परियों का पेड़ - 7 Arvind Kumar Sahu द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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परियों का पेड़ - 7

परियों का पेड़

(7)

स्वप्नलोक की उड़ान

“सुनो राजू, यहाँ से थोड़ी दूर, बड़े वाले पहाड़ की ऊँची चोटी पर, एक विशालकाय परियों का पेड़ है | आजकल उसी पर हमारा बसेरा है | बहुत सी परियाँ ठीक बारह वर्ष के अंतराल पर यहाँ आती हैं | धरती पर अपनी छुट्टियाँ मनाने | इस बार उन्हीं के साथ मैं भी घूमने और विशेषकर तुमसे मिलने के लिए यहाँ आई हूँ |” – परी ने अपना रहस्य खोल दिया |

“अरे हाँ, शाम को मेरे पिताजी भी किसी ऐसे ही पेड़ के बारे में बता रहे थे | क्या आप ही वहाँ की परी रानी हैं?” – भौचक राजू ने उत्सुकता से पूछा |

“हाँ, मैं ही वहाँ की परी रानी हूँ और तुम्हारे लिए तुम्हारी परी माँ भी | आज, अभी, इसी समय मैं तुम्हें आमंत्रित करती हूँ | तुम जब चाहे वहाँ आ सकते हो | परियों की असली दुनिया में |” – परीमाँ ने उसे अपनी दुनिया में आने की स्वीकृति प्रदान कर दी |

“लेकिन बापू ने मना किया है, अकेले वहाँ जाने से |” – राजू ने चिंतित स्वर में कहा | “अच्छा ? किन्तु फिलहाल तो तुम्हें वहाँ अकेले ही आना होगा | क्योंकि तुम्हारे जैसे अच्छे बच्चों के अतिरिक्त किसी और को हम परियाँ न मिल सकती है, न दिखायी पड़ेंगी |

“लेकिन ?” – राजू ने शंकाग्रस्त होकर कुछ कहना चाहा |

परी माँ भी उसके मन की दुविधा समझ रही थी | कहने लगी – “हाँ, रास्ते में बहुत सी मुश्किलें आ सकती हैं | तुम्हारे जैसे बच्चे को जान का खतरा भी हो सकता है | लेकिन चिंता मत करो | थोड़ा साहस तो तुम्हें भी दिखाना पड़ेगा | .....और बाकी पूरी सुरक्षा मेरे जिम्मे | तुम्हें वहाँ तक पहुँचाने में, रास्ता दिखाने में, मेरी ये जादुई छड़ी तुम्हारी पूरी सहायता करेगी |” – परी रानी ने राजू को आश्वस्त किया |

“क्या आप यह छड़ी मुझे देकर जायेंगी ?” – राजू ने उत्साहित होकर पूछा |

“नहीं...| यह छड़ी अदृश्य रहकर सिर्फ मेरे संकेत से ही तुम्हारी मदद करती रहेगी | यह सिर्फ मेरा आदेश मानती है, क्योंकि इसे नियंत्रित करना मुझे ही आता है | तुम इसे परियों की रहस्यमय शक्तियों का केंद्र अथवा नियंत्रक भी कह सकते हो |” – परी रानी ने बताया |

“जैसे टेलीविज़न का ‘रिमोट कंट्रोल’ होता है ?” – राजू ने पूछा |

“हूँ...? तुमने कहाँ देखा ?”- परी रानी ने आश्चर्य से कहा |

“मेरे अध्यापक ने बताया है | हमारे स्कूल में टेलीविज़न लग गया है | वो दूर से ही एक रिमोट कंट्रोल के संकेत पर काम करता है |” – राजू ने जवाब दिया |

“अच्छा ? जैसे मेरी जादुई छड़ी ? बहुत खूब | मुझे खुशी है कि धरतीवासी भी हमारी तरह अनेक चमत्कारी शक्तियों के मालिक होते जा रहे हैं |” – परीरानी हँस कर बोली |

फिर आगे कहने लगी – “ मुझे यह भी पता चला है कि यहाँ के मनुष्य भी हमारी जैसी दूसरे ग्रहों की वासी अर्थात एंजेल्स की वास्तविकता का पता लगाने को बेचैन हैं, लेकिन धरतीवासियों को अन्तरिक्ष में आकर हमारा ग्रह खोजने में अभी बहुत समय लग सकता है, क्योंकि हमारा विज्ञान और तकनीक बहुत आगे है | लेकिन तुम्हें इसकी चिन्ता करने की जरूरत नहीं | क्योंकि तुम तो जल्द ही हमारे साथ हमारे लोक की सैर करने वाले हो |”

