ईश्वर चुप है
नीला प्रसाद
(2)
‘ढूंढिए न, जरूर मिल जायेंगे’, वह रट लगाए रही। इसी बीच पापाजी का फोन आया। वे दिल्ली पहुंच गए थे और किराएदारों वाले हिस्से में चाय पीने को रुक गए थे। फिर अपने घर चले जाते, जहां सफाई वगैरह का काम किराएदारों ने करवा दिया था। रंजना फोन उठाकर रोने लगी, कुछ बोल ही नहीं पाई। मिसेज शर्मा ने फोन उसके हाथ से लेकर पापाजी को सारी बात बताई। वे अपने बंधे सामान को जस - का - तस वापस टैक्सी में रख, मम्मीजी और मान्या के साथ स्टेशन की ओर चल दिए। बिना रिजर्वेशन अगली ट्रेन में किसी तरह बैठ, हर अगले स्टेशन से फोन पर पता करते कि मनमोहन मिला या नहीं, तीसरे दिन जब पहुंचे तो बदहवासी चेहरे पर पुती हुई थी।
पापाजी चल चुके हैं और मेरे पास आ रहे हैं− इस खबर ने ही रंजना को बहुत राहत दी थी। रात भर पड़ोसी साथ बैठे रहे। कितने अच्छे थे वे लोग! उसने अपने लिए खाना नहीं बनाया, पर पड़ोसियों के घर से ढेर सारा खाना आकर जमा हो गया था। उससे कुछ खाया नहीं गया। सब कहते रहे - ‘भगवान को याद करो, वह सब अच्छी करेगा’। वह तहेदिल से भगवान को याद करती रही। कितनी तो मनौतियां मानीं। उसे लगा जैसे भगवान उससे नाराज हैं, तभी तो उसे ये दिन देखना पड़ा। क्या भगवान इसीलिए नाराज हो गए थे कि अपने सुख में वह उन्हें भूल गई थी? न व्रत -उपवास करती थी, न रोज पूजा। मां या सास के साथ मंदिर जाती भी थी तो बस हाथ जोड़े खड़ी रहती थी - कोई खयाल, कोई प्रार्थना, भक्ति का कोई भाव या ईश्वर की उपस्थिति का कोई अहसास उसके अंदर जगता ही नहीं था। पर पहले भगवान की उपस्थिति को लेकर मन में कोई शंका नहीं थी। कुछ मांगा भी नहीं कभी। ईश्वर थे, रंजना भी थी और दुनिया में सब ठीक था। पढ़ाई में अच्छी थी, तो नाक - नक्श, स्वास्थ्य से भी। खुश रहती थी और हंसती हुई पढ़ाई के साथ घर के कामों में लगी रहती थी। कोई फिक्र, न चिंता। भगवान अपनी जगह खुश, वह अपनी जगह। ग्रैजुएशन करते वक्त ही शादी तय हो गई। बहुत अच्छी शादी हुई। इतने अच्छे स्वभाव के, सुंदर, लंबे, गोरे, हर वक्त हंसते रहने वाले पति मिले। वैसे तो वे कोलियरी में क्लर्क थे - वह भी पिता के वी.आर.एस ले लेने के बाद उनकी जगह लगे हुए - पर ससुराल में पैसा ही पैसा था। ससुरजी से बड़े दोनों भाई विदेशों में रहते, होटलों में शेफ वगैरह का काम करते थे और वहां से पैसा भेजते रहते थे कि इंडिया में कोई बिजनेस चले। मुनाफा बढ़ता - बंटता रहे। शादी के बाद पांच ननदों की इकलौती भाभी बनी। इतना प्यार करने वाली ननदें, इतनी केयर करने वाली सास। पढ़ाई पूरी करने वह शादी के चौथे हफ्ते ही वापस मायके चली गई थी। लगभग एक साल तो ससुराल से मायके, मायके से ससुराल करते बीता। फिर फाइनल एग्ज़ाम के पहले पढ़ाई और एग्ज़ाम देने के लिए फिर से कुछेक महीने मायके रहती रही। फाइनल एग्ज़ाम देकर ससुराल आई तो चौथे महीने ही प्रेग्नेंट हो गई, परिणाम यह कि कुछ महीनों बाद फिर से मायके। ऐसे में पति के साथ कुल दो साल ही रह पाई थी इस घटना से पहले। पहली बच्ची को संभालना, फिर दूसरी को। इस कदर व्यस्त हो गई थी वह! मम्मीजी कहती तो नहीं थी पर वह अपना फर्ज समझती थी कि घर के कामों में हाथ बटाए, इसीलिए अकसर बेटी को उनकी गोद में डाल रसोई में लग जाती। फिर अपना भी नहाना - धोना, घर आयों की देखभाल।। वह पूजा घर में जाकर भगवान को सर नवा भर आती, मम्मीजी जरूर रोज लंबी पूजा करती थीं। वैसे भी पति के आने का समय हो जाता तो मम्मीजी मुस्कराती हुई टोक देतीं।
’काम छोड़, तैयार होकर कपड़े बदल ले। मनमोहन के आने का समय हो गया। वह भी तो देखे मैंने उसके लिए कितनी सुंदर और होनहार बहू चुनी है− जैसी सुघड़ -सुंदर, वैसी ही मीठे स्वभाव की’।
पति आते तो उनकी जिद रहती कि रंजना सामने ही बनी रहे। साथ घूमने चले, साथ ही खाना खाए। सास खुशी - खुशी उनकी हर जिद पूरी करने की इजाजत दे देतीं। मनमोहन उनका इकलौता लाडला बेटा था। उसकी खुशी के लिए वे कुछ भी करने को तैयार रहती थीं। तीसरे दिन सास -ससुर के पहुंचने तक तो वह जाने किन - किन भगवान से, क्या - क्या बोल चुकी थी, कितने रोने रो चुकी, मनौतियां मांग चुकी थी। अपने उन गुनाहों की− जिनका उसे पता तक नहीं था− क्षमा मांग चुकी थी। मम्मी - पापा आए तो वह मम्मीजी के गले लग ऐसे रोई कि उसका तो रोना ही न थमे। सास उसे अपनी बेटियों से ज्यादा प्यार करती रहीं। उन्हें बेटी - दामादों से ज्यादा प्यार नहीं पर अपना बेटा – बहू उन्हें हमेशा दुनिया में सबसे खास लगते रहे। सगी बेटियों को उन्होंने उतना मान न दिया, जितना उसे। उस दिन सास के गले लगकर रोती बहू का दुख न सास से देखा जा रहा था, तो बहू से सास का। उन दोनों को एक -दूसरे का दुख खाए जा रहा था। फिर उसके अचेतन में शायद दूसरी बातें भी कहीं घूम रही होंगी, कि जैसा पंजाबियों में होता है, कहीं न उसका घर में आना ही अशुभ मान लिया जाए, उसे घर से निकाल, वापस मायके भेज दिया जाए, संपत्ति से वंचित कर दिया जाए.. ये सब बातें पड़ोसियों के मुंह से टुकड़ों - टुकड़ों में, पिछले तीन दिनों से लगातार सुनती जो आ रही थी। पर उस समय प्रकट तो मन में बस यही था कि किसी तरह पति मिल जाएं, चाहे किसी भी तरह.. गोताखोर बार - बार अंदर गए कि अगर डूब गए होंगे या किसी ने धक्का दे दिया होगा और लाश दूर निकल गई होगी, तब भी शरीर तो मिल जाएगा.. पर नहीं। मनमोहन नहीं मिले, तो नहीं ही मिले। उनकी लाश नहीं मिली तो सबों ने मान लिया कि वे जिंदा हैं। तब सबों ने दूसरे ऐंगल से सोचना शुरू किया। किसी बिजनस राइवल ने अगवा किया होता तो रैनसम के लिए कॉल आती। पर फोन क्यों नहीं आ रहा? लोग अटकलें लगाते, फिर चुप हो जाते। कोल ट्रांसपोर्टरों के बीच खूब राइवलरी रहती है न! होड़ रहती है कि दूसरे को हटा दें रास्ते से और सारा बिजनस खुद ही ले लें। जो ठेकेदार ये काम लेते हैं वे तो ये सब करते ही