ये लम्हा...... गुज़र जाने दो
डॉ. गरिमा संजय दुबे
"तुम समझ रही हो मैं क्या कह रहा हूँ ", सुबकती हुई बिंदु को विनोद ने झकझोरते हुए कहा, "अब कोई चारा नहीं रहा, ज़िन्दगी हाथ से फिसल चुकी है । मैं अपने परिवार को दर दर की ठोकरें खाते नहीं देख सकता । तुम्हे एक चीज़ की समझ नहीं है, अगर मैं अकेला चला जाऊंगा तो इस बच्चे को लेकर कहाँ कहाँ भटकोगी, सब साथ चलते हैं, कोई नहीं रहेगा तो किसी को तकलीफ़ नहीं होगी"। रोते रोते थर थर कांपने लगी थी बिंदु, सिसकियाँ हिचकियों में बदल गई थी "हम चलते हैं लेकिन कन्नू ने क्या बिगाड़ा है, इसे तो रहने देते हैं ।"
"क्या बेवकूफों जैसी बात कर रही हो" वह दहाड़ा लेकिन कांपते कांपते वह लड़खड़ा भी गया और सहारे के लिए पास रखी टेबल पकड़ ली । मजबूरी इस मोड़ पर ले आएगी सोचा न था । आज हाँ आज रात ही यह करना होगा, कल चोरड़िया सेठ फिर आएगा मकान की कुर्की के लिए, उसके पहले हमें जाना होगा।
"नहीं नहीं ये ठीक नहीं है", वह फिर बोली
"क्या ठीक नहीं है मेरे बिना जी लोगी", विनोद ने जवाब दिया, "नहीं नहीं "कहते वे दोनों दुख से कांपते हुए एक दूसरे से लिपट गए ।
पिछले कितने दिनों से सोच रहा था खुद अकेले ही चला जाऊं, कितनी राते बिना सोये गुजार दी । सपने में अपनी बीवी को दर ब दर भटकते देखता, बच्चे को भूखे तड़फते देखता, लोगों को, रिश्तेदारों को बीवी का फायदा उठाते देखता पसीने पसीने हो घबरा कर नींद खुल जाती । किसी रात सपने में अपनी बीवी को किसी गैर मर्द की बाहों में देख नींद में ही मुट्ठियां तनते देखता । क्यों औरत है तो क्या हुआ, क्या उसकी इच्छाएं नही रहेगी, मजबूरी में ही किसी का हाथ थाम लेना पड़ेगा, या सचमुच किसी से प्यार हो जाये उसे, कब तक झुलसती रहेगी अधूरी इच्छाओं की तपन से, और बच्चे बेगाने से तरसते रहेंगें बाप के बाद मां के प्यार को भी ।
नहीं नहीं उसे भी साथ ले चलना होगा, बच्चे को कैसे इस भरी दुनिया में अकेला छोड़ दें, हाँ सब साथ में जाएंगे कोई बचेगा नहीं तो किसी को दर्द नहीं झेलना होगा, तकलीफे नहीं झेलना होगी । सोचते सोचते न जाने कितनी रातों को करवटे बदलते, टहलते गुजार दी । बिंदु देखती रहती लेकिन वह क्या कर सकती थी, ज्यादा पढ़ी लिखी थी नहीं छोटी उम्र में मां बाप ने व्यापारी परिवार में ब्याह दिया, फिर जो उलझी तो, मुझे क्या करना है, ये हैं ना सोच कर अपने को बहुत सी बातों से काट लिया था । पार्टी, किट्टी शॉपिंग और गॉसिप बस इसी में लगी रही । इसलिए जब पहाड़ टूटा तो समझ ही नहीं पाई कि कैसे रोये, या रोये भी कि नहीं ।
