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फौजी और वफ़ादार कुत्ता

फौजी और वफ़ादार कुत्ता

राजेश मेहरा

दूर पहाड़िया बर्फ से ढ़की थी। यहां भी हल्की बर्फबारी हो रही थी। भारत चीन का युद्ध चल रहा था। सर्दी काफी थी लेकिन भारतीय जवान चीन के हर हमले का मुंह तोड़ जवाब दे रहे थे। लेकिन बर्फ गिरने और सर्दी ज्यादा होने के कारण भारतीय सैनिकों का हौसला टूट रहा था और पीछे से भी उनके लिये सहायता आने में टाइम लग रहा था। ऐसे में नायक युद्धवीर सिंह ने मोर्चा संभाला हुआ था। वो अपने जवानों की हौसला अफजाई कर रहे थे। भारतीय सैनिक एक एक करके मारे जा रहे थे । सैनिकों की रसद भी करीब करीब खत्म हो चली थी।

रह रह कर चीन फायरिंग कर रहा था। उस पोस्ट पर केवल 9 सैनिक रह गए थे। नायक युद्धवीर अंदर से परेशान थे लेकिन वो सैनिकों का पूरा हौसला बढ़ा रहे थे। उनको लड़ते हुए पूरे 36 घंटे हो चले थे। सैनिक नींद और कमजोरी से भर चुके थे। तभी एक तोप का गोला उनसे थोड़ी दूर गिरा, जब तक वो संभलते तब तक उनके तीन सैनिक और शहीद हो गए। अब तो सैनिकों में डर का माहौल पैदा हो गया । उनके शरीर मे अब सर्दी की सिहरन दौड़ रही थी। अब वो केवल 6 रह गए थे। उनका तो हौसला अब बिल्कुल टूट गया था।

युद्धवीर ने एक बार फिर ज़ोर से भारत माता का नारा लगाया और सैनिकों का हौसला बढ़ाने लगे। सैनिक फिर पूरे जोश से फायरिंग करने लगे।

जैसे जैसे समय बीत रहा था बचे सैनिक कमजोर पड़ रहे थे।

युद्धवीर ने बंकर में रखा आखिरी खाना सैनिकों को लाकर दिया। खाना थोड़ा था उसमें सैनिकों का पेट तो क्या भरता लेकिन उसको खाकर उनमे थोड़ी ऊर्जा आई। वो फिर जोश से चीन के सैनिकों को जवाब देने लगे । सैनिकों की गोलियाँ भी खत्म हो गई थी।

तभी अचानक चीन की तरफ से एक दम भारी गोला बारी हुई और बचे 6 भारतीय सैनिक भी शहीद हो गए।

अब उस पोस्ट पर केवल युद्धवीर सिंह बचे थे। चीन की तरफ से गोली बारी बन्द हो गई थी क्योंकि भारतीय पोस्ट से भी जवाब नही दिया गया तो वो समझ गए कि पोस्ट तबाह हो चुकी है और भारतीय सैनिक मारे जा चुके है।

युद्धवीर सिंह चाहते तो पोस्ट छोड़ के नीचे अपने मुख्यालय पहुंच जाते लेकिन उन्होंने कसम खाई की वो पोस्ट नही छोड़ेंगे चाहे जान चली जाए। वो कभी भी पीठ नही दिखाएंगे। अब बर्फबारी भी तेज हो गई और गहरा अंधेरा छा गया था।

उस पोस्ट पर अब युद्धवीर सिंह अकेले थे। तभी युद्धवीर को लगा कि वो वहां पर अकेले नही है। युद्धवीर ने अंधेरे में देखा कि दो आंखे चमक रही है। तभी आवाज आई और वो समझ गए के ये तो मोती कुत्ता है जो उनके मुख्यालय में नीचे रहता है। युद्धवीर उसे हमेशा कुछ खाने पीने को देते थे। वह भी युद्धवीर के आगे पीछे ही रहता था। शायद वह युद्धवीर को ही ढूंढते हुए उस तक पहुंच गया था। युद्धवीर को थोड़ा साहस मिला कि वो अकेला नही है। युद्धवीर ने उसे पुकारा तो वह पूंछ हिलाता हुआ उसे पास आ गया। ठंड में उसकी भी हालत खराब थी।

उधर चीन के सैनिक युद्धवीर की भारतीय पोस्ट पर आये और उन्होंने उस पर कब्जा करके युद्धवीर को बंदी बना लिया। तब तक युद्धवीर ने मोती को अंधेरे में छिप जाने को कहा नही तो चीनी सैनिक उसे भी मार देंगे लेकिन चीनी सैनिकों ने मोती की तरफ ज्यादा ध्यान नही दिया।

चीनी सैनिकों ने युद्धवीर की आंखों पर काली पट्टी बांधी ओर से बंदी बनाकर अपनी छावनी में ले जाने लगे। मोती अंधेरे का फायदा उठाकर युद्धवीर के पीछे पीछे चल रहा था।

काफी देर चलने के बाद युद्धवीर को एक सीलन भरी कोठरी में डाल दिया उसके हाथ पैर दोनो एक लकड़ी के खंभे के साथ बांध दिए और आंखों की पट्टी अब खोल दो थी। युद्धवीर को बिल्कुल भी पता नही था कि वह कहां है। वैसे तो युद्धवीर इस इलाके को जानते थे लेकिन आंखों पर पट्टी बांधी थी इसलिय वो समझ नही पा रहे थे और चीनी सैनिक भी उसे इधर उधर घुमाकर लाये थे ताकि वो रास्ता समझ ना पाये।

अंधेरे में युद्धवीर को समझ नही आ रहा था कि वो किस जगह है और उसके आसपास कितने चीनी सैनिक हैं।

अगली सुबह जब उजाला हुआ तो उसे पता लगा कि वह एक बर्फ के ऊंचे टीले पर बने एक लकड़ी के घर मे बन्द है और उसे एक लकड़ी के पिलर से बांधा हुआ है।

सुबह कुछ चीनी सैनिक आये और उसके सामने बात कर रहे थे। युद्धवीर सिंह करीब दस साल से चीनी सीमा पर तैनात थे अतः उन्हें टूटी फूटी चीनी भाषा आती थी। वो चीनी सैनिक कह रहे थे कि वो आज रात को उसको टार्चर करके भारतीय सेना के राज पूँछेंगे।

युद्धवीर थोड़ा घबराया वो जानता था कि चीनी सैनिक कितने क्रूर होते है। वो उसे टार्चर करेंगे तो हो सकता है कि वो उनकी मार के आगे सेना के राज खोल दे।

युद्धवीर ने भी प्रण किया कि वह मर जायेगा लेकिन अपने राज इन चीनी सैनिकों को नही बताएगा।लेकिन रात होने में अभी वक्त था उसने किसी तरह इस कैद से भागने की सोची। अब युद्धवीर भी थोड़ा अंधेरा होने का इंतजार करने लगे। आज भी बर्फबारी तेज हो रही थी इसलिय लगता था कि अंधेरा भी जल्द हो जाएगा।

