"भारत ना कभी हारा था ना कभी हारेगा"
कोरोना से लड़ने की जब भारत ने ठानी थी,
मैंने भी लिखी कविता, जो याद जुबानी थी।
कोरोना तू मिला सबसे पहले चीन में, बना नाइन्टीन में,
धीरे से पहुँचा इटली, जर्मनी,अमेरिका और स्पेन में।
कोरोना तेरे कोहराम ने, पूरे विश्व को सताया,
सुपर पावर अमेरिका भी, घुटने टेकता नजर आया।
कहीं से कहीं होता हुआ, तू आ पहुँचा केरल में,
पहले था तू आरत में, अब जा पहुँचा पूरे भारत में।
भारत को देख संकट में, मोदी जी थोड़ा घबराए,
पुलिस, नर्स और डॉक्टर, भारत में मुस्तैद करवाए।
जप तप को आधार बनाकर, एक युक्ति सब को समझाई,
22 मार्च,20 को कोरोना योद्धाओं के लिए ताली थाली बजवाई।
देख भारती को संकट में, मोदी जी की आँखें भर आई,
25 मार्च,20 को भारत में, सम्पूर्ण लॉकडाउन लगाई।
इस सम्पूर्ण लॉकडाउन में, मजदूरों पर आफत आई,
शहरों से हुआ पलायन, जनता भी घबराई।
घर गुलजार, शहर सूने, बस्ती में कैद हर हस्ती हो गई,
आज फिर जिंदगी महंगी और दौलत सस्ती हो गई।
भारत कोरोना से कर रहा था हाथापाई,तब कुछ भाईयों ने की लापरवाही,
जिन्होंने काबू होते संक्रमण की अचानक रनरेट बढ़ाई।
पुलिस प्रशासन ने त्याग और बलिदान दिया,
लुटा कर प्यार जनता को, देशप्रेम का संदेश दिया।
सीमित साधनों से डॉक्टरों ने कमाल किया,
त्याग के परिवारों को काम बेमिसाल किया।
दिन-रात कष्ट सहा,रुकने का ना नाम लिया,
देखे बिना जाति धर्म, सबका हाथ थाम लिया।
भारत की जनता ने मोदी जी का साथ दिया,
संयम औरअनुशासन से जंग को आसान किया।
भारत ना कभी हारा था ना कभी हारेगा,
मोदी जी ने एलान किया, मंगल से संकट तारेगा।
5 अप्रैल,20 को, भारत ने कृतज्ञता का दीप जलाया,
मंगल ही मंगल हो गया, कोरोना दम तोड़ता नजर आया।
पीढ़ियां पढ़ पाएंगी इस दिन को, संसार डगमगाया,
पावन 'प्रकाश पर्व' पर, एकजुट भारत जगमगाया।
'दीप' ने दीप जलाकर, कविता लिखने की ठानी थी,
मैंने भी लिखी कविता, जो याद जुबानी थी।
कृतज्ञ दीप जलाकर, कोरोना योद्धाओं का गौरव बढ़ाया,
देख साहसिक कार्य इनका,रोम-रोम मेरा हरसाया।
मोदी जी ने 14 अप्रैल, 20 को, बाबा साहेब को नमन किया,
भावुक हृदय से 3 मई तक, लॉकडाउन बढ़ाने का मनन किया।
लॉकडाउन की सीमा बढ़ाकर,सबका साथ मांँगा,
'सप्तपदी' विजय रूप है, कोरोना का टूटेगा ताँगा।
मेरे जीवन में 'सप्तपदी' एक नई कहानी थी,
बची रहे मानवता, मोदी जी की सारी बातें अपनानी थी।
हिम्मत, संयम और अनुशासन में रहकर आगे बढ़ने की ठानी थी,
मैंने भी लिखी कविता जो याद जुबानी थी।
जगदीप सिंह मान 'दीप'©
________________________________
कविता 2
"कल ही किनारे आएंँगे"
अच्छे दिन आएँगे,
कल ही किनारे आएँगे,
वक्त पर झिलमिल सितारे आएँगे,
देश में फिर दिलकश नजारे आएँगे,
कोरोना मेहमान है थोड़े दिनों का,
ये चायनीज माल है थोड़े दिनों का,
जब गम नहीं रुका यहाँ तो कोरोना की औकात क्या है?
कर यकीं वक्त का अच्छे दिन आएंँगे।
कुछ दिन रुक गया तो क्या हुआ?