रहते हैं। किसी को भी मरवा दिया या अगवा करके, अक्षम कर दिया। शरीर को कोई हानि नहीं पहुंचाई, तब भी छोड़ा तब, जब वह उनके बिजनस के बीच न आने की गारंटी दे दे। तो उनके भी ट्रक चलते थे - पापाजी के जो भाई ऑस्ट्रेलिया में रहते थे, उन्होंने ट्रक खरीदने को पैसा भेजा था। मुनाफे में उनका भी हिस्सा जाता था। पापाजी ने कहा कि ठीक है, हम ये धंधा छोड़ देंगे पर पहले हमारा बेटा वापस मिल जाए। जिन लोगों पर शक था वह पुलिस ऑफिसरों का नजदीकी परिवार था, इसीलिए पुलिस इनीशियल खोज - बीन के बाद पीछे हट गई। पूरे मन से मदद नहीं की। जांच से छुटकारा पाने को जल्दी ही कह दिया उन्होंने कि तुम्हारा बेटा मारा जा चुका है। पापाजी ने कहा कि मारा जा चुका है तो फिर लाश दिखाओ.. पूरा शरीर नहीं, तो कुछ तो दिखाओ। पर न उन्होंने लाश दी, न खोजने में मदद की। फटाफट डेथ सर्टिफिकेट दिलवा दिया कि अब कंपनी से बात करो, अपनी बहू को उसकी जगह नौकरी पर लगवा लो.. पर वे सब तो उस समय इस हालत में थे ही नहीं कि नौकरी के लिए ऐप्लीकेशन दें। रंजना और मम्मीजी की एक ही रट थी - वह जिंदा है, उसे ढूंढकर लाओ। मम्मीजी ने कहा कि मेरी बहू न चूड़ियां तोड़ेगी, न सादे कपड़े पहनेगी। क्योंकि मेरा बेटा आज न कल, वापस आएगा ही।
घर में सन्नाटा छा गया। रंजना को देख-देखकर सास-ससुर को बेचैनी होने लगी। सास की आंखों के आंसू, रंजना को अपना अपराध लगते। बच्चियों की किलकारियां सबों को रुलाने लगतीं। क्या करें, क्या न करें! भविष्य जानने की चिंता, मोहन की खबर जानने की चिंता, पुलिस के पास से मिली नाकामी.. ये सब उन्हें इलाके के पंडितों के सामने पटक गई। मनमोहन और रंजना की कुंडली फिर से बंचवाई गई। आश्चर्य कि शादी के समय जिन पंडितों ने बताया था कि कुंडली का मिलान आदर्श है – वे ही अब उसमें दोष निकलने लगे। रंजना विवाह सुख नहीं पा सकेगी। विवाह और पति के स्थान में नीच ग्रह बैठे हैं− ज्योतिषियों ने बताया। रंजना का मन हुआ, उनसे खूब लड़े। पिता ने भी तो बंचवाई थी कुंडली। शादी के पहले तो किसी ने यह सब नहीं कहा। सास -ससुर ने ग्रह शांति के उपाय किए, रंजना को जो भी कहा गया, उसने आंख मूंदकर मान लिया। पति को फिर से पाने के लिए वह कोई भी अनुष्ठान करने को तैयार थी। कोई भी व्रत -जाप− कुछ भी। मनमोहन जब तक वह पास था, प्यार उंडेलता रहता था, इसीलिए अलग से और प्यार पाने या देने की कसक नहीं थी। अब वह नहीं था तो हूक उठती रहती थी− वह आलिंगन में ले ले, प्यार करे, चुंबनों की बरसात में नहला दे। वह चाहती थी कि मोहन फिर से मिल जाए तो अबकी ऐसे प्यार जताऊंगी, ऐसे छेड़ूंगी...