अंधेरा होते ही युद्धवीर सिंह ने हाथ पैर मारने शुरू किए ताकि अपने आप को इस कैद से छुड़ा सके। काफी कोशिश की लेकिन वो अपने आप को उस बन्धन से मुक्त नही कर पाए। अब उनको इतनी ठंड में भी पसीने आ रहे थे। काफी कोशिश के बाद उनके हाथ सफलता लगी और उन्होंने अपने हाथ खोल लिए। वो दरवाजे के पास आये तो उन्होंने महसूस किया कि बाहर दो गार्ड ठंड की वजह से सिकुड़ कर सो रहे थे। युद्धवीर ने सावधानी से दरवाजा खोला और पहाड़ी से नीचे उतरने लगे। वो थोड़ा आगे निकल थे कि पीछे से चीनी भाषा में गार्ड की आवाज आई 'कौन है वहां' सुनकर युद्धवीर का खून जम गया उसने समझा अब तो पकड़े गए।अंधेरा था और युद्धवीर को चीनी भाषा आती थी तो वो थोड़ा सम्भल कर बोले 'में हूँ तुम आराम करो' गार्ड शायद संतुष्ट हो फिर सो गए की कोई उनका ही साथी है।अब युद्धवीर में खून का संचार हो गया और वो तेजी से नीचे उतरने लगे। लेकिन बर्फबारी और अंधेरे के कारण वो सही रास्ता नही पहचान पा रहे थे। वो फिर परेशान हो गए। अब उनमे कमजोरी भी थी क्योंकि तीन दिन से उन्होंने खाना भी नही खाया था। वो थोड़ा दूर ही पहुंचे थे कि उनको चक्कर आने लगे। वो थकान से बेदम हो गए और बैठ गए। उन्हें लगने लगा कि वो फिर पकड़े जाएंगे क्योंकि ऊपर से आवाजे आने थी,शायद चीनियों को पता चल गया था कि वो भाग निकला है।युद्धवीर ने अंधेरे में महसूस किया कि उनके पास कोई और भी है। तभी उन्हें मोती की आवाज आई और ये सुनकर युद्धवीर फिर फुर्ती से खड़े हो गए क्यंकि मोती उनका हाथ पकड़ उन्हें उठाने की कोशिश कर रहा था।

युद्धवीर खड़े हुए तो मोती आगे आगे चलने लगा और वो उसके पीछे।

मोती अब आगे आगे चलकर रास्ता बता रहा था और युद्धवीर उसके पीछे पीछे चलने लगे। चलते चलते सुबह हो गई। मोती उनको लेकर भारतीय छावनी पहुंच गया लेकिन कुछ दूर पहले ही युद्धवीर भूख और थकान से बेहोश हो गए। मोती ने भोंक कर युद्धवीर की उपस्थिति भारतीय सैनिकों को बता दी। भारतीय सैनिक बेहोश युद्धवीर को अंदर ले गए और उनको चिकित्सा दी।

सुबह हुई तो युद्धवीर होश में आ चुके थे । उन्होंने अपने सीनियर को मोती की सारी बाते बताई की कैसे उसने उसकी रास्ता दिखाकर जान बचाई थी।

सैनिकों ने मोती को बहुत सा खाना दिया। उन्होंने मोती को अपने पास ही रख लिया।युद्धवीर सिंह सोच रहे थे कि यदि मोती नही होता तो शायद वह बच नही पाते। मोती ने उनके द्वारा दिये गए छोटे से खाने और प्यार का बदला चुका दिया था।

कुछ दिनों में युद्धवीर सिंह बिल्कुल स्वस्थ्य हो गए। उन्होंने अपने सैनिकों के सहादत का बदला लेने की सोची। अपने सीनियर्स से बात करने के बाद उन्होंने 5 लोगों के साथ एक गुरिल्ला टीम बनाई। इस ग्रुप में उन्होंने मोती को भी रखा। क्योंकि मोती उन चीनी सैनिकों का पता अंधेरे में भी अपनी सूंघने की शक्ति से पहचानता था।

मिशन को अंजाम देने का समय आ गया था। युद्धवीर सिंह की अगुवाई में टीम ने चीनी छावनी की तरफ प्रस्थान किया। सब सैनिक अत्याधुनिक हथियारों से लैस थे। युद्धवीर सिंह के सिर पर केवल अपने सैनिकों की शहादत का बदला लेने का जनून था। आगे आगे मोती रास्ता दिखा रहा था और सैनिक युद्धवीर की अगुवाई में आगे बढ़ रहे थे।

आज बर्फ तो नही गिर रही थी लेकिन ठंड ओर कोहरे के कारण रास्ता पार करने में सैनिकों को दिक्कत आ रही थी।

युद्धवीर भारत माता का जैकारा लगा रहा था ताकि सैनिकों में साहस भरा रहे लेकिन साथ मे वो इस बात का भी ख्याल रख रहे थे कि आवाज ज्यादा दूर तक ना जाये।