फ़िक्र मत कर,हिम्मत कर अच्छे दिन आएंँगे।
शक नहीं है कुदरती कानून पर,
लड़ यहीं,रुक यहीं पर, अच्छे दिन आएंँगे।
जिंदगी में गम मिले तो झेल जा,
एक दिन सुख ढ़ेर सारे आएँगे,
कश्तियाँ तूफान में हैं, आज तो
"धीरता" धर,कल ही किनारे आएंँगे।
मान ले "मन की बात" मनुज मानवता की सोच ले,
देखकर मंजर रुक मकां में, अच्छे दिन आएंँगे।
जगदीप सिंह मान 'दीप'©
______________________________
कविता 3
"कोरोना योद्धाओं को सलाम"
पुलिस प्रशासन ने कमाल किया, देश को संभाल लिया,
मुंँह पे रूमाल रखकर, गानों में धमाल किया,
लुटा कर प्यार जनता को, घरों में रहने का संदेश दिया,
'दीप' ने पुलिस की बेमिसाल देशभक्ति को सलाम किया।
सीमित साधन होते हुए भी डॉक्टरों ने, होशियारी से काम किया,
सारे कष्ट सहते रहे, कोरोना संक्रमण को विराम दिया,
देखे बिना जाति धर्म, सबका हाथ थाम लिया,
'दीप' ने डॉक्टरों की मानव सेवा को सलाम किया।
सफाई सेवकों ने कोरोना युद्ध में अनूठा काम किया,
उन्होंने देश सेवा में भारत का दुनिया में नाम किया,
'दीप' ने भी सेवकों के त्याग को सलाम किया।
भारत की जनता ने धीरज से काम लिया ,
मोदी जी की सारी बातों को मान लिया,
दो गज की दूरी अपनाकर, कदमों को घरों में थाम लिया,
'दीप' ने भी जनता के अनुशासन को सलाम किया।
थाली,ताली बजाकर कृतज्ञता का दीप जलाया था,
कोरोना योद्धाओं का गौरव बढ़ाकर, तन मन मेरा हरसाया था।
देश सेवा और मानव सेवा के लिए,
कोरोना योद्धाओं को सलाम । जगदीप सिंह मान 'दीप'©
_______________________________
कविता 4
"दीप से दीप जलेगा"
देश पर गम के बादल छाए हुए हैं
कोरोना से सब घबराए हुए हैं।
दर्द देश का बढ़ता जा रहा, दिन हो रहे भारी
ज्योतिष, अध्यात्म की गाड़ी में सब, करने लगे सवारी।
मोदी जी करें एलान, समूचा भारत खड़ा हो गया सीना तान
ऋषि मुनियों की भारत भूमि, अध्यात्म, तप इसकी पहचान।
लक्ष्य की लौह से, अस्तित्व का दीप जलाना है
मंगल ही मंगल होगा, मंगलाचरण गाना है।
बड़े-बड़े रोगों पर यहाँ,जप तप और योग से काबू पाया है
बाबा रामदेव ने योग में, भारत को विश्वगुरु बनाया है।
5 और 4 मिलकर बना 9 अंक मंगल का, नौका पार लगाएगा
9बजे 9मिनट,हर भारतवासी दीप जलायेगा।
दीप से दीप जलेगा, कोरोना पर होगा प्रहार
ॐ के उच्चारण में, नई ऊर्जा का होगा संचार।
अंधकार मिट जाएगा, मानव जीवन पड़ा अपार
नई किरण, नया सवेरा, अच्छा स्वास्थ्य भारत को स्वीकार।
जगदीप सिंह मान 'दीप'©
_______________________________
कविता 5
"मान जा कहना मेरा"
संकल्प का दीप जला लें, कदम घर में टिका ले,
लक्ष्मण रेखा को पार ना कर, मान जा कहना मेरा।
वह तुझे समझाकर जो कराए वही कर,
सोशल डिस्टेंसिंग अपना ले, मान जा कहना मेरा।
रह गई कोई कमी शायद तेरे प्रबंध में,
'सप्तपदी'से जान बचाने, मान जा कहना मेरा।
सप्तपदी को साधना बहुत टेढ़ी खीर है,
बुजुर्गों की सेवा ही स्वर्ग है, मान जा कहना मेरा।
है गरीब की सेवा बड़ी, इस आफत के दौर में,
जान है तो जहान है,सेवा की ठान ले,मान जा कहना मेरा।
नौकरी से किसी को ना निकालो,संकटों के दौर में,
आरोग्य सेतु अपना लो, मान जा कहना मेरा।
सोचा होगा कोरोना शायद जीवन मिटा देगा तेरा,
यह वहम मन से मिटा ले, मान जा कहना मेरा।
काढ़ा पीकर शक्ति बढ़ा ले, रोज योगाभ्यास कर,
नौका भंँवर में किनारे लगा ले,मान जा कहना मेरा।
दुख की निशां बीतेगी, राग मल्हार गाएंगे,
पतझड़ मौसम बीते, फूल हजारे आएंगे, मान जा कहना मेरा।
जगदीप सिंह मान 'दीप'©
कवि परिचय-
जगदीप सिंह मान
शिक्षा- एम.ए.हिन्दी, बी.एड. NET
हिन्दी शिक्षक राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, भारत।