Lout aao tum - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

लौट आओ तुम... ! - 2

लौट आओ तुम... !

ज़किया ज़ुबैरी

(2)

आपा भी बीबी के साथ ज़मीन ही पर सिकुड़ कर बैठ गईं। साबजी के कमरे का गहरा लाल दहकता हुआ दुल्हन के रंग का मोटा गदीला क़ालीन ! आपा को आज महसूस हो रहा था कि जैसे उस क़ालीन ने उनको कितनी इज़्ज़त बख्श दी है कि वे आज बीबी के साथ वहां बैठ सकी हैं।

“यह क़ालीन कब बदला गया?” आपा आज बहुत दिनों बाद अपने शौहर के कमरे में दाख़िल हुई थीं।

“आप जब बाहर-गांव गई हुई थीं।”

“यह रंग किसने चुना? ”

“मैंने...! ”

आपा चाहते हुए भी आगे कुछ ना पूछ सकीं। क्योंकि वह तो विदेश गई हुई थीं तो उनको क्या हक़ यह मलूम करने का ?

“मैं सोचती हूं मै भी इसी रंग का क़ालीन डलवा लूं अपने कमरे में। ”

“आपके कमरे में यह रंग अच्छा नहीं लगेगा। ”

“क्यों...?”आपा ने पूछा

“गहरा लगेगा ” बीबी ने बड़े आत्मविश्वास से जवाब दिया।

“अच्छा! ...तो फिर क्या अच्छा लगेगा? ”

“हल्का नीला रंग... बीबी ने इंटीरियर डेकोरेटर की तरह बड़े ठस्से से राय दी। ”

आपा जिन्होंने इंटीरियर डिज़ाइनर की डिग्री ली हुई है वह भी फ़र्स्ट डिवीज़न में... वे केवल हल्के से मुस्कुरा सकीं...

भाईजान के चेहरे के रंग की ज़िम्मेदार तो वह हो सकती है... पर अब तो उनके कपड़ों के रंग, टाई के रंग, कमरे के दरो-दीवार के रंग सभी बीबी ही चुनती है...

“आपा अब जाकर सो जाइये। मैं साबजी को जगाने जा रही हूं अब वे अपने कमरे में आकर सोएंगे। ”

आपा सोचने लगीं जब वे दुल्हन बन कर आई थीं तो दूल्हा बने हुए ‘उन्होंने’ गोद में उठाकर लाल लाल गुलाब की बिखरी हुई पत्तियों पर इस तरह प्यार से सम्भाल कर रखा था कि कहीं दुल्हन को पंखड़ियों से चोट न लग जाए...आपा ने बिखरे वजूद को समेटा और हिम्मत करके शरमाते हुए कहा ‘’आज मैं भी यही सो जाती हूं’’।

बीबी चौंक गई फिर सम्भल कर बोली, “आपको रात को नींद कैसे आएगी? ”

“क्यों? ” आपा ने मासूमियत से पूछा ।

“ख़र्राटे भूल गईं साबजी के...! ”

“अरे हां... मैं चली अपने कमरे में। ”

आपा ने जाते ही अपना कमरा देखा कि क्या इसमें नीला क़ालीन अच्छा लगेगा? वे बीबी से सहमत हो गईं, जबकि उन्होंने क्रीम कलर का इतना ख़ूबसूरत क़ालीन बिछाया हुआ है।

आपा ने बिस्तर में बैठकर किताब हाथ में ले ली। उनकी आंखें तो किताब पर थीं पर ध्यान न जाने कहां भटक रहा था। अचानक सीढ़ियों पर चरख़-चूं की आवाज़ से आपा का ध्यान उस तरफ़ को हो गया। घर की देखभाल न होने के कारण फ़्लोर-बोर्ड के अंजर-पंजर ढीले हो चुके थे। वैसे तो आपा के भी अंजर-पंजर वैसे ही होते अगर मुट्ठी भर भर गोलियां न खा रही होतीं। आपा कोशिश करतीं कि वे भी बीबी ही की तरह तेज़-तेज़ चला करें। मगर वैसे लचक- लचक कर कूल्हों को गोल गोल घुमाकर तो वे शायद ही चल पातीं। कहते हैं कि बचपन में आपा रेस में हमेशा फ़र्स्ट आतीं थीं। अब जिस रेस में वे दौड़ रही हैं उसकी जीत तो... जीती हुई हार बन गई है। उसका जज तो केवल एक आंख से एक ही ओर देख पाता है, उसकी गर्दन अकड़ कर जम गई है एक ही बिंदु पर।

