परियों का पेड़
(23)
लालच का परिणाम
राजू ने एक बार फिर पिताजी से बहुत कड़ा विरोध किया – “पिताजी ! इस पेड़ को मत काटो | ये देखो, ये पेड़ से बहता हुआ पानी नहीं, बल्कि परियों के आँसू है | ये पेड़ कटने से परियाँ दुखी हैं | वे नाराज हो जायेंगी |”
लेकिन पिता ने अब भी राजू की एक बात न सुनी | कुल्हाड़ी चलती गई | दरवाजे के निशान वाला हिस्सा पूरा कट गया | लेकिन दरवाजा खुलना तो दूर, पेड़ के तने में भीतर जाने वाले रास्ते का कोई चिन्ह तक नहीं मिला |
यह देख राजू के पिता को और तेज गुस्सा आ गया | अब उसने रास्ता तलाशने की जिद में, धीरे – धीरे पूरा पेड़ ही काट डाला | पेड़ का तना भरभरा कर नीचे गिरने लगा | लेकिन उसका दरवाजा सचमुच परियों की मर्जी के बिना नहीं खुलना था, सो नहीं खुला |
पेड़ का विशालकाय तना गिरता देख राजू और उसके पिता एक ओर को भागे | पेड़ एक भयानक शोर के साथ भरभरा कर लुढ़क गया | फिर उसके कटते ही उसके पत्ते ज़ोरों से फड़फड़ाने लगे, जिनसे बड़ी तेज हवाएँ चली | फिर हवाओं के साथ ही भयंकर काले बादल उमड़ आये | फिर गरज – चमक के साथ ही ऊपर आकाश से भी पानी बरसने लगा | जैसे वहाँ भीषण तूफान आ गया हो |
इधर पेड़ के पूरे कट चुके तने से अब आँसुओं जैसी बूँदों की जगह पानी के तेज फौवारे उबलने लगे थे | फिर वे भयंकर धाराओं में परिवर्तित होते हुए उफनकर बहने लगे | ये धाराएँ इतनी तेज थी कि जल्द ही उसने तूफानी झरने का रूप धारण कर लिया | फिर उस झरने का पानी एक नदी का रूप धारण करके किसी प्रचण्ड बाढ़ की तरह फैलने लगा | उसका भयंकर प्रवाह किनारों को तोड़ते हुए, हाहाकार जैसा शोर मचाते हुए, अपने साथ कंकड़ – पत्थर, चट्टानों और छोटे - मोटे पेड़ों के साथ ही आसपास चरने वाले जानवरों को भी समेटते हुए पहाड़ से नीचे की ओर लुढ़कने लगा |
सचमुच प्रलय आ गयी थी | पानी की भयंकर धाराओं से चारों ओर तबाही मचने लगी थी | लगा कि आज वह सारे जंगल और धरती को डुबो कर रख देगा | मानो यह भयंकर बाढ़ चेतावनी भी दे रही थी कि मनुष्य जब भी पेड़ों से, प्रकृति से अनावश्यक छेड़-छाड़ या असंतुलित कटान करेगा, तो इससे पैदा होने वाला जल प्रलय मनुष्य जीवन के साथ – साथ सारी सृष्टि में उथल – पुथल मचा देगा |
देखते ही देखते पैदा हुई इस भयानक विपदा से स्तब्ध खड़े राजू के साथ उसका पिता भी घबरा गया था | वह बाढ़ से बचने के लिए तेजी से कोई उपाय सोचने लगा | अब तक वह उसी कटे हुए पेड़ के तने को थामकर उसका ही सहारा लेकर बचने का प्रयास कर रहा था | लेकिन अब दानवाकर लहरें उसकी ओर भी प्रचण्ड वेग से आक्रमण कर चुकी थी | अब कुछ भी नहीं हो सकता था | देखते ही देखते इस बाढ़ ने अब तक एक ओर सुरक्षित खड़े उन पिता – पुत्र को भी अपनी चपेट में ले लिया |
उनके हाथ से पेड़ की डालियाँ जबरन छूट गयी | अतः अब वे दोनों भी एक – दूसरे का हाथ कसकर पकड़े हुए, बचने की निरर्थक कोशिश करते हुए उस भयंकर बाढ़ में बहने लगे | इस आकस्मिक प्रकोप से जूझना असम्भव सा था | उन दोनों की जान खतरे में पड़ चुकी थी |
अब भी राजू बार – बार रोते हुए अपने पिता से कह रहा था – “बापू! मैं कह रहा था न कि पेड़ को मत काटो | परियाँ नाराज हो जायेंगी | लेकिन आपने मेरी एक नहीं सुनी | अब हमें इस गलती का परिणाम भुगतना ही पड़ेगा |”
संभलने की तमाम कोशिशों के बावजूद राजू और उसके पिता इस बाढ़ में बेबस हो गये थे | वे तूफानी धारा के साथ ही पहाड़ से नीचे लुढ़कने लगे| अब तक राजू के पिता को भी अपनी गलती का आभास हो चुका था | उसने राजू का हाथ और भी ज्यादा कसकर पकड़ लिया था | चिल्लाकर बोला– “राजू! तुम भी मुझे पूरी ताकत से पकड़े रहना | लगता है परियाँ सचमुच क्रोधित हो गई हैं |”
भय से राजू का सारा शरीर काँप गया | लगा कि आज जान नहीं बचेगी | राजू को इस भयंकर संकट की घड़ी में जब कुछ उपाय न सूझा तो वह परी रानी को ही पुकारने लगा | चिल्लाते हुए बोला – “हे परी माँ ! हमें माफ कर दो | परियों का पेड़ काटकर हम से बहुत बड़ी भूल हो गई है |”
फिर तो यही प्रार्थना राजू का पिता भी बार – बार दोहराने लगा | वह दोनों ही पश्चाताप के आँसू रो रहे थे | लेकिन उनके आँसू भी उस बाढ़ में घुलकर लापता होते जा रहे थे | बचने की कोई भी कोशिश कामयाब नहीं हो पा रही थी |
तभी उन्होंने देखा, वे पहाड़ से नीचे एक बहने वाली एक भयंकर नदी के झरने वाले मुहाने तक पहुँच गये थे | वह दोनों उस नदी में भीषण ऊँचाई से गिरने ही वाले थे | अब बचने की सारी उम्मीदें खत्म हो चुकी थी | नीचे साक्षात मृत्यु सुरसा की तरह मुँह फाड़े हुए साफ दिख रही थी | फिर बाढ़ का एक सबसे भयंकर प्रवाह आया और उन्हें पूरी ताकत से घाटी की ओर धकेलता चला गया | पिता – पुत्र दोनों के मुँह से एक अंतिम और कातर चीख निकली – “बचाओ ......परी माँ sssss |”
इसके बाद वे सब अपने – अपने होश खो चुके थे | लगा कि जैसे सब कुछ हमेशा के लिए शान्त हो चुका है |
लेकिन.......|
तभी किन्ही अदृश्य और कोमल हाथों ने पिता – पुत्र दोनों को थाम लिया |
फिर उन्होने भारी आश्चर्य के साथ अनुभव किया कि अचानक ही तूफान धीरे – धीरे थम गया है | पानी का प्रचण्ड वेग रुकने लगा है | वह अप्रत्याशित बाढ़ गायब हो गयी | इतना ही नहीं, वहाँ की भीगी हुई धरती भी अचानक ही बड़ी तेजी से सूखने लगी है | देखते ही देखते सब कुछ सामान्य सा होने लगा है | .....और अंततः उनकी जान भी बच गयी है |
होश संभालते ही पिता - पुत्र ने अपने आपको एक घने पेड़ की मजबूत डालियों और मुलायम घनी पत्तियों में फँसा हुआ अनुभव किया | जैसे किसी ममतामयी माँ ने अपने बच्चों को किसी मुलायम और आनन्ददायक पालने में बैठा दिया हो | पिता – पुत्र दोनों ही अपने आप को जीवित और सुरक्षित पाकर निहाल हो उठे थे |
वह जल्दी – जल्दी किसी तरह पेड़ उस पेड़ की डालियों से उतरकर नीचे आए | यहाँ की जमीन सूखी और स्वाभाविक रूप से उतनी ही भुरभुरी थी, जितनी उनके गाँव में और उनकी झोपड़ी के सामने हुआ करती थी | वह दोनों ही आँखें फाड़ – फाड़कर इस उस चमत्कार को देख रहे थे | यहाँ तो हर पल एक और नया आश्चर्य उनकी प्रतीक्षा कर रहा था |
उन्होंने देखा कि वह लोग किसी और जगह नहीं, बल्कि अपनी ही झोपड़ी के सामने खड़े थे | वे आश्चर्य जनक रूप से अपने ही गाँव तक पहुँच चुके थे | भयंकर तूफान और बाढ़ का पानी किसी जादू की तरह गायब हो चुका था | अब वे अपने आप को पूरी तरह सुरक्षित महसूस कर रहे थे | मामूली खरोचों के अलावा उनके शरीर पर कोई गंभीर चोट तक नहीं थी |
अभी तक घटती हुई सारी घटनाएँ अब एक डरावनी चलचित्र जैसी लगने लगी थी, जैसे वे अभी – अभी कोई भयंकर सपना देखकर गहरी नींद से जाग उठे हों |
लेकिन शरीर की कुछ मामूली खरोंचे अभी भी चीख – चीख कर गवाही दे रही कि उनके साथ अभी – अभी कुछ क्षणों पहले तक जो कुछ भी बीता था या जो कुछ भी उन्होने अनुभव किया था, वह कोई सपना नहीं, साक्षात अनुभव था | एक – एक पल सत्य था, प्रत्यक्ष था | उनके पास इसका अद्भुत, रहस्यमय किन्तु अपना ही अनुभवजन्य साक्ष्य था |
