पवित्र अग्नि Rajesh Mehra द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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पवित्र अग्नि

पवित्र अग्नि
'भाभी, में ठीक तो कर रही हूँ न?' निशा ने अपनी भाभी की तरफ आशा भरी निगाहों से देखकर पूछा।
निशा की भाभी कुछ नही बोल पाई लेकिन उसकी चुप्पी में हां की स्वीकृति थी, निशा का पति भरी पूरी जवानी में ही ज्यादा शराब पीकर गुजर गया और निशा और उसके बच्चे को छोड़ गया।
निशा की शादी बड़ी धूमधाम से हुई थी। वह अपने पति से बहुत प्यार करती थी। एक साल में उसके एक सुंदर सा बेटा हुआ। लेकिन उसको पता लगा कि उसका पति बहुत शराब पीता था और उसी से वह बहुत बीमार हो गया उसने उसकी बहुत सेवा की ताकि वह ठीक हो जाये लेकिन उसकी मृत्यु हो गई। अपने पति की मृत्यु के बाद उसने एक कंपनी में क्लर्क की नौकरी कर ली ताकि वह अपना और अपने बच्चे का गुजारा कर सके।
निशा बहुत सुंदर थी। उसके अपने अरमान थे लेकिन सब उसके पति के साथ ही दफ़न हो गए। धीरे धीरे समय गुजरा तो निशा के अंदर की अग्नि जागने लगी थी आखिर जवान थी वो और इसमें उसकी क्या गलती थी कि उसका पति गुजर गया था। कई बार उसने अपने मन को समझाया कि उसका एक बेटा है और एक विधवा, लेकिन उस तन की अग्नि का क्या? वह उस अग्नि में जलती रहती और हर बार अपने बच्चे और समाज की वजह से शांत होती रही।
उसकी कंपनी का मालिक सुनील भी विदुर था उसकी पत्नी भी जल्दी ही गुजर गई थी उसके भी एक बेटी थी। वह अपने आफिस के ग्लास से निशा की बेचैनी को देखता रहता था। निशा बार बार वाशरूम जाती थी उसका मन काम पर नही लगता था। वह निशा की बेचैनी समझता था। आफिस कई मनचले निशा की तरफ गन्दी नज़र रखते थे लेकिन सुनील जानता था कि निशा उनको घास नही डालती थी। सुनील असमंजस में था कि निशा इतनी बेचैन होते हुए भी कैसे अपने आप पर कंट्रोल कर पाती थी।
सुनील भी जवान था और वह भी इस तन की अग्नि में जलता रहता था क्योंकि उसकी पत्नी को मरे भी दो साल हो गए थे लेकिन वह भी अपनी बच्ची और समाज की वजह से अपने आप को संभाले हुए था।
सुनील ने निशा को कई बार अपने आफिस में बुलाया और वह उसे दिलासा देता रहता। कई बार सुनील ने निशा से शादी करने को कहा लेकिन उसने उसे हर बार मना कर दिया। वह जानती थी कि उसका बेटा बहुत मासूम था और वह नही चाहती थी कि उसका बचपन दूसरे पिता के साये में पीस जाए वह इसी समाज मे रहती थी, वह शादी तो कर ले लेकिन वह जानती थी कि कोई और उसका पिता नही हो सकता था। एक ना एक दिन दूसरा पिता उसको एहसास दिला ही देगा कि वह उसका पिता नही है। वह अपने मासूम बेटे से भी उतना ही दृढ़ प्यार करती थी जितना कि उसने अपनी तन की अग्नि को संभाल रखा था।
एक दिन सुनील ने खुलकर निशा को कह ही दिया कि वो दोनों एक ही अग्नि में जल रहे है और समाज की वजह से शांत है लेकिन इसमें उनकी क्या गलती है। खाने की भूख की तरह ही उन्हें तन की भूख भी लगती थी। तो क्या वो दोनों मिलकर इस अग्नि को बुझा नही सकते। पहले तो निशा कुछ समझी नही लेकिन फिर वो उठकर जाने लगी तो सुनील ने उसका हाथ पकड़ उसे बैठा दिया। उसकी अग्नि एकदम शोला बन गई थी।
'निशा, में अपनी बच्ची की कसम खाता हूं की में इसे कभी किसी को नही बताऊंगा और सब हो जाने के बाद हम अपने काम पर ध्यान दे सकेंगे, तुमने शादी से इंकार कर दिया में उसका सम्मान करता हूँ लेकिन हम कब तक इस अग्नि में जलेंगे इसे शांत तो करना ही पड़ेगा।' सुनील ने कहा।
निशा फिर उठकर चल दी।
शाम को उसने डरते हुए अपनी कसम देकर अपनी भाभी को सारी बात बताई। उसकी भाभी भी समझदार थी । वो भी जानती थी कि कितना मुश्किल है इस अग्नि पर पार पाना।
उसकी भाभी ने उसे गले लगा लिया। निशा की आंखों में आंसू थे उसकी भाभी भी अपने आंसू रोक नही पाई।
तभी निशा के फोन पर सुनील का फोन आया। उसकी भाभी ने उसे स्वीकृति दे दी ये कहकर की ध्यान रखना की ये गलत है लेकिन ये अग्नि तभी बुझेगी यदि तुम इसे पवित्र समझोगी।
शाम के 9 बज गए थे। निशा ने थोड़ा मेकअप किया और अपने सोते हुए बेटे को चूमा और अपनी भाभी की तरफ देख चल दी थी सुनील के घर की तरफ। पवित्र अग्नि को बुझाने।