आज निर्णय हो गया था सबको साथ में चले जाना है, वहां जहां से कोई वापस नहीं आता । एक दोस्त जिसका फॉर्म था, उधारी पर एक क्विंटल गेहूं और उसमें रखने के लिए सल्फास की गोलियां ले आया था विनोद, संभाल कर रख छोड़ी थी ।
आज रात बिंदु दूध में मिला कर तीनों को पी जानी है और बस कल सब खत्म ।
तभी आठ साल का बेटा दौड़ता हुआ आया, माँ बाप के चेहरे देख थोड़ा ठिठका फिर बोला "मम्मा मम्मा मुझे कल डांस के लिए सर्टिफिकेट मिलने वाला है । असेम्बली में प्रेयर के टाइम पर मैडम देंगीं ।"
असेम्बली ..... कल.......टन टन टन ........घंटी बजी .......टन टन टन .........बच्चे इकट्ठे हो गए
सभी इकट्ठे थे लेकिन ये क्या कोई खुश नहीं है ।
एक मैडम भारी कदमों से आई .....धप्प धप्प धप्प
अब ये सर्टिफिकेट के लिए नाम अनाउंस करेगी ......दिल धड़कने लगा ........धड़ धड़ धड़ ......लेकिन ये क्या हाथ में सर्टिफिकेट ले वह रोते हुए क्या बोल रही है ........अवर ब्रिलिएंट डांसिंग स्टार किड कौस्तुभ इस नो मोर ...... ....वी प्रे फ़ॉर हिज होल फैमिली ...... च च च
आह सी निकली सबके मूहँ से । कौस्तुभ के दोस्त एक दूसरे का मुँह देख रहें हैं, ....कुछ को समझ आया कुछ को नहीं सबके चेहरे उदास हैं ।
"पापा, पापा, देखो टीचर ने यह दिया है", उसने विनोद का हाथ हिलाते हुए बोला, वह पसीने पसीने हो गया था । बमुश्किल मुस्कुराने की कोशिश करते हुए बोला "कल है ना"
"हाँ पापा आप आयेंगें ना, टीचर ने इनविटेशन दिया है" ।
....हाँ....... हैं..... क्यों नहीं आएंगे, पापा बेटा मम्मा सब जाएंगे, क्यों बिंदु, ', विनोद बोला ।
अपने धड़कते दिल और उमड़ते आंसुओं को छुपाते हुए बिंदु ने कहा "हाँ और नहीं तो क्या, मेरे प्यारे बेटे के साथ हम नहीं जाएंगे तो कौन जाएगा" कह कर उसने उसे सीने से लगा लिया और फफक पड़ी ।
साथ में मरने की जिद छूट जाने वाले दर्द से उबार तो लेती है, लेकिन जो साथ में मरते हैं क्या वो साथ में रहतें हैं कभी ।"अपने जिगर के टुकड़े को अपने हाथ से ज़हर कैसे दे दूँ, भले ही फिर मैं भी मर जाऊंगी लेकिन इस मौत के पहले ये हज़ार मौत जो मैं मरूँगी उसके दर्द को कैसे सहूँ, है ईश्वर, ये कैसा पागलपन सवार हो गया है । किसी को बताते भी नहीं, मुझे किसी को बताने भी नहीं देते । तीन दिन से घर के सारे फोन बंद हैं केवल एक फोन चालू है जो इनके पास ही रहता है, रात को भी सोते नहीं, धमकी देते हैं किसी को बताया तो जेब में रखी गोली खा मर जाऊंगा ।
किसी से बात नहीं कर पा रही, क्या करूं" ।
