शान्तिपुरा - अंजू शर्मा राजीव तनेजा द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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शान्तिपुरा - अंजू शर्मा

अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए हम सब अपनी रुचिनुसार कोई ना कोई माध्यम चुनते हैं जैसे कोई चित्रकारी के माध्यम से अपनी बात कहता है तो अपनी वाकपटुता के ज़रिए अपने मन की भावनाओं व्यक्त करता है। इसी तरह कोई अभिनय के ज़रिए तो कोई अपनी लेखनी के दम पर अपने भावों को सबके सामने प्रकट करता है। कहने का मतलब ये कि हर कोई अपनी सहजता के हिसाब से अपनी शैली को चुनता है। मगर कई बार क्या होता है कि जब हम किसी एक तरीके द्वारा पूर्णरूप से अपने भावों को..अपने उद्गारों को व्यक्त करने में असमर्थ होते हैं, तब किसी अन्य शैली में, जिसमें हम आसानी से अपनी बात कह सकें, अपने विचारों को व्यक्त करते हैं। इसी तरह से अपनी बात कहने के लिए हमारे समय की सशक्त कवयित्री अंजू शर्मा जी भी अब कविताओं के अलावा कहानियों के माध्यम से भी अपनी..अपने मन की बात कहने का सफलतापूर्वक ढंग से आगाज़ कर चुकी हैं।

किस्सागो शैली में लिखा गया उनका उपन्यास "शान्तिपुरा" इस बात की तस्दीक करता है कि जिस सहजता से कविताओं पर उनकी कलम चलती है, उतनी ही सुगमता से ही वह कहानियों के माध्यम से भी अपनी बात कहती हैं। इस उपन्यास में कहानी है देश की राजधानी दिल्ली के एक छोटे से मोहल्ले 'शान्तिपुरा' और उसमें भी गली नम्बर 2 में किराए पर रहने वाले चंद निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों की। उनके आपसी सोहाद्र और भाईचारे की।

इसमें कहानी है बंटवारे के बाद पंजाब से आ बसी इस्सो मासी, उसके बीमार पति और उसके बच्चों की। उनके छोटे छोटे सुखों और हर दिन आने वाली नयी नयी दिक्कतों की। सुविधानुकूल जीने के साधन ना होने के बावजूद भी उनमें जीने का...आगे बढ़ने का जज़्बा है जो उन्हें हर हाल..हर परिस्थिति में जिलाए रखता है।

इसमें कहानी है इस्सो मासी के छोटे बेटे इन्दर की जो पेशे से पेंटर और प्लास्टर ऑफ पैरिस से मूर्तियाँ बनाता है और अपने छोटे कद की वजह से हीनग्रस्त हो अपनी ही दुनिया में मग्न रहता है। इसमें कहानी है बिगड़ैल बेटे 'बिल्ले' की जो चुपचाप एक ईसाई लड़की को ब्याह कर सीधे घर ले आता है। इसमें कहानी है एक नाकारा दामाद और छोटी छोटी सुविधाओं को तरसती बेटी की। इसमें कहानी है तमाम आशाओं और निराशाओं के बीच पनपते इन्दर और बानी के प्यार की..इकरार की..समर्पण की जो विपरीत परिस्थितियों के बीच भी उभर कर ही रहता है।

सधी हुई प्रवाहमयी भाषा में लिखे गए इस धाराप्रवाह उपन्यास के ज़रिए उन्होंने अंतर्जातीय विवाह, गरीबी, लगन, मेहनत, दुःख, संताप, हर्षोल्लास से युक्त आम निम्न मध्यमवर्गीय लोगों के जीवन का खाका खींचा है। सभी पात्र अपने आस पड़ोस के..परिचित से लगते हैं। एक बार पढ़ना शुरू करने के बाद आप इनकी कहानी में इस तरह रम जाते हैं मानों कोई खुमार सा आपके दिलोदिमाग पर शनै शनै अपनी पकड़ बनाता जा रहा हो।

पता नहीं इसे जल्दबाज़ी कहें या फिर लापरवाही कहें कि रचनाकार के लाख चाहने के बावजूद भी आजकल के प्रकाशक नुक्तों के प्रयोग से बच रहे हैं जो कि सही नहीं है। कुछ जगहों पर कुछ शब्द रिपीट से होते दिखें जिन्हें प्रूफ़ रीडिंग के समय दूर किया जाना चाहिए था। उम्मीद है कि इस ओर लेखिका तथा प्रकाशक ध्यान देंगे।

104 पृष्ठीय इस बढ़िया उपन्यास के पेपरबैक संस्करण को छापा है डायमंड बुक्स ने और इसका मूल्य रखा गया है ₹150/- ...आने वाले भविष्य के लिए लेखिका तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।