीं की अंग्रेज़ी की किताब है।"
"बहुत अच्छा कर रही हो बिटिया। समझदारी तो यही है कि दुख से निकल कर आगे बढ़ा जाए।"
"हाँ अम्मा...पर आसान नहीं है सब भूल जाना।"
संतोषी ने खाने की थाली उसके सामने रख कर कहा,
"खाना खा ले बिटिया। शरीर चलेगा तभी दुख से उबर पाओगी।"
माधुरी किताब रख कर खाना खाने लगी। संतोषी ने कहा,
"तुम सच कह रही हो। सब भूल जाना आसान तो नहीं है। लेकिन दुख को हमेशा अपने से चिपटाए रखना और भी कष्टप्रद होता है।"
माधुरी खाना खाते हुए अपनी अम्मा की बात ध्यान से सुन रही थी। संतोषी आगे बोली,
"एक ना एक दिन दुख को कई दिन तक पहने कपड़े की तरह उतार फेंकना होता है। तभी हम हल्का महसूस करते हैं। कई बार किसी नए व्यक्ति का जीवन में आना हमें इस काम में सहायता करता है।"
संतोषी ने जो अंतिम बात कही वह माधुरी को कुछ अजीब लगी। उसने अपनी अम्मा की तरफ हैरानी से देखा।
संतोषी ने भी बिना इधर उधर किए सीधे अपनी बात का आशय स्पष्ट कर दिया। उसने माधुरी को सारी बात विस्तार से बता दी।
"ऐसा नहीं है बिटिया कि हम तुम्हारी शादी बिना तुम्हारी मर्ज़ी के करा देंगे। पहले तो तुम्हारे बाबूजी और मामा स्टीफन से मिल कर उसे परखने का प्रयास करेंगे। अगर वह ठीक लगा तो तुम्हारी रजामंदी से ही आगे बढ़ेंगे। पर उससे पहले तुम्हें इस बारे में बताना ठीक समझा।"
माधुरी अम्मा की बात सुनकर गंभीर हो गई।
"देखो बिटिया... तुम बिल्कुल भी परेशान ना हों। शादी तुम्हारी मर्जी के बिना नहीं होगी। पर एक बार सोंच कर देखना। शायद शादी करके जब तुम एक नए जीवन में जाओ तो तुम्हारा दुख पीछे छूट जाए।"

माधुरी को खाना खिला कर संतोषी उसे विचार करने के लिए लिए छोड़ कर आ गई।

संतोषी के जाने के बाद माधुरी देर रात तक जागती रही। स्टीफन का रिश्ता हैमिल्टन ने सुझाया था। माधुरी भी वही सोंच रही थी जो बात शिवप्रसाद के मन में आई थी। आखिर हैमिल्टन उसकी शादी स्टीफन से क्यों कराना चाहता है। इसमें अवश्य उसका ही स्वार्थ है।
वह जानती थी कि हैमिल्टन तकतवर व्यक्ति है। उसके बाबूजी के लिए उस शैतान से टक्कर ले पाना कठिन है। उन्होंने प्रयास किया तो नौकरी से हाथ धोना पड़ा। बरसों से कमाई इज्ज़त धूल में मिल गई। हाल ये है कि उन्हें अपना सबकुछ छोड़कर भागना पड़ा रहा है।
माधुरी के मन में दो बातें एक साथ उथल पुथल मचा रही थीं।
वह समझ रही थी कि स्टीफन से शादी करवा कर हैमिल्टन उसका अपने लिए प्रयोग करना चाहता है। स्टीफन से शादी करना वह दांव होगा जिसमें वह खुद को ही भेंट चढ़ाएगी।
लेकिन दूसरी तरफ वह सोंच रही थी कि यदि स्टीफन से उसका विवाह नहीं हुआ तो, अपने मंसूबे पर पानी फिरने से हैमिल्टन चिढ़ कर और भी अधिक घातक हो जाएगा। इसका खामियाजा उसके परिवार को ही भुगतना पड़ेगा।
पहले ही उसके परिवार को बहुत कुछ झेलना पड़ा है। बड़ी मुश्किल से उसके मामा ने मेरठ में उसके बाबूजी के लिए नौकरी तलाश ली है। उससे छोटी दो बहनें हैं। उनके लिए यह ज़रूरी है कि बाबूजी वहाँ जाकर नौकरी करें। यह तभी हो सकता है जब जो हैमिल्टन ने कहा है उसे मान लिया जाए।
बहुत देर तक माधुरी इसी दुविधा में फंसी रही कि क्या करे।


