मकाम आया हैं।
आधा खुद को घीस कर तुमको पूरा पाया है।
यह फलसफा जिंदगी में यूं ही तो नहीं आया है।।
कुछ शुरुआत ही तो की है कहां हमें गुमान है ??
बरसो चले इस पथ पर तब यह मकाम आया है।।
हौसला टूटने नहीं दिया और गहरे जख्म खाए है।
यूहीं ना थोड़ी ही हम इतने दूर चलकर आए हैं।।
जुगनू होकर तो चमकते हो इसमें नई बात क्या है?
पत्थरों से खुद को घीसकर ये चमक को पाया है।।
कारवां लेकर चले सब,खुद को अकेला चलाया है।
ये जिंदगी का मकाम हमने ऐसे ही थोडी पाया है।।
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मेरा इरादा न था ।
तुमसे मिलने का मेरा कोई वादा न था।
इतने करीब आने का मेरा इरादा न था।।
बदले बदले से लग रहे हैं ये नैना जो तेरे।
इनमे डूब जाने का तो मेरा इरादा न था।।
क्या कहूं ?? कैसे कहूं? जबान उठती नहीं।
यूंही मेरा निशब्द होने का मेरा इरादा न था।
कुछ तो कसूर तुम्हारा है और कुछ मेरा भी।
ये बेवक्त थम जाने का तो मेरा इरादा न था।।
जज्बात है जो बह रहे इन मुश्किल राहों में।
यूंही ही रुठ जाने का तो मेरा इरादा न था ।।
तुमसे दूर जाने की बहुत कोशिश की मैंने ।
हर बार यूहीं हार जाने का तो इरादा न था।।
ठन गई ठन गई बात कुछ तो है जो ठन गई।
तेरे पास लौट आने का तो मेरा इरादा न था।
वजूद मेरा अब टूट रहा तेरे सूखे अश्कों में,
"बेनाम" टूट जाने का तो मेरा इरादा न था।।
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आता हूं मैं ।
बिछड़कर तुझसे अक्षर टूट जाता हूं मैं,
बिना बात के तो यूहीं आंखे भीगता हूं मै।
ये मेरे सपनों की शेहजादी क्यों खफा हो??
तेरे बिना एक पल भी कहां चेंन पाता हूं मै।
अपने बजुद से कोन बिछड़ना चाहता है।
ये वक्त और घर के कारण दूर जाता हूं मै।।
मानता हूं दूर हूं तुमसे कुछ वक्त की खातिर।
रोज सपनों में आकर मिल ही जाता हूं मै।।
तेरे ही आंखो मैं अक्षर खुदको बसाता हूं मै।
अपनी जान तुझे बेइंतेहा चाहता भी हूं मै।।
कब तलक उसके लिए मुझसे रूठोंगी ??
तेरे बिना एक पल भी नहीं रह पाता हूं मै ।।
मानता हूं गलतियां भी कुछ रही होगी मेरी।
"बेनाम" फिर दिल से मनाने आ जाता हूं मै ।।
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मेरी कहानी का अधूरा सा ख्वाब बन गई।
जिंदगी ही पूरी सवाल या निशान बन गई।।
कुछ तो गलत भरम में हम रहे थे अबतक।
और कहानी जख्मों से भरी जहान बन गई।।
मालूम होता तो कभी सजदा न करते तेरा,
मेरी हलक में अटकी हुई तुम जान बन गई ।।
.... ✍️ By.
Er. Bhargav Joshi