मोती ओर सैनिक चलते चलते थक चुके थे और अंधेरा भी गहराने लगा था।

तभी एक जगह मोती रुक गया और हल्की आवाज में भोंकने लगा। सभी सैनिक सतर्क हो जमीन पर लेट गए। युद्धवीर ने देखा कि कुछ ही दूरी पर चीनियों की छावनी दिखाई दे रही थी और पास में ही सैनिक गॉर्ड तैनात व चौकन्ने थे।

अब अपनी योजना के किर्यान्वन का समय आ गया था। युद्धवीर ने तीन टीमें बनाई दो दो सैनिकों की और एक टीम की खुद अगुवाई करने लगे। उन्होंने मोती को वहीं रुकने का संकेत दिया। लेकिन शायद मोती भी उनके साथ जाना चाहता था लेकिन युद्धवीर ने सख्ती से उसे वहीं रहने के आदेश दिए। मोती अब उसी जगह बैठ गया।

अब हर टीम में दो व्यक्ति थे। तीनो टीमों ने उस चीनी छावनी के चारो कोनों को छान मारा लेकिन उन्हें हथियारों को रखने की जगह नही मिली। युद्धवीर सिंह का लक्ष्य था कि किसी तरह यदि उनके हथियारों को नष्ट कर दिया जाए तो चीनी सैनिकों की रीढ़ की हड्डी टूट जाएगी। लेकिन उन्हें सफलता हाथ नही लगी। तीनो टीमें थक हारकर फिर अपने बताए स्थान पर इक्कठा हुई। समय बीत रहा था और उन्हें डर था कि यदि चीनी सैनिकों ने उन्हें देख लिया तो उनकी जान की खैर नही। सब लोग परेशान थे। तभी युद्धवीर की नजर मोती पर गई जो अभी भी उसी स्थान पर चुपचाप बैठा था। युद्धवीर को एक उपाय सूझा, उन्होंने अपनी बन्दूक की बारूद से भरी नाली को मोती को नाक के पास ले जाकर सुंघाया और उसको सूंघकर मोती एक तरफ चल पडा। अब मोती के पीछे पीछे तीनों टीम चलने लगी।मोती उनको सूंघ कर घुमाता रहा और आखिरकार उन्हें उसी जगह ले गया जिस जगह पर युद्धवीर सिंह को बंदी बनाया गया था।

लेकिन युद्धवीर ने देखा कि गार्ड अब भी उस घर की रखवाली कर रहे थे अतः ये सुनिश्चित हो गया कि गोला बारूद इसी लकड़ी के कमरे में ही है। उन सबने मिलकर हमला किया और उन चीनी गार्डों को बिना शोर किय मार दिया।

उन लोगों ने फटाफट इस गोला बारूद पर टाइम बम लगाए और वहां से दूर हो गए। कुछ समय बाद धमाका हुआ और गोला बारूद के साथ सारे चीनी सैनिक मारे गए। युद्धवीर ने उस चीनी पोस्ट को कब्जे में ले लिया।

युद्धवीर सिंह और सैनिक खुश थे क्योंकि यह सब मोती की वजह से हो पाया था। उधर मोती बारूद की धमाके की आवाज से भोंके जा रहा था जैसे कि वह भी इस जीत की खुशी मना रहा हो।

युद्धवीर को उचित इनाम दिया गया और मोती को भी भारतीय सेना के डॉग स्क्वाड में भेजा गया वहां पर उसे ट्रेनिंग दी गई I अब मोती और युद्धवीर सिंह दोनों मिलकर भारतीय सेना के सेवा करते है I खासकर मोती की बुद्धि और हिम्मत के सब कायल थे I मोती अब वो काम कर रहे थे जो आम डॉग नही कर पाते थे I

युद्धवीर सिंह को स्पेशल ड्यूटी दी गई थी को वो ही मोती का ख्याल रखेंगे I मोती भी युद्धवीर सिंह के सानिध्य से खुश था I

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