शिवप्रसाद और रमनलाल महेंद्र से मिलने आने के लिए तैयार हो रहे थे। तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। शिवप्रसाद ने जाकर दरवाज़ा खोला तो सामने स्टुअर्ट खड़ा था।
स्टुअर्ट हैमिल्टन के खास लोगों में से था। वह हैमिल्टन के काले कारनामों का साथी था।
स्टुअर्ट बिना इजाज़त लिए भीतर आ गया। बैठते हुए बोला,
"मिस्टर सिंह.... हैमिल्टन सर ने आपकी बेटी के लिए एक रिश्ता भेजा था। आपने अभी तक अपना फैसला नहीं लिया। सुना है सब छोड़कर मेरठ जा रहे हैं।"
"सही सुना है आपने। रही बात हैमिल्टन के भिजवाए रिश्ते की तो हम किसी दबाव में आकर अपनी बेटी की शादी नहीं करेंगे।"
"तो क्या अपनी बेटी को कुंआरी रखेंगे। आपकी बिरादरी में तो कोई उससे शादी नहीं करेगा।"
"ऐसा है तो कोई बात नहीं। मेरी बेटी बिन ब्याही रहेगी। ग्रैजुएट बनने का अपना सपना पूरा करेगी।"
रमनलाल और संतोषी भी बैठक में आ गए थे। स्टुअर्ट ने संतोषी की तरफ देख कर कहा,
"हैमिल्टन सर को नाराज़ करके जीना आसान नहीं होगा। फिलहाल मैं यहाँ यह कहने आया था कि कल संडे को सुबह ग्यारह बजे आपकी बेटी की शादी स्टीफन से होनी है। पास वाले चर्च में पहुँच जाना।"
स्टुअर्ट ने कमरे में मौजूद तीनों लोगों को घूर कर देखा। उसके बाद चेतावनी भरे लहजे में कहा,
"ये हैमिल्टन सर का आदेश है। इसे ना मानने का अंजाम बहुत बुरा होगा।"
अपनी बात कह कर स्टुअर्ट निकल गया। शिवप्रसाद और रमनलाल सन्न थे। केवल संतोषी के रोने की आवाज़ सुनाई पड़ रही थी।
शिवप्रसाद ने संतोषी को चुप कराते हुए कहा,
"रो मत.... मैं उसकी धमकी से डर कर अपनी बेटी की शादी नहीं करूँगा।"
संतोषी ने रोते हुए कहा,
"तो क्या करेंगे। उसकी बात ना मान कर मुसीबत में पड़ेंगे।"
"हमें मेरठ तो चलना ही था ना। कल सुबह की पहली बस से चले जाएंगे।"
रमनलाल ने शिवप्रसाद की बात का जवाब दिया,
"चलने को तो आज दोपहर को भी निकल सकते हैं। पर बात यह है कि उसके बाद जो होगा उसे कैसे झेलेंगे। मुझे नहीं लगता है कि उस हैमिल्टन के चंगुल से भाग निकलना आसान होगा।"
संतोषी ने अपने भाई की बात का समर्थन करते हुए कहा,
"भइया....यही बात तो ये नहीं समझ रहे हैं। माधुरी के साथ तो बुरा हुआ ही। अब हैमिल्टन की बात ना मान कर बाकी दोनों का भी जीवन बर्बाद कर दें।"

माधुरी रात भर सोंचती रही थी। अंततः वह इसी निर्णय पर पहुँची कि अब वह अपने परिवार को और अधिक मुश्किल में नहीं डालेगी। ‌वह अपना निर्णय सुनाने के लिए शिवप्रसाद के पास आई थी। मालती ने बताया कि सब लोग बैठक में हैं। जब वह बैठक में पहुँची तो स्टुअर्ट की चेतावनी उसके कानों में पड़ी। वह वहीं ठिठक गई। उसके बाद उसके कानों में अपने माता पिता के बीच हो रही बातचीत पड़ी। वह उसके बारे में बात कर रहे थे। अपनी माँ की फ़िक्र के बारे में जानकर वह तड़प उठी।
माधुरी बैठक में चली गई। उसे देख कर संतोषी चुप हो गई। शिवप्रसाद समझ गए कि उसने सब सुन लिया है। वह बोले,
"बिटिया तुम परेशान ना हो। कोई तुम्हारी शादी जबरदस्ती नहीं करेगा।"
माधुरी अपने बाबूजी के पास गई। उनके सीने पर सर रख कर बोली,
"मालूम है...मेरे बाबूजी कभी मेरी शादी जबरदस्ती नहीं कराएंगे। पर बाबूजी अम्मा का डर भी सही है। हैमिल्टन की बात ना मानने का मतलब है उसके अहंकार को ठेस पहुँचाना। वह बहुत ख़तरनाक है। कुछ भी कर सकता है।"
"तुम परेशान क्यों होती हो ? अपने बाबूजी पर भरोसा रखो बिटिया। मैं सब संभाल लूँगा।"
"आप पर पूरा भरोसा है बाबूजी। लेकिन मैं नहीं चाहती हूँ कि मेरी वजह से मेरी छोटी बहनों की भी ज़िंदगी बर्बाद हो।"
माधुरी की बात सुनकर संतोषी बोली,
"नहीं बिटिया... तुम्हें दुखी देखकर हम भी कहाँ सुखी रह पाएंगे। मैं ना तो तुम्हारी ज़िंदगी बर्बाद होते देख सकती हूँ ना तुम्हारी बहनों की।"
"अम्मा ये भी तो हो सकता है कि जैसा तुम कह रही थीं स्टीफन से शादी करके मेरे जीवन में अच्छा बदलाव आए। स्टीफन सचमुच अच्छा आदमी हो।"
शिवप्रसाद ने कहा,
"ये तुम्हारे जीवन को दांव पर लगाने जैसा है।"
रमनलाल जो अब तक चुप थे, बोले,
"शिव स्टीफन के साथ विवाह में अच्छा बुरा कुछ भी हो सकता है। पर हैमिल्टन को नाराज़ करने का मतलब मुसीबत मोल लेना ही है। तुम देख चुके हो। पहले भी कानून और समाज ने तुम्हारी सहायता नहीं की। इस बार भी नहीं करेंगे।"
रमनलाल की बात सही थी। शिवप्रसाद कोई जवाब नहीं दे पाए।