एक -एक बात याद करती रंजना खो जाती। हां, वह कितना खास था उसके लिए। उसका अपना मोहन− उसे चिढ़ाने - खिझाने और प्यार करके थका देने वाला मोहक मोहन। मम्मीजी ने अनुष्ठान किए, फिर मनौतियां मानीं। अब तक हफ्ते में एक दिन शुक्रवार का व्रत करती हैं। कहती हैं कि जब तक बेटा वापस मिल नहीं जाता, करती रहूंगी। मोहन गया तो पहले वे सब इस इंतजार में, कि वह कभी भी वापस आ सकता है, एकसाथ घर से बाहर नहीं निकलते थे। मंदिर भी बारी -बारी जाते थे कि मोहन आए तो घर बंद न मिले। अचानक से लौटा वह पहले अपने घर घुसे, पड़ोसी के घर नहीं। रंजना नहाने जाती तो जल्दी से आ जाती - कहीं उसके नहाते - नहाते ही मोहन घर में घुस, उसे वहां न पा, हैरान - परेशान न हो जाए! तब तो वे सब खाना तक नहीं खाते थे। दिन भर में कभी एक बार खा लिया, कभी खाया ही नहीं। कभी बेटी का खयाल करके कुछ बना दिया। कभी मम्मी उसपर नाराज होने लगीं कि बच्ची को दूध पिलाती है, ढंग से खाया - पिया कर, तो उठाकर कुछ डाल लिया मुंह में। बैठी - बैठी कहीं खो गई और ध्यान तक न रहा कि मनमोहन घर पर नहीं है। उसके लिए कुछ पकाने के खयाल से उठी तो झटका लगा - वह तो है ही नहीं! फिर उन्हें खुद भी पता नहीं चला कि कब वे सब धीरे –धीरे, भगवान पर सब कुछ छोड़कर, रोज की रूटीन में खाना - पीना -नहाना - सोना करने लगे। रंजना ने कंपनी में नौकरी के लिए ऐप्लाई कर दिया। प्रक्रिया शुरू तो हुई पर महीनों लगे उसे नौकरी मिलने में। अधिकारियों की कितनी तो क्वेरीज आती रहती थीं, कितने बुलावे, कितने सवाल.. इंटरव्यू, मेडिकल। मम्मीजी बोलीं कि हम सब साथ ही रहेंगे और अपने बेटे की निशानियों को मैं खुद पालूंगी। फिर वे सब आशंकाओं में झूलते जीने लगे कि मोहन लौटेगा कि नहीं.. पता नहीं कहां होगा। अगर किडनैप हो गया है, तो जाने किडनैपर्स क्या सलूक करते होंगे, कहीं बंद करके न रख छोड़ा हो कि भाग न जाए! रंजना जाड़े की रात को रजाई ओढ़ती तो सोचती पता नहीं ये ठंढ में ठिठुर तो नहीं रहे होंगे? खाना खाती तो सोचती कि पता नहीं इन्हें खाना मिला या नहीं! रोना भी आता था और भगवान पर गुस्सा भी कि बस दो साल के साथ के लिए दिया इतना अच्छा पति। उसने कौन - सा गुनाह किया था? बचपन से अच्छी लड़की बनी जीती रही। पढ़ाई में मन लगाया, बड़ों को आदर दिया। कभी किसी का दिल जानबूझकर नहीं दुखाया। पॉपुलर भी बहुत थी स्कूल और कॉलेज में। पापा ने जहां शादी तय की, बिना कुछ सोचे हां कर दी - आखिर अपने ही पापा बेटी का अहित थोड़े करते! फिर जब शादी के बाद सबों को इतना अच्छा पाया तो अपने भाग और पापा के चुनाव पर गर्व हुआ। दो बेटियां हुईं। किसी ने बेटी होने को लेकर ताने नहीं दिए - जब कि घर में पांच ननदें थीं और एक अकेले बेटे मोहन। सब अच्छा था, पर अब जो हो गया वह तो गहरे दुर्भाग्यशाली लोगों के साथ ही होता है− यह महसूस कर वह बेचैन हो जाती। मन को कैसे धीरज दूं, समझ नहीं पाती। ‘पूजा करो, ध्यान लगाओ’, मम्मीजी कहती थीं। वह पूजा घर में घुसती तो रोष से भर उठती। क्या मांगूं भगवान से - शांति? पर मेरे जीवन में अशांति भी तो उसने ही फैलाई है, क्योंकि उसकी मर्जी के बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता। वह जब पूजा घर में आंखें मूंदे, हाथ जोड़कर बैठती तो पाती कि मनमोहन से बातें कर रही है - कृष्ण भगवान से नहीं, अपने पति मनमोहन से। ‘रूठ क्यों गए मुझसे? आ क्यों नहीं जाते! जहां हो, वहां से खबर क्यों नहीं भिजवाते कि जिंदा हो?’ फिर वह चौंकती, शर्मिंदा होती और भगवान से माफी मांगते हुए कहती कि उसके पति मनमोहन की खबर भिजवाएं। हर कुछ दिनों के बाद मम्मीजी सुबह उठते ही कहतीं - ‘मनमोहन सपने में आया था। बहुत तकलीफ में है वह, पर कह रहा था कि जल्दी ही लौटेगा।’ घर भर में पिछली बातों, यादों, आशंकाओं, मनौतियों का अगला दौर शुरू हो जाता। रंजना सोचने लगती कि आएंगे तो ये कहूंगी, वह कहूंगी। ऐसे लाड़ लड़ाऊंगी.. रूठ जाऊंगी। अबकी प्यार जताने में संकोच नहीं करूंगी। पर दिन गुजरते जाते, पति नहीं आते, तो बस नहीं ही आते। रात को सोने जाती तो देह की वह इच्छा, जो शादी के बाद पति जगा देता है, जगती और सो जाती।
बेटियां बड़ी होने लगीं तो पापा के बारे में पूछने लगीं। उनसे सबों ने कह रखा है कि बदमाश ज़बर्दस्ती पकड़ कर ले गए हैं और एक दिन उन्हें पापा को छोड़ना ही होगा, इसीलिए वे इंतजार करती जीती हैं कि एक दिन पापा आएंगे, उन्हें गोद उठाएंगे, दुलराएंगे। पहले कौन गोद चढ़ेगा, इसे लेकर उनमें बहुत लड़ाइयां होती रहीं पर अब तो बड़ी बेटी बारह की हो चुकी, छोटी साढ़े आठ की। अब उन्हें गोद नहीं चढ़ना, बस पापा से लिपटकर शिकायत करनी है कि क्यों गए थे छोड़कर! बड़ी बेटी चेहरे से बिल्कुल पापा जैसी है− उनकी ही तरह लंबी, गोरी, पढ़ने और खेल दोनों में होशियार.. स्टेट को रिप्रेजेंट करती है वॉलिवॉल में, तो पढ़ाई में भी नाइंटी टू, नाइंटी थ्री परसेंट लाती है। पर वह रंजना से थोड़ी खिंची - खिंची रहती है। उसकी उतनी परवाह नहीं करती, जितनी छोटी आन्या। आन्या तो उसपर जान देती है। वह ऑफिस और घर दोनों जगह काम करके कितना थक जाती होगी, पापा का इंतजार करती उदास हो जाती होगी - बेटियों के स्कूल अकेली जाना उसे कितना खलता होगा.. यह सब सोचती रहती है। मम्मा को दर्द हो रहा है, पता चलते ही पांव दबाने बैठ जाती है - पढ़ाई छोड़कर भी। मम्मा के आगे - पीछे घूमती रहती है। ‘मम्मा को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी, इन्हें पापा पहले ही छोड़ गए हैं’ - वह जब भी यह कहती है, रंजना के दिल में कुछ टीसने लगता है। उसकी तो आंखों में आंसू आने तक हराम− आन्या पीछे पड़ जाएगी ‘पोंछिए इन्हें। मुझे आपकी आंखों में आंसू नहीं देखने। मैं तो आपको बस खुशियां ही खुशियां दूंगी’। रंजना से यह सुनकर कि मैं तो बस तुम दोनों के लिए जी रही हूं, तुम दोनों सेटल हो जाओ उसके बाद मैं और जीना नहीं चाहती - आन्या लड़ने लगती है। ‘आप गलत कैसे कह सकते हो मम्मा! आपको जीना ही होगा.. पापा लौटेंगे, तो पूछेंगे मुझसे कि मम्मा को मरने कैसे दिया, मेरे आने तक रोका क्यों नहीं, तो मैं क्या जवाब दूंगी?’
क्रमश..