कवि मन जब कभी भी कुछ रचता है बेशक वो गद्य या फिर पद्य में हो, उस पर किसी ना किसी रूप में कविता का प्रभाव होना लगभग अवश्यंभावी है। ऐसा वो जानबूझ कर नहीं करता बल्कि स्वत: ही कुदरती तौर पर ऐसा होता चला जाता है। ऐसा ही कुछ मुझे महसूस हुआ जब मैंने गीता पंडित जी का उपन्यास "डार्क मैन'स बैड" पढ़ना शुरू किया। गीता पंडित जी से मेरा परिचय ब्लॉग के ज़माने से है। उस वक्त मेरे लिए उनकी पहचान एक नवगीतकार की थी। कई बार साहित्यिक गोष्ठियाँ में अक्सर उनसे मुलाकात हो जाया करती थी। बहुत ही मृदभाषी स्वभाव की इस लेखिका से जब भी मुलाकाद हुई, यही लगा कि इनसे काफी कुछ सीखा जा सकता है। इस उपन्यास को पढ़ते वक्त बहुधा ऐसा भान होता है मानों आप एक मीठी...सुमधुर कविता से रूबरू हो रहे हों। भाषा शैली ऐसी कि आप लगातार पढ़ने के बाद पूरा उपन्यास खत्म कर के ही उठें।
इस उपन्यास में कहानी है एक ऐसी कम पढ़ी लिखी युवती की जिसे उसका पति उसे बस भोग की ही सामग्री समझता है। उसके लिए उसकी कीमत एक मादा देह, एक सैक्स मशीन से ज़्यादा कुछ नहीं है। उसकी भावनाओं, उसके विचारों, उसके प्रेम, उसके स्नेह, उसकी उमंगों-तरंगों में बारे में जाने बिना हर रात वह उससे एक जानवर की भांति ट्रीट करते हुए खुद को संतुष्ट करता है।
अपनी पत्नी से औलाद के रूप में लड़का पाने के लिए वह एक के बाद एक करके पाँच बच्चे पैदा करता है, जिसमें शुरू की 4 औलादें लड़कियाँ है। इतने पर भी वो बस नहीं करता और अपनी बेटी की उम्र की एक कोठे वाली से संबंध कायम कर, उसी के साथ रहना शुरू कर देता है। तंग आ कर युवती अपने पति से किनारा तो कर लेती है मगर बच्चों को पालने की मजबूरी के चलते उसे अपने पति के घर और पैसे पर ही निर्भर रहना पड़ता है।
यह उपन्यास स्वयं अपने आप में पाठकों के समक्ष बहुत से सवाल उठाता है कि...
*क्या स्त्री महज़ भोग्या है?
*मादा शरीर के अलावा क्या उसका अपना कोई वजूद नहीं है?
*क्या सैक्स महज़ मर्द की ही मर्ज़ी से ही होना चाहिए?
*पति के रूप में स्त्री को एक सहचर मिलना चाहिए जो उसके साथ हर सुगम या दुर्गम रास्ते पर कदम से कदम, कंधे से कंधा मिला कर चल सके अथवा उसकी भूमिका एक दमनकारी, व्यभिचारी, अपनी मर्ज़ी थोपने वाले बलात्कारी पुरुष की होनी चाहिए?
इस उपन्यास के ज़रिए उन्होंने नारी की पीड़ा, उसके दुख, उसके आत्म सम्मान, उसकी मर्यादा, अशिक्षा,अवसाद सहित बहुत से मुद्दों पर सवाल उठाए हैं। पूरे उपन्यास की भाषा इतनी सरल, इतनी सुमधुर, इतनी कवितमयी है की एक सिटिंग में ही खुद को पूरा पढ़वा डाले। उम्दा क्वालिटी के इस संग्रहणीय उपन्यास के हार्ड बाउंड संस्करण को छापा है शलभ प्रकाशन ने और इसका डिस्काउंटिड मूल्य रखा गया है ₹250/- (हालांकि किताब पर इससे काफी ज़्यादा मूल्य अंकित है) जो कि किताब की क्वालिटी और कंटैंट के हिसाब से बहुत ही जायज़ है। आने वाले भविष्य के लिए लेखिका तथा प्रकाशक दोनों को बहुत बहुत शुभकामनाएं।