बिस्तर से निकल आपा हॉल में आईं और फ़ौरन पलट गईं... साबजी की सवारी ऊपर आ रही थी...। कंधों पर चढ़ कर - बीबी के। कहीं बीबी ने मुझे देख तो नहीं लिया होगा... ? भगवान करे ना देखा हो...! वे लोग ये न समझें कि मैं जासूसी करने लगी हूं। मैं ऐसा कभी नहीं कर सकती।

आपा का जी चाहा मालूम करें कि वे स्वयं क्यों नहीं ऊपर चढ़ सके। मगर किससे पूछें...? आपा अपनी लम्बी गर्दन सीने तक झुकाए जैसे सीने में दिल ढूंढ रही हों... उसकी तो शायद किरचियां भी भईजान को चुभ रही होंगी। वे वहीं टहलने लगीं। भाईजान के कमरे से आवाज़ें आती रहीं। आपा चाहते हुए भी कमरे के भीतर न जा सकीं। आज बार बार गुलाब की सेज उन्हें आवाज़ देती रही।

बीबी के कमरे की खिड़की खुली थी। आपा को उधर से आता हवा का ठंडा झोंका अछा लगा और वे उसी तरफ की खिड़की से हवा खाने चली गई। कितनी रसीली हवा थी। गार्डन से मोतिया के सफेद फूलों की ख़ुशबू लिये चली आ रही थी। आपा को महसूस हुआ जैसे गुलाब की लाल पंखड़ियों का रंग उड़ गया हो, बस ख़ुशबू रह गई हो। आपा का जी चाहा वे इसी कमरे में सो जाएं मगर बीबी से पूछा तो है नहीं कि वह आज कहां.....?

“अरे... आपने यह तो मेरे जैसी ही मैक्सी पहन ली है। बम्बई से आई है ना...? ”

“नहीं। हैरड्स से। ”

“ये किस सहर का नाम है? ” बीबी ने पूछा।

“दुकान का नाम है। ”

“साउथहॉल में है क्या? ”

“नाइट्स्ब्रिज में। ”

बीबी को ऐसा महसूस हुआ कि आपा तो मुझसे अधिक सयानी होती जा रही हैं। “अच्छा मैं साबजी से पूछ लूंगी आप तो न जाने क्या क्या नाम ले रही हैं।’’

“आप ये बताइये...। क्या पांच पौंड का नोट होगा।? ”

“इस वक़्त नोट की क्या आवश्यकता आ पड़ी...? ”

“भाईजान की नजर उतारनी है। उनकी तबीयत ठीक नहीं रहती ”।

हाथ की चौड़ी सी खुरदुरी गहरी खुदी हुई क़िस्मत की लाइन वाली हथेली पर सात लाल मिर्चें रखे खड़ी थी। आपा का पर्स उठा लाई और मचलती हुइ नीचे चली गई।

आपा मौक़ा पाकर उनके कमरे में गई की तबीयत मालूम करें। वे आंखें बंद किये लेटे हुए थे।

“कौन है...। बीबी...? ”

“जी साबजी...। आपा के मुहं से बीबी के ही अंदाज़ में आवाज़ निकल गई। ”

“ज़रा जूते उतार दो और ड्रेसिंग रूम से चप्पल भी ला दो। ”

“आपा ख़ामोशी से जूते उतारने लगीं...। ”

“अरे आज तूने पैरों को चूमा नहीं ?”