तब राजू की नजर सामने कटे पड़े हुए उस पेड़ के तने पर गयी, जिससे वह अभी – अभी नीचे उतरे थे | वह आश्चर्य और प्रसन्नता से चीखता हुआ बोला – “पिताजी ! ये तो उसी परियों के पेड़ का तना है, जिसे आपने काट डाला था | लेकिन हमारी जान भी इसी ने बचायी है |”
जब राजू के पिता ने सामने की ओर ध्यान से देखा, तो वह भी कुछ देर के लिए चमत्कृत सा खड़ा रह गया | उस पेड़ के तने में अनेकों मुरझाई और उदास सी परियाँ या परियों जैसे फलों की आकृतियाँ अभी भी लटक रही थी | अब उसे हृदय की गहराइयों से अपनी गलती और परी रानी की दया का अनुभव हो चुका था | अज्ञान के अंधकार से बंद उसकी आँखें प्रत्यक्ष प्रमाण के ज्ञान से खुल चुकी थी | ये परी रानी तो प्रकृति की देवी थी | उसी के विराट स्वरूप का प्रतीक थी | राजू ही नहीं, धरती के प्रत्येक मनुष्य की माँ थी | जीव - जन्तु सभी की संरक्षक थी | ममतामयी और जीवांदायिनी भी थी |
संदेह की कोई भी गुंजाइश नहीं बची थी | राजू का पिता अपनी भयंकर भूल का अहसास करते ही तत्काल हाथ जोड़कर दौड़ पड़ा | क्षमा माँगने के लिए | परियों के पेड़ के सामने नत मस्तक होकर लेट गया - “मुझे क्षमा कर दो परी रानी |”
किन्तु पल भर की ही सही, देरी तो ही चुकी थी | गुजारा हुआ पल कभी भी लौटकर नहीं आता | उसकी क्षमा - प्रार्थना सुनने वाला भी अब वहाँ कोई नहीं था | वह परियों का कटा हुआ पेड़, देखते ही देखते उनकी आँखों से ओझल हो गया था, लुप्त हो चुका था | अब वहाँ सामान्य और सूखी हुई भुरभुरी मिट्टी के अलावा कुछ भी नहीं दिख रहा था |
राजू के आश्चर्यचकित पिता ने आस – पास काफी दूर तक नजरें दौड़ायी, इधर – उधर भागा दौड़ा भी | हर तरफ ध्यान पूर्वक खोजने का प्रयास किया, लेकिन कुछ पता न चल सका कि वह पेड़ कहाँ गायब हो गया था ? कहीं एक टहनी या उसकी किसी पत्ती का भी सुराग तक नहीं मिल रहा था |
उसकी कुल्हाड़ी समेत, राजू का पलंग, कीमती मुकुट और सोने का थाल तो उस भयंकर बाढ़ में पहले ही कहीं छूट गये थे |
हाँ, राजू के शरीर पर राजकुमारों के जैसे पहने हुए मंहगे और राजसी कपड़े अब भी बचे हुए थे, जो घटना की पूर्ण सत्यता की गवाही दे रहे थे | .......और उन दोनों का जीवन भी दयालु परी रानी ने बचा लिया था, यह भी बहुत बड़ा सत्य था |
अब राजू का पिता वहीं घुटनों के बल बैठ कर फूट – फूट कर रो पड़ा | उसकी आँखों से पश्चाताप के आँसू बहने लगे | उसने बारम्बार परी रानी से क्षमा माँगी और अपना जीवन बचाने के लिए धन्यवाद किया | उसके सच्चे आँसुओं ने उसके मन का सारा मैल धो डाला था | इसके साथ ही परियों के रहस्यमयी पेड़ की कहानी का पटाक्षेप भी हो चुका था |
इस सारे घटनाक्रम का राजू के पिता पर ऐसा प्रभाव पड़ा था कि वह अब पूरी तरह बदल गया था | अब उसने परियों के पेड़ को स्मरण करते हुए प्रण ले लिया – “ हे परी रानी ! यह सबक हमें जीवन भर याद रहेगा | भविष्य में अब वह कभी भी, किसी भी पेड़ को नहीं काटेगा | लकड़हारे का काम छोड़कर कुछ और व्यवसाय कर लेगा |”
........और राजू ? वह तो सचमुच ही परी माँ का कृतज्ञ हो गया था | उसे अपनी आने वाली पीढ़ियों को अपने नाम के साथ सुनाने के लिये परीलोक की एक सच्ची, सुंदर और अनोखी कहानी जो मिल गयी थी |
------- (समाप्त) ------
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