शाम हो चली थी । बिंदु खाना बनाने लगी थी, लेकिन मन में हज़ार उलझने प्रश्न थे । कभी कोई चीज़ हाथ से गिर रही थी तो कभी कुछ, खाने में कुछ भी बना टेबल पर रख वो तीनों खाने बैठे, कन्नू को खिला दिया, दोनों से न खाया गया खाना यूहीं छोड़ उठ बैठे । रात का इंतज़ार था । बस उसके बाद सब तकलीफें ख़त्म । कोई नहीं आएगा पैसा मांगने, कोई नहीं । सोफे पर निढाल पड़ा विनोद । जीवन में घनघोर अंधेरा, अब कोई रौशनी की किरण नहीं । सब करके देख लिया, कुछ हासिल नहीं, बस अब तो मौत ही ठिकाना है ।
बिंदु ए बिंदु, बाहर दूध वाला बॉटल रख गया है, बिंदु ने बॉटल उठाई और अंदर जा कर दूध गर्म करने लगी । कन्नू ने आवाज दी "मम्मा मैं दूध पियूंगा खूब सारा बोर्नविटा वाला", बिंदु उसकी तरफ देख मुस्कुराई, लेकिन रुदन, घबराहट और मुश्किल से आए हल्की मुस्कुराहट ने न जाने कैसा विषाद ग्रस्त चेहरा बना दिया था कि कन्नू दौड़कर आकर उससे लिपट कर रोने लगा, "मम्मा क्या हुआ, क्यों रो रही हो, मुझे नई पीना दूध", उसने कांपते हाथों से उसे उठा फिरसे सीने से लगा लिया । दोनों बहुत देर तक ऐसे ही बैठे रहे फिर कन्नू अपने होमवर्क की कॉपी लेकर बैठ गया ।
रात घिरने लगी थी, वीनोद ने धीरे से गोलियाँ बिंदु के हाथ में रखी, और कहा "चलो आज दोनों मिलकर दूध बनाते हैं" । गर्म दूध गिलासों में भर शक्कर डाल विनोद ने दो दो गोलियां सल्फास की उसमें डाल दी, "कन्नू बेटा दूध पियेगा, खूब मीठा कर दूँ ",
कन्नू मुस्कुराया "हाँ पापा, आज आप मुझे दूध दोगे "
विनोद माथे पर आए पसीने को अपनी कनपटियों पर महसूस करने लगा था भर ठंड में, कंपकपाते होठ और हाथ, आंखे भय से चौड़ी सी हो रही थी ।
वह बोला "हाँ कल मेरे बेटे को ईनाम मिलेगा, इसलिए आज पापा दूध दे रहें हैं", साड़ी के पल्लू को मुँह में ठूस, बिंदु ने विनोद का हाथ पकड़ लिया, दूध में चम्मच घूम रहा था, और इधर बिंदु का सर चकरा रहा था, बड़ी मुश्कील से थूक निगलते हुए थरथराती आवाज में बोली "दूध बहुत ज्यादा गरम है, थोड़ा ठंडा हो जाने दो , इतना गरम कन्नू नहीं पी पायेगा "।
चम्मच घुमाते हाथ रूक गए । कन्नू ने अपनी गेंद उठा खेलना शुरू कर दिया, "हे कल मम्मा पापा स्कूल आयेंगें, टीचर सर्टिफिकेट देगी, फिर पार्टी मनाएंगे, पापा पिज़्ज़ा खिलाना हाँ" ।
विनोद ने उसे भरी आंख से देखते हुए कहां "हाँ बेटा कल".........
लेकिन फिर .......कल ठक ठक ठक .........पड़ोसी दरवाज़ा पीट रहें हैं .........हेलो हेलो हेलो ..........पुलिस स्टेशन ..........ठक ठक ठक ................पुलिस हटो हटो हटो............, पूरे घर में पुलिस मुआयना कर रही है । वह देख रहा है तीन लाशें पड़ी हैं घर में ............हाय हाय ये क्या हुआ, ओह कैसे लोग .......एक ही सोफे पर एक दूसरे से लिपटे हुए कन्नू बिंदु और वो पड़े हैं .......
.हे भगवान......लोग रो रहें है .........पड़ोसी घबराए से उन्हें देख रहें हैं ............
