परियों का पेड़ - 8 Arvind Kumar Sahu द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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परियों का पेड़ - 8

परियों का पेड़

(8)

परियों के पेड़ पर

जिस जगह पर राजू और परी उतर कर खड़े हुए, उसे एक गोल चौराहा भी कह सकते थे | यहाँ से अनेक दिशाओं को निकली हुई डलियाँ अर्थात चारों ओर के लिए वैसी ही पक्की सड़कें जा रही थी | परियों का वह विशाल पेड़ कोई मामूली पेड़ नहीं बल्कि किसी हरी – भरी पहाड़ी पर बसा पूरा का पूरा शहर लग रहा था | अनोखी रोशनी से जगमगाता हुआ विशाल शहर |

राजू देख रहा था | परियों के इस पेड़ पर खूब चकाचौंध है | जैसे यहाँ कोई उत्सव हो | पहले तो कुछ दूरी से यहाँ पेड़ की डालियों पर फलों जैसी लटकती हुई परियाँ ही उसे रही थी | लेकिन पास पहुँचते ही वह तो दंग रह गया था | मानों दुनिया का आठवाँ अजूबा देख रहा हो | वह देख रहा था कि वे फलों जैसी परियाँ तो यहाँ जीवित लोगों की तरह झूम रही हैं, इधर – उधर घूम रही हैं | वे सब आपस मे बातें भी कर रही हैं |

सबने परी माँ के साथ राजू को आया देखकर उसका स्वागत किया | उसे खूब प्यार – दुलार किया | वह बड़ी देर तक वह परियों की दुनिया में आश्चर्यपूर्वक घूमता - टहलता रहा | अविश्वसनीय दृश्य व वस्तुएँ देखता रहा | उड़ते बादलों को छूता रहा | कई अनोखी चीजों से खेलता रहा | फिर स्वादिष्ट व्यंजनों की दावत भी हुई | यहाँ उसने खूब खाया – पिया, नाच – गाना देखा और मस्ती भी की | फिर जब थक गया तो वहाँ की परियों से विदा लेकर अपने घर वापस लौटने को हुआ |

चलते समय राजू ने सोचा कि निशानी के तौर पर इस पेड़ में लगा परियों जैसा एक फल घर के लिए ले जाऊँ | उसने एक परी फल को डाल से तोड़ने के लिए हाथ बढ़ाया, लेकिन तभी मानो बिजली कड़क उठी | एक तेज आवाज उसके कानों मे गूँजी - “राजू! ये ठीक नहीं है | तुम क्या कर रहे हो?”

भौंचक हुए राजू ने बस इतना ही सुना | जैसे किसी ने उसे बुरी तरह डांट दिया हो | शायद उसकी परी माँ ने डांट लगायी हो | फिर एक तूफान जैसा आया और उसके पूरे शरीर को ज़ोर से झिंझोड़ता हुआ चला गया | मानो कोई उसे वह परीफल तोड़ने से बुरी तरह रोक रहा हो, मना कर रहा हो |

राजू ने फिर भी हाथ बढ़ाने की कोशिश की तो उसका शरीर फिर किसी ने ज़ोरों से हिला दिया | राजू के हाथ चाहकर भी किसी डाल तक नहीं पहुँच पाये | वह जैसे ही किसी फल की ओर हाथ बढ़ाता वह जीवित परी के रूप में आकर चीखने लगती | उसके नन्हें हाथ किसी परीफल को चाहकर भी छू नहीं पाये | तब उस ने किसी अनजाने भय के चलते तेजी से अपने हाथ वापस खींच लिये |

लेकिन ज़ोर से डाँटने की आवाज फिर भी बंद नही हुई थी |

- “राजू ! बहुत गलत बात है | ये क्या कर रहे हो, .....उठो,……स्कूल नहीं जाना क्या ? …भला इतनी देर तक भी कोई सोता है ?”