“लेकिन कुछ भी हो, मुझे तो अकेले जंगल आने में भी बहुत डर लगेगा |”- राजू क्षण भर को सोच में पड़ गया | फिर कहने लगा - “लेकिन सुनिये ! यदि आप मान जायें तो मैं अपने बापू को साथ लेकर आऊँ ? फिर कोई समस्या नहीं रहेगी | मेरा विश्वास कीजिये, मेरे बापू भी मेरी ही तरह बहुत अच्छे हैं |”

राजू ने सवाल खड़ा करते हुए खुद ही उसको सुलझाने वाले अंदाज में कहा |

-“नहीं – नहीं, ऐसी गलती मत करना | कोई भी बिन बुलाया मनुष्य हमारे लोक तक नहीं आ सकता | मैंने बताया न ?.....कि परियाँ सिर्फ निश्छल और मासूम बच्चों को ही असली रूप में दिखती हैं |”

- “ऐसा क्यों ?”

-“ क्योंकि बड़ी उम्र के मनुष्य कई बार हमसे जानबूझकर चालाकी कर जाते हैं या लालच में धोखा कर देते हैं, इसीलिए हमारे लोक में उनका आना सख्त मना हो गया है | जबकि बच्चे हमारी सारी बातें और नियम ईमानदारी से मानते हैं | इसीलिए हम अब भी उन पर विश्वास करते हैं, उनको प्यार करते है |”

-“लेकिन बापू ने तो बताया था कि एक बार कोई शिकारी वहाँ तक पहुँच गया था और उसने परियों का पेड़ देख भी लिया था | तभी तो बापू ने भी यह चर्चा सुनी थी |”

-“हाँ, यह बात भी सही है | वास्तव में हमारे इस प्रवास के समय एक दिन अथवा 24 घंटे की एक घड़ी ऐसी भी होती है, जब कोई बिन बुलाया मनुष्य भी उस पेड़ तक पहुँच सकता है | लेकिन उसे पेड़ पर परियों के आकार में लटक रहे फलों के अलावा कुछ भी समझ में नहीं आएगा | इस दिवस से पहले पड़ने वाली संध्या अथवा रात के समय परियों के पेड़ की झिलमिलाती रोशनी भी उसे दिख सकती है, लेकिन उस रोशनी के सहारे भी कोई मनुष्य बिना हमारी इच्छा के उस पेड़ तक नहीं पहुँच सकता |” – परी ने रहस्यपूर्ण ढंग से समझाया |

राजू यह सुनकर सोचने के अंदाज मे सिर खुजाने लगा | सोचता रहा कि आगे क्या पूछे ? जल्दी में कुछ न समझ आया तो सिर झटक कर बोला – “खैर छोड़िये, सिर्फ यह बताइये कि मैं कैसे पहुँच पाऊँगा परी लोक तक |”

राजू की अंतहीन बाल सुलभ जिज्ञासा से परी रानी मुस्कुरा उठी | अब उसने राजू को धीरे से अपनी गोद से उतारा और उसे अपने साथ आने का संकेत दिया - “चलो, मेरे साथ आओ |”

अब परी जहाँ खड़ी हुई, वहीं से पीछे की ओर मुड़ गयी | उसके पंख हल्का सा हिले, फड़फड़ाए | फिर वह उड़ती हुई सी कमरे की दीवार की ओर आगे बढ़ गयी | उसके धीरे – धीरे हिलते हुए पंखों से सुगंधित हवा का तेज झोंका निकला | मानों फूलों की घाटी के सारे फूलों की मनमोहक सुगंध उसके पंखों में समायी हुई थी | इस सुगंध से राजू को पुनः मदहोशी छाने लगी |

परीमाँ का आदेश भरा स्नेहिल आमंत्रण मिल चुका था | इस आमंत्रण में अनोखा जादुई आकर्षण था | अतः राजू बिना कोई प्रतिवाद किये परी माँ के पीछे बढ़ चला | दीवार में जिस स्थान से परी अन्दर आई थी, उसी स्थान पर फिर से तेज रोशनी का झमाका हुआ | दीवार में पुनः रास्ता बनता दिखा और परी वापस बाहर निकल गयी |

लेकिन राजू को उस दीवार के पास पहुँचते ही एक भय सा महसूस हुआ | क्षणभर के लिए ठिठक कर सोचने लगा – “परी माँ के पास तो चमत्कारी शक्तियाँ हैं | वह तो जैसे आयी थी, वैसे ही आर – पार निकल गयी | लेकिन मैं तो दीवार से से टकराकर चोट खा जाऊँगा |”

बात अजीब थी भी | क्योंकि दीवार तो राजू के देखने में पहले भी सही सलामत थी, और अब भी सही सलामत ही दिख रही थी | कहीं से जरा भी टूटी – फूटी नहीं थी | परी के बाहर निकलने के बाद वह दीवाल फिर से वैसी ही बन्द दिखने लगी थी | क्षण भर के लिये उसकी बालकबुद्धि में उस दीवाल से टकराने का भय उत्पन्न होना स्वाभाविक ही था | वह परी की अधिकांश शक्तियाँ समझ ही नहीं सकता था | परी तो दीवार के पार भी देख सकती थी |

परी ने वापस मुड़कर देखा | राजू को रुका और डरता हुआ देख उसके मन की बात पढ़ ली |

अतः परी ने अपनी छड़ी सीधी किया, किसी बिन्दु पर धीरे से दबाया | एक चमकती हुई किरण निकली और पलक झपकते ही सामने की दीवार राजू के लिए भी पारदर्शी हो गयी | दीवाल से होकर बाहर जाने का रास्ता फिर बन गया | अब राजू को दीवाल के पार खड़ी हुई परी साफ दिखने लगी थी | तब परी ने उसको भी नि:संकोच दीवाल से होकर आगे बढ़ने का संकेत किया |

थोड़ी झिझक के साथ राजू ने परी का अनुगमन किया | दीवार की ओर कदम बढ़ाया तो पैर दीवार में समा गये | जैसे वहाँ कोई दीवार थी ही नही | तब उसने हिम्मत करके दूसरा पैर भी हवा में आगे बढ़ा दिया | वह भी बड़ी आसानी से दीवार के पार निकल गया | बाहर निकलने के बाद जब उसने पलट कर देखा तो फिर चमत्कृत रह गया | दीवार तो अब भी अपनी जगह ज्यों की त्यों खड़ी थी | वैसे ही बन्द | न कोई रास्ता, न कोई खिड़की |

......और तो और, अब वह दीवाल भी पारदर्शी नहीं दिख रही थी | वहाँ फिर से एक पक्की और आयताकार मजबूत ईंटों की चुनी हुई दीवार ही नजर आ रही थी | ...ठीक पहले जैसी |

सब कुछ बड़ा रहस्यमय दिख रहा था, वैसा ही घट भी रहा था | हैरान राजू समझ रहा था, अन्तर्मन में कहीं थोड़ी सी जागृत बची हुई चेतना से सोच रहा था – “हो न हो ? यह सब परी रानी की जादुई शक्तियों का ही चमत्कार था | ऐसा उसने कहानियों में पहले भी सुन रखा था | थोड़ी देर पहले तक वह बेकार ही डर रहा था कि कहीं दीवार से टकरा न जाए | लेकिन आश्चर्य, वह तो ऐसे पार हो गया था, जैसे वहाँ कुछ था ही नहीं |”

परी रानी उसे रास्ता दिखाते हुए आगे – आगे चल दी | कहने को तो राजू परी रानी के पीछे – पीछे पैदल कदम बढ़ाते हुए ही चला था | लेकिन, दूर ......., बहुत दूर तक चलते हुए उसने महसूस किया कि रास्ते में जंगल, चट्टानें, पहाड़, गुफा, नदी और झरने बड़ी तेजी से पीछे छूटते जा रहे हैं | मानो वह खुद भी हवा के झोंकों पर सवार था या किसी अदृश्य वायुयान पर खड़े होकर चहलकदमी कर रहा हो | ये बड़ा ही अनोखा अनुभव था |

फिर कुछ पलों बाद ही राजू को काफी दूर से बड़े वाले ऊँचे पहाड़ की चोटी पर, एक सुनहरी और चमकीली रोशनी चमकती दिखायी दी | फिर जैसे – जैसे वह पास पहुँचता गया, वहाँ जगमगाहट दिखने लगी थी | अब उसे विश्वास हो गया कि परी माँ उसे सचमुच परियों के पेड़ की ओर ही ले जा रही है |

.......और फिर कुछ देर बाद राजू ने देखा कि वह रोशनी वाली जगह तक पहुँच भी गया है | यह वही परियों का पेड़ था, जिस पर परीलोक होने की सम्भावना थी | उसे इस यात्रा की सही दूरी और समय का कुछ पता ही नहीं था | लेकिन जितना भी अनुमान था, उसके अनुसार विश्वास नहीं हो रहा था कि इतना लंबा सफर, वह इतनी जल्दी पार कर आया है |

अब वह सीधे उस पेड़ के ऊपर ही उतरे थे, एक बड़ी और मोटी सी डाली पर | लेकिन आश्चर्य की बात थी कि दूर से काले रंग की डाल जैसी दिखने वाली वह जगह एक बेहद चौड़ी और काले रंग की पक्की सड़क थी |

----------क्रमशः