"पापा, पापा देखो मैंने बॉल को रिंग में डाल दिया" कन्नू बोला तो विनोद जैसे कहीं से वापस लौटा, तो देखा कन्नू मुस्कुराता हुआ उसे देख रहा है ।
कांपते पैरों से जाकर सोफे पर बैठ गया, कान में एक साथ कई स्वर गूंजने लगे । कहते हैं मृत्यु के पहले इंसान का पूरा जीवन चलचित्र की भांति आंखों के सामने दौड़ने लगते हैं, मृत्यु स्वाभाविक हो या आत्महत्या ..............शहनाई बजने लगीं, साले सालियों की खिलखिलाहट, पत्नी का खूबसूरत चेहरा, मधुमास के सुनहरे दिन, खुशियों की किलकारियाँ और बधाई हो बधाई के सम्मिलित स्वर उसके कानों में टकराने लगे । क्यों जीजाजी आपकी तो किस्मत खुल गई दीदी जैसी बीवी पा कर । शिमला की वादियों के घुमावदार चक्कर और पत्नी का उससे भय से लिपट जाना । बच्चे के रोने की आवाज, "बधाई हो बधाई हो, बेटा हुआ है भैया पूरे दो तोले का हार लुंगी नेग में", बहन की आवाज । "अरे तेरे भाई के पास क्या कमी है ले लेना चार तोले का " माँ का जवाब, "मेरा पोता आ गया अब इसके साथ सबका बचपन फिर जीऊंगा", बाबा की आवाज सब । पहली बार कन्नू का पापा कहना पाsssssपा कहना तुतलाती जबान में सब कानो पर हथौड़े की तरह पड़ रहे थे । घन घन घन ।
वह सर पकड़ कर बैठ गया । बिंदु उसे घूरती सी बैठी है अपने में नहीं, आवेग से रह रह कर सिहर जाती है । कमरे में मौत का मातम छाया हुआ है, जैसे बस दरवाजे पर खड़ी मौत घर में घुसने को बेकरार, किसी भी समय अंदर घुस जाएगी । अपने पंजे में तीनों को ले लेने को आतुर । बस बस कुछ मिनट और ...................और तीन जीते जागते इंसान लाश बन जाएंगे । बिंदु ने सिर उठाकर मां बाबा की तस्वीर की तरफ देखा, उन पर पड़ी माला हिल रही थी, लेकिन जैसे अंदर लगी तस्वीरों के भाव बदल गए थे, भय से अनहोनी की आशंका से आंखे विस्फारित सी लग रही थी । उसने सहम कर नज़रे झुका ली । घड़ी के कांटे की टिक टिक टिक .............टिक टिक टिक
बीच बीच में कन्नू के येsss ओssss, मम्मी, पापा देखो देखो की आवाज ही निस्तब्धता को चीर रही थी । मौत के पहले अजीब सी निर्वात सी चुप्पी छा जाती है वैसे ही जैसे पूरी कायनात सांस रोके इस अनहोनी के भय से स्तब्ध हो चली थी । कहीं कोई शब्द नहीं था, कोई आवाज नहीं, ऐसी स्तब्धता की खुद की धड़कन दोनों कान तक स्पष्ट सुन पा रहे थे । बाहर हवा ठहरी थी लेकिन धमनियों में रक्त दौड़ रहा था, बार बार चेहरे का पसीना पोछ बिनोद बिंदु का चेहरा देख रहा था । "बहुत देर हो गई" बोलते हुए वह अचानक वह झटके से खड़ा हुआ और बोला चलो अब दूध पी लेते हैं । भय से बिंदु बैठे बैठे ही अपनी जगह पर हिलने लगी, अचानक कन्नू बोल पड़ा, "पापा पापा मुझे आईस क्रीम खानी है ला दो ना ",
वह खीज पड़ा "अभी आईस क्रीम कहाँ मिलेगी चुपचाप दूध पियो" ।
बिंदु ने हाथ पकड़ कर कहा "ला दो ना, वैसे भी यह उसकी आखिरी इच्छा है ", कहते कहते वह रो पड़ी ।
धड़ धड़ धड़ .............दिल जोर से धड़का तो क्या कल हम नहीं होंगे, कैसी होगी दुनिया हमारे बिना..........कुछ बदलेगा क्या ..........समस्याएं खत्म हो जाएंगी क्या .............. । एक बारगी इरादा डौल गया, लेकिन नहीं नहीं ...........अब वापसी नहीं । "ला दो ना", बिंदु ने उसे झकझोरकर कहा । माथे और चेहरे पर परेशानी में हाथ फेरता वह बोला
"ठीक है लाता हूँ आइसक्रीम में भी मिला देना गोली"। घर को बाहर से ताला लगा वह आईस क्रीम लेने चला गया । कन्नू और बिंदु ........... बिंदु ने कन्नू को गोद में बिठा बेतहाशा प्यार किया, "मम्मा क्यों रो रही हो, क्या पापा ने डाटा, कल मैं नानाजी से बोल के पापा को डांट दिलवा दूंगा, मत रो ठीक है ", , और वह कन्नू का हाथ माथा चूमती हुई रोती रही । कन्नू उससे लिपट गया ।
उसके गालों पर हाथ फेरते वह पीछे लौट पड़ी, कन्नू का जन्म, उसकी किलकारी, उसका घुटने चलते पलट कर उसे देखना, रात को उसका मंगलसूत्र पकड़ कर सोना, अंगूठा चूसना, चिड़िया को देख मचलाना, पहला स्कूल का दिन, पहला जन्मदिन, पहला पहला पहला सबकुछ आँखों के सामने घूमने लगा उसका मासूम चेहरा देख कलेजा मुँह को आ गया और उसने भींच लिया उसे अपनी बाहों में । "नहीं नहीं मैं इसे भैया भाभी को दे दूंगी ..........लेकिन क्या पाल लेंगें उसे........, सबके किस्से सुनें हैं ........ रिश्तेदार कब हुए किसी के । दुख में मन सबके प्रति अविश्वास से भर जाता है । मार खाता, ताने झेलता, भूख से बिलखता, अत्याचार सहता अपना बच्चा दिखा, नहीं नहीं मेरे बिना कैसे रहेगा, कितना तो रोयेगा, एक पल भी तो मेरे बिना नहीं रह सकता, नहीं नहीं ठीक ही कह रहे है ये सब साथ में चलते हैं । मैं मेरे कन्नू को अकेला नहीं छोडूंगी कभी नहीं '। वह अनिर्णय की स्थिती में विक्षिप्त सी बड़बड़ाने लगी । कन्नू नींद के आगोश में सामने लगा था तभी दरवाजे के खुलने और विनोद की आवाज़ आई "कन्नू ले तेरी आईस क्रीम" अपनी पसंद की चीज़ का नाम सुन आधी नींद में से उठ कन्नू आईस क्रीम खाने लगा । "अरे मेरा पर्स दुकान पर ही रह गया उसमें मेरी गोलियां थी मैं लेकर आता हूँ" कहता हुआ विनोद दौड़ते हुए जाने लगा, फिर सहसा ठहरा, पलटा और बिंदु और कन्नू के चेहरे अपने हाथों में लेकर बोला "तुम दोनों दूध पी लेना, तुम्हे अपनी आंखों के सामने मरते मैं नहीं देख सकता, लौट कर मैं भी दूध पी लूंगा" । कहकर वह बाहर दौड़ पड़ा बिंदु आवाज देती ही रह गई और वह बाहर निकल गया .....।
छहः महीने पहले तक अच्छा खासा सुखी परिवार था । अचानक जैसे किसी ने आंधी से सब कुछ उड़ा दिया हो । धंधे में पार्टनर के धोखे ने जमीन हिला दी थी पैरों के नीचे से । उसके नाम पर उधार पैसा ले लेकर अपना धंधा बढ़ा लिया और अपने हाथ खींच लिए । भरोसे का ऐसा क़त्ल किया उसने कि विनोद का अब खुद से भरोसा ही उठ गया । शेयर बाजार की लत का फायदा उठाया दोस्त ने, धंधे से उसे बेफिक्र रहने का कहते कहते अब ऐसी फिक्र दी कि विनोद पिछले छः महीनों में सड़क पर आ गया । मुसीबत अकेले कहाँ आती है, पार्टनर का धोखा, और शेयर में गिरावट एक साथ हुई कि विनोद संभाल ही न पाया । दोस्तो रिश्तेदारों ने थोड़ी बहुत मदद कर हाथ झटक लिया था । गहने दुकान सब कुछ बेच कर कर्ज़दारों से पीछा छुड़ाना चाहा था, लेकिन अभी भी कोई न कोई कर्ज़ बचा ही रह गया । कमल की नाल जैसे पानी बढ़ने के साथ बढ़ती है लेकिन पानी कम होने पर घटती नहीं सूख जाती है वैसे ही पैसे की अंधाधुंध आवक से बढ़ने वाले शौक पैसे की कमी से घटते नहीं इंसान को बरबाद कर देते हैं । विलासिता पूर्ण दिखावे में जीने के आदि अमीर परिवार का जमा पैसा गहना सब जा चुका था, कम में जीने की कल्पना और लोगों की नज़रों में अपने गिरते प्रभाव का आकलन विनोद को आत्मघाती बना गया । उसे मरने से सरल कोई राह नहीं लग रही थी । दोस्तों ने समझाया भी कुछ समय यह मकान बेच छोटी जगह में रह अपने पैर जमा ले लेकिन हर सच्ची सलाह उसे उसकी खिल्ली उड़ाती सी लगती, छोटा घर, छोटा धंधा तो उसकी शान के ख़िलाफ़ था न .........
अपने आपको एक चक्रव्यूह में फंसा महसूस कर रहा था, और सब तरफ से निराश हो अब जिंदगी से रुखसती का सोच रहा था लेकिन बीवी बच्चे को इस हालत में दर दर की ठोकरे खाने नहीं छोड़ सकता था तो इकट्ठे मौत को गले लगाने चला था पूरा परिवार ।
अपने पर्स को वापस लाने दुकान पर पहुंचा पर्स मिल भी गया अब लौट रहा था कि फुटपाथ पर एक मजदूर का बच्चा दौड़ते दौड़ते उसके पैरों से टकरा गया । झुंझला कर बोला "क्यों कीड़े मकोड़ों की तरह जीते हो, ऐसे जीने का क्या फायदा, मर क्यों नहीं जाते तुम लोग ।" कुछ क्षण के लिए चुप्पी सी छा गई, पास ही बैठे मजदूर पति पत्नी एक दूसरे का मुँह देखने लगे । विनोद वहां से आगे चला तो मजदूर ने चिल्ला कर कहा, "काहे मरे बाबू, ये जीवन बड़ी मुश्किल से मिला उसे जिये बिना कैसे चले जाएं, क्यों मरे जैसे भी जी रहें हैं तुम्हारा क्या लेते हैं, किसी न किसी दिन तो हालत बदलेंगें, हम तो झोपड़ी में भी खुश हो लेते बाबूजी, तुम्हार बड़े लोगन को तो कितनों भी मिले तुम सुखी नहीं और जरा जरा सी बात में मरने की सोचें लगत हो।"
अचानक जैसे दिमाग पर घंटे की चोट पड़ी टन टन टन............ उसने पलट कर देखा मजदूर मुस्कुरा रहा था । मन ग्लानि से भर गया, आंख से झर झर आंसू बहने लगे, यह मजदूर इतने कष्ट में भी जी सकता है और मैंने कैसे विश्वास खो दिया । याद आया बिंदु को दूध पीने का बोल आया था, घबराहट बढ़ चली कहीं सच तो उसने दूध नहीं पी लिया होगा, तेजी से दौड़ पड़ा घर की दिशा में, पैरों में जैसे जान ही नहीं रही, मनों बोझ पड़ गया था, पसीने से लथपथ वह लगभग घिसटता सा घर की तरफ दौड़ने लगा, बेतहाशा, कहीं बिंदु और कन्नू ने दूध पी लिया तो ................, नहीं नहीं ये क्या पागलपन कर दिया उसने..........., वह हत्यारा है हत्यारा ..........., अपने ही बच्चे और बीवी का .............अब उसे भी मरना होगा, पापा पापा........., विनोद........ देखो....... की आवाजें उसकी धड़कनों को बढ़ाने लगी, गिरते पड़ते वह सीढ़िया चढ़ने लगा, थर थर कांप रहा था, दो मिनट का रास्ता मीलों लंबा लगने लगा, ........ लगा उड़ कर पहुँच जाए और दूध के गिलास ढोल दें लेकिन लगता है देर हो चुकी थी , दरवाजे तक पहुंच गया था । जोर जोर से दरवाजा खटखटाने लगा । लेकिन दरवाजा नहीं खुला । भय और आशंका ने शरीर की ताकत निचोड़ ली थी। बिंदु ..........कन्नू........... कहते कहते वह विक्षिप्तों की तरह उन्हें आवाज लगाने लगा भीतर से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी । सब कुछ खत्म हो गया था, बिंदु और कन्नू नहीं .......नहीं ........ बिंदु और कन्नू की लाश अंदर पड़ी थी, मुँह से झाग निकल रहा था । वह सर पकड़ कर वहीं दरवाज़े से टिक कर बैठ गया । दुःख, आवेग में भूल ही गया था कि ताला तो उसने बाहर से लगाया था, अचानक हाथ जेब की तरफ गया तो पाया कि चाबी उसके पास है तो अंदर से दरवाजा कैसे खुलेगा, उम्मीद की एक किरण जगमगाई ..........शायद बिंदु सो गई हो दूध न पिया हो । घबराहट में चाबी दो बार हाथ से गिर पड़ी जैसे तैसे दरवाजा खोल वह घर में दाखिल हुआ, दाखिल होते ही नज़र दूध के खाली गिलास पर पड़ी ............ अब हिम्मत जवाब दे गई .......लेकिन फिर भी सारी ताकत बटोर वह दौड़ता हुआ अंदर के कमरे में दाखिल हुआ, जहां कोई नहीं था वह पागलों की तरह बिंदु .....कन्नू .........कहता हुआ वह बच्चे के कमरे की तरफ दौड़ पड़ा, दिल की धड़कन बेतहाशा बड़ गई थी, थर थर कांपते हुए उसने दरवाजे को धकेला, तो देखा ...........और देखते ही चीख निकल गई ...............बिंदु ........कन्नू.......... दौड़कर जाकर उनसे लिपट गया और फूट फूट कर रोने लगा, मुझे माफ़ कर दो बिंदु ......कन्नू ...........मेरे बच्चे ऐसे कैसे निराश होकर मैं यह करने चला था ।
बिंदु और कन्नू एक दूसरे से लिपटे हुए एक कोने में बैठे थे .........वे ज़िन्दा थे .........., प्यार से कन्नू ने गले में बाहें डाल दी, बिंदु फफक फफक कर रो पड़ी "मुझसे नही हुआ, तुम्हारे जाने के बाद टूट गई और सोचा अपने बच्चे को छोड़कर नहीं जाऊंगी, न ही उसे कुछ होने दूंगी, पाल लूंगी उसे, कम में जी लूंगी, लेकिन कभी नहीं कभी हार नहीं मानूंगी, जी ......... विनोद का कंधा पकड़ हिलाते हुए बोली जी.............कभी सब कुछ खत्म नहीं होता है, जी लेंगें संभाल लेंगे साथ हैं तो सब है "।
वह खुशी से बड़बड़ाता बोला "सच कह रही हो बिंदु, सब कुछ कभी खत्म नहीं होता ......., नहीं होता......... अच्छा हुआ जो ये लम्हा गुजर गया, कुछ लम्हों को गुजर जाने देनी चाहिए ...........ऐसा कहते हुए उसने अपने जेब से बाकी की गोलियां निकाल बेसिन में बहा दी और बिंदु कन्नू से लिपट गया । कमरे की दीवारें, खिड़कियां, दरवाजे , हवा जो सांस रोके, स्तब्ध थे मानों उनकी जान में जान आई, हवा सामान्य सी बहने लगी थी, दीवार पर लगी तस्वीर सामान्य थी, ज़िंदगी की आमद ने मौत को कदम पीछे खींचने पर मजबूर कर दिया, मौत का लम्हा गुजर गया था ।
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