आवाज पहचानते ही वह हड़बड़ाकर उठ बैठा - “ब...ब...बापू ?”

राजू अचानक ही बहुत गहरी नींद से जगा दिया गया था | उसके पिताजी झिंझोड़ते हुए उस पर बार – बार चिल्ला रहे थे – “राजू ! बहुत गलत बात है | .....उठोsssss | इतनी देर तक नहीं सोना चाहिए |”

“ज...ज...जी बापू |” – उसने अलसाये हुए स्वर में जल्दी से जवाब देने की कोशिश की, फिर आँखें मलते हुए चौंक – चौंक कर इधर – उधर देखने लगा | उसे एक विचित्र झटका जैसा लगा था | मानो किसी ने अचानक ही उसको किसी दूसरी दुनिया में ला पटका हो |

बापू द्वारा जोर – जोर से झिंझोड़े जाने के कारण वह जल्दी ही चैतन्य हो गया था | उसने आँखें फैला कर अपने चारों ओर देखा | सूरज की रोशनी खुले हुए दरवाजे से भीतर आ रही थी | इसका मतलब था कि दिन निकले देर हो चुकी थी | राजू अचानक ही परीलोक से वास्तविक धरती पर आ चुका था | या यूँ कह लें कि उसका परियों वाला सपना भी टूट गया था |

हालांकि रात की वह सारी घटनाएँ सच थी या सपना ? राजू इतनी जल्दी तय नहीं कर पा रहा था | उसका सिर भारी हो रहा था | जैसे सारी रात का जागा हो | उसने थोड़ा सा दिमाग पर ज़ोर डाला तो रात की सारी घटनाएँ किसी चलचित्र की तरह उसकी यादों से टकराते हुए गुजर गयी | बड़ी विचित्र बात थी कि उसे रात की घटना का देखा और भोगा हुआ सब कुछ अच्छी तरह याद आ रहा था |

.........और वह रास्ता भी, जिधर से परी रानी उसको लेकर गई थी | उसके मस्तिष्क में परियों के पेड़ तक पहुँचने का मानचित्र भी स्पष्ट रूप से अंकित हो चुका था |

पिता जी को घूरते पाकर राजू जल्दी से बोला - “ तैयार होता हूँ बापू ! रात में देर तक फूल परी वाली कहानी सुनता रहा था न आपसे ? सोने में देर हो गयी थी, सो इस सुबह में भी देर तक नींद नहीं खुली |”

“ठीक है | जल्दी उठो और समय से स्कूल जाने का प्रयास करो |” - राजू के पिताजी आश्वस्त होकर कमरे से बाहर चले गये |

राजू तात्कालिक तौर पर पिताजी से परियों के पेड़ तक जाने और परी माँ से मिलने वाली स्वप्न जैसी घटना को भले ही गोल कर गया था | लेकिन वह कुछ भी भूलने की स्थिति में बिलकुल नहीं था | इसीलिये उसने बिस्तर से उतरने के पहले एक नजर अपने कमरे में चारों ओर डाली | पहले बिस्तर को ध्यान से देखा |

बिस्तर पहले जैसा ही था | ज्यों का त्यों, वही सामान्य सी फटी हुई रज़ाई और पुरानी चादर से ढका पतला सा गद्दा| भव्य पलंग की जगह वही पुरानी चारपाई दिख रही थी| पूरे कमरे में राजा– महाराजाओं जैसी शान शौकत वाली कोई बात ही नजर नहीं आ रही थी | उसने चारों तरफ की दीवालों को भी ध्यान से देखा| कहीं से किसी के भी आने जाने का रास्ता या एक दाग तक नहीं था|

तो क्या वह सब कुछ झूठ था ? राजू का मन यह बात मानने को तैयार नहीं था | जाने क्यों उसके बाल मन में यह विश्वास बैठ गया था कि उसने जो कुछ भी देखा था, वह स्वप्न जैसा रहस्यमय होते हुए भी सच था |

उसे सब कुछ अब भी उतना ही विश्वसनीय लग रहा था, जितना रात को भोगा हुआ यथार्थ | ये सपना तो बिलकुल भी नहीं हो सकता था | कुछ भी हो, उसकी बालक बुद्धि ने अब पक्का निश्चय कर लिया था कि वह अपनी स्मृति के सहारे उस परियों के पेड़ तक फिर से जायेगा | चाहे जैसे भी हो.....पर जरूर जायेगा |

इस निश्चय के बाद राजू जल्दी से बिस्तर छोड़ कर उठा | शौच गया, दातुन किया | नहाया – धोया, नाश्ता किया | फिर बस्ता लेकर स्कूल के लिए चल पड़ा | लेकिन रास्ते भर उसका मन उखड़ा – उखड़ा ही रहा |

वह कक्षा में पहुँच कर सबसे पीछे की बेंच पर चुपचाप बैठ गया | एकदम गुमशुम | किसी साथी से भी कोई बात चीत नहीं किया | उसकी मनः स्थिति से स्पष्ट था कि आज स्कूल का पूरा दिन यूँ ही उधेड़बुन में बीतना था |

उसका मन पढ़ाई में बिल्कुल नहीं लग रहा था | अध्यापक क्या पढ़ा रहे हैं? वह बिलकुल भी ध्यान नहीं दे पा रहा था | हाँ, राजू ने दिखावे के लिए अपनी पाठ्य पुस्तक निकालकर खोल ली थी | कक्षा में आज मनुष्य के चन्द्रमा पर जाने के अभियान की रोचक कहानी सुनायी जा रही थी | अध्यापक के शब्द उसे सुनाई तो पड़ रहे थे, लेकिन मानो एक कान से प्रवेश करके दूसरे कान से बाहर भी होते जा रहे थे |

राजू के मासूम दिमाग में बार – बार बस एक ही कहानी हलचल मचाए हुए थी – परियों के पेड़ वाली कहानी |

आखिर क्या है वहाँ ? उसे बार – बार ऐसा क्यों लग रहा था कि उसकी परी माँ उसे बुला रही हैं | उसे परीलोक में जाना ही चाहिए| परियाँ सचमुच बच्चों की बहुत अच्छी दोस्त होती हैं | वे बच्चों का खूब ख्याल रखती है | उनकी परवाह भी करती है | बहुत कुछ एक माँ की तरह ही | वह जितना भी सोचता, उसका विश्वास भी बढ़ता ही जा रहा था कि परियाँ ही उसके जैसे बच्चों की माँ होती हैं |

राजू स्कूल की छुट्टी होने तक समय काटता रहा | आखिर धीरे – धीरे पढ़ाई का समय बीतता गया | कक्षा में अलग – अलग विषयों की पढ़ाई के अध्यापक आते – जाते रहे | वह अपनी बेंच पर सिर झुकाए सबसे छुपने का प्रयास करता रहा | फिर आखिरकार स्कूल से छुट्टी का आखिरी घंटा बज गया |

राजू आज बहुत ज्यादा अनमना था या फिर बहुत ज्यादा उत्साहित ? कुछ भी कहना मुश्किल था | क्योंकि जब वह स्कूल से बाहर निकला तो उसकी पीठ पर उसका बस्ता नहीं था | …..या यूँ कह लें कि उसे अपना बस्ता लेने का होश भी नहीं था | वह तो बस स्कूल की छुट्टी होने और वहाँ से जल्दी निकल जाने का ही इंतजार कर रहा था |

सोच में डूबा हुआ राजू धीरे – धीरे चलता हुआ स्कूल के फाटक से बाहर निकल आया | लेकिन वापस लौटते हुए उसके कदम घर जाने के बजाय किसी दूसरे रास्ते पर चल पड़े थे |

-------------क्रमशः