आपा ने चुपके से अपने रसीले होंठ पैरों पर रख दिये और ख़ामोशी से ड्रेसिंग रूम की तरफ चली गई - चप्पल लाने।

नाक में मिर्चों की झाल भरी जा रही थी। वे डरीं कहीं खांसी न आ जाए। बीबी के क़दमों की चाप क़रीब आती जा रही थी और आपा के क़दम कमरे से दूर भाग रहे थे।

जल्दी से बाथरूम में घुस जाना चाहती थीं कि पीछे से आवाज़ आई।।

“आपा मैं जल्दी से बाथरूम हो लूं? आप तो लम्बे टैम के लिए जाती हैं। ”

“नहीं मैं जल्दी निकल आउंगी ,” कहते हुए आपा ने बाथरूम का दरवाज़ा बंद कर लिया और बीबी ही की तरह जल्दी से बाहर आ गईं। बीबी ही की तरह कुर्ता भी पैजामे में खुंसा रह गया था। हालांकि उनकी आदत थी बाथरूम में बैठ कर मैगज़ीन पढने की।

“आप तो आज मेरी तरह तीन ही मिनट में बाहर आ गई...! ”

“अब तो तुम से ही जीना सीखना होगा। ” आपा ने सांस रोककर अंदर ही अंदर सोचा और अपने कमरे की ओर चली गईं। उन्होंने देखा ही नहीं कि बीबी किधर को गई। शायद वे देखना भी नहीं चाहती थीं।

जो न देखा जाए उसके लिये यह तो सोचा जा सकता है कि शायद मैं ही ग़लत हूं पर अगर देख लिया तो जो दर्द होगा उसकी दवा कहां से लाएंगी...? इस लिये बहुत सी बातों को देखने समझने या मालूम न करने ही में भला है... मन को धीरज देते रहना चाहिए बस... जैसे गरमी से चिटख़ती हुई मिट्टी पर पानी डाल देने से कुछ समय के लिए भाप सी उठती है दरारें बंद हो जाती हैं सोंधी सी महक भी उठने लगती है पर फिर जैसे ही हालात बदलते हैं मिट्टी चिटख़ने लगती है... ख़ुशबू भी ख़त्म हो जाती है... केवल दरारें ही रह जाती हैं...!

साबजी के कमरे का दरवाज़ा धीरे से बंद हुआ, आपा चौंकी पर स्थिर बैठी रहीं। सांस भी रोक ली क्योंकि वे जानना नहीं चाहती थीं कि बीबी ने साबजी के कमरे का अंदर से दरवाज़ा बंद कर लिया है या अपने कमरे की ओर आने वाली है...? बीबी और आपा का कमरा आमने सामने ही है। सेज की पत्तियां सूखते ही आपा का कमरा अलग कर दिया गया था कि ‘उनको’ किसी के साथ सोने से नींद नहीं आती, आपा के हिस्से में कोने वाला छोटा सा कमरा आया था और कमरे से बाहर शावर-रूम जिसमें हिलना भी कठिन होता। हर चीज़ की तरह उस शावर-रूम की साझेदार भी बीबी बन गई थी।

आपा बीबी की राह देखते देखते बैठे बैठे ही सो गईं। टी.वी. चलता रहा। टी.वी. की पीली पीली हिलती हुई रौशनी आपा के मुंह पर चमकती रही... आपा सोती रहीं। उनको आदत हो गई थी हर हाल में आंखें मूंद लेने की।

आपा चाय पी लीजिये। बीबी के बालों पर पानी के मोती जैसे क़तरे चमक रहे थे आंवले और शिकाकाई की महक का भभका पूरे कमरे में फैल गया था। आपा ने अपनी बड़ी-बड़ी भारी पलकों के साथ आंखें खोलीं तो देखा कि बीबी बोन चाइना का मग उनके मुंह के सामने कर के ऐसे टेढ़ी होकर खड़ी हो गईं जैसे बॉलीवुड का विज्ञापन बन गई हों। केवल अलापने की कमी रह गई थी। आपा ने मग पकड़ा तो उनके हाथों की ठंडक से मग भी ठंडा हो गया था और हाथ कांप रहे थे।

“आपा आपकी नींद पूरी नहीं हुई? आंखें कसी-कसी और आप थकी-थकी लग रही हैं। मग मेज़ पर रख दूं?

“ऐसा नहीं है। मैं बराबर सो ही तो रही हूं...! ”

“आपका नाश्ता लगा दूं ? आ जाइये, मैं भी करने जा रही हूं।... आज गरम पहन कर बाहर निकलिएगा हवा छूटी हुई है।... मुझे भी भाईजान का नुस्‍खा लेकर दवा लाने जाना है।” सुबह होते ही बीबी ने अपनी पूरे दिन की दिनचर्या का बिगुल बजा दिया।

*******

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED