कर्म पथ पर - 14 Ashish Kumar Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कर्म पथ पर - 14



कर्म पथ पर
Chapter 14


वृंदा को होश आया तो उसके चारों तरफ अंधेरा था। कुछ देर बाद जब आँखें कुछ अभ्यस्त हुईं तो उसे समझ में आया कि वह किसी कमरे में बंद थी। उसके हाथ पाँव बंधे थे। लेकिन यह पुलिस लॉकअप नहीं था। उसके मन में आया कि उसे तो पुलिस गिरफ्तार कर लाई थी। पर वह पुलिस हिरासत में नहीं थी। तो फिर वह थी कहाँ ? उसे अंतिम जो बात याद थी कि एक हवलदार ने उसे कुछ सुंघा दिया था और वह बेहोश हो गई थी।
वह गिरफ्तार होने के बाद की घटनाओं को याद करने लगी।
उसे लग रहा था कि पार्क में अचानक पुलिस का पहुँचना अवश्य जय का षड़यंत्र था। उसे गिरफ्तार करवा कर वह अंग्रज़ी हुकूमत की आँखों में अच्छा बनना चाहता था। ताकि उनकी जी हुजूरी कर अपनी दौलत में और इजाफा कर सके।
पुलिस की गाड़ी में बैठी वृंदा मन ही मन उबल रही थी।
'कैसा नीच धोखेबाज़ इंसान है। अच्छे होने का नाटक कर मुझे पकड़वा दिया। भुवनदा गलत थे। इन जैसे रईसज़ादों की फितरत कभी नहीं बदलती है।'
वह अपमानित महसूस कर रही थी। स्वयं को कोस रही थी कि क्यों वह उस घटिया' इंसान से मिलने गई थी। लेकिन अब तो वह पुलिस की गिरफ्त में थी। उसे पकड़े जाने का दुख नहीं था। अफसोस था कि वह देशहित में जो करना चाहती थी वह नहीं कर पाई थी। अभी तो उसने इस राह पर कुछ कदम ही बढ़ाए थे।
उसे याद आया जब उसने देखा कि पुलिस की गाड़ी मुख्य रास्ते को छोड़ कर किसी कच्चे रास्ते पर उतर गई तो उसने इसका कारण पूँछा। इस पर इंस्पेक्टर ने उसे गाली देकर चुप रहने को कहा था। लेकिन वृंदा ने शोर मचाने की कोशिश की तो एक हवलदार ने उसका मुंह बंद कर दिया और दूसरे ने रुमाल में कुछ डालकर उसे सुंघा दिया। उसके बाद वृंदा होश खो बैठी।
वृंदा अब अनुमान लगाने का प्रयास कर रही थी कि यदि वह पुलिस लॉकअप में नहीं थी, तो वह कहाँ हो सकती है। अंग्रेज़ी हुकूमत के अलावा उसका और कोई दुश्मन तो था नहीं। पर जब पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था तो यहाँ लाकर क्यों रखा है ?
पर अब बंधे होने के कारण वृंदा को पीड़ा होने लगी थी। वह किसी पलंग पर पड़ी थी। उसने उठने की कोशिश की। किंतु हांथ पाँव बंधे होने के कारण कुछ ना कर सकी। अपनी बेबसी पर उसे बहुत गुस्सा आया। वह चिल्लाने लगी।
"कौन हो तुम जिसने मुझे यहाँ बांध कर रखा है ? क्या चाहते हो तुम ?"
लेकिन उसके सवाल का कोई जवाब नहीं मिला। कुछ देर चिल्ला कर वह शांत हो गई। करीब आधे घंटे के बाद कमरे का दरवाज़ा खुला। किसी ने बिजली जलाई। उसके सामने हैमिल्टन खड़ा था। उसने नाइट गाउन पहना था। सांसों से शराब की दुर्गंध आ रही थी।
वृंदा ने हैमिल्टन के कारनामे उजागर किए थे पर कभी भी उसे देखा नहीं था। उसने पूँछा,
"कौन हो तुम ? मुझे यहाँ क्यों लाए हो ? जाने दो मुझे।"
वृंदा के गुस्से को देख कर हैमिल्टन ज़ोर से हंसा। फिर दांत पीसते हुए बोला,
"जॉन हैमिल्टन नाम है मेरा। मुझ पर कीचड़ उछालने की हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी ?"
नाम सुनकर वृंदा खुद को छुड़ाने के लिए छटपटाने लगी। हैमिल्टन बोला,
"बहूत दर्द हो रहा है तुमको। में तुम्हारे हाथ पैर खोल देता हूँ।"
हैमिल्टन की आँखों में वासना के डोरे तैर रहे थे। उसने नाइट गाउन उतार दिया। भूखे भेड़िये की तरह वृंदा पर टूट पड़ा।
वृंदा कुछ नहीं कर सकी। वह फिर से बेहोश हो गई।

उस दिन जब इंद्र नाटक के सिलसिले में गेंदामल से मिलने गया था तब उसे जय का व्यवहार बदला हुआ लग रहा था। बात को बीच में ही छोड़ वह सुभाष के साथ चला आया था। यह सब इंद्र को ठीक नहीं लगी थी।
इंद्र को जय के वृंदा के प्रति झुकाव की भनक थी। उस दिन जब वह रिहर्सल में विघ्न डालने आई थी तब भी वह उससे नाराज़ होने की बजाय उसके प्रति नर्म था। उसे नाटक के सफल मंचन की खुशी होने की बजाय वृंदा की गिरफ्तारी का दुख अधिक सता रहा था। जश्न की पार्टी छोड़ कर वह ना जाने कहाँ भटकने चला गया था।
इंद्र ने जय से जान पहचान ही इसलिए बढ़ाई थी क्योंकी वह जानता था कि जय श्यामलाल टंडन जैसे प्रभावशाली व्यक्ति का इकलौता बेटा है।‌ उसे पता था कि जय के जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है। वह बस गीत संगीत और नाटकों का शौकीन है। वह उसके इस शौक का लाभ उठा कर श्यामलाल से पैसे झटकना चाहता था। वह इसमें एक हद तक सफल भी हो गया था।
लेकिन इधर कई दिनों से जय उससे दूर रहने लगा था। इंद्र को डर था कि कहीं जय पर उसका प्रभाव कम ना हो जाए। इसलिए वह जय को बंबई की फिल्म इंडस्ट्री के सपने दिखाता था।
पर अब उसे इसकी पूरी संभावना नज़र आ रही थी कि जय उस लड़की वृंदा के चक्कर में पड़ कर उससे दूर हो गया है।
इंद्र को वृंदा से घृणा होने लगी थी। उसने पूरा प्रयास किया था कि उसके पहले नाटक के मंचन को रोक दे। अब उसके कारण जय भी उसके चंगुल से निकल गया था। इंद्र के चले जाने का मतलब उस ज़रिए का समाप्त होना था, जिसके द्वारा वह बड़े लोगों के बीच अपनी पैठ बना सकता था। श्यामलाल टंडन के रसूख का लाभ उठा सकता था।
गेंदामल के साथ बात समाप्त कर वह सीधा जय के घर गया। लेकिन पता चला कि वह अभी तक घर नहीं पहुँचा है। इंद्र ने दिमाग चलाना शुरू किया कि आखिर जय कहाँ जा सकता है ? वह तो कह रहा था कि तबीयत ठीक नहीं है। अवश्य कोई और बात है।
जय गेंदालाल के घर से सुभाष के साथ निकला था।‌ शायद उससे कुछ पता चल सके यह सोंच कर वह उसके घर गया। सुभाष से उसे पता चला कि जय उससे वृंदा के बारे में पूँछ रहा था। उसने यह भी बताया कि उसने जय को मदन का पता भी बताया था जो कि वृंदा के बारे में जानकारी दे सकता था।
सुभाष से मदन का पता लेकर वह उसके घर पहुँचा तो पता चला कि वह किसी के साथ बाहर गया है। इंद्र समझ गया कि अवश्य वह जय के साथ गया होगा। उसने अंदाज़ लगाया कि जय को यदि मदन से बात करनी है तो वह उसे ऐसी जगह लेकर जाएगा जहाँ इत्मिनान से बैठ सके। वह सीधे मदन के घर के पास वाले रेस्त्रां में पहुँचा। उसे रेस्त्रां के बाहर जय की मोटर खड़ी दिखाई दी। वह कुछ दूर खड़ा होकर उसके बाहर आने की प्रतीक्षा करने लगा। जब वह बाहर आया तो मदन उसके साथ था।
जय के जाने के बाद वह रेस्त्रां में घुस गया। वह यहाँ काम करने वाले एक वेटर को जानता था। इंद्र ने जय का हुलिया बता कर उससे पूँछा कि वह दूसरे व्यक्ति के साथ क्या बात कर रहा था। वह जानता था कि वेटर को लोगों की बातें सुनने की आदत थी। इंद्र ने उसे कुछ पैसे दिए। वेटर उन दोनों के बीच हुई जितनी बात सुन पाया था वह बता दी।
यह जानकर कि परसों दोनों फिर से इसी जगह मिलने वाले हैं उसने हंसमुख नाम के एक लड़के को रोल का लालच देकर रेस्त्रां में उन दोनों की बात सुनने के लिए भेजा। हंसमुख ऐसी जगह पर जाकर बैठा जहाँ से जय और मदन को देख और सुन सके।
मदन और जय की बातचीत में उसके कान में आज शाम, वृंदा और विक्टोरिया पार्क शब्द पड़े। इंद्र के लिए यह बहुत था।
उसके हाथ वृंदा से बदला लेने का अच्छा मौका लगा था। उसने पुलिस को सूचना दे दी।